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मम्मी v/s मम्मीजी

मम्मी v/ s मम्मीजी पढ़कर ही आपसब ने अंदाजा लगा लिया होगा की आज यहाँ बात होने वाली है सासु माँ को लेकर ,मगर आज मैं इस रिश्ते को सास ससुर और बहु के नाम से नहीं बल्कि धर्म माता पिता और जन्म माता पिता के नाम से संबोधित करना चाहूंगी।आज का ये मुद्दा आप सबके लिए एक दर्पण का काम करेगा ,आप सब इस कहानी में मेरे शब्दों में खुद को यानि हर सास हर बहु अपने किरदार को फिट करके देखेंगे।मगर मैं एक बात कहना चाहती हूँ की आप मेरे हर शब्द में ,हर वाक्य में सकारात्मकता को तलाशे।ये एक बहुत ही नाजुक विषय है जिसके हर पहलु में आज मैं खुद झाँकने की कोशिश करुँगी।मम्मी के पीछे लगे इस "जी" ने इस रिश्ते में अनेको अंतर लाकर खड़े कर दिए थे। मैंने कितने ही परिवारो को कहते सुना था की हम बहु नहीं बेटी बना कर आपकी बेटी को लेजा रहे हैं ,मगर ये शब्द सिर्फ तब तक कायम रहे जब तक वो बहु बनी बेटी ससुराल के दरवाजे पर पहुंची,जैसे ही गाडी आकर रुकी अंदर से आवाज आई,अरे जल्दी पूजा का थाल लाओ बहु आगयी है।लड़की के मन में बस एक ही सवाल आया की पापा से कहा गया वो वाक्य क्या सिर्फ सांत्वना के लिए था।अभी ये सब दिमाग से निकला भी ना था

बेजुबान दुनिया

आज 6 दिन हो गए थे मुझे इस बेज़ुबान दुनिया में अपना कुछ समय बिताते , जहाँ मैंने ऐसे ऐसे रूप देखे उन जानवरों के जो पहले नहीं देखे थे।हमारी पालतू लेब्रा रानी की तबियत ख़राब चलते आज 15 दिन हो गए थे,जानवरो के अस्पताल में मैं पहले कभी नहीं आई थी मगर पिछले 6 दिनों से मुझे  आना पड़ा।यहाँ आकर पता लगा की आज के समय में कुत्तो का पालन बड़ी तादात में हो रहा है।हाँ गांव में मै कई बार जानवरो के अस्पताल के सामने से निकली थी वहां बस गाय भैंस ,बकरे बकरी आदि जानवरो को ही मैंने देखा था मगर यहां ये अनुभव बहुत नया सा लगा,यहां 98 प्रतिशत कुत्तो को देखा मैंने। इतनी नस्ले पहले हकीकत में कभी नहीं देखि थी और न ही सामना हुआ था इतनी तरह के मालिको से।आज मेरे मन ने इन पालतू कुत्तो को तीन हिस्सों में बाँट दिया था।चलिए उच्च प्रणाली से शुरू करते हैं,वो कुत्ते जो बड़ी कारो से उतरे एक चमचमाते और महंगे पट्टे गले में बंधे थे ,शरीर ऐसे चमक रहा था जैसे पोलिश कर दी हो।कुछ जो ज्यादा भारी थे बस वो ही अपने पैरो पर चल कर आरहे थे बाकि को नसीब थी वो महंगी गोद जिन्होंने कभी अपने बच्चों को गोद में उठा कर ही नहीं देखा,कब आया के हाथो पल कर