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याद है रानू ?

 याद है रानू ,जब हम दोनों संत पॉल्स स्कूल में पढा करते थे ।सुबह जल्दी उठना और अपनी उस यूनिफार्म में तैयार होना।जल्दी जल्दी बैग तैयार करना और फिर आधा अधूरा नाश्ता कर के पुलिया पर भागना। हां गावँ की पुलिया ,आधुनिकता से बात करूं तो बस स्टॉप।जहां पहले से ही अलग अलग रंग की ड्रेस पहने गांव के सारे बच्चे बस का टेम्पो का इंतज़ार करते ।हमे हम सबसे अलग और खास लगते ,क्योंकि उनकी तरह प्राइवेट टट्रांसपोर्ट के धक्के जो नही खाते थे ।हां उस वक्त स्कूल वैन नही हुआ करती थी ,याद है नसीफ भैया ,हमारे तांगे वाले ।शायद यही नाम था उनका ।पहले रिक्शा लगा दी थी घर वालों ने जो मंडावर से गावं तक हमे लेने आती थी लेकिन वो ज्यादा दिन नही आये ।उसके बाद पता चला कि संत पॉल्स स्कूल के लिए आगे के गाँव से 2 घोड़े तांगे आते हैं।बस हमारे लिए भी वही फिक्स किये गए। छोटे से गाँव से निकल कर जब कस्बे के स्कूल का सफर तय करते तो पूरा रास्ता डरे सहमे से रहते।हालांकि तांगे के सारे बच्चे गांव के ही तो थे फिर भी ना जाने क्यों हम कभी उनसे ज्यादा घुल मिल नही पाए ।मंडावर पहुचते ही तांगा 5 मिनट के लिए रुकता जब सब बच्चे दुकान से कुछ खाने के