VIP PASS
vip सुनकर ही एक अच्छा सा अनुभव होता है ना,और जब ये नाम ये सम्मान आपको सामने से मिलता है तो सोचो कितना अच्छा लगता होगा।मैंने भी ये सम्मान पाया ।human rights और स्पर्श गंगा टीम ने अंतरराष्ट्रीय सम्मान समारोह में मुझे भी आमंत्रित किया।जिसमें मुझे mrs uttrakhand international 2018 का खिताब जीतने की उपलब्धि के लिए सम्मानित किया जाना था।साथ ही उस पूरे कार्यक्रम में जज के रूप में भी मुझे आमंत्रित किया गया।
देव भूम ऋषिकेश में रविवार 3 नवंबर 2019 को ये कार्यक्रम होटल peradise ganga में रखा गया।मैं बहुत उत्सुक थी और उत्साहित भी आखिर मुझे नेशनल अवार्ड मिलने वाला था।10 बजे का समय दिया गया था मगर हम जाते जाते बहुत लेट हो गए थे ठीक 12 बजे गंगा के किनारे होटल में हम पहुचे।अंदर जाने के लिए सबको पास दिए जा रहे थे।मैं मेरे पति विशाल औए बेटा वेदान्त।तीनो गेट पर खड़े थे,तभी मेरा दोस्त प्रदीप जिसने मुझे यहां आमन्त्रण दिया था ,वो दौड़ कर बाहर आया और अपनी सिक्योरिटी स्टाफ को बोला कि वो मुझे vip pass दें।क्योंकि मैं vip के तौर पर आमंत्रित हूँ,मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नही था जब मेरे गले मे वो vip pass पहनाया गया,मगर मेरी ये खुशी ज्यादा देर की नही थी,मेरा दिल बोझिल सा हो गया ,जब मैंने अपने पति के गले मे लटका pas देखा।जिस पर सिर्फ pass लिखा था।मुझे वाकई कोई अंदाजा नही था कि हम दोनों को अलग अलग pass दिए जाएंगे।कहने को ये सिर्फ एक pas ही तो था मगर इस pas ने हम दोनों को बहुत अलग अलग औंधे पर रख दिया था खैर हम तीनों को बहुत सम्मान से अंदर बड़े से हॉल में लेजाया गया।वहां एक राउंड मंच बनाया गया था जहां लगभग 6 से 7 कुर्सियां थी जिस पर एक एक नाम लिखा था और साथ मे बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था VIP।वही बिल्कुल मंच के सामने मेरी कुर्सी थी जिसपर मेरा नाम लिखा था।प्रदीप ने हाथ से इशारा करते हुए मुझे कहा था ,मैडम आप उस चेयर पर बैठ जाइए।और सर् आप मेरे साथ आइये।
वेदान्त उस वक्त विशाल की गोद मे था।हमारी VIP चेयर्स के पीछे कतार में लगी कुर्सियों की तरफ 2nd row में प्रदीप ने विशाल को बैठने के लिए इशारा किया।मैंने प्रश्नसूचक नजरो से उनको देखा।मंगर मेरे पति अच्छी सूझ बूझ के धनी एक सुलझे हुए इंसान हैं,उन्होंने मुस्कुराकर मुझे आश्वासन दिया और कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।मगर मैं विचलित हो चुकी थी।मैंने अपने पति को इशारा किया कि वो मेरे पास खाली पड़ी कुर्सियों पर आकर बैठ जाएं।मगर वो जानते थे कि मैं इस भावनाओ में आकर कह रही हूँ।उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वो बिल्कुल ठीक हैं और वेदान्त भी ।मगर मुझे इस VIP कुर्सी ने मेरे पति और मेरे बच्चे से दूर कर दिया था।इस VIP शब्द ने खुशी नही अब मेरे दिल पर लगातार चोट करनी शुरू कर दी थी।इतने बड़े कार्यक्रम की गरिमा को बनाये रखना मेरा फ़र्ज़ था मैं चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठी रही ।मगर बार बार मैंने पीछे मुड़ कर अपने नन्हे वेदान्त को देखा जो अपने पापा के साथ खेल रहा था।उसने शायद मुझे देखा ही नही था।मेरा दिल किया कि भाग कर जाऊं और सीने से लगा लूं अपने वेदान्त को और बोलू विशाल को की चलो यहां से ।ऐसा सम्मान नही चाहिए जो मुझे तुमसे और वेदान्त से इस तरह भेदभाव की नींव पर मिले।एक हिंदुस्तानी पत्नी होने के नाते ,मुझसे ऊपर मेरे पति का स्थान हो नाकि उनके सामने मेरा उनसे उच्च स्थान।विशाल मेरे मन की उथल पुथल को बहुत अच्छे से समझ रहे थे,तभी जब भी मैं पीछे देखती वो मुस्कुरा देते और आंखों से इशारा करते कि तुम बेफिक्र रहो वेदान्त बिल्कुल ठीक है एओ परेशान नही कर रहा।
टाइम निकलता जा रहा था ,कार्यक्रम अपनी चरम सीमा पर था कि अचानक वेदान्त की नजर मुझ पर पड़ी।बस वो मेरे सब्र के इम्तहान का अंत था।वो ज़ोर से चिल्लाया" पापा मम्मी पास" मगर उसका मेरे पास आना और आकार वहां शरारत करना शायद उस जज की कुर्सी की गरिमा को प्रभावित करता और ये चीज़ हम दोनों जानते थे,विशाल उसको लेकर बाहर चले गए और मुझे तभी मेसेज आया," तुम चिंता मत करो,मैं इसे बाहर गंगा के किनारे ले आया हुँ कुछ देर यहां खेलेगा तो चुप हो जायेगा"।मगर मेरा मन तो उखड़ चुका था।मेरा बच्चा माँ के लिए रो रहा है,मेरा पति मेरी बराबर में नही आकर बैठ सकता तो ये VIP कुर्सी कर ये सम्मान मेरे किस काम का।अब मेरा दिल तड़प उठा था।कुछ देर बाद मैंने पीछे देखा तो विशाल वेदान्त के साथ पीछे ही बैठे थे,वेदान्त उछल कूद करके उनको परेशान कर रहा था और वो सब उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था।बस अब हद हो गयी थी मैंने कोई परवाह नही की की कोई क्या कहेगा ,क्या सोचेगा ,मैं उठ कर पीछे चली गयी और अपने वेदान्त को गोद मे उठा लिया सब मुझे देख रहे थे ,मगर मुझे परवाह नही थी कि वो ये सोच रहे हैं कि जज की कुर्सी से उठ कर मैं एक साधारण कुर्सी पे पास क्यों गयी या ये सोच रहे हैं कि इस कुर्सी से ज्यादा महत्व मेरा परिवार रखता है।मैंने बहुत देर वेदान्त को खुद से चिपका के रखा वो भी रो कर मुझसे जैसे हज़ारो शिकायत कर रहा था।मगर उस वक्त मेरे पति ने परिपक्वता दिखाई।उन्होंने मुझे समझाया कि तुम जिस कुर्सी पर हो उसका सम्मान करो,वापस जाओ और अगर वहाँ बैठ पाना मुश्किल हो रहा है तो सम्मान पूर्वक विदाई लेलो क्योंकि अब वेदान्त का भी रुक पाना मुश्किल हो रहा है।तब मैंने वैसे ही किया,मैनेजमेंट से बात करके अपना पक्ष रखा उनको बताया कि मेरा बच्चा अभी बहुत छोटा है वो इतनी देर मुझसे दूर नही रह सकता इसलिए मैं माफी चाहती हूं।और अपना अवार्ड लेकर हमने विदाई ली।
ये अनुभव मेरे लिए कड़वा रहा।मुझे इस VIP PASS ने खुशी नही दर्द दिया।सुकून नही बल्कि विचलित किया।जितनी खुशी मुझे आज भी उस अवार्ड को देख कर होती है उतनी ही आहत मैं उस VIP PASS और साधारण PASS को देख कर होती हूँ।
क्योंकि मेरा VIP PASS भी मेरा परिवार और मेरा अवार्ड भी मेरा परिवार।
24 दिसंबर 2019
देव भूम ऋषिकेश में रविवार 3 नवंबर 2019 को ये कार्यक्रम होटल peradise ganga में रखा गया।मैं बहुत उत्सुक थी और उत्साहित भी आखिर मुझे नेशनल अवार्ड मिलने वाला था।10 बजे का समय दिया गया था मगर हम जाते जाते बहुत लेट हो गए थे ठीक 12 बजे गंगा के किनारे होटल में हम पहुचे।अंदर जाने के लिए सबको पास दिए जा रहे थे।मैं मेरे पति विशाल औए बेटा वेदान्त।तीनो गेट पर खड़े थे,तभी मेरा दोस्त प्रदीप जिसने मुझे यहां आमन्त्रण दिया था ,वो दौड़ कर बाहर आया और अपनी सिक्योरिटी स्टाफ को बोला कि वो मुझे vip pass दें।क्योंकि मैं vip के तौर पर आमंत्रित हूँ,मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नही था जब मेरे गले मे वो vip pass पहनाया गया,मगर मेरी ये खुशी ज्यादा देर की नही थी,मेरा दिल बोझिल सा हो गया ,जब मैंने अपने पति के गले मे लटका pas देखा।जिस पर सिर्फ pass लिखा था।मुझे वाकई कोई अंदाजा नही था कि हम दोनों को अलग अलग pass दिए जाएंगे।कहने को ये सिर्फ एक pas ही तो था मगर इस pas ने हम दोनों को बहुत अलग अलग औंधे पर रख दिया था खैर हम तीनों को बहुत सम्मान से अंदर बड़े से हॉल में लेजाया गया।वहां एक राउंड मंच बनाया गया था जहां लगभग 6 से 7 कुर्सियां थी जिस पर एक एक नाम लिखा था और साथ मे बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था VIP।वही बिल्कुल मंच के सामने मेरी कुर्सी थी जिसपर मेरा नाम लिखा था।प्रदीप ने हाथ से इशारा करते हुए मुझे कहा था ,मैडम आप उस चेयर पर बैठ जाइए।और सर् आप मेरे साथ आइये।
वेदान्त उस वक्त विशाल की गोद मे था।हमारी VIP चेयर्स के पीछे कतार में लगी कुर्सियों की तरफ 2nd row में प्रदीप ने विशाल को बैठने के लिए इशारा किया।मैंने प्रश्नसूचक नजरो से उनको देखा।मंगर मेरे पति अच्छी सूझ बूझ के धनी एक सुलझे हुए इंसान हैं,उन्होंने मुस्कुराकर मुझे आश्वासन दिया और कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।मगर मैं विचलित हो चुकी थी।मैंने अपने पति को इशारा किया कि वो मेरे पास खाली पड़ी कुर्सियों पर आकर बैठ जाएं।मगर वो जानते थे कि मैं इस भावनाओ में आकर कह रही हूँ।उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि वो बिल्कुल ठीक हैं और वेदान्त भी ।मगर मुझे इस VIP कुर्सी ने मेरे पति और मेरे बच्चे से दूर कर दिया था।इस VIP शब्द ने खुशी नही अब मेरे दिल पर लगातार चोट करनी शुरू कर दी थी।इतने बड़े कार्यक्रम की गरिमा को बनाये रखना मेरा फ़र्ज़ था मैं चुपचाप अपनी कुर्सी पर बैठी रही ।मगर बार बार मैंने पीछे मुड़ कर अपने नन्हे वेदान्त को देखा जो अपने पापा के साथ खेल रहा था।उसने शायद मुझे देखा ही नही था।मेरा दिल किया कि भाग कर जाऊं और सीने से लगा लूं अपने वेदान्त को और बोलू विशाल को की चलो यहां से ।ऐसा सम्मान नही चाहिए जो मुझे तुमसे और वेदान्त से इस तरह भेदभाव की नींव पर मिले।एक हिंदुस्तानी पत्नी होने के नाते ,मुझसे ऊपर मेरे पति का स्थान हो नाकि उनके सामने मेरा उनसे उच्च स्थान।विशाल मेरे मन की उथल पुथल को बहुत अच्छे से समझ रहे थे,तभी जब भी मैं पीछे देखती वो मुस्कुरा देते और आंखों से इशारा करते कि तुम बेफिक्र रहो वेदान्त बिल्कुल ठीक है एओ परेशान नही कर रहा।
टाइम निकलता जा रहा था ,कार्यक्रम अपनी चरम सीमा पर था कि अचानक वेदान्त की नजर मुझ पर पड़ी।बस वो मेरे सब्र के इम्तहान का अंत था।वो ज़ोर से चिल्लाया" पापा मम्मी पास" मगर उसका मेरे पास आना और आकार वहां शरारत करना शायद उस जज की कुर्सी की गरिमा को प्रभावित करता और ये चीज़ हम दोनों जानते थे,विशाल उसको लेकर बाहर चले गए और मुझे तभी मेसेज आया," तुम चिंता मत करो,मैं इसे बाहर गंगा के किनारे ले आया हुँ कुछ देर यहां खेलेगा तो चुप हो जायेगा"।मगर मेरा मन तो उखड़ चुका था।मेरा बच्चा माँ के लिए रो रहा है,मेरा पति मेरी बराबर में नही आकर बैठ सकता तो ये VIP कुर्सी कर ये सम्मान मेरे किस काम का।अब मेरा दिल तड़प उठा था।कुछ देर बाद मैंने पीछे देखा तो विशाल वेदान्त के साथ पीछे ही बैठे थे,वेदान्त उछल कूद करके उनको परेशान कर रहा था और वो सब उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था।बस अब हद हो गयी थी मैंने कोई परवाह नही की की कोई क्या कहेगा ,क्या सोचेगा ,मैं उठ कर पीछे चली गयी और अपने वेदान्त को गोद मे उठा लिया सब मुझे देख रहे थे ,मगर मुझे परवाह नही थी कि वो ये सोच रहे हैं कि जज की कुर्सी से उठ कर मैं एक साधारण कुर्सी पे पास क्यों गयी या ये सोच रहे हैं कि इस कुर्सी से ज्यादा महत्व मेरा परिवार रखता है।मैंने बहुत देर वेदान्त को खुद से चिपका के रखा वो भी रो कर मुझसे जैसे हज़ारो शिकायत कर रहा था।मगर उस वक्त मेरे पति ने परिपक्वता दिखाई।उन्होंने मुझे समझाया कि तुम जिस कुर्सी पर हो उसका सम्मान करो,वापस जाओ और अगर वहाँ बैठ पाना मुश्किल हो रहा है तो सम्मान पूर्वक विदाई लेलो क्योंकि अब वेदान्त का भी रुक पाना मुश्किल हो रहा है।तब मैंने वैसे ही किया,मैनेजमेंट से बात करके अपना पक्ष रखा उनको बताया कि मेरा बच्चा अभी बहुत छोटा है वो इतनी देर मुझसे दूर नही रह सकता इसलिए मैं माफी चाहती हूं।और अपना अवार्ड लेकर हमने विदाई ली।
ये अनुभव मेरे लिए कड़वा रहा।मुझे इस VIP PASS ने खुशी नही दर्द दिया।सुकून नही बल्कि विचलित किया।जितनी खुशी मुझे आज भी उस अवार्ड को देख कर होती है उतनी ही आहत मैं उस VIP PASS और साधारण PASS को देख कर होती हूँ।
क्योंकि मेरा VIP PASS भी मेरा परिवार और मेरा अवार्ड भी मेरा परिवार।
24 दिसंबर 2019
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