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जनवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पिता,पति,पुत्र और भाई

ये चार रिश्ते हर लड़की के जीवन के अहम् रिश्ते होते हैं जिनके साथ होने से अपनी अमीरी और न होने से गरीबी का एहसास होता है।जब तक ये रिश्ते हमारे साथ होते है तब तक शायद हम इतनी अच्छी तरह से इनकी एहमियत नहीं समझ पाते ,मगर जब तक एहमियत समझ आती है कुछ रिश्ते खो से जाते है। आज जब मम्मी की आँखों से गिरते आंसुओ ने मुझे इन रिश्तों से रूबरू कराया तो मैं भी सहम सी गयी थी ।इन रिश्तों की कमी कितनी बड़ी कमी होती है ,मैं शायद जानती थी मगर मेरी कमी मम्मी की कमी के सामने बहुत छोटी लग रही थी।पिता और पुत्र दोनों ही स्थान मेरे जीवन में खाली हैं ,मगर मेरे पिता की कमी को कही न कही मेरे नए परिवार में मिले पिता और मेरे पति ने कम सा कर दिया था,पुत्र की कमी समय के साथ पूरी होने की एक आशा में इतनी बड़ी ना लगी मगर आज जब माँ की आँखों में वो पीड़ा देखि तो दिल भर सा आया।आज जब उन्होंने अपने अकेलेपन और खालीपन का पन्ना मेरे सामने रखा तो वाकई मैं उसे पढ़ ना सकी।हमें कभी कभी लगता है की हम क्यों जी रहे हैं हमारे पास कोई ठोस वजह नहीं होती।मगर गहराई से सोचो तो हमारे अपने हमारे जीने की वजह होते हैं।आज किसी बात पर जब माँ ने मुझे क

देहरादून to चण्डीगढ़

सुबह जब अलार्म की तीखी आवाज ने मुझे उठाया तो मैं हमेशा की तरह झुंझला उठी,मगर जब टाइम पर नजर गयी तो सुबह के साढ़े पांच बज चुके थे हालाँकि ये समय मेरी लाइफ में आधी रात के बराबर था मगर आज इस वक्त उठना मेरी अपनी जरुरत था मैंने आधा मुंह अपनी चादर से निकल कर स्वाति के बेड को देखा वो तो किसी और ही दुनिया में थी।मेरी 4 ,5 आवाज के बाद बड़े अलसाये मन से बोली ,हाँ यार उठ रही हूँ ,बस एक घण्टा था हमारे पास तैयार होने को आज मुझे जॉब छोड़े 1 महीना हो गया था या यूँ कहे की मस्ती करते हुए एक महीना हो गया था।आज हमने प्लान बनाया था चंडीगढ़ जाने का वो भी बाइक से।स्वाति मेरी रूम मेट और बेस्ट फ्रेंड,मानव मेरा मेल बेस्ट फ्रेंड ,विशाल मानव का फ्रेंड और एक मैं।हम चारो तैयार थे चंडीगढ़ के लिए मगर आज मौसम ने ऐसी करवट ली,सुबह से ही तेज बारिश के आसार।मगर हम उड़ते पंछियो पर किसका जोर था ,हम भी निकल पड़े अपना एक एक बैग कंधे पर टांग कर जिसमे सिर्फ मानव और मेरे पास सिर्फ एक रेन कोट था वो भी तिरपाल जैसा ,विशाल और स्वाति के पास वो भी नहीं था।थोड़ी दूर ही निकले थे की बारिश शुरू हो गयी जब तक मजा आया हम भीगते रहे मगर अब ठण्ड का एह