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अपने तो अपने होते हैं

 जब बैठे चार लोग मिलकर बैठे तो सबकी अपनी अपनी बातें हुईं। सबने रिश्तेदारों की बात की ,और मैने रिश्तो की। रिश्तेदार,एक नाम है ,ओर रिश्ते जज्बात। रिश्ते 3 गिनती में गिने मैने,एक वो रिश्ते जो हमने बचपन में देखे ,एक वो रिश्ते जो अब हम जवानी में देख रहे है और एक वो रिश्ते जो हम अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में देखेंगे । ऐसे ही नही मैं आज रिश्तो में उलझी।ये अचानक नही हुआ।कुछ हाथ छोड़ते,कुछ दम तोड़ते रिश्नो ने मुझे मजबूर किया। जब बात रिश्तो की आती है तो रिश्ते दादा दादी,नाना नानी ,से शुरू होते हैं।रिश्तो के मामले में थोड़ा कम पाया मैंने। मुझे बचपन याद आया ,नाना नानी दादा दादी के नाम पर बस अपनी नानी की ही झलक याद है ,वो भी बहुत धुंधली।रिश्तो को खोने की शुरुआत बड़ी कम उम्र में हुई।जो रिश्ते सामने थे वो जवान थे,बूढ़े रिश्ते कब का साथ छोड़ चुके थे।जवान रिश्तो के साथ जीते रहे कभी दिल मे आया तक नही की एक दिन ये रिश्ते एक एक कर के हाथ से रेत की तरह फिसलेंगे । हमे सिर्फ अपनी उम्र बढ़ती दिखाई दी,अपनो की नही।इसी भरम में रहे कि ये हमारे खून के रिश्ते है ,ये हमेशा हमेशा हमारे साथ रहेंगे।लेकिन हमारी बढ़ती उम्र के सा