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मैं किन्नर

 मैं प्रकृति की एक खूबसूरत सी रचना ,मेरे भी काले सूंदर बाल है,जब चलूं तो लगे जैसे नागिन लहरा गयी हो,मेरी आँखें भी इतनी खूबसूरत जैसे कोई भी देखे तो बस देखता रहे,लंबी पलकें,भारी भौंहे।मेरे होंठ भी बहुत सुंदर जैसे 2 गुलाब की पंखुड़ियों को आपस मे जोड़ दिया हो । बचपन से खुद को आईने में देख इतराती रही मैं ,इतनी खूबसूरत होकर भी क्यों सबकी आंखों में खटकती मुझे कभी पता नही लगा ।शायद जलते होंगे सब मेरी खूबसूरती से ।मैं ये सोचती और इठला जाती। मैं घर के बाहर ज्यादा नही जाती थी ,मां ने कभी जाने नही दिया ,न किसी के घर किसी फंक्शन में ना त्योहारों में।शायद माँ डरती होगी कि उसकी बेटी को कोई नजर भर ना देख ले।जब कभी बाहर जाती तो सबकी नजरें मुझ पर टिकी होती ,औरतें मुह जोड़ कर फुसफुसाती, आदमी कनखियों से मुझे देख कर बाते करते ,और लड़के उनके चेहरे पर अलग ही लाचारी मैं देखती,जैसे कोई चीज़ सामने हो कर भी हमे ना मिले,और वो लाचारी  हंसी में तब्दील होती। स्कूल में जाती तो सब टीचर मुझे अलग ही लगते।मैं बड़ी होने लगी ,शरीर से भी और दिमाग से भी ।मेरी पसंद ना पसंद अब बदलने  लगी ।मुझे मेरे लम्बे बाल बोझ लगने लगे ,और मेरी आँ