तो बोलो कहाँ थे तुम


तो बोलो कहाँ थे तुम ,
जब मैं हर मन्दिर ,हर तीरथ पर ढूंढ रही थी
जब हर दिन उपवास में मांग रही थी।
तो बोलो कहाँ थे तुम?
जब सारी दुआए मांगी थी
और झोली तब भी मेरी खाली थी।
जिसने जब बोला ,जहां बोला,
मैने मत्था टेक दिया,
जो कभी सोचा तक न था,वो दरवाजा भी देख लिया।
तो बोलो कहाँ थे तुम?
जब दुनिया मुझको कोस रही थी
कोख पर मेरी हंस रही थी,
तुम क्यों निरुत्तर छुपे हुए थे
तुम क्यों आने से रुके हुए थे।
जब परिहास मेरा हो रहा था
तो बोलो कहाँ थे तुम?
मेरा आंगन खाली रोता था,मेरी बगिया सुखी मर रही थी
जब तुम न थे जीवन मे तो जैसे हर सांस बस चल रही थी।
मेरा घर आंगन सब सुना था।
तो बोलो कहाँ थे तुम।
जब माँ तुम्हारी रोती थी,सबके सवालो से छुप जाती थी।
हर घर जाना छोड़ दिया था,हंसना जैसे त्याग दिया था।
जब सबके शब्द मुझे भेद रहे थे।
तो बोलो कहाँ थे तुम?
5 साल लगा दिए तुमने आने में,
कोई कसर न छोड़ी किसी ने सुनाने में,
जिसका जो मन करता बोल दिया
ममता को मेरी तोल दिया।
तो बोलो कहाँ थे तुम?
चलो अब कोई शिकवा न शिकायत है।
अब तू ही मेरी विरासत है।
तूने सूनी गोद भर कर मेरी मुझ पर ये उपकार किया है।
माँ कहलाने का हक देकर तूने मुझको पार किया है।
अब "प्रीति" बोलो कैसे तुम पर न्यौछार दूं।
बदले में क्या उपहार दूं।
तुम सदा मेरे आंगन को महकाते रहना
मैं जीवन तुम पर वार दूं।
"वेदांत" तुम ही  अब मेरी सारी खुशियां हो
मेरे जीवन की तुम बगिया हो।
यूं ही खेलो और बढ़ो।
खूब बनो और खूब पढो।
"तुम्हारी माँ"


टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने