बेजुबान दुनिया

आज 6 दिन हो गए थे मुझे इस बेज़ुबान दुनिया में अपना कुछ समय बिताते , जहाँ मैंने ऐसे ऐसे रूप देखे उन जानवरों के जो पहले नहीं देखे थे।हमारी पालतू लेब्रा रानी की तबियत ख़राब चलते आज 15 दिन हो गए थे,जानवरो के अस्पताल में मैं पहले कभी नहीं आई थी मगर पिछले 6 दिनों से मुझे  आना पड़ा।यहाँ आकर पता लगा की आज के समय में कुत्तो का पालन बड़ी तादात में हो रहा है।हाँ गांव में मै कई बार जानवरो के अस्पताल के सामने से निकली थी वहां बस गाय भैंस ,बकरे बकरी आदि जानवरो को ही मैंने देखा था मगर यहां ये अनुभव बहुत नया सा लगा,यहां 98 प्रतिशत कुत्तो को देखा मैंने। इतनी नस्ले पहले हकीकत में कभी नहीं देखि थी और न ही सामना हुआ था इतनी तरह के मालिको से।आज मेरे मन ने इन पालतू कुत्तो को तीन हिस्सों में बाँट दिया था।चलिए उच्च प्रणाली से शुरू करते हैं,वो कुत्ते जो बड़ी कारो से उतरे एक चमचमाते और महंगे पट्टे गले में बंधे थे ,शरीर ऐसे चमक रहा था जैसे पोलिश कर दी हो।कुछ जो ज्यादा भारी थे बस वो ही अपने पैरो पर चल कर आरहे थे बाकि को नसीब थी वो महंगी गोद जिन्होंने कभी अपने बच्चों को गोद में उठा कर ही नहीं देखा,कब आया के हाथो पल कर उनके बच्चे बड़े हो गए होंगे।वो हाथ आज अपने कुत्तो को बड़े घमंड से गोद में उठाये सबकी तरफ ऐसे देखते नजर आये जैसे इनसे ज्यादा caring दुनिया में कोई है ही नहीं,वो ही क्यों उनके कुत्ते भी घमंड से गर्दन उठाये बाकि सबको देख रहे थे जैसे वो दुनिया के सबसे खुश नसीब थे और हों भी क्यों नहीं जो गोद उनके बच्चों को नसीब ना हुई वो उन्हें जो हो रही थी।वो लोग अपने कुत्तो से भी इंग्लिश में बात कर रहे थे,oh my shona baby, come on sit here... awww dont worry you will be fine, और बाकि लोगो की तरफ ऐसे ऊपर से निचे घूर रहे थे जैसे वो इस दुनिया के ही नहीं हों।
फिर देखा मैंने माध्यम प्रणाली के लोगो और उनके पालतू जानवरो को,जिनमे हम भी शामिल थे, आज हमारी रानी भी गोद की सवारी कर रही थी इसलिए नहीं की उन अमीर और दिखावटी गोद से हमने सीख लिया था बल्कि इसलिए क्योंकि ये एक जरुरत थी कमजोरी के चलते आज रानी अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो पा रही थी और ऐसे ही कई लोग मैंने देखे जो किसी मज़बूरी के चलते अपने कुत्तो को गोद में लिए थे।जो उनके साथ सिर्फ ऐसे पेश आरहे थे जैसे वो अपने घर के किसी सदस्य को डॉक्टर के पास लेकर आये हैं ।ना दुसरो की तरफ देखने का उनको समय था न इच्छा क्योंकि यहां दिखावे की कोई जगह नहीं थी,उनके शब्द और भाषा भी हमारी तरह सरल थी की जब प्यार ज्यादा आया तो कुत्ते को "aww मेरा बच्चा "बोल दिया थोड़ी मैनर्स से बात की।"इधर आओ,इधर बैठो,कुछ नहीं हुआ तुम्हे ,ठीक हो जाओगे,और प्यार से उनको पुचकार दिया,वहीँ जब थोडा गुस्सा आया तो डांट दिया"यही बैठो वरना पिटाई होगी" सब कुछ वैसा था जैसे एक साधारण परिवार में साधारण वाक्यात बोले जाते हैं।और इस श्रेणी के कुत्ते भी बहुत साधारण नजर आये,वो कभी जिद्दी लगे तो कभी नखरे बाज और कभी बिलकुल down to earth. वो अपनी श्रेणी के कुत्तो को या तो प्यार से देख रहे थे या घुर्रा रहे थे।थक कर निचे जमीन पर बैठने में उन्हें अमीर कुत्तो की तरह शर्म नहीं आरही थी।
वहीँ ये सब देखते देखते मेरे दिल में उन तीसरे श्रेणी के कुत्तो का ध्यान आया ,जो न महंगी कार जानते है ना महंगी गोद।हर दिन हर टुकड़े के लिए संघर्ष करते हैं।न उन्हें कोई बीमारी पकड़ती है न नजर लगती है।छोटी मोटी चोट लग भी जाये तो उनकी जीभ ही महंगी दवाई का काम कर देती है।न उन्हें इंग्लिश समझ आती है न ज्यादा हिंदी।मगर दुत्कार और प्यार के शब्दों का ज्ञान बखूबी होता है।बिना किसी की की मर्जी के किसी चीज़ को सूंघ भी ले तो डाट खा कर सहम जाते हैं ,और अगर कोई प्यार से कुछ खाने को देदे तो वो खुद को स्पेशल और खुशनसीब समझते हैं और उस इंसान के लिए जान तक देने को तैयार होते है।जिनकी वजह से उनका एक समय का संघर्ष बच गया।उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता की किसी ने उन्हें अपने आलीशान घर में पाला है या नहीं,कोई उन्हें बदले में कुछ देगा या नहीं रात होते ही वो उनके भी सैनिक बन जाते है जिन्होंने दिन ही में उन्हें दुत्कारा होगा।हर कोई उन्हें डांट कर उनका मालिक बन जाता है ,और फिर किसी पर भी भोंक कर वो खुद को आज़ाद समझते है ।
कितना फर्क था इन तीनो श्रेणी में।इस बेजुबान दुनिया में मैंने मुश्किल से 6 दिन में 6 घंटे बिताये मगर इन 6 घंटो में मैंने उनको काफी जाना।कुछ ऐसे थे जो बीमार होते हुए भी अपना सर ऊपर कर के अपने ताकतवर होने का सबूत दे रहे थे वहीँ कुछ छुपी सी नजर से देख कर अपने मासूम होने का एहसास करा रहे थे।खैर ख़ुशी हुई मुझे ये देख कर की हमारी इस दुनिया में इतना अपनापन आ गया की जानवर को इंसान की तरह प्यार कर रहे हैं उनके दुःख को समझ कर उनके दुःख में दुखी होकर उनका इलाज़ करा रहे है ,मगर मुझे दुःख हुआ ये सोच कर की जब कोई इंसान सड़क हादसे का शिकार हो जाता है तो यही दयालु लोग उसको अनदेखा क्यों कर देते है।तब कहाँ चली जाती है इनकी इंसानियत ।क्या आज इंसान की जिंदगी एक जानवर की जिंदगी से भी सस्ती हो गयी है।
बस यही कहना चाहूंगी की अगर इस बेज़ुबान दुनिया का दर्द आप समझ सकते हैं ,अगर इन बेजुबानो की जुबान आप बन सकते हैं तो इंसान की क्यों नहीं।
पहले इंसान जानवर के स्थान पर इंसान को पहले बचाया करता था आज इंसान सड़क पर मर जाता है और जानवर की चोट हमे रुला देती है।ये भेदभाव न तब सही था न आज।इसलिए एक अच्छा मालिक बनने से पहले एक इंसान बनिए।जीवन चाहे इंसान का हो या जानवर का ,महत्वपूर्ण होता है।
प्रीती राजपूत शर्मा
6 सितम्बर 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने