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क्या अलग सा देदूँ तुम्हे

 मैं कहाँ कोई पहली सी  ,ऐसे तुमको चाहूँ जो मैं कहाँ कुछ अलग  ,तुम पर जान देदूँ जो मेरे जैसी वो या मैं उनके जैसी  वो थी मैं ,या मैं हूँ वैसी तो क्या अलग सा बाकी,तुमको देदूँ जो। लो भीड़ लगी ,कितनो की लो एक बढ़ी ,मैं भी  वही बात है, वही वादे वही कसम है ,वही इरादे वही प्यार,और वही लड़ाई वही ज़िद है ,वही ज़ज़्बात क्या अलग सा कह दूं वो क्या अलग अब देदूँ जो तुमको सब बीता सा लगता होगा मेरा हाथ पहला सा लगता होगा  क्या गर्माहट मेरी हथेली की  वो भी लगती है पहली सी। क्या मेरी आँखें खामोश है। या उन में भी पहले जैसा शोर है क्या मेरी छुअन पहले सी चुभन  या प्यारा सा एहसास है सब  पहले जैसा है  या तनिक भी खास है? 'प्रीति ' वही ,तकरार वही  खुशी वही ,हर बार वही और क्या बाकी खास ऐसा शब्दो मे बया कर दूं जो एसा क्या लाऊं अलग सा  पहली बार देदूँ जो। प्रीति 

तो क्या होता?

 तो क्या होता ,गर मैं तुम्हारी होती  तुम भी सिर्फ मेरे होते क्या? क्या सब कुछ दर किनार कर  बस मेरे होकर रहते क्या क्या होता गर मेरी सांस ,मेरा ,जिस्म ,मेरी रूह बस तुम्हारी होती तो तुम भी किसी के होने से कतराते क्या तो क्या होता गर मैं तुम्हारी होती  क्या होता गर मैं तुम्हारा सुकून  तुम्हारी राहत, तुम्हारी गर्म रस्तों की ठंडक होती। क्या होता गर जिंदगी में तुम्हारी सिर्फ मैं होती। तो तुम भी बस मेरे होकर रहते क्या। कभी दर्द ,तो कभी दवा दर्द की कभी धूप तो कभी छाव धूप की कभी बारिश की बूंदे ,तो कभी बून्द से अश्क आंखों में कभी अंधेरी काली रात और कभी चमकती रोशनी रातो में क्या होता गर सुबह मैं और शाम मैं क्या होता गर शब्द मैं ,शब्द का अर्थ मैं। बस मैं ही मैं होती ,तो क्या होता  तो तुम तब पूरे होते क्या? न होती किसी की चाहत पाने की  न किसी को खो देने का डर ना मिलने की खुशी किसी की  न किसी को खोने का दर्द, ना फिक्र न परवाह न मंजिल ना कोई राह  तुम ठहरे से दरिया होते क्या 'प्रीति' का प्रेम  और प्रेम की परिभाषा परिभाषा में तुम होते क्या गर  मैं होती तुम्हारी  तो क्या होता ?  तुम भी मेरे होते

बिन मां का मायका

  रसोई में काम करती माँ,बार बार अपने थके पैरो से इधर उधर भाग रही थी।आँखों में एक जल्दबाज़ी और सबको समय पर नाश्ता देंने की जल्दी।मैं अपनी चारपाई से बिस्तर से मुँह निकाल कर उनको अपनी अधखुली आँखों से झांक रही थी।29 साल बीत गए है माँ को उनकी जिम्मेदारी निभाते देख।जब से खुद को जाना उनकी एक ही समयसारणी देखि।सुबह हम सबसे पहले उठ जाना।उठते ही वो अपने हाथो में न जाने क्या झाँका करती थी अपनी दोनों हथेलिया मुंह के सामने लाकर कुछ बड़बड़ाया करती थी और फिर जमीन को छु कर हाथ अपने माथे से लगा लेती थी।धीरे धीरे हमे उसका मतलब समझ आने लगा जब हमे भी ऐसा करना सिखाया गया।फिर उठकर मुँह हाथ धोकर घर में झाड़ू लगाती माँ हमे अपने चारो तरफ दिखती और उनकी आवाज उस वक्त नींद ख़राब करती तो गुस्सा आता।उठ जाओ स्कूल नहीं जाना है।।।।चलो उठो जल्दी। रोज ये शब्द हमे हमारी नींद के दुश्मन लगने लगे थे।और हम ह्म्म्म कहकर फिर बिस्तर में चुप जाया करते।माँ तब तक नाहा कर घर में दिया जलाती, उनके कुछ मन्त्र सुनने के हम सब आदि हो चुके थे जैसे वो भी रोज के काम का एक हिस्सा था।रसोई में जाने से पहले फिर एक आवाज आती।।अब उठ जाओ लेट हो जायगा।

एन ओपन लेटर टू माय सन वेदान्त (बर्थडे स्पेशल 4)

 आज तुम्हारा 4th birthday मनाया गया ।और इस बार भी सोहम और तुम साथ में ये दिन नही मना पाए ।ना तुम्हारी बुआ यहां देहरादून आ पाई और ना ही हम वहां अलीगढ़ जा पाए ।क्योंकि ये तुम्हारी चाची के लिए तुम्हारा पहला जन्मदिन जो था और वो तो कब से इस दिन के लिए excited थी।तुम उनके नटखट baby जो हो।हां तुम्हारी चाची 😉 इस बार तुम्हारे जीवन मे एक नया रिश्ता जुड़ा।बहुत से बदलाव हुए वो सब मैं आगे बताउंगी अभी बात जन्मदिन की करते हैं  इस बार हमने सोचा था कि तुम्हारी मामा मामी ,मौसी मौसाजी ,भाई बहन सबको बुलाएंगे लेकिन कोई भी नही आ पाया लेकिन हां इस बार तुम्हारे जन्म दिन पर कुछ खास लोग थे यहां ,पता है कौन ? तुम्हारे छोटे नाना नानी मतलब गौरी चाची के मा पापा।और सच कहूं तो कहीं न कहीं ये तुम्हारे लिए सबसे खास moment और खास तोहफा था कि तुम अपना जन्मदिन नाना जी के साथ मना पाए जो शायद तुम्हारे लिए जीवन भर एक कल्पना ही होता ,मुझे भी बहुत अच्छा लगा कि मेरे इस खास दिन में वो शामिल हो पाए । ये साल तुम्हारी शरारतो से भरा रहा ,लेकिन तुमने एक नई सीढ़ी पर भी कदम रखा ,इस साल तुम्हारा नर्सरी में दाखिला हुआ।और जिस दिन तुम पहली ब

मेरे अपने जो बदल गए

यूं तो अब फर्क नही पड़ता मुझे किसी के रवैये से , मगर बदले बदले मिज़ाज़ मेरे अपनो के झकझोर देते है कभी कभी टटोल कर देखती हूँ मैं हर रोज़ अपने किरदार को , और फिर आंकती हूँ उनके मिज़ाज़ को। जो मैं हूँ ,वही तो वो है, जो मेरा है वही तो उसका है । फिर ये हक और हकदार क्यों बदल रहे हैं सभी। ये मेरी किस्मत के धोखे हैं , या इन सबके चेहरों पर लगे मुखौटे हैं। मेरे सामने मेरे है , और उनके सामने उनके हैं। ये वो हैं जो तब थे या ये वो हैं जो अब हैं। दावा करते है मेरे अपने होने का, तो क्यों मेरी सिर्फ कमियां गिनते हैं न ये समझ आये मुझे ,न इनका किरदार समझ आया कभी। सुना है आज कल मेरे ये अपने ,मेरे अपनो को  मुझसे दूर रहने की सलाह दे रहे हैं। मेरी अच्छाइयों से डर रहे हैं , या अपनी कमियों को छुपा रहे हैं। तो चलो अब सामने आओ ना जितने भी शिकवे है,मुँह पर सुनाओ न। क्यों पीठ पीछे ये साजिशें कर रहे हो। क्यों दिन दिन मेरी नज़रों में गिर रहे हो। खुल कर आजाओ न सामने  क्यों ये अच्छा होने का मुखौटा पहने हो? अगर वाक़ई गलत हूँ मैं ,साबित करो क्यों जिंदगी में ज़हर घोले हो। चलो एक बात मैं भी बता दूं। मेरी फितरत नही किसी के पीछे चल

छोटे कपड़े भी

  मेरा आज का ये लेख बहुत प्रभावी हो सकता है।बहुत हिम्मत जुटा कर मैंने इस विषय पर लिखने का फैसला किया।क्योंकि आज के समय मे जो भी इस विषय पर बोलता है उसे छोटी सोच वाला बोला जाता है।शायद मुझे भी बोला जाए।शायद मुझे काफी कुछ सुनने को भी मिले,शायद ये भी की एक स्त्री होकर इस विषय पर ऐसी सोच।लेकिन परिणाम की चिंता होती तो शायद मैं लिखती ही नही। तो मेरा विषय है ,परिधान,लिबाज़,कपड़े,जिसे हम ड्रेस भी बोलते हैं।अच्छा आपको नही लगता कि अगर परिधान बोला जाए तो दिमाग मे हिंदुस्तानी ट्रेडिशनल कपड़ो की छवि उभर आती है,लिबाज़ बोले तो सादगी भरे कपड़े,कपड़े बोले तो मात्र हिंदी शब्द,लेकिन इस ड्रेस शब्द ने तो जैसे सब बदल कर ही रख दिया। तो चलिए मुद्दे पर बात करते हैं।आज अगर कोई भी किसी लड़की को उसके कपड़ो को लेकर कोई राय देदे,या गलती से ये कह दे कि इस तरह के कपड़े नही पहनो,या फिर कोई ये कहने की हिमाकत कर दे कि कपड़े भी आज के बढ़ते बलात्कारों की वजह में से एक है,तो उस इंसान को इतना सुनाया जाता है कि वो अपने शब्द वापिस लेता है।क्यों? क्योंकि लड़कियों को अधिकार मिले हुए हैं। मैंने कुछ साल पहले एक वीडियो देखा था जिसमे एक औरत

ये प्यार नही है

 तेरे होते हुए भी तू नही  तो ये प्यार नही है। तू शामिल जिंदगी में ,फिर भी अकेले रो दूं तो ये प्यार नही है। किस प्यार की तू दुहाई देता है बता। तेरी वजह से बार बार मेरी आँखें छलक जाएं तो ये प्यार नही है। तेरा वक्त अगर फैसला करे,की तू मेरा है या नही  तेरा साथ अगर किश्तों में बंट जाए तो ये प्यार नही है। मैं ििइंतेज़ार करूँ बस तेरी एक आहट का हर दिन  तू फिर भी न आये तो ये प्यार नही है। तू मेरा है ये तेरा दावा है तो गर तेरे होते हुए भी ,अकेले आंसू बहाऊँ तो ये प्यार नही है। ये कैसा प्यार अब तू बता। मैं उलझन में उलझी सी ,खुद को तलाशूं और तू मस्त परिंदा सा उड़ान भरे, मैं खोई सी ,परेशान, पल पल मरूं  और तू खुश सा अपनी जिंदगी जिये तो सुन ,ये कुछ भी हो मगर प्यार नही है। तू मर मिटा होगा किसी अदा पर मेरी मैं कुर्बान सी तेरी किसी आदत पे हो गयी तूने इज़हार किया कि प्यार है ये  और मैं यकीन कर तेरी बातों में खो गयी। पर सच यही है कि प्यार नही है ये। तू शायद पाना चाहता होगा मुझे , या कोई खाली पन जिंदगी का तुझे सात रहा होगा मैं खुश थी इसे तेरी मोहब्बत समझ कर  तू इस चमकते चेहरे पर खिंचा चला आरहा होगा जो भी हो वज

चलती का नाम क्यों है ज़िन्दगी ?

 क्या मेरी तरह सबके दिल मे ये सवाल है कि क्यों ? चलती का नाम क्यों है जिंदगी। मुझे कुछ आधे अधूरे जवाब मिले, शायद जिंदगी का अनुभव ही हमे इस बात का जवाब दे सकता है ।कुछ जवाबो ने झकझोर दिया,कुछ जवाबो ने रुला दिया ,तो कुछ जवाबो ने होटों पर मुस्कान बिखेर दी। जब कुछ अच्छे बीते पल याद आये तो ये चलती सी जिंदगी अच्छी लगी ,और वक्त रफ्तार पकड़ता नजर आया । और जब कुछ बुरे वक्त में आये तो यही वक्त जैसे धीमी चाल चलने लगा ,जैसे हर पल हर साल। जब कुछ पा लिया हमने तो ये चलती सी जिंदगी रुकती सी लगी।और जब कुछ खो दिया तो रेत की तरह फिसलती सी। जिन पलो में सुकून मिला तब लगा ये ये जिंदगी चलती सी नशि रुकती सी हो जाये और जब मन परेशान हुआ तो लगा चल ही क्यों रही है दौड़ क्यों नही जाती ये ज़िन्दगी। बहुत कुछ पीछे छोडा हमने इस चलती सी जिंदगी के नाम पर। पहले बचपन पीछे रह गया,  फिर दोस्त यार,स्कूल की मस्ती पीछे रह गयी  फिर कॉलेज का वो प्यार तो कभी कॉलेज के वो यार पीछे रह गए। फिर देखते ही देखते ,अपने ही पीछे रह गए।घर माँ ,बाप,अपना गांव अपनी शोर करती गालियां ,अपने अल्हड़ दोस्त ,अपना सब पीछे रह गया । और देखते ही देखते ये जिंद

दम तोड़ती मार्कशीट

 सिर्फ सजीव चीजे ही दम नही तोड़ती ,कभी कभी वो चीजे भी दम तोड़ती हहैं जिन्हें हम निर्जीव समझते है। जैसे मार्कशीट। क्या वाकई निर्जीव होते है कागज के वो टुकड़े जो हर पिता की आधी कमाई खा कर मिलती हैं । बच्चो की नींदे खाती हैं,बच्चो ही नही उनके मा बाप का खून पसीना पी कर मिलती हैं,फिर निर्जीव कैसे। और जब वही मार्कशीट बक्से में सालों बन्द रहकर दम तोड़ती हैं तो एक सगे सम्बन्धी की मृत्यु पर होने वाली पीड़ा से कम पीड़ा नही देती। और वो हर लड़की इस बात की गवाह है ,जो हर रोज उन कागज के पन्नो को बेजान होता देखती हैं। जिनमे लिखे अंकों को देख कर कभी वो पूरे स्कूल का नाम रोशन कर के आयी थी। उन मार्कशीट को बटोरते तो कब एक दहलीज पार कर दूसरी दहलीज़ लांघ जाती हैं हम लडकिया।इस उम्मीद से की ये पन्ने जिन्हें पाने के लिए पापा की आधी कमाई चली गयी उनको सिंजो कर रखेंगे ,और ये ऐसे ही बढ़ती रहेंगी।अब पिता नही पति की हिस्सेदारी से। समय निकलता जाता है ,घर की जिम्मेदारियां,रस्मो रिवाज और सबका दिल जीतने में साल निकलने लगते हैं।इस उम्मीद में हम रहते है कि किसी दिन फिर आगे की पढ़ाई करने के लिए ये बक्सा खुलेगा ,और जब सब हमारी ये मा

तुझे खोने का डर है सनम

 अपनी अच्छाइयों को नज़रअंदाज़ कर  मैं अपनी कमियां गिन रही हूँ। तुझे खोने का डर है शायद  कि मैं जरूरत से ज्यादा झुक रही हूँ। मेरी मोहब्बत भी कुछ कम नही तेरे लिए , मैं भी पल पल तेरे सज़दे कर रही हूँ। तू मांगता होगा दुआओं में मुझे, पता नही मग़र मैं भी तुझे पाने की कम कोशिशें नही कर रही हूँ। तुझे खोने का डर है शायद  की मैं जरूरत से ज्यादा झुक रही हूँ। चल मान  लिया प्यार तू भी करता है मुझसे चल मान लिया तो भी दीवाना है मेरा  मग़र मेरी मोहब्बत तो परवान चढ़ बैठी अब  तू नफरत करे वो भी मेरी ,तू इश्क करे वो भी मेरा। तेरी गलतियो को भी नज़रअंदाज़ कर रही हूँ। तुझे खोने का डर है शायद  की मैं जरूरत से ज्यादा झुक रही हूँ। मेरा अपना ज़मीर, मेरा रुतबा था कभी मेरी अपनी शर्ते ,मेरा एक कायदा था कभी । जब से तू आया ज़िन्दगी में मेरी ,। "प्रीति" भी तेरी और मेरा ज़र्रे दिल भी तेरा। सबभूल कर अब तेरा ििइंतेज़ार कर रही हूँ। तुझे खोने का डर है शायद  की मैं जरूरत से ज्यादा झुक रही हूँ। मेरी न सही मेरे वक्त की कद्र कर सनम इस वक्त के न जाने कितने कद्रदान थे। लोग तरसते थे हमारी एक झलक को सनम  मग़र हम कम्बख्त तुझ पे मेहरबा

चलो अब कीमत चुका दो

 मेरे प्यार की,मेरे एतबार की  चलो अब कीमत चुका दो। तुम्हारे तेवर बता रहे हैं ,रिश्ता दिलो का तो नही था। तो चलो अब इस दिमाग के रिश्ते की किश्त चुका दो। चलो अब कीमत चुका दो। जब अपनी खुशी भूल कर तेरे गम में रोई मैं। जब तेरे दर्द में तड़प कर ,रातो को नही सोई मैं। चलो मेरी नींद मुझे वापस दिला दो। चलो मेरी रातों की कीमत चुका दो। बड़ा शौक है तुम्हे ,फैसले मुझ पर छोड़ने का बड़ा शौक है तुम्हे , वक्त पर हाथ छोड़ने का। जब हक से मेरा हाथ थामा था उसका क्या। जब वादों में मुझे बांधा था उसका क्या चलो अब हर टूटे वादे की कसम दिला दो, लौट कर आओगे नही ,आखरी यकीन दिला लो। मेरे हाथ पर तेरे हाथ के जो निशान हैं उन्हें मिटा दो। मेरे प्यार की कीमत चुका दो। यूँ छोड़ देने की पुरानी आदत थी या अब जरूरत नही  कोई पुराना खोया साथी मिल गया ,या अब तन्हाई रही नही मेरे लम्हो को यु रुलाने का हक तो नही था तुम्हे  पर चलो अब रुलाया ही है तो जरा ज़ोर से रुला दो। मेरे हर लम्हे से,मेरे ज़ेहन से खुद को मिटा दो। मेरे प्यार की कीमत चुका दो। बड़ा महँगा पड़ा हमे साथ तुम्हारा, बड़ा महँगा पड़ा वो हाथ तुम्हारा जो मेरे हाथों में दम तोड़ता था, जो मुझे

बस तेरा वक्त चाहिए था

 तूने पूछा था एक दिन ,की मुझे क्या चाहिए चाँद की चांदनी या ,सितारों की महफ़िल। हज़ारो तोहफे या बड़ा सा आशियाँ। मुझे तो तू भी नही ,बस तेरा वक्त चाहिए था। याद है,जब तेरे आने की खुशी में मेरा दिल बिछ जाता था याद है जब मेरी आँखों मे ,ख्वाब सज जाता था हर मुलाकात नई होती थी साथ तेरे हर बार। मेरा चेहरा फूल से खिल जाता था। क्योंकि मुझे तेरा वक्त मिल जाता था। धीरे धीरे तेरी दुनिया तेरी होने लगी  और मेरी तन्हाई मेरी हमदर्द होने लगी । कभी तेरी रहे तकि मैंने और कभी बोझिल आंखों से सोने लगी। आंसू गिरे तो ,खुद सुख गए। मेरे अपने जख्म मुझसे रूठ गए। क्योंकि उन्हें मरहम चाहिए था। और मेरे आंसुओं को गिरने को तेरा कंधा चाहिए था। मुझे तू नही बस तेरा थोड़ा वक्त चाहिए था। माना कि और भी बहुत ज़िम्मेदारियाँ है तेरी मेरे सिवा। मगर मेरी उन जरूरतों का क्या? जो सुबह तुझसे,जो रात तुझसे , मेरे उन दिनों का क्या?  मेरी जो हँसी तुझसे ,मेरी जो खुशी तुझसे, बता अब मेरी इस जिंदगी का क्या? तू निभा अपने हर रिश्ते तू आज़ाद है मगर मुझसे किये उन वादों का क्या ? मुझे क्या मतलब तू किसका था,और क्यों है किसीका। मुझे तो तू भी नही बस तेरा थो

ऐ नारी तू टूटती रही

 ऐ नारी तू लुटती रही, छोटे छोटे कदमो में जब पायल बंधी, तेरे ख्वाबो की सांसे घुटने लगी। कभी लाड में ,कभी प्यार में, कभी हर रिश्ते के एहसास में ऐ नारी तू लुटती रही। तू पीछे थी अव्वल आकर भी, क्योंकि आगे रिवाज़ों की कतार थी, तू पीछे थी ,दिल से रिश्ता निभाकर भी क्योंकि तेरे जज़्बातों की बोली बेकार थी। हिम्मत सबकी बनकर भी तू टूटती रही ऐ नारी तू लुटती रही। थक हार कर जब पापा आते काम से, पानी का ग्लास तेरी उंगलियां थामती। माँ जब अलसाती कभी , तू चौका भी सम्भालती। कभी छुपा कर ,कभी रो कर  अब लोगो की नज़रों को तू पहचानने लगी। कभी ताड़ती नज़र ,कभी हवस की नज़र अब अपने ही अंगों को तू सिमटने लगी। बिन गलती के अब झेंपती रही। ऐ नारी तू लुटती रही। अब यौवन था,बड़ा सुहाना सा सारि कायनात जैसे खिलने लगी, हर मौसम में रंग जैसे  तुझे बारिश हवा सब भाने लगी। कभी खुद को निहारती सी नजर ,आयने से शर्माने लगी कभी किसी की उठती नजर तुझे प्यारी सी लगने लगी। दिल के हाथों तू बिकने लगी ऐ नारी तू लुटती रही। कुछ ख्वाब तेरी आंखों में चमकने लगे। कुछ ख्वाहिशें उसकी सर उठाने लगी। एक जरा सी छुअन से सिहर कर तू। खुद को उसमे खोने लगी। तेरा अं

मैं टूटती सी

 मैं टूटती सी ,तार तार जुड़ रही थी,अपने ही खयालो के मोह से बाहर निकल रही थी ,कभी जब सब अच्छा सा लग रहा था मुझे तो मैं टूट कर भी खुद को पूरा समझ रही थी।कभी अधूरा पन लगता तो कभी मैं पूरी हो जाती।कभी सब मेरे हक में होता तो कभी बिल्कुल अकेले खड़ी होती ।हाँ सब मेरे अपने थे आस पास मेरे फिर भी न जाने क्यों वीरनेपन से डर रही थी।मेरा हर डर मेरी अपनी वजह से था शायद ,या मेरे अपने उसकी वजह थे, कभी खुद को तो कभी अपनो को खोने का डर अब मुझे सताने लगा था ,एक तरफ मेरी जिंदगी झूझ रही थी और दूसरी तरफ मेरी आस हर दिन पंख लगाए एक नई उड़ान उड़ रही थी।हाँ कभी कभी दुनिया की सबसे खुश नसीब बनावट थी मैं ,और कभी बदनसीबी मेरी चौखट लांघ रही थी,।मेरी समझ अब दम तोड़ रही थी क्योंकि मैं अब तार तार जुड़ते भी मैं गिरह सी टूट रही थी।मेरी खुशियां मेरे दामन में ही तो थी ,बस कभी मैं उनको समेट लेती और कभी वो रेत की तरह फिसल जाती।कभी मैं जी लेती हर लम्हा हंस कर और कभी अपनी ही मुस्कान की कातिल बन जाती।वो मेरा ,मैं उसकी,तू मेरा ,मैं तेरी,सब मेरे ,मैं सबकी हाँ बस यही सब तो चल रहा था सालों से जिंदगी में,आज एक तूफान से अचानक एक नया पन्ना