मम्मी v/s मम्मीजी

मम्मी v/ s मम्मीजी पढ़कर ही आपसब ने अंदाजा लगा लिया होगा की आज यहाँ बात होने वाली है सासु माँ को लेकर ,मगर आज मैं इस रिश्ते को सास ससुर और बहु के नाम से नहीं बल्कि धर्म माता पिता और जन्म माता पिता के नाम से संबोधित करना चाहूंगी।आज का ये मुद्दा आप सबके लिए एक दर्पण का काम करेगा ,आप सब इस कहानी में मेरे शब्दों में खुद को यानि हर सास हर बहु अपने किरदार को फिट करके देखेंगे।मगर मैं एक बात कहना चाहती हूँ की आप मेरे हर शब्द में ,हर वाक्य में सकारात्मकता को तलाशे।ये एक बहुत ही नाजुक विषय है जिसके हर पहलु में आज मैं खुद झाँकने की कोशिश करुँगी।मम्मी के पीछे लगे इस "जी" ने इस रिश्ते में अनेको अंतर लाकर खड़े कर दिए थे।
मैंने कितने ही परिवारो को कहते सुना था की हम बहु नहीं बेटी बना कर आपकी बेटी को लेजा रहे हैं ,मगर ये शब्द सिर्फ तब तक कायम रहे जब तक वो बहु बनी बेटी ससुराल के दरवाजे पर पहुंची,जैसे ही गाडी आकर रुकी अंदर से आवाज आई,अरे जल्दी पूजा का थाल लाओ बहु आगयी है।लड़की के मन में बस एक ही सवाल आया की पापा से कहा गया वो वाक्य क्या सिर्फ सांत्वना के लिए था।अभी ये सब दिमाग से निकला भी ना था की फिर आवाज आई,बहु को यहाँ बिठाओ ,मुह दिखाई होगी,बहु का कमरा तैयार है ना,बहू तो चाँद का टुकड़ा लाये हो,बहु के साथ क्या क्या मिला दहेज़ में,बहु ये बहु वो,लड़की की सारी गलत फहमी यहीं की यहीं खत्म।
जब लड़की का रिश्ता तय हुआ तो आय दिन सास ,नन्द ,देवर का फ़ोन आने लगा। सास के प्यार भरे शब्दों को सुनकर लड़की फूली न समाती,"बेटा अपना ख्याल रखना,ज्यादा काम मत करना अब,आजकल ठण्ड है ध्यान रखना अपना ,यहां तक की प्यार इतना उमड़ा की होने वाली मम्मीजी ने पहले से हुई मम्मी तक को बोल दिया,ध्यान रखना जी इसका,अब ये हमारी अमानत है,माँ को सुनकर थोडा अजीब लगा ,जैसे लड़की के हकदार बदल गए,मेरी बेटी का ख्याल आज तक मैंने ही तो रखा है ,क्या आप बोलोगी तो ही मैं ध्यान रखूंगी,ये शब्द बस माँ के दिल में ही दब कर रह गए।खैर,नन्द ने भी प्यार दिखाया ,"भाभी आप अब खुद पर ध्यान देना,काम मत करना,स्किन ख़राब हो जायेगी, लड़की का दिल खुश हो गया,देवर के भाभी के घर आने के उतावलेपन को देख कर तो लड़की को लगा की बस आज ही चली जाऊ उस सपनो के संसार में।इस सपनो की दुनिया ने दिल पर इस तरह कब्ज़ा किया की मम्मीजी की बातो के सामने मम्मी की बाते गलत लगने लगी ,जब माँ ने कहा ,बेटा सारा काम सीख ले ससुराल में काम आएगा।उस वक्त साफ़ कह दिया माँ को,की मेरे ससुराल वाले ऐसे नहीं है,
दिन भी उड़ गए पंख लगा कर ,और जब सुबह से शाम तक कान ये सुनने के लिए तरस गए ,की बेटा तुम भी आराम कर लो थक गयी होगी,तब मम्मी और मम्मीजी तराजू के अलग अलग पडले में बैठ गयी।आज समझ आया की इस जी अक्षर ने रिश्ते को किस कदर बदला था।खैर ये इस रिश्ते का इकलौता पहलु नहीं था।चलिए अब रूबरू होते है इसके तीसरे पहलु से,
ये बात है हमारे भारत के हर उस घर की जिसमे बेटी ने जन्म लिया।जहाँ बेटी को बचपन से ससुराल के नाम से ऐसे डरा दिया जाता है जैसे ससुराल एक राक्षश है जो हमे खा जायेगा,अभी बेटी 5 साल की ही हुई होगी तभी माँ ने प्यार से बोल दिया,कितनी खुश रहती है हमारी बेटी ,भगवन करे ससुराल भी बस ऐसी ही मिल जाये ,ऐसे ही हस्ती खेलती रहे,बेटी बस माँ के मुह को देखती रही,ये चीज़ उसकी समझ से बाहर जो थी।अब बेटी हुई 16 बरस की,तब माँ के साथ साथ बाकि की औरते भी शामिल हो गयी इस कहानी में,"कुछ सीख लो तुम्हे दूसरे घर जाना है,वहां ये मनमानी नहीं चलेगी," अरे इतनी बड़ी हो गयी है ,अभी तक ठीक से गोल रोटी नहीं बना पाती, सास के घर ऐसे करेगी तो थाल सीधा मुह पर आएगा,। कितनी बोलती है ये लड़की,ससुराल में ऐसे बोलगे तो गालिया सुनेगी सास से,। धीरे बोला करो सास ये सब बर्दास्त नहीं करेगी।। ससुराल में इस तरह देर तक सोती रहोगी तो सास की गालिया सुनोगी,। इस तरह उलटे काम करना छोड़ दो,ससुराल में ऐसे करेगी तो हमे भी सुनवायेगी।
लड़की के दिल में अब तक ससुराल और सास की छवि बन कर तैयार हो चुकी थी,सास एक राक्षश है और ससुराल एक जेल।क्या यही छवि थी जो 90 प्रतिशत लड़कियो के दिल में बन चुकी थी? जी हाँ ससुराल का डर उस मासूम दिल में बैठ चूका था अगर ऐसा ना होता तो विदाई के समय हर लड़की के मुह से ये न निकलता,"नहीं मम्मी मुझे नहीं जाना,। और वो बिलख बिलख के रोती ना ।वहां भी ऐसे जाती जैसे ,मामा ,मौसी के घर जाते हैं।
खैर अब आते है आखिरी पहलु पर,जो मेरे जीवन से जुड़ा है।जिसमे बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभव हैं।मगर यदि देखें तो हर चीज़ एक सकारात्मकता की तरफ इशारा करती नजर आएगी।
रिश्ता होते ही मेरे दिल ने भी उम्मीद की कि मेरी सास,नन्द,और देवर भी मुझसे वही सब बोले जो मैंने सुना था,मगर अफ़सोस रिश्ते से शादी तक एक भी फ़ोन मम्मीजी ने ना किया😢,मेरा दिल टूट सा जाता जब कोई भी आकर कहता की तेरी सास तुझसे बात नहीं करती,कहीं अकड़ वाली तो नहीं है,और मैं मन ही मन डर जाती,हालाँकि ये जबरदस्ती का दिखावा मुझे भी पसंद नहीं था की रोज मेरी ससुराल वाले भी वो सब बोले जो सिर्फ काल्पनिक लगता है,मगर कही न कही मैं भी ये अनुभव करना चाहती थी।मेरे मन में हज़ारो सवाल उठते जब मैं ससुराल में अपने लिए वो सब ना देखती जो मैंने आम लोगो की जिंदगी में देखा था, बहु के आते ही ,बस बहु बहु और बहु शब्द घर में गुझता, भाभी भाभी कहकर सारे नन्द देवर इर्द गिर्द रहते,सास हर आती जाती औरत से अपनी बहु की तारीफ करती,मगर मुझे ये  कुछ देखने को ना मिला।मैं अंदर ही अंदर बिखरने लगी थी।ससुराल की हकीकत क्या ये होती है,या फिर मैं किसी को पसंद नहीं हूँ,मैं और कोशिश करती सबको खुश रखने की,हर काम दिल से करती ,अच्छे तरीके से करती,मगर महीनो बीत गए तारीफ का एक शब्द नहीं सुना मैंने। कितनी ही बार अपने कमरे में जाकर सिर्फ इसलिए रो देती क्योंकि मैं मम्मीजी से खुद के लिए बेटा ना सुन पाती,फिर मम्मी और मम्मीजी में तुलना शुरू होने लगी,फिर अचानक घर के कुत्ते के लिए जब उनके मुह से बेटा सुना तो दिल टूट गया और ईर्ष्या हुई उस जानवर के खुश नसीब से,बेटा शब्द सुनने को कान तरसने लगे थे ,मगर हाँ डैडीजी के हर वाक्य में बेटा होता मेरे लिए जिसने पापा और डैडी जी के अंतर को कम सा कर दिया था।
खैर मम्मीजी के तीखे और तेज़ शब्दों ने दिल को छलनी करना शुरू कर दिया था फिर पता चला की उनकी आवाज ही ऐसी है।पाक कला में निपुण मम्मीजी  को खुश करने के लिए मैंने अपनी जी जान निकाल के रखना शुरू कर दिया था,हर मुमकिन कोशिश करती की खाना अच्छा बने ,सब ने एक आध बार तारीफ की तो अच्छा लगा मगर नजर हमेशा मम्मीजी पर टिकी रही मगर वहां से कभी तारीफ के दो शब्द न मिले,फिर से मम्मी और मम्मीजी की तुलना हुई,जरा सा कुछ बना देने से मम्मी कितनी खुश होती थी ,सबसे कहते थकती ना थी की मेरी बेटी खाना बनाना सीख गयी।खैर मेरे हर काम में गलतिया निकलती तो मम्मी के पीछे लगे इस जी का अर्थ समझ आता।जब बीमार होती तो मम्मी और मम्मीजी फिर तराजू में मिलते।अपना पहनावा,रहन सहन,खान पान,तौर तरीके,सब कुछ तो बदल दिया था सिर्फ इस उम्मीद में की बस एक बार मम्मीजी मम्मी बन कर कह दे की मेरी बहु में सारे गुण हैं।एक आधुनिक जीवन शैली से पारंपरिक शैली में ढल चुकी थी मैं, हर मुमकिन कोशिश करती की कहीं से भी मेरी शिकायत ना हो,और शिकायत हुई भी नहीं मगर ये दिल जो सुनना चाहता था वो अभी तक ना सुना था।
खैर ये सब पढ़ कर आपको लगरहा होगा की मेरी मम्मीजी बहुत ही खडूस सास हैं,मगर नहीं दोस्तों आज मैं आप सबको एक और छुपी हकीकत से रूबरू करुँगी।सही मायनो में देखा जाये तो मम्मीजी के इस स्वाभाव ने मुझे निखारना शुरू कर दिया था।समय बीता,साल बीते और मुझे समझ आने लगा मेरी मम्मीजी का असली मकसद।और मुझे ख़ुशी होने लगी की मेरी सास ने बाकी सास की तरह मुझे प्यार न कर के ,ना दिखा के मेरे व्यक्तित्व को निखार दिया था।आज मुझे अच्छा लगने लगा था शादी से पहले उनका वो प्यार ना दिखाना जो बहु के घर आते ही गायब हो जाता है,आज मुझे सही लगा घर में बहु बहु ,भाभी ,भाभी ना गुझना,जो शादी के कुछ दिन बाद ही कड़वाहट का रूप लेलेता है।आज मुझे समझ आया की अगर मेरे हर तरह के खाने की तारीफ की होती तो आज मैंने अपनी कमियो को पहचान कर खुद को मम्मीजी की तरह पाक कला में निपुण ना पाया होता।अगर उनके तौर तरीके ना अपनाये होते तो 4 साल का समय एक सयुक्त परिवार में ना बिताया होता।अगर उस वक्त उनकी वो कर्कश आवाज ने मुझे ना डराया होता तो आज खुद को एक कुशल गृहणी ना बना पाती।आज मम्मी और मम्मीजी के इस अंतर ने मुझे बहुत कुछ सीखा दिया था।अगर मम्मी जी भी मम्मी ही बानी रहती तो शायद मेरी कमिया निकल कर सामने आती ही ना।उनके तीखे व्यवहार ने मुझे मजबूत बना दिया था।
इसीलिए कहना चाहूंगी दोस्तों की जो बचपन में सास और ससुराल को लेकर हमारे दिल में डर बिठाया जाता है उसमे सिर्फ माँ का डर और स्वार्थ छुपा होता है की उनकी बेटी खुद को तैयार रखे अपने पूर्णतय बदले जीवन में जाने के लिए ।और सास के तीखे शब्दों में नफरत नहीं बल्कि इच्छा छुपी होती है बहु को उतने ही काबिल बनाने की जितने की वो खुद है ताकि उनके घर और उनकी धरोहर की देखभाल आगे वो बहु भी उतनी ही शिद्दत से कर सके।
जन्म माता पिता के साथ तो हम सिर्फ 25 साल रहते है उनकी दी शिक्षा सिर्फ 25 साल हमे मिलती है जो नए घर जाकर ना जाने कितने मायनो में हमें बदल देनी पड़ती है।मगर धर्म माता पिता के साथ हम 25 से ज्यादा वर्ष बिताते है।उनकी दी शिक्षा से हम पूरी जिंदगी जीते है।
इसलिए जितना सम्मान जितना प्यार आप मम्मी पापा से करते हैं उतना ही आदर सम्मान उतना ही प्यार मम्मीजी पापाजी से भी कीजिये,और देखिये की आप कितने सफल है कितने खुश हैं
प्रीती राजपूत शर्मा
10 सितम्बर 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने