ये मेरे खास दिन

 इस विषय पर लिखना मेरे लिए थोड़ा झिझक से भरा था।कलम ने भी कई बार शब्दो से बगावत की लेकिन मेरे इरादे झुके नही।आखिर मैं इस विषय पर लिखना चाहती थी।उन दिनों के बारे में जिन्हें अशुद्ध समझा जाता है।जिन दिनों में एक स्त्री को मंदिर या पूजा घर जाने की अनुमति नही होती ,कितने ही घरों में तो रसोई घर तक में जाना उनके लिए निषेध होता है।हाँ वही दिन,मासिक धर्म के नाम से जिनको हम पुकारते हैं।

एक बेटी जब बड़ी होने लगती है उसकी माँ की चिंता दिन रात बढ़ने लगती है,ना जाने कब उसके पीरियड्स शुरू हो जाएं।कितनी माएँ खुल कर बेटी से इस विषय पर बात ही नही कर पाती और चिंतित होती हैं कि कैसे इस विषय मे उसको बता पाएंगी।

मेरा अनुभव इस विषय मे अच्छा रहा।जैसे जैसे हम बहने बड़ी हो रही थी हमारी माँ हमारी सहेली बन रही थी।हर रात काम निपटाने के बाद 1 घंटे हमसे बात करती,हमे हर वो चीज़ के बरस में जानकारी देती जो उम्र के साथ हमारे लिए जानना जरूरी होता गया।मेरी और माँ की उम्र में काफी अंतर है क्योंकि मैं सबसे छोटी बेटी जो थी,माँ अभी भी हर तरह मुझे सब समझने की कोशिश करती।और जब मैं उनकी कुछ बातों का जवाब देने में शर्माती झिझकती तो वो ये जिम्मेदारी मेरी बड़ी बहन को देती।बड़ी दीदी भी सहेली ही तो थी।उनसे मैं हर बात बता पाती।

आखिर मैं भी इस दौर से गुजरने की उम्र में थी,हर मा की तरह मेरी माँ को भी चिंता सताने लगी थी।मैं जब स्कूल जाती और जब तक वापस आती मम्मी की चिंतित नजर दरवाजे पर होती।

आखिर मेरे जीवन मे भी वो पड़ाव आया और मम्मी की चिंता बढ़ गयी।बुधवार और शनिवार को सफेद रंग की स्कूल ड्रेस और मेरे उन सात दिनों में जब बुधवार और शनिवार आता माँ डरने लगती।कहीं निशान आगया ,सफेद रंग ,छोटी सी बेटी कैसे सबकी नजरों का सामना कर पायेगी।हज़ार हिदायते देकर मुझे स्कूल भेजा जाता।उस वक्त सेनेटरी पैड कहाँ इतने चलन में थे।वो समय हमारे और मम्मी के लिए चुनौती से भरे होते थे।खैर मम्मी और दीदी मेरे इस मुश्किल समय मे साथ देती।

दर्द से तड़पते वो 3 दिन मम्मी के हाथ का स्पर्श और उनकी ममता उस दर्द से लड़ने की हिम्मत देती।खैर जब तक समझदार नही हुई तब तक मम्मी इस मुश्किल समय मे साथ खड़ी रही।

चलो ये तो था मेरा अनुभव।बात करते हैं समाज मे फैली गलत धारणाओं की।कहाँ लिखा है कि मासिक धर्म के दिनों में पूजा करना ,पवित्र स्थान पर जाना या रसोई में खाना बनाना निषेध है।आखिर किसने उन खास दिनों को मुश्किल दिन बनाया।

जहां तक मैने इस विषय को जाना और इसके बारे में ज्ञान अर्जित किया ,मेरा ज्ञान तो ये कहता है कि इस मुश्किल समय मे स्त्री को 5 से 7 दिन आराम दिया जाता था।घर के काम काज ,रसोई से लेकर बाहर आने जाने की मेहनत तक को विराम दिया जाता था।कोशिश की जाती थी कि इन दर्द भरे दिनों में जब एक स्त्री मानसिक और शारीरिक रूप से खुद को थका महसूस करती है उसको आराम मिले।न वो मंदिर जाकर थके,न रसोई में काम करके।इसीलिए उसको ये सब करने के लिए मना किया जाता था।लेकिन ये धारणाएं कब स्त्री के लिए अच्छी से बुरी बन गयी पता ही नही चला।

जो स्त्री इन 7 दिनों की वजह से इस संसार को आगे बढ़ाने के लिए शक्षम हो पाती है,तो उसके ये 7 दिन अशुद्ध कैसे हो सकते हैं।जिन दिनों की वजह से एक स्त्री माँ बन पाने का सुख प्राप्त कर पाती है व्व अशुद्ध कैसे हो सकते हैं।

दक्षिण भारत मे जब एक लड़की को मासिक धर्म शुरू होता है तो वो उसके पहले मासिक धर्म को त्योहार की तरह मानते है।उनका मानना है कि यही मासिक धर्म की वजह से एक लड़की एक परिवार को आगे बढ़ती है।एक वंश को बढ़ाती है।और मैं उनकी इस सोच का सम्मान करती हूं।

इन सात दिनों में एक स्त्री किस पीड़ा से गुजरती है पुरुष शायद ही इसका अंदाजा लगा पाए ।वो सिर्फ शारीरिक रूप से पीड़ा नही सहती मानसिक रूप से भी पीड़ा सहती है।गुस्सा ,चिड़ चिड़ा पन और ऊपर से सबकी अजीब नजर और उसके लिए बनाए गए अजीब नियम उसको हर रोज तोड़ते हैं।व्व खयड में ही सिमट जाती है,झिझक जाती है जैसे उस से कोई पाप हो गया हो।आखिर क्यों ।

और पुरुष नही एक स्त्री ही दूसरी स्त्री को इस समय मे ज्यादा भेदभाव का एहसास कराती है।

हैं कभी कभी मुझे भी बड़ो की बाते मान कर अपना मन मार कर रह जाना पड़ता है वरना मैं इस समय मे जरूरत पड़ने पर मंदिर या पूजाघर जाने में नही कतराती।आखिर क्यों हम झिझके।

क्या आपने कामाख्या मंदिर के बारे में सुना है।गुवाहाटी असम में बना कामख्या देवी का मंदिर।मान्यता है कि उस मंदिर में माँ सती की योनि का हिस्सा है।कहा जाता है कि जब माता सती ने पिता दक्ष के हवन कुंड में खुद की आहुति दी तब भगवान शिव उनका जलता शरीर गोद मे उठाये ,गुस्से में कई वर्षों भृमण करते रहे।उनके जलते अंग पृथ्वी पर अलग अलग जगह गिरे।गुवाहाटी असम में उनकी योनि का हिस्सा जा गिरा।कहते है आज भी हर साल तीन दिन के लिए यहाँ से बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल खून में बदल जाता है।उस योनि रूपी शिला से खुद ही खून बहने लगता है।इन दिनों में अगर कोई बांझ स्त्री भी उस पानी को छू ले तो उसको मातृत्व सुख की प्राप्ति होती है।वो 3 दिन माँ सती के मासिक धर्म के दिन होते है।

तो फिर कैसे एक स्त्री इन दिनों में मंदिर नही जा सकती ।क्या हमारी देवियां एक स्त्री नही थी।

हम सबको मिलकर ये सोच बदलनी होगी।एक स्त्री के ये मुश्किल दिन हम शारीरिक रूप से सुखद नही बना सकते लेकि न मानसिक रूप से तो उसको सुखद बनाया जा सकता है।इसलिए बन्द कीजिये एक स्त्री को इन दिनों में अशुद्ध कहना और समझना।और आदर कीजिये उस स्त्री का जो इन दिनों के पीड़ा सहकर इस संसार को बढ़ाती है।क्योंकि ये 7 दिन भी उतने ही खास हैं जितने बाकी के दिन।

धन्यवाद।

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने