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जानम चलो एक काम करते हैं

 जानम चलो एक काम करते है। इस मोहब्बत को अब नीलाम करते हैं ना तुम रहो मेरे प्यार की बंदिशों में  ना मैं खुद को कैद रखूं तुम्हारे खयालों में। चलो उन देखे ख्वाबों को भी आज़ाद करते हैं जानम चलो एक काम करते हैं बस हुआ बस अब बहुत, शायद यही अंजाम बाकी था तुम मेरे होकर भी मेरे नही और मैं चाह कर दूर बहुत चलो अब इन दूरियों ही मुक्कदर में शामिल करते है जानम चलो एक काम करते हैं इस मोहब्बत को अब नीलम करते हैं। ना तुम ख्वाब देखो अब मेरे कभी  ना मैं नज़दीकियों को महसूस करूँ  ना तुम और मैं हम बने अब ना जिंदगी भर दीदार करूँ कभी चलो अब अगले जन्म का इनतेजार करते हैं जानम चलो एक काम करते हैं। क्यों बाँधूँ तुम्हे अपने प्यार के दामन में यू क्यों रंगू तुम्हे इस पागलपन में यू। ये मेरी चाहते हैं मुझ तक ही रहने दो क्यों समेटु तुम्हे अपने खयालों के जाल में यूं चलो अब इन बंदिशों को नाकाम करते है। जानम चलो एक काम करते हैं। इस मोहब्बत को अब विराम करते है  बेवफा तो नही हो तुम ये मेरा दिल जानता है। फिर भी वफ़ा के लिए बेकरार हूँ मैं साथ होकर भी मेरे साथ नही होते  शायद इसीलिए थोड़ा परेशान हूँ मैं। चलो अब इस "प्रीति&qu

आंसू बनकर आये

 रात तुम आंसू बनकर आये । जब याद तुम्हारी सता रही थी हर पल मुझे रुला रही थी। तुम पास होकर भी नजर नही आये रात तुम आंसू बन कर आये। जरा बताओ ,ये आदत जो बन गए हो, मैने मांगा था,या खुद चले आये हो, कल जहा तुम खड़े थे मेरे लिए आज वहां मेरे अक्स नजर आए रात तुम आँसू बनकर आये। मेरी तो ना बातों में थे तुम,न किसी चाहत मे शामिल थे तुमने जबरन मुझे अपनी यादों में जकड़ा था। आज मेरी हर धड़कन जब तुमसे धड़कती है तो अचानक क्यों बदलते नजर आए रात तुम आंसू बनकर आये। मैं तो मशरूक थी अपनी ही एक दुनिया मे तुम अजनबी थे मैं अजनबी थी। एक दिन यू आहट की दिल मे तुमने और मेरी जिंदगी की एक प्यारी वजह बन गए रात तुम आंसू बन कर आये। जरा एक बात बता दो, मैं जरूरत हूँ या जरूरी हूँ तुम्हारे लिए। जरा मुझे यकीन दिला दो। की चाहत हूँ या मोहब्वत हूँ तुम्हारे लिए। ताकि मुझे हर अक्स साफ नजर आए। रात तुम आंसू बनकर आये। ये इनतजार  न कल ग़वारा था ना आज मंजूर है, ये तड़प न काल गंवारा थी न आज मंजूर है। अब साफ बता दो ,तुम आओगे या मैं आदत बदल दूं अपनी ताकि न मैं तड़पु तेरे लिए और ना तू मजबूर नजर आए। रात तुम आंसू बनकर आये। "प्रीति" मेरी क्

याद है ?

 याद है? जब तुम तुम थे ,और मैं बस मैं थी फिर तुम मैं हुए ,और मैं तुम होने लगी। अब तुम मुझे जानने लगे और मैं तुम्हे, अब तू मुझे हंसाने लगे और मैं तुम्हे हंसाने लगी। याद है? दूरियां कितनी थी दरमियां हमारे  फिर तुम बुलाने लगे ,और मैं करीब जाने लगी। अब अच्छी मीठी,प्यारी बस यही बाते थी हमारी, तुम मेरी आदतें बदल रहे थे ,और मैं तुम्हारी दुनिया बदलने लगी याद है? कितनी बार तुम मुझे जीने का सहारा बोल दिया करते थे मैं कितनी खास हूँ,ये बताया करते थे। अब मेरी दुनिया भी कहाँ रह गयी थी पहले जैसी सब कुछ बदल गया था ,और मैं भी बदलने लगी। याद है? तुम अब मेरी आँखों से खुद को देखने लगे थे और मैं तुम्हारी आँखो से ये दुनिया देख रही थी बस तुम,मैं और मैं तुम। ये कहानी ऐसे ही चलने लगी। याद है? मैं और खूबसूरत होने लगी थी तुम्हारी हर बात में और तुम ,तुम तो दुनिया मे अलग से थे मेरे लिए। मैं तुम्हारा पुराना दबा सपना सी,अब पूरा हो रही थी। और तुम्हारी ज़िन्दगी अब मेरी होने लगी। याद है?  कितने खुश और खुशनसीब से थे हम तब जब तुम मुझमे और मैं तुम में पूरी होने लगी अब दिन बदलने लगे थे तो हम क्यों नही, बाते खोने लगी,पुरानी

एन ओपन लेटर टू माय सन वेदान्त (बर्थडे स्पेशल 3)

 आज तुम्हारा 3 तीसरा जन्मदिन था ,हमने खूब धूम धाम से मनाया ।हालांकि इस बार तुम और सोहम ये दिन एक साथ नही मना पाए,पिछले 2 साल तुम्हारा और सोहम का जन्मदिन हमने साथ ही मनाया लेकिन इस बार इस कोरोना की वज़ह से ना हम वहां जा पाए न तुम्हारी बुआ यहां आ पाई। ये साल बहुत अजीब रहा,सभी के लिए ,कोरोना की वजह से ऐतिहासिक बोल सकते हैं।मगर तुम्हे ये सब कहाँ याद रह पायगा ,तुम बहुत छोटे हो लेकिन हां इस कोरोना में तुम्हारे लिए तो फायदा ही हुआ,पापा के साथ खूब खेलने को जो मिला तुम्हे। तुम्हारी प्यारी प्यारी शरारतों में हमे पता ही नही चला कि ये lockdown का लंबा टाइम कैसे निकल गया।जहां इस टाइम में सब घरो में बोर हो रहे थे ,हम तुम्हारे साथ तुम्हारा और अपना बचपन जी रहे थे। तुम अब बहुत शरारती हो गए हो,और ज़िद्दी भी।बाते तो इतनी बनाने लगे हो कि हर कोई हैरान हो जाता है। और हां हैंडसम भी हो गए हो 😘। कभी कभी तो बड़ो जैसी बातें करते हो।कुछ शब्दों मे तुतलाते हो तुम ,लेकिन तुम्हारी वो तुतलाती अवाज जितना सुनो उतना प्यार आता है तुम पर।हाँ कभी कभी डर भी जाति हूँ कि ये आगे चलकर कोई परेशानी न हो। अब तुम हर चीज़ महसूस करने लगे

तुम मेरे ही हो ना

 अभी बता दो। तुम मेरे ही हो ना। कल जब मेरा प्यार परवान चढ़ जाएगा। बस तब पराये से ना लगना मुझे। मैं पूरी तरह तुम्हारी रहूंगी । बस तुम कभी खुद से दूर मत करना मुझे। अभी कच्चा है ये रिश्ता,ज्यादा उम्मीदे भी नही तुमसे। अभी जो भी है कह डालो, अच्छा बुरा जैसा भी। शायद अभी सब सब सहन कर पायेगा ये दिल  फिर कुछ ना बताना मुझे। अभी बता दो  तुम मेरे ही हो ना। जब कुछ कह ना पाऊं चाहकर भी मैं। समझ जाना बहुत कुछ कहना है मुझे। जब दिल की बात होंटो पर आकर रुक जाए  सोच लेना अब तुम चाहिए मुझे। बस हाथ पकड़ देना धीरे से सहला देना। साथ हो मेरे बस इतना सा एहसास करा देना। बस कभी अनदेखा ना कर देना मुझे। अभी बता दो तुम मेरे ही हो ना। आंखे पढ़ना आता है मुझे। मैं बिन कहे समझ लुंगी बात तुम्हारी। दिल की धड़कने भी सुन लुंगी तुम्हारी। बस कुछ छुपाना नही मुझसे। क्योंकि उखड़ती  सांसो से भी सब सुन लुंगी तुम्हारी। प्यार के नाम पर बस धोखा न देना मुझे। अभी बता दो। तुम मेरे ही हो ना। कभी मन हो चले जाने का , तो बेझिझक कदम बढ़ा देना। बस कभी बांट कर मुझे कुछ ना देना। प्यार है कोई चीज़ नही जो बांट कर लुंगी। या तो सारा मेरा,या सारा छोड़ दूंगी

सब बदल गया

 हाँ बदल गया सब, मैं भी तो बदल गयी हूँ। अब बात बात पर पहले जैसा गुस्सा नही आता मुझे, हाँ आता तो है लेकिन अब सम्भलने लगा है। शायद दुनिया दारी की समझ होने लगी है। अब मैं भी हर चीज़ परखने लगी हूँ । हाँ बदल गया सब, मैं भी तो बदल गयी हूँ। तुमने अचानक कहा उस दिन," कि सब बदल गया"। और मैं इस शब्दो की गहराई में उतरी। बहुत कुछ उलट पलट कर देखा ,पहले जैसा तो कुछ भी नही। समय बदल गया,आस पास के लोग बदल गए, 13 साल हो गए आये यहां मुझे। क्या कुछ नही बदल गया, गयी थी मैं कुछ दिन पहले उसी सड़क पर, जहां से मैंने ये सफर शुरू किया था। तब सारी गालिया अनजान थी मुझसे, और आज मैं हर रास्ता जानती हूँ। शहर की जान वो राजपुर रोड,अब वो भी पहले जैसी नही रही, काफी व्यस्त कर लिया है उसने खुद को। वो लम्बा रास्ता जो हम पैदल तय किया करते थे  वो कुछ सिमटा से लग रहा था।जैसे बहुत सी शिकायत सी कर रहा था। मैने हर चीज़ में तुम्हे महसूस किया वहां, तुम भी कही नजर नही आये। शायद तुम वहां थे ही नही,क्या तुम भी बदल गए हो? हाँ क्यों ना बदलो सालों पहले हमने अलग रास्ते जो चुने थे। तब से बिना रुके चले जा रहे है हम अब तो थकान सी होने

ऐ वक्त जरा थम जा

 ऐं वक्त ज़रा थम जा,ज़रा और जीने दे मुझे मेरे लाडले की अठखेलियों को आंखों में भरने दे मुझे। आज छोटा है बाहों में समाया है, थोड़ा लाड़ और लड़ाने दे मुझे। कल मेरी गोद छोटी वो बड़ा होगा, मेरा आंगन शोर के बिना सूना होगा। ज़िंदगी नए खेल देगी उसे खेलने को, आज थोड़ा उसके संग खेलने दे मुझे। ऐं वक्त थोड़ा थम जा,ज़रा और जीने दे मुझे। उसकी मासूम हरकते ज़रा दिल मे उतार लूँ। उसकी सलोनी सी सूरत है ,जरा नज़र उतार लूँ। नन्हे कदमो की आहट और सुन लेने दे मुझे। ऐं वक्त थोड़ा थम जा,ज़रा और जीने दे मुझे। मेरे लाडले की अठखेलियों को आंखों में भरने दे मुझे। मेरे कंधे पर सर रख कर सो जाता है आज। मेरी लोरी की धुन में गुनगुनाता है आज। कल अपनी ही दुनिया मे खो जायगा। मेरा ये एहसास अधूरा सा रह जायेगा। उसे सोने दे बेफिक्र कुछ और दिन सोते मासूम इशारों को तक लेने दे मुझे। उसके चेहरे को और पढ़ लेने दे मुझे। ऐं वक्त थोड़ा थम जा,ज़रा और जीने दे मुझे। थोड़ी शैतानियां बढ़ने दे , थोड़ी गलतियां और करने दे। मुझे तंग होना अब भाने लगा है। ज़रा और ज़िद,और शिकायत करने दे उसे। कल आंखों में ख़्वाहिशे छुपाने लगेगा। बड़े बड़े राज़ दिल मे दबाने लगेगा। आज सारी शि

बेचैन सी हूँ मैं

 हाँ थोड़ा बेचैन हूँ मै, इन बदलते हालातो से थोड़ा परेशान हूँ मैं। कितने अपने खो रहे है,कितने दूर हो रहे हैं। कभी कुछ मिलने की खुशी सी आती है  और कभी कुछ चीज़ें बुरी सी हो जाती हैं थोड़ा घुटन सी हो रही है। अब दिल मे चुभन सी हो रही है। एक साधारण इंसान जो हूँ मैं। शायद इसीलिए बेचैन हूँ मै। इस बुरे वक्त में सब बदल रहा है। यकीन से परे सब हाथों से फिसल रहा है। कुछ अलविदा कहकर दूर हो रहे हैं। और कुछ ऊपरवाले के बुलावे पर हाज़िरी दे रहे हैं। जो भी है बस दर्द से भरा है। ये चलता समय कुछ बुरा सा है। अब इन हर रोज़ के हादसों से परेशान सी हूँ मैं। हाँ थोड़ी बेचैन सी हूँ मैं। कभी अपनो की फिक्र सता रही है, कभी जिंदगी मुश्किल नजर आ रही है। अपनो को खोने का डर सता रहा है। अब बस अनहोनी की आहट डरा रही है। बुरे खयाल दिल  में डेरा बना रहे हैं। बस इसीलिए जिंदगी से नाराज सी हूँ मैं। हाँ थोड़ी बेचैन सी हूँ मैं।

ये मेरे खास दिन

 इस विषय पर लिखना मेरे लिए थोड़ा झिझक से भरा था।कलम ने भी कई बार शब्दो से बगावत की लेकिन मेरे इरादे झुके नही।आखिर मैं इस विषय पर लिखना चाहती थी।उन दिनों के बारे में जिन्हें अशुद्ध समझा जाता है।जिन दिनों में एक स्त्री को मंदिर या पूजा घर जाने की अनुमति नही होती ,कितने ही घरों में तो रसोई घर तक में जाना उनके लिए निषेध होता है।हाँ वही दिन,मासिक धर्म के नाम से जिनको हम पुकारते हैं। एक बेटी जब बड़ी होने लगती है उसकी माँ की चिंता दिन रात बढ़ने लगती है,ना जाने कब उसके पीरियड्स शुरू हो जाएं।कितनी माएँ खुल कर बेटी से इस विषय पर बात ही नही कर पाती और चिंतित होती हैं कि कैसे इस विषय मे उसको बता पाएंगी। मेरा अनुभव इस विषय मे अच्छा रहा।जैसे जैसे हम बहने बड़ी हो रही थी हमारी माँ हमारी सहेली बन रही थी।हर रात काम निपटाने के बाद 1 घंटे हमसे बात करती,हमे हर वो चीज़ के बरस में जानकारी देती जो उम्र के साथ हमारे लिए जानना जरूरी होता गया।मेरी और माँ की उम्र में काफी अंतर है क्योंकि मैं सबसे छोटी बेटी जो थी,माँ अभी भी हर तरह मुझे सब समझने की कोशिश करती।और जब मैं उनकी कुछ बातों का जवाब देने में शर्माती झिझकती तो व

मैं अब थकना चाहती हूं

 बस बहुत हुआ,अब मैं रुकना चाहती हूं। तुम जो भी सोचो ,लेकिन अब मैं थकना चाहती हूं। साल के ये 364 दिन भूलना चाहती हूं  क्योंकि उस बचे हुए एक  दिन को मैं जीना चाहती हूं। कभी सुबह देर से उठूं।रजाई से थोड़ा झांकना चाहती हूं। आज नही उठना मुझे ,और सोना है कहकर फिर से रजाई में छुपना चाहती हूं। मैं अब थोड़ा रुकना चाहती हूँ। थोड़ी लापरवाह,थोड़ी बेपरवाह,थोड़ी खुदगर्ज होकर बस अपना सोचूं ,दुनिया भूलूँ ,मैं खुद के लिए जीना चाहती हूं। बस अब मैं थोड़ा रुकना चाहती हूं। दिन भर के काम की थकान ,और फिर जिम्मेदारियों को अनदेखा कर  कभी रॉब से हर काम को मना कर ,मैं थोड़ी बुरी बन जाना चाहती हूं अब इस सिलसिले पर विराम चाहती हूं। क्योंकि मैं अब थकना चाहती हूं। सबको खुश कर पाऊं ये कहाँ संभव, सबकी उम्मीदों पर खरा उतर जाऊं ,ये कहाँ संभव, मैं अब सबको रूठने देना चाहती हूं। अब मैं रुकना चाहती हूं। कभी कोई एक कप चाय पिला दे, खाना नही तो मैगी खिला दे। बस इस जबान का स्वाद बदलना चाहती हूं। अब मैं थकना चाहती हूं। कभी रुठ जाऊं मैं भी, कभी वेवजह नखरे करूँ। कोई अधूरा हो मेरे बिना ,मैं खास बनना चाहती हूं। अब इन सब पर विराम चाहती हूं।

कौनसी आज़ादी मना रहे हो

हाँ तो कौनसी आज़ादी मना रहे हो? या बस एक तारीख को सम्मान दिला रहे हो? चलो एक बार जो बोलूं वो करके दिखाओ, फिर जी भर के आज़ादी का जश्न मनाओ।...... क्या  किसी और पार्टी के होकर भी BJP की तारीफ कर सकते हो ? क्या एक बार पार्टी ,जात, धर्म से ऊपर जाकर देश के लिए आवाज उठा सकते हो? अच्छा छोड़ो क्या हिन्दू होकर किसी मदरसे में भारत माता की जय के नारे लगवा सकते हो? क्या हिन्दू होकर हिंदुत्व के लिए बिना डरे एक जुट आवाज उठा सकते हो। 🇮🇳 तो फिर कौनसी आज़ादी मना रहे हो। अच्छा पुरूषों से पूछती हूँ.... जरा एक बार किसी लड़की को उसकी अश्लील और निहायती खराब पहनावे पर कोई टिप्पणी कर के तो देखो। जरा एक बार घर मे अपने tv का चेनल बदल कर तो देखो... 🤣 अच्छा सीरियस वाला- बस एक बार सारी जिम्मेदारियों को किनारे कर बस अपने लिए जी कर तो देखो... तो कौनसी आज़ादी मना रहे हो। अच्छा छोड़ो लड़कियों से एक सवाल बस एक बार लौकी की जगह भिंडी की सब्जी बना कर तो देखो। अच्छा एक बार साड़ी की जगह जीन्स पहन कर तो देखो। चलो ज्यादा नही बस एक बार 365 दिन में से एक दिन अपने लिए चुरा कर तो देखो। शादी के बाद कभी अपना सरनेम पति के नाम के आगे लगा क

पुराने दिन अच्छे थे

आज पुराना समय याद आया जब मैंने फिर से उन पलों को समेटने की कोशिश की।तीज और रक्षाबंधन का त्योहार मनाने मायके आना हुआ। सावन का महीना ,बहुत सी यादें लेकर आ खड़ा हुआ।मैं भी इस उम्मीद से मायके आयी कि शायद फिर से हम सब बहने ,और सहेली तीज के त्योहार पर मायके में मिल जाएं और अपना बचपन याद कर के फिर से ठहाके लगा ले।लेकिन आज के व्यस्त समय में कहां सबका आना होता है ऊपर से ये कोरोना जिसने सबके सपनो को इस साल जंजीर में जकड़ दिया है।मैं भी 6 महीने बाद जैसे कैसे आ ही पहुची ।शादी के बाद ये दूसरी तीज मायके में मनाने।बचपन को जीना चाहती थी इसलिए संकल्प लिया कि जैसे बचपन मे पूरे सावन हर रोज शाम को गाँव के मंदिर में दिया जलाने जाते थे वैसे ही इस बार भी जाऊंगी।इसलिए रोज शाम को मंदिर जाती हूँ उस पुराने समय की तलाश में लेकिन साथ कि वो सहेलियों की जगह माँ और बच्चो ने लेली।वो भी दिन थे जब 6 7 हमउम्र लड़कियां हर रोज सबको आवाज देकर इकट्ठा होकर पूरे सावन मंदिर पर दिया जलाने जाती थी ।ये माँ और बच्चो के साथ जाने का अनुभव भी सुखद है मगर वो सुकून अभी भी नही मिला।आज मंदिर से जुड़े अपने स्कूल को भी करीब से देखा।मंदिर के प्र

आज गाँव फिर रो पड़ा

आज फिर आंसू निकल पड़े उस गांव के जो वर्षों पहले भी रोया था।बस तब आंसू जुदाई के थे और आज मिलनें के। सालों पहले उसी गाँव ने तो विदा किया था अपने न जाने कितने नौजवान बच्चो को ताकि वो शहर जाकर शिक्षा ले,नई तकनीक सीखें और वापस आकर इस बूढ़े गाँव की काया सवांर दे।लेकिन दिन,महीने ,साल और आंसुओ भरी रात सिसकियों में निकलने लगी।वो बच्चे फिर उस गाँव की गोद मे खेलने नही आये,उसको ऐसा भूले की उसके हालचाल तक पूछने ना आये।गांव फिर भी अपमानित होता रहा,जाहिल गवांर, गंदा,भद्दा,असभ्य और ना जाने कितने अपमान सहता रहा।उसी की गोद मे उसी की गलियों में खेले बच्चे अब उसका गन्दा बताने लगे।उस गांव के हर घर के कोने में रखे घड़े का शीतल पानी अब उनको कीटाणुओं से भरा लगने लगा,वो कच्ची छत और कच्ची दीवार जमनीं वाले घर अब उनके महंगे कपड़े गन्दे करने लगे जो बिना ac कूलर के ठंडक देते थे,अब वो पेड़ धूल गिराते हैं जिनकी छाव में खेल कर बड़े हुए।अब घर मे पलने वाली वो गाय भैंस उनको बदबूदार लगने लगी वही घर मे अपने ही बिस्तर में सोने वाले कुत्ते घर के सदस्य।आज वो ताऊ चाचा का बिन बताये घर आजाना एक दूसरे की छतों से झांकना प्राइवेसी को खत

बचपन मे उलझा है मन

बचपन की कड़ियाँ दिल के हर कोने से जुड़ी हैं आज भी, हर हरकत ,हर शैतानी,कहीं ना कहीं अधूरी है आज भी।। बड़े तो हो रहे हैं हम मगर, दिल तो ठहरा है लड़कपन के उन पलो में।। क्यों बड़े होकर भी दिल उलझता है, उन अल्हड़ पलों में।। याद आता है वो बचपन जब मां खुद की खुशियां सिमेंट ना पाई थी।। जब पहली बार मां बुलाया मैंने, तो खुद को रोने से रोक ना पाई थी।। पहले जिस गोद से निकलकर खेलने को भाग जाया करते थे, आज उसी गोद मे सर रखकर सोने को तरसते हैं।। कल पापा के बुलाने पर डर लगता था , कि बाते स्कूल की होगी आज उनके पास बैठकर , दिल का हाल बताने को दिल करता है।। जिस खाने को खाने में हज़ारो नखरे होते थे हमारे। आज तरसते है,उस मां के हाथ के एक टुकड़े को... याद आता है,कैसे भीगना अच्छा लगता था हर बारिश में, अब क्यों बचकर निकलना शामिल है मजबूरी में।। कैसे स्कूल की दीवारों पर प्रिंसिपल की फ़ोटो बनाते थे, और जब देखते मुड़कर, तो प्रिंसिपल को खुद को घूरते पाते थे।। प्रिंसिपल के आफिस के बगल में थी क्लास हमारी, फिर भी दीवाली के पटाखे तो क्लास में ही जलते थे।। और जब बारी आती पनिशमेंट की, तो एक के चक्कर मे

फेसबुक वाला फ्रेंड

सन 2009 जब हर रोज 9.30 बजे ज़ी tv पर एक धारावाहिक "पवित्र रिश्ता" आया करता था।मैं और मेरी दोस्त स्वाति लगभग दौड़ कर 9.15 तक रूम पर पहुचते।levis में उस वक्त मैं स्टोर मैनेजर हुआ करती थी ,और स्वाति aureliya स्टोर मैनेजर।आते ही सबसे पहले हमारा वो खुद की कमाई से खरीदा छोटा सा कलर् tv खुल जाया करता था।बस 2 चैनल ही हम देखा करते थे कलर्स और ज़ी टीवी। पवित्र रिश्ता में मानव का लीड रोल प्ले कर रहे शुशांत का किरदार सबको पागल कर रहा था।उन पागलो में से एक मैं भी थी।उस वक्त तक सुशांत सिर्फ नाम कमाने की पहली सीढ़ी चढ़ रहा था शायद इसीलिए उसके फेसबुक एकाउंट तक पहुंच पाना मेरे लिए आसान हुआ और लगभग 5 दिन बाद मेरी फ्रेंड रिक्वेस्ट सुशांत ने एक्सेप्ट की।उन दिनों सुशांत मेरे दिल दिमाग पर मेरा ड्रीम हीरो बनकर छाया हुआ था।उसके व्यस्त होने के कारण कभी कभी उस से बात होती ।मगर मेरे लिए ये हमेशा सबसे बड़ी बात होती थी।आखिर मैं एक फैन ही तो थी।शायद उसको भी नया नया क्रेज था अपने फैन्स से बात करने का।हर एपिसोड के साथ मैं उसकी और बड़ी फैन होती जा रही थी। तभी मेरी लाइफ में एक नई एंट्री हुई।हर रोज एक लड़का आस पास द

तुम मेरे पापा जैसे नही हो

हां कद यही था मेरे पापा का ,जैसा तुम्हारा है। लेकिन तुम मेरे पापा जैसे नही हो। वो हंमुख थे,हैं तुम भी हो, वो बिन कही बाते सुनते थे,पर तुम नही। क्योंकि तुम मेरे पापा जैसे नही हो। जब मैंने तुमको वर चुना। बस पापा जैसा महसूस किया। हर लड़की की तरह ,मैने भी ,पति में पिता को मांग लिया। वो सरल थे ,तुम कठोर हो वो शांत थे तुम बड़बोल हो। क्योंकि तुम मेरे पापा जैसे नही हो। मैं कुछ भी मांगू पापा से,वो हंस कर के कहते थे। बस इतना ही ,और शाम तक लाकर देते थे। हाँ तुम भी' ना' नही कहते लेकिन भूल जाते हो क्या मैंने तुमसे मांगा है। याद दिलाऊ तो गुस्सा होते हो जैसे कोई खजाना मांगा है। क्योंकि तुम मेरे पापा जैसे नही हो। जब गलती मुझसे होती थी,वो गुस्सा कभी न करते थे। माँ भी गर नाराज हो,उसको भी समझते थे। ये चिड़िया है इस आंगन की, जल्दी ही उड़ जायगी,सोते उठते फिर हमको इसकी याद सतायेगी। मायका है ,गलती करने दो, इसको थोड़ा उड़ने दो। फिर जोर से वो गले लगाते थे। अब गलती हो मुझे गलती से भी ,तुम तुरंत आंख दिखाते हो। कितना भी मैं कर लूं कोशिश,नाराज बहुत हो जाते हो। यहां माफी कम और सज़ा घन

माँ तू बहुत याद आती है

हाँ माँ, तू बहुत याद आती है, जब सब हारा सा लगता है,जब सब बिछड़ा सा लगता है बस तू पास नजर आती है। आज मैं भी एक माँ हूँ ,ओ माँ एक नन्ही जान की जान हूँ माँ वो रोये तो आँचल में दौड़ आता है, हर जरूरत में पास चला आता है। कुछ दुख हो या दर्द हो ,मेरे आँचल में समा जाता है माँ तेरा किरदार मुझे याद हो आता है जब मेरे पैर पकड़ वो खड़ा हो जाता है जिद करता है रसोई में ,और चीनी के डब्बे से चीनी खाता है बस मुझे मेरे बचपन याद हो आता है माँ। तेरा किरदार खुद में नजर आता है माँ। जब जब वो रो कर मुझसे दिल की बात कहता है। मुझे तेरी बांहो का झूला याद आता है। मैं किस से कहूं ,की मुझे भी जरूरत होती है हाँ माँ तू बहुत याद आती है। जब कभी इस भीड़ में खुद को अकेला पाती हूँ, सबके होते हुए भी मैं अकेले में रोती हूँ। दिल भारी बड़ा हो जाता है,जब अपनो के बीच पराई हो जाती हूँ। जब कभी जरा सी बात पर भी अदालत लगती है जब कभी बिन गलती के भी सजा मिलती है। हाँ माँ तू बहुत याद आती है। और याद आती है तेरी सीख मुझे कि गलती हो तो सर झुका के खड़े हो जाना। पर बिन गलती कभी सजा न पा लेना। लेकिन न पापा ना तू जब नजर

क्योंकि हिंदी मेरी पहचान है

आज जिस विषय पर मैं लिख रही हूँ उस से कुछ लोग पूर्णतया असहमत होंगे ,और कुछ सहमत भी।बहुत दिनों से इस विषय पर विस्तार से लिखने की इच्छा थी लेकिन समय के अभाव के कारण लिख नही पाई।आज मेरा ये लेख दो भाषाओं पर आधारित है।। कुछ सालों से मैंने खुद महसूस किया कि हमारे देश मे अंग्रेजी ने हिंदी को पछाड़ सा दिया है। अंग्रेजी सीना चौड़ा किये ,घमंड से घूमती नजर आती है वहीं मेरी हिंदी शर्म महसूस कर के घर के कोने में छुपी सी लगने लगी है।कौन है इसका जिम्मेदार। इस विषय पर कुछ ज्यादा कहने से पहले मैं अपना एक पक्ष जरूर रखना चाहती हूं।मैंने खुद अंग्रेजी में उच्च शिक्षा ली है बल्कि ले रही हूँ।english literature से double M.A, english UGC NET, की तैयारी साथ ही अंग्रेजी में जल्दी ही .phd. लेकिन ये भी बता दूं कि किसी भी इतिहास या किसी भी साहित्य को अपनी जानकारी के लिए पढ़ना कभी गलत नही होता।इसका कारण ये भी रहा कि जब मैंने इस विषय का चुनाव किया उस समय मुझे ये समझ नही थी जो आज है।मैंने एक अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में भी काम किया लेकिन अपने विद्यर्थियों को हमेशा यही समझाया कि कोई भी भाषा का ज्ञान सिर्फ उतना लो ज

तो बोलो कहाँ थे तुम

तो बोलो कहाँ थे तुम , जब मैं हर मन्दिर ,हर तीरथ पर ढूंढ रही थी जब हर दिन उपवास में मांग रही थी। तो बोलो कहाँ थे तुम? जब सारी दुआए मांगी थी और झोली तब भी मेरी खाली थी। जिसने जब बोला ,जहां बोला, मैने मत्था टेक दिया, जो कभी सोचा तक न था,वो दरवाजा भी देख लिया। तो बोलो कहाँ थे तुम? जब दुनिया मुझको कोस रही थी कोख पर मेरी हंस रही थी, तुम क्यों निरुत्तर छुपे हुए थे तुम क्यों आने से रुके हुए थे। जब परिहास मेरा हो रहा था तो बोलो कहाँ थे तुम? मेरा आंगन खाली रोता था,मेरी बगिया सुखी मर रही थी जब तुम न थे जीवन मे तो जैसे हर सांस बस चल रही थी। मेरा घर आंगन सब सुना था। तो बोलो कहाँ थे तुम। जब माँ तुम्हारी रोती थी,सबके सवालो से छुप जाती थी। हर घर जाना छोड़ दिया था,हंसना जैसे त्याग दिया था। जब सबके शब्द मुझे भेद रहे थे। तो बोलो कहाँ थे तुम? 5 साल लगा दिए तुमने आने में, कोई कसर न छोड़ी किसी ने सुनाने में, जिसका जो मन करता बोल दिया ममता को मेरी तोल दिया। तो बोलो कहाँ थे तुम? चलो अब कोई शिकवा न शिकायत है। अब तू ही मेरी विरासत है। तूने सूनी गोद भर कर मेरी मुझ पर ये उपकार किय