मेरे अपने जो बदल गए
यूं तो अब फर्क नही पड़ता मुझे किसी के रवैये से ,
मगर बदले बदले मिज़ाज़ मेरे अपनो के झकझोर देते है कभी कभी
टटोल कर देखती हूँ मैं हर रोज़ अपने किरदार को ,
और फिर आंकती हूँ उनके मिज़ाज़ को।
जो मैं हूँ ,वही तो वो है,
जो मेरा है वही तो उसका है ।
फिर ये हक और हकदार क्यों बदल रहे हैं सभी।
ये मेरी किस्मत के धोखे हैं ,
या इन सबके चेहरों पर लगे मुखौटे हैं।
मेरे सामने मेरे है ,
और उनके सामने उनके हैं।
ये वो हैं जो तब थे या ये वो हैं जो अब हैं।
दावा करते है मेरे अपने होने का,
तो क्यों मेरी सिर्फ कमियां गिनते हैं
न ये समझ आये मुझे ,न इनका किरदार समझ आया कभी।
सुना है आज कल मेरे ये अपने ,मेरे अपनो को
मुझसे दूर रहने की सलाह दे रहे हैं।
मेरी अच्छाइयों से डर रहे हैं ,
या अपनी कमियों को छुपा रहे हैं।
तो चलो अब सामने आओ ना
जितने भी शिकवे है,मुँह पर सुनाओ न।
क्यों पीठ पीछे ये साजिशें कर रहे हो।
क्यों दिन दिन मेरी नज़रों में गिर रहे हो।
खुल कर आजाओ न सामने
क्यों ये अच्छा होने का मुखौटा पहने हो?
अगर वाक़ई गलत हूँ मैं ,साबित करो
क्यों जिंदगी में ज़हर घोले हो।
चलो एक बात मैं भी बता दूं।
मेरी फितरत नही किसी के पीछे चलने की।
रिश्तो को निभाया ,दिल से निभाया
मेरी आदत नही आगे और पीछे दो चेहरे रखने की।
अब बस ये देखना बाकी है कि और कितना ज़हर घोल सकते हो तुम
अपने होकर अपनो को कितना दूर धकेल सकते हो तुम
खुद को अकेला समेट लेना के हुनर रखती हूं मैं सभी
मेरी एहमियत को एक दिन समझोगे तुम कभी।
प्रीति
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