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"हाँ हम शर्मिंदा हैं"

हाँ हम शर्मिंदा है,कभी हम निर्भया के लिए शर्मिंदा हैं की उसके कातिल जिन्दा हैं तो कभी हम गुड़िया के लिए शर्मिंदा हैं जिसके कातिल भी जिन्दा है।कभी हरियाणा में हुए बलात्कार के लिए हम शर्मिंदा हैं तो कभी शिमला के,कभी दिल्ली मेके, तो कभी गाज़ियाबाद मके,कभी हम इसलिए शर्मिंदा हैं की अपना ही बाप बेटी को यातना देता है,कभी इसलिए शर्मिंदा हैं की हमारा शिक्षक ही हमारा शोषण करता है।आखिर क्यों न हो शर्मिंदा ।हर रोज हो रहे अत्याचारो से शर्मिंदा हैं।हम तो लड़कियो को छोटे कपड़ो में देख कर भी शर्मिंदा हैं,बस शर्मिंदगी तो तब नहीं होती जब उन छोटे कपड़ो को भी तार तार किया जाता है।हम तो तब से शर्मिंदा है जब ये समझ आ गया की हम लड़की हैं।हाँ हम शर्मिंदा हैं उस माँ पर जिसने लड़की को जन्म देने का गुनाह किया ,हम शर्मिंदा हैं उस पिता पर जिसने बड़े लाड से हमारे सारे नखरे उठा लिए।बाकि शर्मिंदगी तब बढ़ गयी जब हमने पढ़ लिख कर कुछ कर दिखने के सपने देख लिए।रेगुलर पढाई करना ,कालेज जाना ,फिर ऑफिस में पुरुषो से कंधे से कन्धा मिला कर चले तो और शर्म आई।हर जगह जब लड़कियो ने बाज़ी मारना शुरू किया तो शर्मिंदगी दोगुनी होने लगी ।अपने अधिक