हाँ,बदल गयी हूँ मैं...
कोमल की बड़ी बड़ी आँखे आज फिर छलक पड़ी थी,पता नहीं ये पानी जो खोया उसके लिए था या जो खो कर पा लिया उसके लिए था।इन ढाई सालो में कितने उतार चढाव आये,जिन्होंने कोमल का अस्तित्व ही बदल कर रख दिया ।
सूरज उसके जीवन का वो हिस्सा था जो ना कभी उस से अलग हुआ और ना ही उसका हो पाया।
याद है कोमल को जब उसका एक भी पल पूरा नहीं हुआ करता था सूरज के बिना। एक छोटी सी दोस्ती से शुरू हुआ ये रिश्ता प्यार की सारे कसौटी पार कर चूका था ,दोनों की हर सांस एक दूसरे के लिए चलने लगी थी।मगर जमीन पर बने इस रिश्ते का लेखा जोखा शायद ऊपर उनकी किस्मत की किताब में था ही नहीं।
आज ढाई साल बाद पहली बार कोमल को एहसास हुआ की शायद वो सच में बदल गयी है ।।।कितनी बार सूरज ने उसे बोला था ,तुम बदल गयी हो कोमल,और ये बदलाव् सहा नहीं जा रहा मुझसे।
मगर कोमल को क्यों ये एहसास नहीं हो पा रहा था की जिस बदलाव की कोशिश वो इतने महीनो से कर रही है वो इंच भर भी उस कोशिश को बढ़ा पाई है की नहीं।
आज सूरज की कुछ बातो ने कोमल को पुराणी सारी बाते याद दिला दी थी।
कितनी सिद्दत से वो इंतज़ार किया करती थी सूरज के घर आने का ,उसके लिए नयी नयी चीज़े बना कर खिलाना उसे सुकून दिया करता था ,उसके लिए सज संवर कर रहना उसे अच्छा लगता था,सूरज की एक आवाज पर जान देने वाली कोमल आज खुद की जान लेने पर मजबूर होने लगी थी।सूरज के साथ बिताये वो सारे सुनहरे पल अब एक धोखा जो लगने लगे थे।कितने अच्छे थे वो पल जब कोमल और सूरज की जिंदगी में इंच भर भी जगह नहीं थी किसी की ।सूरज के बिना एक पल भी जीना मुमकिन नहीं था हर पल उसके लिए कुछ करना ,हर पल उसके लिए जीना ।और यही हाल सूरज का भी तो था कोमल को हर पल वो एहसास कराता था था की वो कितनी खास है उसके लिए।जिंदगी में हर सफलता की सीढ़ी कोमल से होकर गुजरती है,कोमल से उसकी सुबह होती है और कोमल से उसकी शाम।जो चीज़े फिल्मो में देख कर एक सपना लगता था कोमल उसको जी रही थी।कभी कभी तो कोमल सूरज को बोल भी देती थी"हर किसी को हमारे रिश्ते में मत झांकने दिया करो सूरज ,हमारे प्यार को किसी की नजर न लग जाये। और सूरज उसकी इस मासूमियत पर उसे जकड लिया करता था ।हर किसी से कोमल का जिक्र करने में जैसे फक्र होता था सूरज को।उनका ये प्यार ,ये साथ किसी सपने भरी दुनिया से कम नहीं था ।
मंदिर में भरी मांग को सात जन्मों का साथ समझ कर जी रही थी कोमल। अब बस सूरज तक सिमट गयी थी उसकी ये दुनिया ।महीनो वो इंतज़ार करती की कब छुट्टी आएगा सूरज ,और कब वो हर रंग जियेगी उसके साथ।कहा घूमने जायेगी ,क्या क्या बनाएगी,क्या पहनेगी।सब कुछ पहले से तय होता था ,हर बार मिलना ऐसा लगता था जैसे पहली मुलाकात हो।न सूरज का इस दुनिया में कोई था न कोमल का मगर वो दोनों एक दूसरे की दुनिया बन गए थे।
अचानक कोमल का फ़ोन बज उठा ,कोमल जैसे सपनो की दुनिया से जाग गयी थी ,कब से बीते पल उसकी खुली आँखों में तैर रहे थे ।
" कोमल कब से फ़ोन कर रहा हूँ तुम उठा क्यों नहीं रही थी,तुम्हे पता है न मैं कितना परेशान हो जाता हूँ। उधर से सूरज ने घबराते हुए कहा था।और इधर कोमल जैसे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थी की वो जिंदगी असली थी या ये।।।हम्म काम में लगी थी फ़ोन का पता नहीं लगा ।बड़े अलसाये मन से कहा था कोमल ने।
ऐसा मत किया करो न ,मेरी जान निकल जाती है।कितने ख्याल आजाते है मन में।क्या हुआ तुम कुछ परेशान लग रही हो,सब ठीक है न ।तुम्हारी तबियत ठीक है ना।
हाँ मैं ठीक हूँ सूरज । मगर कोमल तो जैसे उथल पुथल हो चुकी थी क्या ये सूरज वही सूरज है।या फिर मैं वो कोमल नहीं रही।आज इसकी चिंता ,इसका प्यार मुझे फरेब सा लगने लगा है।कोमल जैसे घुट कर रह गयी थी।
क्या हुआ कोमल तुम मुझसे पहले जैसे बात क्यों नहीं करती हो,मुझसे कोई गलती हो गयी है क्या ? मुझे वो कोमल क्यों नहीं नजर आती जो चहक कर मेरा फ़ोन उठाया करती थी।मुझे ये बदलाव परेशां कर रहा है कोमल,कितने दिनों से महसूस कर रहा हूँ तुम बहुत बदली बदली लग रही हो,कोई बात है तो बताओ मुझे। सूरज परेशान होकर बोल रहा था
"बदल गयी हूँ,नहीं तो,मैं कहाँ बदली हूँ ।वही तो हूँ जो हर पल तुम्हारी थी,सब वही तो है सूरज।।।कोमल की जुबान जैसे उसके शब्दों का वजन नहीं उठा पा रही थी ।उसके मन में हज़ारो सवाल उठ रहे थे की क्या मैं अपनी कोशिश में कामियाब हो रही हूँ।आखिर बदल जाना मेरा अपना फैसला था।मैं बाद में बात करती हूँ सूरज अभी कुछ काम निपटा रही थी। कोमल जैसे और समय चाहती थी अपने बीते और इन पलो को अकेले फिर जीने के लिए।
ठीक है अपना ध्यान रखना ।और सूरज ने फ़ोन रख दिया था।
कोमल फिर से डूब जाना चाहती थी उन सब एहसास में जो उसने खुद तय किये थे।आज सूरज को एहसास होने लगा है की मैं बदल गयी हूँ ,सही ही तो है धीरे धीरे आदत हो जायेगी ऐसे ही एक दूसरे से दूर होने की।कोमल की आँखे फिर भर आई थी ।क्या सच में मैं बदल रही हूँ अच्छा ही तो है यही तो चाहती थी मैं, की बस अब सूरज अपनी जिंदगी मेरे फैसलो पर न जिए और मैं भी सपनो की दुनिया से निकल आऊँ।
सूरज के बैग से निकली वो फ़ोटो जिसमे सूरज की जिंदगी के छुपे राज नजर आये थे उसने कोमल की जिंदगी बदल कर रख दी थी ।कौन थी वो औरत जो सूरज के इतने करीब खड़ी थी जहाँ तक जाना सिर्फ मेरा अधिकार था ,और फिर वो छोटी सी बच्ची जिसे सूरज ने अपनी गोद में उठाया था ।फ़ोटो पर लिखे वो शब्द, my life" जैसे सब कुछ कह रहे थे।उसे देख कर एक पल को लगा जैसे उस औरत ने कोमल से सब कुछ छीन लिया मगर अगले ही पल उस मासूम बच्ची पर नजर गयी तो खुद से ही चिढ सी गयी कोमल।"नहीं इसने मेरी जिंदगी तबाह नहीं ,मैंने इसकी जिंदगी में दखल दिया है।।।ये तो मुझसे पहले इनकी जिंदगी का हिस्सा है।फिर क्यों सूरज ने उसकी मांग भर डाली।तो क्या ये 2 साल का प्यार ,ये चिंता ये मीठी मीठी बाते सब झूठी थी ,क्यों किया होगा सूरज ने ऐसा।उसने तो कहा था की उसका इस दुनिया में कोई नहीं है।फिर ये दोनों।नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता,मुझे सूरज से बात करनी चाहिए।कोमल खुद से ही बाते कर रही थी। 2 महीने बीत गए इस बात को मगर आज भी कोमल सूरज से बात नहीं कर पाई की आखिर वो कौन है।शायद जवाब से डरती है वो।बस उसके हर बोल चाल में फर्क आ गया था।उसका दिल ना चाहते हुए भी हटने लगा था सूरज से।मगर उसे इंतज़ार था की इस बार जब सूरज छुट्टी आएगा तो वो हर बात पूछेगी।
और वो दिन भी आ गया जब सूरज ने बताया की 3 दिन बाद वो घर आरहा है।मगर आज वो ख़ुशी कही खोई सी थी जो ये खबर सुन कर कोमल को चहका दिया करती थी।इस बार क्यों दिल नहीं कर रहा मेरा हर बार की तरह हर चीज़ प्लान करने का।
आज सुबह से कोमल घडी देख रही थी बस कभी भी आता होगा सूरज।क्या मैं आज भी उसी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही हूँ फिर आज क्यों दिल नहीं कर रहा की सज सवंर कर बैठु,शीशे के सामने खड़ी कोमल खुद से बाते कर रही थी।
तभी दरवाजे की घंटी बज उठी,खुद को सीमेट ते हुए कोमल दरवाजे की तरफ भागी थी।
सामने बैग टाँगे सूरज खड़ा था ,हमेशा की तरह चेहरे पर हंसी और खूब सारा प्यार।मगर कोमल ने बस एक फीकी सी मुस्कान से उसका स्वागत किया था वो खुद के सवालो में उलझी थी।क्यों आगे बढ़ कर वो गले से नहीं लग पाई सूरज के।क्यों आज मुझे सूरज का ये शरीर अपना सा नहीं लग रहा ।बस वो सूरज को देखे जा रही थी।
क्या बात कोमल बड़ा फीका सा स्वागत किया तुमने,क्या तुम खुश नहीं हो मेरे आने से?सूरज ने कोमल की आँखों में झांकते हुए कहा था।
नहीं नहीं ऐसे क्यों कह रहे हो?और आपनी आँखे झुका ली थी जैसे अपनी आँखों के सवाल छुपाना चाहती थी।
आज वही नार्मल नाश्ता,वही नार्मल बातचीत,सूरज हैरान था ।वो बेचैन हो उठा था।
कोमल आखिर बात क्या है।तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो आखिर बात क्या है,सूरज ने उसका हाथ पकड़ कर खीच लिया था।बस अब शायद सही समय था सही गलत ,सच झूट का पता लगाने का। कोमल ने बिना कुछ कहे पास की टेबल पर रखी वो फ़ोटो उठा कर सूरज के सामने कर दी थी,
कौन है ये सूरज?
सूरज को काटो तो खून नहीं था।उसके चेहरे पर उभरे भाव सब कुछ कह रहे थे।
ये,,,,ये,, ये कविता है....मगर ये कहा से मिली मतलब ,, सूरज के शब्दों ने स्थिरता खो दी थी।
कौन कविता सूरज...कोमल सूरज की आँखों में झांक रही थी।
कोमल देखो तुम...ध्यान से सुनो,गुस्सा मत करना,शांत होकर मेरी बात को सुनना और समझना भी प्लीज।
क्या ये बीवी है तुम्हारी सूरज???सूरज को बीच में ही रोकते हुए सटीक सवाल किया था कोमल ने जैसे इन 2 महीनो ने हिम्मत भर दी थी उसे ये जवाब सुनने के लिए।
सूरज उसके चेहरे को आश्चर्य से देख रहा था ,उसे कोई भाव ,कोई गुस्सा ,कोई नाराजगी नजर ही नहीं आई ,जैसे ये सच पहले से स्वीकार कर चुकी थी कोमल बस देरी थी तो सूरज के हाँ कहने की।
हां कोमल ,मगर...
क्यों सूरज?क्यों उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी तुमने।पत्नी,बेटी सब तो था तुम्हारे पास फिर मैं क्यों? कोमल की आँखों में बस सवाल थे ।सूरज उसे ऐसे देख रहा था जैसे वो कोमल है ही नहीं,इतनी कठोरता इतनी स्थिरता,ये सब सुन कर कोमल रो रो कर..मगर येतो
कोमल मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।कविता 3 साल पहले मेरी जिंदगी में आई थी उस से शादी करना मेरी मज़बूरी था।मगर प्यार मैं सिर्फ तुमसे करता हूँ।तुम मिली तो लगा जो चाहिए था वो मिल गया ,मेरी तलाश पूरी हो गयी।यकीन करो कोमल तुमसे ज्यादा प्यार मई किसी को नहीं करता।तुम चाहिए मुझे सिर्फ तूम।तुम्हे बता नहीं पाया वरना तुम्हे खो देता मैं।तुम्हारे बिना कोई जीवन नहीं मेरा।यकीन मानो मैं उसे बिलकुल प्यार नहीं करता।वो बस मेरी जिम्मेदारी है जो मैं निभा रहा हूँ।
वाह सूरज,बिना प्यार के एक बच्चा भी हो गया तुम्हारा ,एक साल की लगती है तुम्हारी बेटी ,और मैं 2 साल पहले तुम्हारी जिंदगी में आगयी।उसके बाद भी कहते हो प्यार नहीं करते उस से।एक नफरत से भरी हंसी उभर आई थी कोमल के चेहरे पर।
नहीं कोमल मेरी बात को समझो मैं..
हर छुट्टी जब आते थे उसे मिलने जाते होंगे न तुम सूरज,जाकर मेरे विश्वास को उसके बिस्तर पर रोंधते होंगे,उसको बहार भी घूमते होंगे,अपनी बेटी को प्यार करते होंगे।शर्म नहीं आती तुम्हे। जब जब उसे गोद में उठाते हो खुद की बेवफाई पर दिल नहीं रोता तुम्हारा। कोमल जैसे सूरज को सुनना ही नहीं चाहती थी ।
जाओ सूरज उसे वो दो जो उसका हक़ है।मुझे कोई सफाई नहीं चाहिए ,मुझे कोई नाराजगी नहीं तुमसे,और कोमल ने खुद को एक अलग कमरे में बंद कर दिया था।सूरज अपने किये पर खुद से ही नाराज था।शायद आज उसने अपना प्यार खो दिया था।
10 दिन निकल गए थे ,कोमल हर वो काम कर रही थी जो उसकी जिम्मेदारी में शामिल था ,मगर अब पहले जैसा कुछ नहीं था,कोमल की साडी नाराजगी ,सारा गुस्सा जैसे उसके अंदर सिमटता जा रहा था।सूरज भी हैरान था की कोमल इतनी नार्मल कैसे है।कोमल की ये चुप्पी उसका ये बदलाव अब सहन नहीं कर पा रहा था सूरज।
कोमल मैं बहुत अधूरा महसूस कर रहा हूँ,तुम्हारे बिना जीना संभव नहीं है।प्लीज मुझे माफ़ करदो।यकीन करो तुमसे ज्यादा प्यार मैं किसी से नहीं करता ,प्लीज।
सो जाओ सूरज,काफी रात हो गयीहै,करवट बदलते हुए कोमल ने कहा था।
नहीं ,नहीं सो सकता मैं, तुम मेरी हो ,और मैं तुम्हारा हूँ ,सिर्फ तुम्हारा,एसे अलग मत करो मुझे,मैं मर जाऊंगा।कब से इंतज़ार कर रहा था आने का।तुम्हे खूब प्यार करने का ।तुम पत्नी हो मेरी कोमल प्लीज मुझसे मेरे हक़ मत छीनो।
तुम्हारे पास हर चीज़ का आप्शन है सूरज।चले जाना कल उसके पास और जी लेना अपने हक़।मेरे पास शायद अब कुछ नहीं है देने को।और कोमल ने खुद को छुपा लिया था अपने बिस्तर में।
नहीं कोमल मत बदलो इतना प्लीज,वहां से कुछ नहीं चाहिए मुझे।कितनी बार कहूँ उसे प्यार नहीं करता मैं।प्लीज कोमल ऐसे दूरिया मत बढ़ाओ मुझसे।
तुम कैसे बदल सकती हो इतना,मुझसे सहन नहीं हो रहा तुम्हारा ये बदलाव कोमल।
तो क्या चाहते हो तुम सूरज रात दिन तुम्हारे लिए रोती रहूँ ।जो तुमने किया मेरे साथ उस पर आंसू बहती रहूँ।नहीं मिस्टर सूरज,इतनी कमजोर नहीं हूँ मैं, अब मुझे ये जिंदगी का सफ़र ऐसे ही तय करना है और मैं इसके लिए तैयार हूँ।
कल मैं वापस जा रहा हूँ कोमल मुझे इस तरह अधूरा मत भेजो,मैं सिर्फ तुम्हारे साथ पूरा होता हूँ।प्लीज कोमल।मगर कोमल जैसे सुनकर भी कुछ नहीं सुनना चाहती थी।
सूरज अपना बैग लिए खड़ा था ,उसकी आँखे लाल थी जैसे पूरी रात रो कर या जाग कर निकली थी।
इतना मत बदलो कोमल,तुम बहुत बदल गयी हो।मैं मर जाऊंगा।प्लीज मुझे थोडा सा प्यार देदो।एसे मत भेजो।
कोमल ने आगे बढ़ कर सूरज को बाँहों में भर लिया था।सूरज ने उसे जकड लिया था मगर इस से पहले सूरज को उस जकड का एहसास हो पाता कोमल ने खुद को अलग कर दिया था।
अपना ध्यान रखना सूरज।पहुँच के बता देना।।
सुरज आगे कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं कर पाया था।और चुप चाप आगे बढ़ गया था।कोमल दरवाजे पर जैसे खुद में ही जड़ हो गयी थी।सूरज को जाते देख उसको लगा जैसे उसक8 जान निकल रही थी।उसकी आँखे भर आई थी ,इतना कठोर बनकर भी क्यों वो ये प्यार नहीं छुपा पा रही थी,सूरज के प्यार के बिना बीता हर पल उसे तड़पा रहा था।क्या मैंने गलत किया ,या मैं सच में बदल गयी हूँ।सूरज कहता है की मैं बदल गयी हूँ मैं कठोर हो गयी हूँ,कमरे में सूरज की खुशबू अभी बीHई आ रही थी ,कोमल की आँखे बरस गयी थी।सूरज कहता है मेरे अंदर जज्बात नहीं रहे।फिर ये तकिया हर सुबह सुखा क्यों नहीं मिलता।कोमल ने अपना तकिया उठाते हुए कहा था।मगर मुझे क्यों इस बार वो महसूस नहीं हुआ जो हुआ करता था।क्यों खुद को भूल कर प्यार नहीं कर पाई सूरज को।क्या सच में सूरज ने खो दिया मुझे,क्या एक बार फिर से अपना खोया अस्तित्व पा लिया मैंने।सूरज के प्यार में जिस कोमल को भूल बैठी थी क्या वो आज आगयी है।क्यों सूरज का कुछ अपना नहीं लगा मुझे।क्यों सूरज का घर से बहार जाना ये पता होते हुए की वो अपनी जिम्मेदारी पूरी करने फिर उन्ही बाँहो में गया होगा नुझे क्यों इतना फर्क नहीं पड़ा।क्यों रो रो कर मर नहीं गयी मई अपने अधिकारो को बांटता देख कर।क्या सच में बदल गयी हूँ मैं, क्या इन आंसुओ ने मुझे मजबूत बना दिया है।....हाँ बदल गयी हूँ मैं... कोमल ने खुद में ही बुदबुदाया था।और हर रोज की तरह अपने काम में व्यस्त कर दिया था खुद को।
प्रीति राजपूत शर्मा
6 नवंबर 2016
सूरज उसके जीवन का वो हिस्सा था जो ना कभी उस से अलग हुआ और ना ही उसका हो पाया।
याद है कोमल को जब उसका एक भी पल पूरा नहीं हुआ करता था सूरज के बिना। एक छोटी सी दोस्ती से शुरू हुआ ये रिश्ता प्यार की सारे कसौटी पार कर चूका था ,दोनों की हर सांस एक दूसरे के लिए चलने लगी थी।मगर जमीन पर बने इस रिश्ते का लेखा जोखा शायद ऊपर उनकी किस्मत की किताब में था ही नहीं।
आज ढाई साल बाद पहली बार कोमल को एहसास हुआ की शायद वो सच में बदल गयी है ।।।कितनी बार सूरज ने उसे बोला था ,तुम बदल गयी हो कोमल,और ये बदलाव् सहा नहीं जा रहा मुझसे।
मगर कोमल को क्यों ये एहसास नहीं हो पा रहा था की जिस बदलाव की कोशिश वो इतने महीनो से कर रही है वो इंच भर भी उस कोशिश को बढ़ा पाई है की नहीं।
आज सूरज की कुछ बातो ने कोमल को पुराणी सारी बाते याद दिला दी थी।
कितनी सिद्दत से वो इंतज़ार किया करती थी सूरज के घर आने का ,उसके लिए नयी नयी चीज़े बना कर खिलाना उसे सुकून दिया करता था ,उसके लिए सज संवर कर रहना उसे अच्छा लगता था,सूरज की एक आवाज पर जान देने वाली कोमल आज खुद की जान लेने पर मजबूर होने लगी थी।सूरज के साथ बिताये वो सारे सुनहरे पल अब एक धोखा जो लगने लगे थे।कितने अच्छे थे वो पल जब कोमल और सूरज की जिंदगी में इंच भर भी जगह नहीं थी किसी की ।सूरज के बिना एक पल भी जीना मुमकिन नहीं था हर पल उसके लिए कुछ करना ,हर पल उसके लिए जीना ।और यही हाल सूरज का भी तो था कोमल को हर पल वो एहसास कराता था था की वो कितनी खास है उसके लिए।जिंदगी में हर सफलता की सीढ़ी कोमल से होकर गुजरती है,कोमल से उसकी सुबह होती है और कोमल से उसकी शाम।जो चीज़े फिल्मो में देख कर एक सपना लगता था कोमल उसको जी रही थी।कभी कभी तो कोमल सूरज को बोल भी देती थी"हर किसी को हमारे रिश्ते में मत झांकने दिया करो सूरज ,हमारे प्यार को किसी की नजर न लग जाये। और सूरज उसकी इस मासूमियत पर उसे जकड लिया करता था ।हर किसी से कोमल का जिक्र करने में जैसे फक्र होता था सूरज को।उनका ये प्यार ,ये साथ किसी सपने भरी दुनिया से कम नहीं था ।
मंदिर में भरी मांग को सात जन्मों का साथ समझ कर जी रही थी कोमल। अब बस सूरज तक सिमट गयी थी उसकी ये दुनिया ।महीनो वो इंतज़ार करती की कब छुट्टी आएगा सूरज ,और कब वो हर रंग जियेगी उसके साथ।कहा घूमने जायेगी ,क्या क्या बनाएगी,क्या पहनेगी।सब कुछ पहले से तय होता था ,हर बार मिलना ऐसा लगता था जैसे पहली मुलाकात हो।न सूरज का इस दुनिया में कोई था न कोमल का मगर वो दोनों एक दूसरे की दुनिया बन गए थे।
अचानक कोमल का फ़ोन बज उठा ,कोमल जैसे सपनो की दुनिया से जाग गयी थी ,कब से बीते पल उसकी खुली आँखों में तैर रहे थे ।
" कोमल कब से फ़ोन कर रहा हूँ तुम उठा क्यों नहीं रही थी,तुम्हे पता है न मैं कितना परेशान हो जाता हूँ। उधर से सूरज ने घबराते हुए कहा था।और इधर कोमल जैसे स्वीकार ही नहीं कर पा रही थी की वो जिंदगी असली थी या ये।।।हम्म काम में लगी थी फ़ोन का पता नहीं लगा ।बड़े अलसाये मन से कहा था कोमल ने।
ऐसा मत किया करो न ,मेरी जान निकल जाती है।कितने ख्याल आजाते है मन में।क्या हुआ तुम कुछ परेशान लग रही हो,सब ठीक है न ।तुम्हारी तबियत ठीक है ना।
हाँ मैं ठीक हूँ सूरज । मगर कोमल तो जैसे उथल पुथल हो चुकी थी क्या ये सूरज वही सूरज है।या फिर मैं वो कोमल नहीं रही।आज इसकी चिंता ,इसका प्यार मुझे फरेब सा लगने लगा है।कोमल जैसे घुट कर रह गयी थी।
क्या हुआ कोमल तुम मुझसे पहले जैसे बात क्यों नहीं करती हो,मुझसे कोई गलती हो गयी है क्या ? मुझे वो कोमल क्यों नहीं नजर आती जो चहक कर मेरा फ़ोन उठाया करती थी।मुझे ये बदलाव परेशां कर रहा है कोमल,कितने दिनों से महसूस कर रहा हूँ तुम बहुत बदली बदली लग रही हो,कोई बात है तो बताओ मुझे। सूरज परेशान होकर बोल रहा था
"बदल गयी हूँ,नहीं तो,मैं कहाँ बदली हूँ ।वही तो हूँ जो हर पल तुम्हारी थी,सब वही तो है सूरज।।।कोमल की जुबान जैसे उसके शब्दों का वजन नहीं उठा पा रही थी ।उसके मन में हज़ारो सवाल उठ रहे थे की क्या मैं अपनी कोशिश में कामियाब हो रही हूँ।आखिर बदल जाना मेरा अपना फैसला था।मैं बाद में बात करती हूँ सूरज अभी कुछ काम निपटा रही थी। कोमल जैसे और समय चाहती थी अपने बीते और इन पलो को अकेले फिर जीने के लिए।
ठीक है अपना ध्यान रखना ।और सूरज ने फ़ोन रख दिया था।
कोमल फिर से डूब जाना चाहती थी उन सब एहसास में जो उसने खुद तय किये थे।आज सूरज को एहसास होने लगा है की मैं बदल गयी हूँ ,सही ही तो है धीरे धीरे आदत हो जायेगी ऐसे ही एक दूसरे से दूर होने की।कोमल की आँखे फिर भर आई थी ।क्या सच में मैं बदल रही हूँ अच्छा ही तो है यही तो चाहती थी मैं, की बस अब सूरज अपनी जिंदगी मेरे फैसलो पर न जिए और मैं भी सपनो की दुनिया से निकल आऊँ।
सूरज के बैग से निकली वो फ़ोटो जिसमे सूरज की जिंदगी के छुपे राज नजर आये थे उसने कोमल की जिंदगी बदल कर रख दी थी ।कौन थी वो औरत जो सूरज के इतने करीब खड़ी थी जहाँ तक जाना सिर्फ मेरा अधिकार था ,और फिर वो छोटी सी बच्ची जिसे सूरज ने अपनी गोद में उठाया था ।फ़ोटो पर लिखे वो शब्द, my life" जैसे सब कुछ कह रहे थे।उसे देख कर एक पल को लगा जैसे उस औरत ने कोमल से सब कुछ छीन लिया मगर अगले ही पल उस मासूम बच्ची पर नजर गयी तो खुद से ही चिढ सी गयी कोमल।"नहीं इसने मेरी जिंदगी तबाह नहीं ,मैंने इसकी जिंदगी में दखल दिया है।।।ये तो मुझसे पहले इनकी जिंदगी का हिस्सा है।फिर क्यों सूरज ने उसकी मांग भर डाली।तो क्या ये 2 साल का प्यार ,ये चिंता ये मीठी मीठी बाते सब झूठी थी ,क्यों किया होगा सूरज ने ऐसा।उसने तो कहा था की उसका इस दुनिया में कोई नहीं है।फिर ये दोनों।नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता,मुझे सूरज से बात करनी चाहिए।कोमल खुद से ही बाते कर रही थी। 2 महीने बीत गए इस बात को मगर आज भी कोमल सूरज से बात नहीं कर पाई की आखिर वो कौन है।शायद जवाब से डरती है वो।बस उसके हर बोल चाल में फर्क आ गया था।उसका दिल ना चाहते हुए भी हटने लगा था सूरज से।मगर उसे इंतज़ार था की इस बार जब सूरज छुट्टी आएगा तो वो हर बात पूछेगी।
और वो दिन भी आ गया जब सूरज ने बताया की 3 दिन बाद वो घर आरहा है।मगर आज वो ख़ुशी कही खोई सी थी जो ये खबर सुन कर कोमल को चहका दिया करती थी।इस बार क्यों दिल नहीं कर रहा मेरा हर बार की तरह हर चीज़ प्लान करने का।
आज सुबह से कोमल घडी देख रही थी बस कभी भी आता होगा सूरज।क्या मैं आज भी उसी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही हूँ फिर आज क्यों दिल नहीं कर रहा की सज सवंर कर बैठु,शीशे के सामने खड़ी कोमल खुद से बाते कर रही थी।
तभी दरवाजे की घंटी बज उठी,खुद को सीमेट ते हुए कोमल दरवाजे की तरफ भागी थी।
सामने बैग टाँगे सूरज खड़ा था ,हमेशा की तरह चेहरे पर हंसी और खूब सारा प्यार।मगर कोमल ने बस एक फीकी सी मुस्कान से उसका स्वागत किया था वो खुद के सवालो में उलझी थी।क्यों आगे बढ़ कर वो गले से नहीं लग पाई सूरज के।क्यों आज मुझे सूरज का ये शरीर अपना सा नहीं लग रहा ।बस वो सूरज को देखे जा रही थी।
क्या बात कोमल बड़ा फीका सा स्वागत किया तुमने,क्या तुम खुश नहीं हो मेरे आने से?सूरज ने कोमल की आँखों में झांकते हुए कहा था।
नहीं नहीं ऐसे क्यों कह रहे हो?और आपनी आँखे झुका ली थी जैसे अपनी आँखों के सवाल छुपाना चाहती थी।
आज वही नार्मल नाश्ता,वही नार्मल बातचीत,सूरज हैरान था ।वो बेचैन हो उठा था।
कोमल आखिर बात क्या है।तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो आखिर बात क्या है,सूरज ने उसका हाथ पकड़ कर खीच लिया था।बस अब शायद सही समय था सही गलत ,सच झूट का पता लगाने का। कोमल ने बिना कुछ कहे पास की टेबल पर रखी वो फ़ोटो उठा कर सूरज के सामने कर दी थी,
कौन है ये सूरज?
सूरज को काटो तो खून नहीं था।उसके चेहरे पर उभरे भाव सब कुछ कह रहे थे।
ये,,,,ये,, ये कविता है....मगर ये कहा से मिली मतलब ,, सूरज के शब्दों ने स्थिरता खो दी थी।
कौन कविता सूरज...कोमल सूरज की आँखों में झांक रही थी।
कोमल देखो तुम...ध्यान से सुनो,गुस्सा मत करना,शांत होकर मेरी बात को सुनना और समझना भी प्लीज।
क्या ये बीवी है तुम्हारी सूरज???सूरज को बीच में ही रोकते हुए सटीक सवाल किया था कोमल ने जैसे इन 2 महीनो ने हिम्मत भर दी थी उसे ये जवाब सुनने के लिए।
सूरज उसके चेहरे को आश्चर्य से देख रहा था ,उसे कोई भाव ,कोई गुस्सा ,कोई नाराजगी नजर ही नहीं आई ,जैसे ये सच पहले से स्वीकार कर चुकी थी कोमल बस देरी थी तो सूरज के हाँ कहने की।
हां कोमल ,मगर...
क्यों सूरज?क्यों उसकी जिंदगी बर्बाद कर दी तुमने।पत्नी,बेटी सब तो था तुम्हारे पास फिर मैं क्यों? कोमल की आँखों में बस सवाल थे ।सूरज उसे ऐसे देख रहा था जैसे वो कोमल है ही नहीं,इतनी कठोरता इतनी स्थिरता,ये सब सुन कर कोमल रो रो कर..मगर येतो
कोमल मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।कविता 3 साल पहले मेरी जिंदगी में आई थी उस से शादी करना मेरी मज़बूरी था।मगर प्यार मैं सिर्फ तुमसे करता हूँ।तुम मिली तो लगा जो चाहिए था वो मिल गया ,मेरी तलाश पूरी हो गयी।यकीन करो कोमल तुमसे ज्यादा प्यार मई किसी को नहीं करता।तुम चाहिए मुझे सिर्फ तूम।तुम्हे बता नहीं पाया वरना तुम्हे खो देता मैं।तुम्हारे बिना कोई जीवन नहीं मेरा।यकीन मानो मैं उसे बिलकुल प्यार नहीं करता।वो बस मेरी जिम्मेदारी है जो मैं निभा रहा हूँ।
वाह सूरज,बिना प्यार के एक बच्चा भी हो गया तुम्हारा ,एक साल की लगती है तुम्हारी बेटी ,और मैं 2 साल पहले तुम्हारी जिंदगी में आगयी।उसके बाद भी कहते हो प्यार नहीं करते उस से।एक नफरत से भरी हंसी उभर आई थी कोमल के चेहरे पर।
नहीं कोमल मेरी बात को समझो मैं..
हर छुट्टी जब आते थे उसे मिलने जाते होंगे न तुम सूरज,जाकर मेरे विश्वास को उसके बिस्तर पर रोंधते होंगे,उसको बहार भी घूमते होंगे,अपनी बेटी को प्यार करते होंगे।शर्म नहीं आती तुम्हे। जब जब उसे गोद में उठाते हो खुद की बेवफाई पर दिल नहीं रोता तुम्हारा। कोमल जैसे सूरज को सुनना ही नहीं चाहती थी ।
जाओ सूरज उसे वो दो जो उसका हक़ है।मुझे कोई सफाई नहीं चाहिए ,मुझे कोई नाराजगी नहीं तुमसे,और कोमल ने खुद को एक अलग कमरे में बंद कर दिया था।सूरज अपने किये पर खुद से ही नाराज था।शायद आज उसने अपना प्यार खो दिया था।
10 दिन निकल गए थे ,कोमल हर वो काम कर रही थी जो उसकी जिम्मेदारी में शामिल था ,मगर अब पहले जैसा कुछ नहीं था,कोमल की साडी नाराजगी ,सारा गुस्सा जैसे उसके अंदर सिमटता जा रहा था।सूरज भी हैरान था की कोमल इतनी नार्मल कैसे है।कोमल की ये चुप्पी उसका ये बदलाव अब सहन नहीं कर पा रहा था सूरज।
कोमल मैं बहुत अधूरा महसूस कर रहा हूँ,तुम्हारे बिना जीना संभव नहीं है।प्लीज मुझे माफ़ करदो।यकीन करो तुमसे ज्यादा प्यार मैं किसी से नहीं करता ,प्लीज।
सो जाओ सूरज,काफी रात हो गयीहै,करवट बदलते हुए कोमल ने कहा था।
नहीं ,नहीं सो सकता मैं, तुम मेरी हो ,और मैं तुम्हारा हूँ ,सिर्फ तुम्हारा,एसे अलग मत करो मुझे,मैं मर जाऊंगा।कब से इंतज़ार कर रहा था आने का।तुम्हे खूब प्यार करने का ।तुम पत्नी हो मेरी कोमल प्लीज मुझसे मेरे हक़ मत छीनो।
तुम्हारे पास हर चीज़ का आप्शन है सूरज।चले जाना कल उसके पास और जी लेना अपने हक़।मेरे पास शायद अब कुछ नहीं है देने को।और कोमल ने खुद को छुपा लिया था अपने बिस्तर में।
नहीं कोमल मत बदलो इतना प्लीज,वहां से कुछ नहीं चाहिए मुझे।कितनी बार कहूँ उसे प्यार नहीं करता मैं।प्लीज कोमल ऐसे दूरिया मत बढ़ाओ मुझसे।
तुम कैसे बदल सकती हो इतना,मुझसे सहन नहीं हो रहा तुम्हारा ये बदलाव कोमल।
तो क्या चाहते हो तुम सूरज रात दिन तुम्हारे लिए रोती रहूँ ।जो तुमने किया मेरे साथ उस पर आंसू बहती रहूँ।नहीं मिस्टर सूरज,इतनी कमजोर नहीं हूँ मैं, अब मुझे ये जिंदगी का सफ़र ऐसे ही तय करना है और मैं इसके लिए तैयार हूँ।
कल मैं वापस जा रहा हूँ कोमल मुझे इस तरह अधूरा मत भेजो,मैं सिर्फ तुम्हारे साथ पूरा होता हूँ।प्लीज कोमल।मगर कोमल जैसे सुनकर भी कुछ नहीं सुनना चाहती थी।
सूरज अपना बैग लिए खड़ा था ,उसकी आँखे लाल थी जैसे पूरी रात रो कर या जाग कर निकली थी।
इतना मत बदलो कोमल,तुम बहुत बदल गयी हो।मैं मर जाऊंगा।प्लीज मुझे थोडा सा प्यार देदो।एसे मत भेजो।
कोमल ने आगे बढ़ कर सूरज को बाँहों में भर लिया था।सूरज ने उसे जकड लिया था मगर इस से पहले सूरज को उस जकड का एहसास हो पाता कोमल ने खुद को अलग कर दिया था।
अपना ध्यान रखना सूरज।पहुँच के बता देना।।
सुरज आगे कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं कर पाया था।और चुप चाप आगे बढ़ गया था।कोमल दरवाजे पर जैसे खुद में ही जड़ हो गयी थी।सूरज को जाते देख उसको लगा जैसे उसक8 जान निकल रही थी।उसकी आँखे भर आई थी ,इतना कठोर बनकर भी क्यों वो ये प्यार नहीं छुपा पा रही थी,सूरज के प्यार के बिना बीता हर पल उसे तड़पा रहा था।क्या मैंने गलत किया ,या मैं सच में बदल गयी हूँ।सूरज कहता है की मैं बदल गयी हूँ मैं कठोर हो गयी हूँ,कमरे में सूरज की खुशबू अभी बीHई आ रही थी ,कोमल की आँखे बरस गयी थी।सूरज कहता है मेरे अंदर जज्बात नहीं रहे।फिर ये तकिया हर सुबह सुखा क्यों नहीं मिलता।कोमल ने अपना तकिया उठाते हुए कहा था।मगर मुझे क्यों इस बार वो महसूस नहीं हुआ जो हुआ करता था।क्यों खुद को भूल कर प्यार नहीं कर पाई सूरज को।क्या सच में सूरज ने खो दिया मुझे,क्या एक बार फिर से अपना खोया अस्तित्व पा लिया मैंने।सूरज के प्यार में जिस कोमल को भूल बैठी थी क्या वो आज आगयी है।क्यों सूरज का कुछ अपना नहीं लगा मुझे।क्यों सूरज का घर से बहार जाना ये पता होते हुए की वो अपनी जिम्मेदारी पूरी करने फिर उन्ही बाँहो में गया होगा नुझे क्यों इतना फर्क नहीं पड़ा।क्यों रो रो कर मर नहीं गयी मई अपने अधिकारो को बांटता देख कर।क्या सच में बदल गयी हूँ मैं, क्या इन आंसुओ ने मुझे मजबूत बना दिया है।....हाँ बदल गयी हूँ मैं... कोमल ने खुद में ही बुदबुदाया था।और हर रोज की तरह अपने काम में व्यस्त कर दिया था खुद को।
प्रीति राजपूत शर्मा
6 नवंबर 2016
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