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अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम मेरे पापा जैसे नही हो

हां कद यही था मेरे पापा का ,जैसा तुम्हारा है। लेकिन तुम मेरे पापा जैसे नही हो। वो हंमुख थे,हैं तुम भी हो, वो बिन कही बाते सुनते थे,पर तुम नही। क्योंकि तुम मेरे पापा जैसे नही हो। जब मैंने तुमको वर चुना। बस पापा जैसा महसूस किया। हर लड़की की तरह ,मैने भी ,पति में पिता को मांग लिया। वो सरल थे ,तुम कठोर हो वो शांत थे तुम बड़बोल हो। क्योंकि तुम मेरे पापा जैसे नही हो। मैं कुछ भी मांगू पापा से,वो हंस कर के कहते थे। बस इतना ही ,और शाम तक लाकर देते थे। हाँ तुम भी' ना' नही कहते लेकिन भूल जाते हो क्या मैंने तुमसे मांगा है। याद दिलाऊ तो गुस्सा होते हो जैसे कोई खजाना मांगा है। क्योंकि तुम मेरे पापा जैसे नही हो। जब गलती मुझसे होती थी,वो गुस्सा कभी न करते थे। माँ भी गर नाराज हो,उसको भी समझते थे। ये चिड़िया है इस आंगन की, जल्दी ही उड़ जायगी,सोते उठते फिर हमको इसकी याद सतायेगी। मायका है ,गलती करने दो, इसको थोड़ा उड़ने दो। फिर जोर से वो गले लगाते थे। अब गलती हो मुझे गलती से भी ,तुम तुरंत आंख दिखाते हो। कितना भी मैं कर लूं कोशिश,नाराज बहुत हो जाते हो। यहां माफी कम और सज़ा घन

माँ तू बहुत याद आती है

हाँ माँ, तू बहुत याद आती है, जब सब हारा सा लगता है,जब सब बिछड़ा सा लगता है बस तू पास नजर आती है। आज मैं भी एक माँ हूँ ,ओ माँ एक नन्ही जान की जान हूँ माँ वो रोये तो आँचल में दौड़ आता है, हर जरूरत में पास चला आता है। कुछ दुख हो या दर्द हो ,मेरे आँचल में समा जाता है माँ तेरा किरदार मुझे याद हो आता है जब मेरे पैर पकड़ वो खड़ा हो जाता है जिद करता है रसोई में ,और चीनी के डब्बे से चीनी खाता है बस मुझे मेरे बचपन याद हो आता है माँ। तेरा किरदार खुद में नजर आता है माँ। जब जब वो रो कर मुझसे दिल की बात कहता है। मुझे तेरी बांहो का झूला याद आता है। मैं किस से कहूं ,की मुझे भी जरूरत होती है हाँ माँ तू बहुत याद आती है। जब कभी इस भीड़ में खुद को अकेला पाती हूँ, सबके होते हुए भी मैं अकेले में रोती हूँ। दिल भारी बड़ा हो जाता है,जब अपनो के बीच पराई हो जाती हूँ। जब कभी जरा सी बात पर भी अदालत लगती है जब कभी बिन गलती के भी सजा मिलती है। हाँ माँ तू बहुत याद आती है। और याद आती है तेरी सीख मुझे कि गलती हो तो सर झुका के खड़े हो जाना। पर बिन गलती कभी सजा न पा लेना। लेकिन न पापा ना तू जब नजर

क्योंकि हिंदी मेरी पहचान है

आज जिस विषय पर मैं लिख रही हूँ उस से कुछ लोग पूर्णतया असहमत होंगे ,और कुछ सहमत भी।बहुत दिनों से इस विषय पर विस्तार से लिखने की इच्छा थी लेकिन समय के अभाव के कारण लिख नही पाई।आज मेरा ये लेख दो भाषाओं पर आधारित है।। कुछ सालों से मैंने खुद महसूस किया कि हमारे देश मे अंग्रेजी ने हिंदी को पछाड़ सा दिया है। अंग्रेजी सीना चौड़ा किये ,घमंड से घूमती नजर आती है वहीं मेरी हिंदी शर्म महसूस कर के घर के कोने में छुपी सी लगने लगी है।कौन है इसका जिम्मेदार। इस विषय पर कुछ ज्यादा कहने से पहले मैं अपना एक पक्ष जरूर रखना चाहती हूं।मैंने खुद अंग्रेजी में उच्च शिक्षा ली है बल्कि ले रही हूँ।english literature से double M.A, english UGC NET, की तैयारी साथ ही अंग्रेजी में जल्दी ही .phd. लेकिन ये भी बता दूं कि किसी भी इतिहास या किसी भी साहित्य को अपनी जानकारी के लिए पढ़ना कभी गलत नही होता।इसका कारण ये भी रहा कि जब मैंने इस विषय का चुनाव किया उस समय मुझे ये समझ नही थी जो आज है।मैंने एक अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में भी काम किया लेकिन अपने विद्यर्थियों को हमेशा यही समझाया कि कोई भी भाषा का ज्ञान सिर्फ उतना लो ज

तो बोलो कहाँ थे तुम

तो बोलो कहाँ थे तुम , जब मैं हर मन्दिर ,हर तीरथ पर ढूंढ रही थी जब हर दिन उपवास में मांग रही थी। तो बोलो कहाँ थे तुम? जब सारी दुआए मांगी थी और झोली तब भी मेरी खाली थी। जिसने जब बोला ,जहां बोला, मैने मत्था टेक दिया, जो कभी सोचा तक न था,वो दरवाजा भी देख लिया। तो बोलो कहाँ थे तुम? जब दुनिया मुझको कोस रही थी कोख पर मेरी हंस रही थी, तुम क्यों निरुत्तर छुपे हुए थे तुम क्यों आने से रुके हुए थे। जब परिहास मेरा हो रहा था तो बोलो कहाँ थे तुम? मेरा आंगन खाली रोता था,मेरी बगिया सुखी मर रही थी जब तुम न थे जीवन मे तो जैसे हर सांस बस चल रही थी। मेरा घर आंगन सब सुना था। तो बोलो कहाँ थे तुम। जब माँ तुम्हारी रोती थी,सबके सवालो से छुप जाती थी। हर घर जाना छोड़ दिया था,हंसना जैसे त्याग दिया था। जब सबके शब्द मुझे भेद रहे थे। तो बोलो कहाँ थे तुम? 5 साल लगा दिए तुमने आने में, कोई कसर न छोड़ी किसी ने सुनाने में, जिसका जो मन करता बोल दिया ममता को मेरी तोल दिया। तो बोलो कहाँ थे तुम? चलो अब कोई शिकवा न शिकायत है। अब तू ही मेरी विरासत है। तूने सूनी गोद भर कर मेरी मुझ पर ये उपकार किय