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हर रोज़

सुबह की अंगड़ाई लेती नींद जब टूटती है तो रसोई में आंखे खुलती हैं।वो 2 कप चाय बनाने के लिए कुर्बान होती है, सुबह की मीठी नींद।उस कप की एक एक चुस्की ताज़गी से भरी सी।पास सोये नन्हे से फरिश्ते के चेहरे पर सुकून से फैली नींद एक सुकून होती है।थोड़ा सा और उसको निहारने की इच्छा ,मगर दिन भर के काम की सूचि आंखों के आगे तैरती हुई काफी होती है उठ खड़े होने को।आज कुछ अच्छा हो कि चाहत दिल मे लिए बस मशीन की तरह काम करती ये देह,नन्हा बच्चा फिर से घंटे 2 घंटे के लिए मा से दूर होता है ,मगर सुरक्षित हाथो में हैं बस यही तस्सली लिए काम शुरू हो जाता है।8.30 बजे तक नाश्ता देने की जल्दी।1.30 बजे से पहले सारा काम,झाड़ू पोछा, नाश्ता ,दोपहर का खाना ,नहाना ,कपड़े धोना ,बच्चे को खिलाना ,पिलाना समय पर सुलाना और हां इसी बीच दुकान संभाल लेना ।पति को थोड़ा समय फ्री करना और उनका काम अपने हाथों लेना भी तो हिस्सा है दिन का।फिर 1 बजे से पहले रसोई में पहुचना और फिर से खाना खिलाना, बच्चे को दूध पिलाना और उसके साथ कुछ देर खेलने की तम्मन्ना लिए बस काम पर जाने को तैयार होना।जाते जाते नन्हे के चेहरे पर माँ से दूर होने का डर देख कर भ