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बिखराव

कुछ यादें रह गयी कुछ बाते रह गयी  वो नही ,अनकही ,बाते रह गयी । कितना अजीब मंजर कितना बुरा एहसास अपनो को खोने का दर्द और  बिखरे से जज्बात। कुछ अजीब सी चुभ रही थी उस दिन हवाएं भी कुछ खालीपन सा था दिन भर की धूप में  कहा किसे पता कौन जाने वाला है, हर दिन जैसा ही बीत रहा था,वो दिन भी किसी को नही था आभास अचानक जरा कांच क्या फिसला हाथ से  खून हाथ मे नही दिल मे बहने लगा  जब खबर आई ,मेरा कोई अपना  बिन बताये जाने लगा। दिल मे टीस थी ,आंखों में खाली पन खाली पन में हज़ारो सवालात आखिर क्या इतनी जल्दी ,क्यों ऐसे जाना था जाने ऐसे पहले ,जी भर देख लेते  क्यों मुंह छुपाना था। आंखे सुर्ख और दिल की तड़प उसे खोने की चुभन ओर वो लम्बी सड़क मैं चली,एक उम्मीद से  देखूंगी,पूछुंगी, रोउंगी,बुलाऊंगी ये रास्ता तय कर जब उनसे लिपट जाउंगी उन्हें आना होगा ,मुझे सीने से लगाना होगा बताना होगा ,ओर मुझे चुप करना होगा  ये मेरी सोच थी  हां बस मेरी सोच थी  क्योंकि ऐसा हुआ कुछ नही  घर की अंधेरी भरी दीवारों ने ,फुसफुसाया मुझे बुलाया ,इत्मीनान से हर हाल कह सुनाया की तू रो,तड़प ,जो कर वो वापस नही आएगा आज इस घर मे रोशनी का दिया नही जगम