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तुम ठीक हो जाओगी

दिन निकल आया,फिर से वही दिन,जो हर रोज एक ही तरह से शुरू होता है।आज फिर ये दिन मुझे दर्द के साथ शुरू करना होगा,आज फिर ये शीशी थोड़ी हलकी हो जायगी और मेरा पेट थोडा और भारी।इसकी एक गोली आज फिर मेरे अंदर जायेगी।और आधे घंटे बाद मेरा दर्द कुछ कम हो जायेगा ,फिर एक दिखावटी मुस्कान चेहरे पर लिए मैं काम में लग जाउंगी।ऐसा ही तो होता है हर रोज,हर सुबह एक दर्द भरी टीस लेकर आती है !और मेरे चेहरे की सुबह की ताज़गी छीन लेती है,मेरी आँखों में फिर वही दर्द उभर आता है,सारी मुस्कान जैसे दर्द के तले दब जाती है।रजाई से थोडा सा मुँह बहार निकाल कर भावना पलंग के सरहाने दवाइयो से सजी टेबल को ताक रही थी।उसका दिन इन दवाइयो से शुरू होकर इन दवाइयो पर ही तो ढलता है।हर रोज का पेट में उठता ये दर्द उसे निस्तेज कर देता है।फिर उस शीशी से निकली एक गोली उसके अंदर जाती है और सबको लगता है बस अब तो ठीक है ,मगर क्या वो सच में एक गोली उसे ठीक कर देती थी या थोड़ी देर के लिए उसे भुला देती थी की वो बीमार है। ये सब सोचते सोचते शीशी से गोली निकाल कर भावना ने बेमन से गटक ली थी।और उसी उम्मीद से अपने काम में जुत गयी थी की बस जल्दी ही

बस लौट आओ तुम

हाँ बहुत साल होगये तुम आये नहीं।ऐसी भी क्या गलती हो गयी थी मुझसे की तुम इस तरह साथ छोड़ कर चले गए। हमारे 15 साल के साथ को ऐसे अनदेखा कर के हमेशा के लिए लौट गए तुम। एक बार कहा तो होता की मन भर गया तुम्हारा मुझसे मैं किसी भी तरह रोक देती अपने वो बदलाव ,मैं अपने शरीर में होते बदलाव को शायद न बदल पाती मगर तुम्हारे साथ रहने के लये मुझे अपने मन अपनी सोच में आये बदलाव को रोक देना मंजूर था।मगर तुम साथ तो होते ना। मेरी इन 15 सालो के हर दिन का हिसाब था तुम्हारे पास,मेरी हर गलती का मेरी हर शैतानी झेली थी तुमने ,क्या उन सब हरकतों से परेशां होकर चले गए तुम। तो कह देते की मैं इतनी शैतानी ना करूँ,कह देते की तुम्हे मेरा दिन भर खेलना कूदना ,शरारते करना ,सबको तंग करना पसंद नहीं था तो मैं न करती ,मगर ऐसे क्यों चले गए बिना कुछ कहे।क्या तुम नहीं जानते अब तुम नहीं हो तो कितनी बुरी नजरे मुझे देखती है? क्या तुम नहीं जानते कितनी उम्मीदें मुझे हर रोज अच्छा बन ने के लिए मजबूर करती हैं।सब कुछ बदल गया तुम्हारे जाने के बाद।मेरी पसंद बदल गयी,मेरा पहनावा बदल गया,मेरा जीने का तरीका बदल गया ,मेरी आदते बदल गयी,सब

कच्ची सहेली

उस दिन हवा में एक सूनापन था जब मेरी पक्की सहेली ने मुझसे दोस्ती तोड़ी थी,उस दिन टूट सी गयी थी उसके इस अचानक के वार से,बिना कुछ कहे बिना शिकायत किये,बिना वजह बताये ,बिना मुझे बताये ये रिश्ता ख़त्म कर दिया था उसने। जुलाई 2003  की बात थी जब मैं अपने पापा और मामा जी जी की बेटी जो मेरी अच्छी दोस्त थी, के साथ हरिद्वार बुआ जी के घर जाने  के लिए बस स्टॉप पर खड़ी थी ,10 वीं में first division से पास होने के बाद रिश्तेदारियों में घूमने का मजा ही कुछ और होता है जब आपके माता पिता आपकी मेहनत का बखान करते है और रिश्तेदार आपकी सराहना करते है ,मैं भी बहुत खुश थी की बस जल्दी से हम हरिद्वार पहुंचे और अपनी 10वीं के फर्स्ट डिवीज़न पर थोडा और तारीफ सुन पाऊँ अपने पापा के मुह से।हम बिजनोर से हरिद्वार जाने वाली रोडवेज बस का इंतज़ार कर रहे थे की तभी हमारे गांव के एक आदमी ने पापा से पूछ लिया " पता नहीं भाई इतनी समझदार लड़की ने इस कदम कैसे उठा लिया।ऐसी उम्मीद नहीं थी आनंद की लड़की से।"पापा और मेरी आँखे प्रश्नसूचक होकर उनपर टिक गयी थी।आनंद की लड़की सुनते ही उनकी तीनो बेटियो का चेहरा  मेरे आँखों के सामने  था।ज

खास मैं नहीं वो है

उसका एहसास आज भी उतना ही खास है जितना उस पहले दिन था,साल बदल गए 'दिन ,महीने गुजर गए ,मौसम बदले,जिंदगी बदली,मगर उसकी नजरो में छुपा वो एहसास ,वो प्यार एक पल को फीका नहीं लगा।उसका साथ आज भी उतना ही अच्छा लगा जितना उस दिन लगा था जिस दिन वो मेरी जिंदगी में आया था।उसने मुझे हमेशा एहसास कराया की मैं कितनी खास हूँ,उसने मुझे बताया की मुझमे क्या क्या अच्छाइयां छुपी है।उसने मुझे बताया की मेरे चेहरे में कितना आकर्षण है,उसने मुझे बताया की मैं सुन्दर हूँ,सेक्सी ,हॉट,ये सब आधुनिक शब्द हर कदम पर हमे सुनने को मिलते हैं मगर खूबसूरत सुन कर जो ख़ुशी मिली वो कुछ खास थी। मेरी आदते ,मेरी अच्छी बुरी बाते,मेरा व्यवहार,मेरा पहनावा,मेरा बोलना ,मेरा चलना,मेरा जिंदगी को जीना,क्या था ऐसा जिसपर उसने ध्यान नहीं दिया था।ऐसा लगा जैसे उसी ने मुझसे मुझे मिलवाया हो।ऐसा लगा इस से पहले मैं खुद को जानती ही नहीं थी।मेरी खुबिया,मेरी कमिया मुझसे ज्यादा उसे पता थी।मेरे मुह से निकली हर बात उसे याद रहती।जब वो प्यार से मेरी आँखों में आँखे डाल कर देखता तो शर्म से मेरी नजरे झुक जाती ,जैसे उसकी आँखे मुझमे वो सब भी पढ़ रही हो जो मे

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

कोमल की बड़ी बड़ी आँखे आज फिर छलक पड़ी थी,पता नहीं ये पानी जो खोया उसके लिए था या जो खो कर पा लिया उसके लिए था।इन ढाई सालो में कितने उतार चढाव आये,जिन्होंने कोमल का अस्तित्व ही बदल कर रख दिया । सूरज उसके जीवन का वो हिस्सा था जो ना कभी उस से अलग हुआ और ना ही उसका हो पाया। याद है कोमल को जब उसका एक भी पल पूरा नहीं हुआ करता था सूरज के बिना। एक छोटी सी दोस्ती से शुरू हुआ ये रिश्ता प्यार की सारे कसौटी पार कर चूका था ,दोनों की हर सांस एक दूसरे के लिए चलने लगी थी।मगर जमीन पर बने इस रिश्ते का लेखा जोखा शायद ऊपर उनकी किस्मत की किताब में था ही नहीं। आज ढाई साल बाद पहली बार कोमल को एहसास हुआ की शायद वो सच में बदल गयी है ।।।कितनी बार सूरज ने उसे बोला था ,तुम बदल गयी हो कोमल,और ये बदलाव् सहा नहीं जा रहा मुझसे। मगर कोमल को क्यों ये एहसास नहीं हो पा रहा था की जिस बदलाव की कोशिश वो इतने महीनो से कर रही है वो इंच भर भी उस कोशिश को बढ़ा पाई है की नहीं। आज सूरज की कुछ बातो ने कोमल को पुराणी सारी बाते  याद दिला दी थी। कितनी सिद्दत से वो इंतज़ार किया करती थी सूरज के घर आने का ,उसके लिए नयी नयी चीज़े बना क

रोडवेज

रोडवेज से हमारा बचपन का रिश्ता था।जब से होश संभाला तब रोडवेज की बस से ही सफ़र किया।कभी कभी ऐसे रॉब दिखाते थे मानो ये हमारी ही पर्सनल प्रोपर्टी है।क्योंकि पापा रोडवेज में ऑफिसर जो थे।एक अजीब सा रिश्ता बन गया था हमारा उसके साथ,यहां तक की जब मैं देहरादून में शिफ्ट हुई नए शहर में सब नया सा लगा मगर जब जब रोडवेज बसों को देखा,लगा जैसे कोई अपना मिल गया।मुझे याद है जब मेरा कॉलेज रोज आना जाना होता ,पापा पहले ही पास बना कर देदेते जिस से मैं बिना किराया दिए कॉलेज जाती ,ऊपर से एक रॉब अलग होता जब मैं बोलती की मेरे पापा रोडवेज अधिकारी हैं।मुझे याद है ऐसे कुछ वाक्यात जब मैंने टिकिट  बिना यात्रा की,कुछ नए कन्डक्टर ने मुझसे सवाल पूछे,मेरा बी ऐ के एग्जाम थे,मेरी फ्रेंड स्वाति और मैं साथ कॉलेज जाते ,उसके पापा भी रोडवेज में कार्यरत थे।उस कन्डक्टर को मैंने कई बार कहा की मैं अपने पापा की आईकार्ड पर ट्रैवेल कर रही हूँ मगर उसने तेज बोलते  हुए कहा,ये नहीं चलेगा यहां ,उसने ड्राईवर को बस रोक देने को कहा औरसबके सामने आधे रस्ते उतर जाने को कहा,अब मेरा पारा बढ़ चूका था।क्योंकि वो बात पैसो की,या टिकिट की नहीं थी अब बा

एक और salute

आज दिल किया की उनके लिए कुछ लिखूं ,जो सरहद पर थे,हैं ,और आगे भी होंगे।उनके लिए जिनकी वजह से आज हैं अपनी हर सुख सुविधा को भोग पा रहे हैं।शायद उन वीर जवानो के लिए लिख पाने की,न मेरी हैसियत है न ही इतने अच्छे शब्द है मेरे पास की उनको व्याखित कर पाऊँ।मगर उनके लिए लिखना मेरे लिए सौभाग्य होगा। बस एक tv show ही तो था वो जिसने मुझे झकझोर कर रख दिया।हाँ ये सच है की बचपन से एक अलग सा लगाव रहा मुझे भारतीय सेना से मगर उस दिन super dancer एक शो में जो performance मैंने देखि उसे देख कर मैं खुद को रोक ना पाई।उस दिन फिर मन किया की काश मई कुछ कर पाऊँ उनके लिए जो एक खामोश नींव की ईट बन कर एक सुन्दर ईमारत बना देते हैं।उस show में मैंने देखा की एक फौजी ,एक जवान के लिए कितना मुश्किल होता होगा अपनों को रोते छोड कर जाना,कितना मुश्किल होता होगा जब उसकी माँ की आँखे साफ़ पूछती होंगी की अब कब बना कर रखूं तेरी पसंद की चीज़े ,कब आएगा।कितना मुश्किल होता होगा एक पत्नी की आँखों में छुपे सवालो का जवाब देना जब वो पूछती होंगी की अब कब मैं पूरी तरह  सज सवंर पाऊँगी,बोलो फिर एहसास कर पाऊँगी की मैं भी एक सुहागन हूँ। कैसे व

True love-part 1

True love is word enough for a flash back of our life.it insists us to go back and remind our own love histoty,what if it was one sided and so what if it was incomplete but afterall it was a love story which we consider as a true love of life,so what if ,we were cheated and so what if we were failed to touch the last destination in that relationship. Sheena was one of them,a luckiest girl who met thrice with this true love unluckyle,but was it really true love all the time? Sheena an ambitious girl,passionate girl,and yes she was love honest too.it was the the 17th autom of her life when she met with kunaal in just school life. The naughty cheek sheena has lost her childhood when she felt she is falling on kunaal day by day.kunaal,s simplcity was stoling her heart ,school attendence was just a way to meet kunaal daily ,she wanted to tell him that she has fallen in love with you kunaal.but the fear of failure was not permitting her to expose her feeling . It was the coolest day of se

मम्मी v/s मम्मीजी

मम्मी v/ s मम्मीजी पढ़कर ही आपसब ने अंदाजा लगा लिया होगा की आज यहाँ बात होने वाली है सासु माँ को लेकर ,मगर आज मैं इस रिश्ते को सास ससुर और बहु के नाम से नहीं बल्कि धर्म माता पिता और जन्म माता पिता के नाम से संबोधित करना चाहूंगी।आज का ये मुद्दा आप सबके लिए एक दर्पण का काम करेगा ,आप सब इस कहानी में मेरे शब्दों में खुद को यानि हर सास हर बहु अपने किरदार को फिट करके देखेंगे।मगर मैं एक बात कहना चाहती हूँ की आप मेरे हर शब्द में ,हर वाक्य में सकारात्मकता को तलाशे।ये एक बहुत ही नाजुक विषय है जिसके हर पहलु में आज मैं खुद झाँकने की कोशिश करुँगी।मम्मी के पीछे लगे इस "जी" ने इस रिश्ते में अनेको अंतर लाकर खड़े कर दिए थे। मैंने कितने ही परिवारो को कहते सुना था की हम बहु नहीं बेटी बना कर आपकी बेटी को लेजा रहे हैं ,मगर ये शब्द सिर्फ तब तक कायम रहे जब तक वो बहु बनी बेटी ससुराल के दरवाजे पर पहुंची,जैसे ही गाडी आकर रुकी अंदर से आवाज आई,अरे जल्दी पूजा का थाल लाओ बहु आगयी है।लड़की के मन में बस एक ही सवाल आया की पापा से कहा गया वो वाक्य क्या सिर्फ सांत्वना के लिए था।अभी ये सब दिमाग से निकला भी ना था

बेजुबान दुनिया

आज 6 दिन हो गए थे मुझे इस बेज़ुबान दुनिया में अपना कुछ समय बिताते , जहाँ मैंने ऐसे ऐसे रूप देखे उन जानवरों के जो पहले नहीं देखे थे।हमारी पालतू लेब्रा रानी की तबियत ख़राब चलते आज 15 दिन हो गए थे,जानवरो के अस्पताल में मैं पहले कभी नहीं आई थी मगर पिछले 6 दिनों से मुझे  आना पड़ा।यहाँ आकर पता लगा की आज के समय में कुत्तो का पालन बड़ी तादात में हो रहा है।हाँ गांव में मै कई बार जानवरो के अस्पताल के सामने से निकली थी वहां बस गाय भैंस ,बकरे बकरी आदि जानवरो को ही मैंने देखा था मगर यहां ये अनुभव बहुत नया सा लगा,यहां 98 प्रतिशत कुत्तो को देखा मैंने। इतनी नस्ले पहले हकीकत में कभी नहीं देखि थी और न ही सामना हुआ था इतनी तरह के मालिको से।आज मेरे मन ने इन पालतू कुत्तो को तीन हिस्सों में बाँट दिया था।चलिए उच्च प्रणाली से शुरू करते हैं,वो कुत्ते जो बड़ी कारो से उतरे एक चमचमाते और महंगे पट्टे गले में बंधे थे ,शरीर ऐसे चमक रहा था जैसे पोलिश कर दी हो।कुछ जो ज्यादा भारी थे बस वो ही अपने पैरो पर चल कर आरहे थे बाकि को नसीब थी वो महंगी गोद जिन्होंने कभी अपने बच्चों को गोद में उठा कर ही नहीं देखा,कब आया के हाथो पल कर

Love और Lust

Love और lust सुनकर सबके दिल में अपनी अपनी जिंदगी से जुड़े कुछ वाक्यात जिन्दा हुए होंगे।subject ही कुछ ऐसा है।जिसे जिंदगी भर love की तलाश में lust मिला होगा उसके लिए भी और जिसे lust की दुनिया में love मिल गया होगा उसके लिए भी ये एक अहम् मुद्दा होगा।आज की दुनिया में कहाँ हम पता लगा पाते हैं की जिसे हम प्यार समझ रहे हैं वो सिर्फ वासना है या जिसे सिर्फ वासना समझा वो प्यार निकला।कल बातो ही बातो में एक दोस्त ने कहा की सेक्स क्या कोई बड़ी चीज़ होती है आज कल। और मेरे मुह से अचानक ही निकल गया "हाँ क्यों नहीं,सेक्स तो बहुत बड़ी चीज़ होती है,जिसे प्यार में मिले उसके लिए भी और जिसे rape में मिले उसके लिए भी।जिन्दगी दोनों की ही बदल देता है ये सेक्स।"उस वक्त ये बस मेरे शब्द थे मगर कह देने के बाद जब मैं इन शब्दों की गहराई में गयी तो बस डूबती चली गयी।अचानक से बहुत बड़ी और बहुत गहरी बात कह गयी थी मैं। और मेरा मन तुलना करने लगा था ,जो रिश्ता एक तवायफ और एक पत्नी में होता है ,वही रिश्ता प्यार और वासना में होता है ।पत्नी के साथ bed share करते हैं तो love और एक तवायफ के साथ share करते हैं तो lust।

ना मौसम लौटा ना वो

आज 20 साल बीत गए,सुहान के भीतर बसी वो खुशबू आज भी वैसे ही महक रही थी जैसे 20 साल पहले।जिंदगी की दौड़ दौड़ते दौड़ते इतने साल लग गए सुहान को इस गली तक पहुँचने में जहाँ बीस साल पहले वो घंटो खड़ा रहता था।आज भी चश्मे के पीछे की आँखे वही सब तलाश रही थी जो वो उस दिन बिना किसी को कहे यहां छोड़ गया था।मगर आज यहां वैसा कुछ ना था ,आज ये अक्टूबर का महीना उसे वो सुकून नहीं दे पा रहा था जो वो तब हर साल महसूस किया करता था।बीस सालों से वो आज तक हर अक्टूबर को उस खुशबू को महसूस करने की कोशिश करता रहा जो वो यहां छोड़ गया था ,मगर विदेशो में शायद हिन्दुस्तान के महीनो की वो खुशबू खो गयी थी। आज सुहान उसी गली में खड़ा चारो तरफ देख रहा था ,सारे आस पास के घरो में उसे नए चेहरे दिखे हाँ जो चेहरे पुराने थे वो झुर्रियों से भरे थे,घरो का रंग बदल गया था ,लोग बदल गए थे ये कच्ची सड़के पक्की सड़को में बदल गयी थी,यहां तक की इन गलियों की हवा बदल गयी थी।उसकी नजर आज भी सामने उस दोमंजिला मकान पर टिकी थी ,उसी बालकनी पर जहां से उसे रोज वो खूबसूरत चेहरा दिखा करता था,जहां से दो बड़ी बड़ी आँखे छुप छुप कर सुहान को देखा करती थी और नजर टकरात

मगर मैं जी रही हूँ

जीना भी एक कला से कम नहीं होता दोस्तों।यूँ तो सभी जीते हैं मगर जिंदादिली से जिया जाते तो बात ही क्या।खैर जिंदगी में हर मोड़ पर एक ऐसा पड़ाव आता है जब हमे लगता है की हम नहीं जी पाएंगे,मगर हम फिर भी जीते है।कभी अपने कुछ करीबी लोगो से दूर होकर,कभी कुछ अपनी सबसे प्यारी चीज़ खोकर,तो कभी खुद किसी अलग सी दुनिया में खोकर,मगर जीते है हम ।कभी कुछ जरूरते सर उठती है तो लगता है हम इसके बिना नहीं जी पाएंगे तो कभी कुछ सपने नींद हराम करते हैं तो लगता है हम जी नहीं पाएंगे।कभी कुछ अपने पराये हो जाते हैं तो लगता हम जी नहीं पाएंगे।ऐसे ही न जाने कितने अनुभव हमारी जिंदगी से होकर निकलते है।बचपन में जब पापा ने मुझे से भी बड़ी गुड़िया लाकर दी तो पूरा दिन उसे लिए घूमती थी मैं।कोई मुझसे लेलेता तो ऐसे रोती जैस मैं इसके बिना जी ही नहीं पाऊँगी ,मगर धीरे धीरे जब वो टूटती गयी और एक दिन ऐसे टूटी की घर वालो ने ये कहकर मुझसे लेली की ये ख़राब हो गयी दूसरी लेकर देंगे।तो क्या मई नहीं जी उसके बिना, जब स्कूल में कदम रखा तो लगा पूरा दिन मम्मी पापा के बिना वहां कैसे रहेंगे ,मगर जब वहां इतने दोस्त मिले की जब farewell party हुई तो उन

खाली हाथ

आज चारो ओर खुशियों का माहोल था।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की खुशियों ने हर हिन्दू  घर उल्लास से भर दिया था।जहाँ देखो यही चर्चा थी कि कैसे जन्माष्टमी माननी है।पुरे बाजार पीले रंग के कृष्णा के ,और लाल रंग के राधा के लहंगे चोली से सजे थे।फूल मालाये, बांसुरी,झूले और न जाने क्या क्या।हर मंदिर में झांकिया लगी थी।मेले से भी सुन्दर सजा था पूरा देहरादून।हर माँ अपने बच्चों में लिए कृष्ण के कपडे खरीदती नजर आ रही थी।फेसबुक खोला तो सब ने अपने कान्हा और राधा बने बच्चों की फ़ोटो लगाई हुई थी।सबके हाथों में उनके कान्हा सच मुच के कान्हा लग रहे थे।  वो लग रही थी उनकी यशोदा माँ। मैंने और मेरे पति ने भी मिलकर कृष्ण की एक दुनिया बनाई थी।जो वो बचपन में बनाया करते थे।रेत के ऊपर घर,फिर उसे रंगोली से सजाया था ,क्या नहीं था कान्हा के उस आँगन में।पार्क में लगे खेल,गौशाला,पेड़ वाटिका,गईया,पशु पक्षी,सैनिक,मंदिर,घर सारी चीजे,मैंने पहली बार वो सब बनाया था।फिर उसमे डाला था कन्हैया जी का झूला जिस पर वो नए कपडे पहने झूल रहे थे।अपने हाथों से बनाई वो कान्हा की दुनिया देख कर दिल खुश हो रहा था. मगर बार बार अपने उन खाली हाथों पर न

मेरा हिसाब कर दो

आज नियति की आँखे उसके मुह से ज्यादा बोल रही थी।सरे सवाल होठों की जगह आँखों में उतर आये थे।2 साल हो गए नितीश अब बस मेरा हिसाब कर दो। और नितीश जैसे अपने में ही सिमटा सा बैठा था,कैसे कर दूँ नियति का हिसाब ,इस जन्म तो मुमकिन ना हो पायेगा।मन ही मन व्यथित हो उठा था नितीश। मगर नियति जैसे आज तय कर के आई थी की आज सारे हिसाब पूरे कर के ही वापस जायेगी। आज के बाद तुम मुझे बेवफा कह लेना,कट्टर कह लेना या जो ,बदचलन कह लेना ,गिरी हुई लड़की कह लेना या फिर से मन में आये तो फिर से कह देना की मैं एक रंडी हूँ।मगर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा नितीश।आज के बाद मैं मुड़ कर नहीं देखूंगी तुम्हारी तरफ । नियति का गला भर आया था।और कितना लेकर जायेगी इस रिश्ते से।इतना कुछ तो मिला इन 2 सालो में। नितीश का प्यार गुस्से में जो बदलने लगा था ,आखिर गलती किस से हुई ।नितीश से जो नियति के प्यार में असुरक्षित महसूस करने लगा था या नियति से जो अपनी कुछ आदते न बदल पाई थी।लोगो से घुल मिल जाना आज उसकी जिंदगी में जहर घोल कर चला गया था।क्या करती वो बचपन से ईएसआई ही जिंदगी जी थी उसने।फिर करियर भी ऐसा चुना जिसमे किसी से बात करने में कोई