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वो फेरी वाला

11 साल बाद आज मैंने उसे देखा।देखते ही वो 11 साल पुराना चेहरा आंखों के सामने आ खड़ा हुआ।10 साल का वो बच्चा,गोरा रंग,भूरी आंखे,नाटा कद,घुंघराले बाल और आंखों में शैतानी।हाथ मे टंगी वो टोकरी जिसमें आलू ,और चावल की घर पर बनी कचरी ,तेल में तलकर बनाई कचरी ,छोटे छोटे पैकेट में पैक।रोज वो मेरे लिवाइस स्टोर के सामने से निकलता।2008 की ही तो बात है जब मैं लिवाइस में स्टोर मैनेजर हुआ करती थी।सुबह 10 से रात 9 बजे तक का टाइम यही निकलता।उत्तर भारत के सभी लिवाइस स्टोर की इकलौती महिला मैनेजर थी मैं।अपनी सर्विस ,अपनी डेडिकेशन की वजह से अवार्ड विनर।कितने लंबे समय के लिए दिन भर काम करती फिर भी थकान ना होती।एक अच्छी मैनेजर मानी जाती थी मैं,हर रोज वो छोटे फेरी वाले बच्चे की कचरी खरीद कर अपने स्टाफ को खिलाती।इसलिए नही की वो सिर्फ 5 रूपीस का एक पैकेट होता था बल्कि इसलिए कि मैं उस छोटे बच्चे की ज्यादा से ज्यादा बिक्री करना  चाहती थी।एक दिन मैंने पूछा उस से ,की वो कहाँ से आता है,ये काम किस टाइम से किस टाइम तक करता है।और क्या वो पढ़ाई भी करता है।तब उसने मुझे बताया कि वो रोज सुबह पहले स्कूल जाता है,फिर घर आकर स्कूल