संदेश

2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

VIP PASS

vip सुनकर ही एक अच्छा सा अनुभव होता है ना,और जब ये नाम ये सम्मान आपको सामने से मिलता है तो सोचो कितना अच्छा लगता होगा।मैंने भी ये सम्मान पाया ।human rights और स्पर्श गंगा टीम ने अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में मुझे भी आमंत्रित किया।जिसमें मुझे mrs uttrakhand international 2018 का खिताब जीतने की उपलब्धि के लिए सम्मानित किया जाना था।साथ ही उस पूरे कार्यक्रम में जज के रूप में भी मुझे आमंत्रित किया गया। देव भूम ऋषिकेश में रविवार 3 नवंबर 2019 को ये कार्यक्रम होटल peradise ganga में रखा गया।मैं बहुत उत्सुक थी और उत्साहित भी आखिर मुझे नेशनल अवार्ड मिलने वाला था।10 बजे का समय दिया गया था मगर हम जाते जाते बहुत लेट हो गए थे ठीक 12 बजे गंगा के किनारे होटल में हम पहुचे।अंदर जाने के लिए सबको पास दिए जा रहे थे।मैं मेरे पति विशाल औए बेटा वेदान्त।तीनो गेट पर खड़े थे,तभी मेरा दोस्त प्रदीप जिसने मुझे यहां आमन्त्रण दिया था ,वो दौड़ कर बाहर आया और अपनी सिक्योरिटी स्टाफ को बोला कि वो मुझे vip pass दें।क्योंकि मैं vip के तौर पर आमंत्रित हूँ,मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नही था जब मेरे गले मे वो vip pass पहनाया

वो बन्द खिड़की

वो बन्द खिड़की हमेशा के लिए बंद हो गयी थी,जैसे सब कुछ तोड़ने के लिए ही खुली थी वो बन्द खिड़की जो सालों से बंद पड़ी थी।उस खिड़की के परे जैसे जान सी आगयी थी ।जैसे वो कमरा जी उठा था।मगर ये खुशी बस कुछ दिन की ही थी।फिर वही बन्द  खिड़की के पल्ले फिर वही अंदरूनी घुटन।तनुश्री को मुम्बई आये 3 साल हो चुके थे ,जिंदगी खुद में ही सिमटी सी चल रही थी ।अपना पति और बच्चा ।जैसे इसके अलावा कुछ था ही नही।3 साल पहले तनुश्री के पति का तबादला हुआ मुम्बई में।ननये लोग,नए रिश्ते सब कुछ नया।तनुश्री की बेटी नैना के कमरे की खिड़की जो सड़क की तरफ खुलती थी।2 साल की नैना ने कभी वो खिड़की खुली नही देखी।साफ सफाई अंदर से ही हो जाया करती।पहले फ्लोर पे रहती तनुश्री कभी कभार घर के बाहर जाया करती।कुणाल सारे काम खुद जो निपटा देता था। बस एक दिन तनुश्री कुछ समानलेने नीचे गयी।।।सामने एक ट्यूशन पॉइंट था।तनुश्री ने सोचा नैना की स्कूलिंग के लिए कुछ पूछ आती हूँ।ठिठकते कदमो से तनुश्री पहुंच गई उनके पास।जो उसकी ही हमउम्र थे।कहने को ट्यूशन पॉइंट ठीक घर के नीचे था सामने वाली बिल्डिंग में मगर तीन साल में आज तक तनु ने उनको नही देखा था।एक बहुत

एन ओपन लेटर टू माय सन वेदान्त( बर्थडे स्पेशल 2)

20 नवंबर 2019 आज तुम पूरे 2 साल के हो गए हो वेदान्त,और तुम्हारी शरारते 5 साल के बच्चे जितनी।तुम सबके लाडले हो,इस एक साल में तुम काफी बढ़ गए हो,स्वस्थ हो मगर अब लड्डू जैसे गोल नही रहे,शायद बढ़ती लंबाई और निकलते दांतो ने तुम्हारे वजन को घटा दिया है।मगर मैं अभी भी लड्डू ,शिवोम कह कर ही बुलाती हूँ तुम्हे।तुम्हारा रंग बहुत ज्यादा गोरा नही है,न ही नयन नक्श मेरे जैसे हैं।तुम्हारी दादी कहती है कि अब तुम एसे दिखते हो जैसे इस उम्र में तुम्हारे पापा दिखा करते थे।मतलब तुम मेरे जैसे न रूप में न रंग में। गुस्सा तो जैसे तुम्हारी नाक पर रहता है ,जिद्दी भी हो गए हो,सबके लाड प्यार ने बिगाड़ दिया है तुम्हे।कभी कभी तो मैं चिंतित हो जाती हूँ कि तुम्हे वैसी परवरिश दे भी पाउंगी की नही जैसी हमे मिली।तुम्हे संस्कार दे पाउंगी या नही।तुम अभी से इतने जिद्दी हो।कभी कभी मैं भी गुस्सा करती हूँ तुम पर शायद पूरे दिन की थकान और तुम्हारा जिद्दीपन मुझे मजबूर कर देता है ,मगर प्यार से भी समझाती हूँ तुम्हे। खैर इस एक साल में काफी कुछ हुआ जो शब्दो मे शायद न लिख पाऊं।इस साल तुमने बहुत से टूर भी किये जैसे सहारनपुर अपनी बुआ दा

एन ओपन लेटर टू माय सन वेदान्त 2

आज तुम 2 महीने के हो गए हो वेदान्त,कहने को नया साल शुरू हुआ है मगर मेरा तो नया जीवन शुरू हुआ था जिस दिन तुम मेरे जीवन मे आये ।अब हर दिन तुम बदल रहे हो,इस 20 दिसंबर से 20 जनवरी तक हज़ारो बदलाव हम सबने तुममे देखे।तुम अब हर गोद का एहसास पहचानने लगे हो।दादा,दादी की गोद,चाचा की गोद,माँ की गोद,और हां पापा की गोद मे जाते ही तुम्हारी शैतानी बहुत बढ़ जाती है।ऐसा लगता है कि तुम बेसब्री से उनके आने का इंतज़ार करते हो।मैं भी कहाँ तुम्हे कब तक सोने देती हूँ,क्योंकि एक यही समय तो है जब तुम उनके पास रहते हो।रात को भी वो तुम्हे खुद से चिपका के सुलाते हैं।मैं भी कोशिश करती हूँ कि रात को तुम ज्यादा से ज्यादा उनके पास रहो,ताकि उनको पहचान पाओ,उनके एहसास को समझ पाओ।और तुम समझते भी हो।हर गोद मे जाने पर अब तुम्हारे भाव बदलने लगे हैं। तुम अब बढ़ रहे हो।पता है,तुम्हारे पहले सारे कपडे छोटे हो गए हैं,तुम्हारे लिए जल्दी जल्दी नए कपड़े खरीदने में मुझे दिक्कत नही होती बल्कि खुशी होती है,क्योंकि ये एक इशारा है कि तुम बढ़ रहे हो।चाचू ने तुम्हे एक nick name भी दिया है "निक"।इस बार हमने कोई सेलिब्रेशन नही किया

वो फेरी वाला

11 साल बाद आज मैंने उसे देखा।देखते ही वो 11 साल पुराना चेहरा आंखों के सामने आ खड़ा हुआ।10 साल का वो बच्चा,गोरा रंग,भूरी आंखे,नाटा कद,घुंघराले बाल और आंखों में शैतानी।हाथ मे टंगी वो टोकरी जिसमें आलू ,और चावल की घर पर बनी कचरी ,तेल में तलकर बनाई कचरी ,छोटे छोटे पैकेट में पैक।रोज वो मेरे लिवाइस स्टोर के सामने से निकलता।2008 की ही तो बात है जब मैं लिवाइस में स्टोर मैनेजर हुआ करती थी।सुबह 10 से रात 9 बजे तक का टाइम यही निकलता।उत्तर भारत के सभी लिवाइस स्टोर की इकलौती महिला मैनेजर थी मैं।अपनी सर्विस ,अपनी डेडिकेशन की वजह से अवार्ड विनर।कितने लंबे समय के लिए दिन भर काम करती फिर भी थकान ना होती।एक अच्छी मैनेजर मानी जाती थी मैं,हर रोज वो छोटे फेरी वाले बच्चे की कचरी खरीद कर अपने स्टाफ को खिलाती।इसलिए नही की वो सिर्फ 5 रूपीस का एक पैकेट होता था बल्कि इसलिए कि मैं उस छोटे बच्चे की ज्यादा से ज्यादा बिक्री करना  चाहती थी।एक दिन मैंने पूछा उस से ,की वो कहाँ से आता है,ये काम किस टाइम से किस टाइम तक करता है।और क्या वो पढ़ाई भी करता है।तब उसने मुझे बताया कि वो रोज सुबह पहले स्कूल जाता है,फिर घर आकर स्कूल

बस यही कमाया मैंने

बस यही कमाया मैंने कमाई कुछ भी हो सुकून देती है।जरूरी नही कमाई पैसा और धन दौलत ही हो।कमाई वो है जो हमारी मेहनत के बदले हमे वापिस मिलता है।प्यार,इज़्ज़त,सब कमाई ही तो है। मैंने 17 साल की उम्र से काम करना शुरू किया।12 वी के बाद घर पर ही ट्यूशन पढ़ाये।कहने को ट्यूशन मगर एक पूरा स्कूल सजता था मेरे घर पर।गांव की सबसे होशियार और ज्यादा नंबर लाने वाली लड़की मानी जाती थी,तो सब माता पिता अपने बच्चों को मेरे पास पढ़ने भेजते।पढाना मेरा शौक था ,व्यापार नही।इसलिए मेरे दरवाजे सबके लिए खुले थे,जो बदले में फीस दे जितनी दे सके उसके लिए भी ,जो बिल्कुल न दे सके उसके लिए भी।कहते हैं गुरु को दक्षिना का लालच होता है,हाँ बिल्कुल होता है,कभी कुछ जरूरत पूरी होने का लालच जो फीस के पैसे से पूरा होता है,कभी अपने पढाये बच्चों को अव्वल आते देखने का लालच।मेरे दोनो लालच पूरे हो रहे थे,मेरे पढाये बच्चे दिन प्रतिदिन होशियार होते जा रहे थे और उनके माता पिता के साथ साथ मेरी खुशी बढ़ती जा रही थी,फिर 19 साल की उम्र में देहरादून पढ़ाई करने मुझे आना पड़ा,अपने बच्चों को छोड़ कर मैं आगयी।आज वो छोटे छोटे बच्चे अपना कॉलेज पूरा कर चुके

Stretch marks

स्ट्रेच मार्क्स आधुनिक माँओ की सबसे बड़ी समस्या।मगर क्या वाकई ये समस्या है।मेरे बहुत से पाठकों ने बोला कि मैं अधिकतर तुनात्मक शैली में लिखती हूँ ,हाँ सच है ,तो चलो फिर से एक तुलना कर दूं कि ये स्ट्रेच मार्क्स समस्या हैं या खुश होने की एक वजह।जी हां बस एक सोच का ही तो फर्क है।।हर चीज़ के 2 पहलू होते हैं तो इसके क्यों नही। मैं भी एक माँ हूँ, जब पता लगा कि एक नन्ही सी जान जिंदगी में आने वाली है तो बहुत सी सलाह मिली,किसी ने कहा शुरू से ही पेट पर एलोवेरा जेल लगाना,किसी ने नारियल तेल लगाने की सलाह दी ,खैर मुझे उस वक्त इतनी जरूरत महसूस नही हुई।उस वक्त मैं भी नही चाहती थी कि मेरे सुंदर सुडौल पेट पर किसी भी तरह के निशान दिखें।देखते ही देखते वक्त गुजर गया और मेरा नन्हा वेदान्त मेरी गोद मे आगया।मेरा शरीर ढीला पड़ गया।इतने महीनों से जहां मेरा वेदान्त अपनी दुनिया बसाये था अब वो घर खाली हो गया ।लटकी हुई स्किन,ढीला झुर्रियों से भरा पेट जिस पर बहुत से निशान जिसे स्ट्रेच मार्क्स कहा जाता है।देख कर मेरे चेहरे के भाव भी बदल गए थे ,एक पल को लगा मैंने अपनी खूबसूरती खो दी है।मगर जब नन्हे वेदान्त पर नजर गयी त

हर रोज़

सुबह की अंगड़ाई लेती नींद जब टूटती है तो रसोई में आंखे खुलती हैं।वो 2 कप चाय बनाने के लिए कुर्बान होती है, सुबह की मीठी नींद।उस कप की एक एक चुस्की ताज़गी से भरी सी।पास सोये नन्हे से फरिश्ते के चेहरे पर सुकून से फैली नींद एक सुकून होती है।थोड़ा सा और उसको निहारने की इच्छा ,मगर दिन भर के काम की सूचि आंखों के आगे तैरती हुई काफी होती है उठ खड़े होने को।आज कुछ अच्छा हो कि चाहत दिल मे लिए बस मशीन की तरह काम करती ये देह,नन्हा बच्चा फिर से घंटे 2 घंटे के लिए मा से दूर होता है ,मगर सुरक्षित हाथो में हैं बस यही तस्सली लिए काम शुरू हो जाता है।8.30 बजे तक नाश्ता देने की जल्दी।1.30 बजे से पहले सारा काम,झाड़ू पोछा, नाश्ता ,दोपहर का खाना ,नहाना ,कपड़े धोना ,बच्चे को खिलाना ,पिलाना समय पर सुलाना और हां इसी बीच दुकान संभाल लेना ।पति को थोड़ा समय फ्री करना और उनका काम अपने हाथों लेना भी तो हिस्सा है दिन का।फिर 1 बजे से पहले रसोई में पहुचना और फिर से खाना खिलाना, बच्चे को दूध पिलाना और उसके साथ कुछ देर खेलने की तम्मन्ना लिए बस काम पर जाने को तैयार होना।जाते जाते नन्हे के चेहरे पर माँ से दूर होने का डर देख कर भ