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ये सिर्फ मेरा जन्मदिन नहीं ह

हर साल की तरह आज भी उतने ही उत्साह से आँखे खोल कर अपनी हथेलियो को चूमा था राजश्री ने।ये दिन उसकी जिंदगी का सबसे खास दिन जो था।जिसे हमेशा से उसने अपने तरीके से जीना चाहा ।ऐसा लगता जैसे साल भर में बस एक इसी दिन पर हक़ है उसका।माँ पापा भाई बहिन की लाड़ली इस दिन जो करना चहती कर सकती थी,पूरा दिन उत्साह से भरा होता था,घर में हल्ला दोस्तों की चहलकदमी ।और हर साल इस दिन पर नए कपडे पहन ना जैसे उसूल बन गया था उसका।बचपन तो फिसल गया था रेत की तरह अब लगने लगा था ये दिन भी बस कंधो पर बढ़ी जिम्मेदारी बन गयी थी।कालेज हो या उसके बाद ऑफिस लाइफ मगर राजश्री के उसूल आज भी कायम थे इस दिन सुबह मुस्कुराते हुए आँखे खोल कर अपनी हथेलियो को चूमना और फिर सबसे पहले अपने मम्मी पापा को देखना।समय बदला,जगह बदलती गयी ,बदलती गयी जिंदगी और आते गए बदलाव अब हर जगह माँ पापा कहाँ थे सामने मगर तकिये के निचे से निकली माँ पापा की तस्वीर भी चेहरे पर सुकून देने को काफी होती।पूरा दिन खुद को खास महसूस करती राजश्री।पूरा दिन हँसते हंसाते बीत जाता और रात को कैमरा में कैद किये पल एक बार फिर चेहरे की ख़ुशी बढ़ा देते।जिंदगी में छोटे छोटे पल