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भैया भाभी का घर

पति का घर,माँ पापा का घर,नानी का घर,मगर भैया भाभी का घर हम कभी नही बोलते ।क्योंकि वो घर तो हमेशा मायका या मम्मी का घर होता है। भाई की शादी के बाद पहली बार 2 दिन के लिए मायके गयी थी मैं।और उन दो दिनों में बहुत सा अनुभव लेकर लौटी।। "अच्छा अनुभव" मैं खुश थी इस बार ।कितने घर देखे जिनमे भाभी के शामिल हो जाने से परेशानियों या लड़ाइया भी गृह प्रवेश करती हैं। भाभी के आजाने से असहज महसूस होता है। इस रिश्ते के 2 अनुभब तो होते ही हैं। मगर मेरे लिए अभी ये अनुभव सुखद लगा। जैसे ही घर में कदम रखा माँ के साथ एक शक्श को और देखा दरवाजे पर स्वागत में खड़े।और वो थी भाभी। मैंने भी माँ से पहले भाभी को गले लगाया था। बहु को चाहिए ही क्या,प्यार भरी 2 बात और व्यवहार ,फिर तो भाभी जान जुटा दे प्यार लूटाने में।ये मेरा अपना अपना अनुभब है।क्योंकि मैं भी तो 5 साल पहले किसी की भाभी बनी थी।और भगवान की कृपा से अभी तक मेरा और मेरे ननद का रिश्ता बड़े प्यार से चल रहा है।और अच्छे रिश्ते में योगदान भी दोनों का बराबर ही होता है। खैर घर में अंदर जाते ही भाभी ने पानी का ग्लास हाथ मे थमा दिया।जो मैं हमेशा खुद ही

एन ओपन लेटर टू माय सन "वेदान्त' 1

आज तुम एक महीने के पूरे हो गए हो।पता ही नही लगा कब ये दिन बीते।तुम्हारे जीवन मे आजाने का एहसास बहुत बड़ा जो है।इस से एक महीना पहले तुम्हारे आने की तैयारियां हो रही थी।और आज एक महीना पूरा होने की खुशियां मनाई जा रही हैं।तुम्हारा नामकरण भी हो चुका और सबकी सहमति से तुम्हे एक बड़ा ही अर्थपूर्ण नाम दिया गया है "वेदान्त"।जो वेदों का राजा कहा जाता है।यूँ तो बहुत से नाम हैं तुम्हारे।"लड्डू" ये वो शब्द है जो तुम्हे देखकर सबसे पहले मेरे मुंह से निकला था।तुम्हे इसी नाम से पुकारा था मैंने।फिर तुम सबके प्यारे लड्डू बन गए। तुम्हे पता है,तुम्हारे आने से पहले ही मैने तुम्हारा नाम सोच लिया था"शिवोम" मगर इस नाम को सबकी सहमति ना मिल सकी।मगर अकेले में मैं आज भी तुम्हे इसी नाम से संबोधित करती हूँ।खैर वेदान्त भी तुम्हारी माँ का ही सुझाव है।जूस दिन तुम आये इस दुनिया मे मैं अपने होश में नही थी,बस उड़ती सी नजरो से मैने तुम्हे देखा था।तीन या चार बार देखा मगर फिर भी तुम्हे पहचान नही पाई  कि तुम्हारी आंखे,नाक ,होंठ,चेहरा किसके जैसा दिखता है।क्योंकि मैं पूरी तरह होश में नही थी।मगर सब ब