देहरादून to चण्डीगढ़

सुबह जब अलार्म की तीखी आवाज ने मुझे उठाया तो मैं हमेशा की तरह झुंझला उठी,मगर जब टाइम पर नजर गयी तो सुबह के साढ़े पांच बज चुके थे हालाँकि ये समय मेरी लाइफ में आधी रात के बराबर था मगर आज इस वक्त उठना मेरी अपनी जरुरत था मैंने आधा मुंह अपनी चादर से निकल कर स्वाति के बेड को देखा वो तो किसी और ही दुनिया में थी।मेरी 4 ,5 आवाज के बाद बड़े अलसाये मन से बोली ,हाँ यार उठ रही हूँ ,बस एक घण्टा था हमारे पास तैयार होने को आज मुझे जॉब छोड़े 1 महीना हो गया था या यूँ कहे की मस्ती करते हुए एक महीना हो गया था।आज हमने प्लान बनाया था चंडीगढ़ जाने का वो भी बाइक से।स्वाति मेरी रूम मेट और बेस्ट फ्रेंड,मानव मेरा मेल बेस्ट फ्रेंड ,विशाल मानव का फ्रेंड और एक मैं।हम चारो तैयार थे चंडीगढ़ के लिए मगर आज मौसम ने ऐसी करवट ली,सुबह से ही तेज बारिश के आसार।मगर हम उड़ते पंछियो पर किसका जोर था ,हम भी निकल पड़े अपना एक एक बैग कंधे पर टांग कर जिसमे सिर्फ मानव और मेरे पास सिर्फ एक रेन कोट था वो भी तिरपाल जैसा ,विशाल और स्वाति के पास वो भी नहीं था।थोड़ी दूर ही निकले थे की बारिश शुरू हो गयी जब तक मजा आया हम भीगते रहे मगर अब ठण्ड का एहसास होने लगा था।मैंने मानव के बार बार कहने पर वो तिरपाल ओढ़ ली थी मगर सफ़र का मजा जैसे ख़राब सा हो गया था ,मैं तैयार थी भीगने के लिए।काफिर दूर तक भीगने के बाद अब ठण्ड ने शरीर को जमा के रख दिया था अब जरुरत थी गरम गरम चाय की।मगर अभी आठ भी नहीं बजे थे इतनी सुबह हमे कोई दूकान कोई ढाबा खुला नहीं मिल सकता था ।मगर जैसे भगवान को भी तरस आ गया था हम पर एक ढाबा अभी खुला ही था की हम उनके first customer बन कर ठिठुरते हुए जा पहुँचे।चाय का गर्म गिलास भी कुछ असर नहीं कर रहा था ,हाथ गिलास का वजन भी नहीं संभाल पा रहे थे मन किया की इस चाय को पीने की बजाये बस हाथ ही सकते रहे।बारिश और तेज हो गयी थी अगर हम इंतजार करते रहते तो एक दिन में चंडीगढ़ घूम कर वापस आना मुमकिन नहीं हो सकता था ।हम फिर निकल पड़े उस बारिश में ,अब सफ़र का मजा सजा बनने लगा था।ठण्ड ने जैसे पुरे शरीर को जकड लिया था।न हमे रास्ता पता था ना दूरी बस इतना पता था की चंडीगढ़ जाना है।रस्ते में कितनी जगह ऐसी मिली जहा ऊपर से बह आई मिटटी ने सड़क को चिकना बना दिया था।कभी बाइक उसपर फिसलती तो कभी सड़को पर बहते पानी से धूल कर साफ़ हो जाती।एक जगह रुक कर कुछ फ़ोटो खीच कर इस सफ़र को यादगार बनाना चाहा तो देखा सबके फ़ोन भीग कर बंद हो चुके थे बस मेरा बिना कैमरा का सैमसंग k1900 चल रहा था काफी कोशिश के बाद विशाल का फ़ोन हमारी मस्ती का गवाह बना।कुछ फ़ोटो लेकर हम फिर निकल पड़े।हरियाणा पहुचते पहुचते बारिश बंद हो गयी थी और हम वहा की चिलकती धुप में तप कर ऐसे सूख गए थे जैसे भीगे ही नहीं ।हम बस बेलगाम भागे जा रहे थे।चलते चलते 10 बज गए थे जब हम चंडीगढ़ पहुचे।वहां की साफ़ चौड़ी सड़को ने दिल मोह लिया था।पहुँचते ही हमने सबसे पहले एक वाशरूम ढूंढा था ताकि नाहा कर कपडे बदल सके।उसके बाद हम चारो फिर से निकल पड़े थे इस अनजान शहर की गलिया नापने।सबसे पहले हम रॉक गार्डन पहुचे,वह की चित्रकारी ने हम सबको अपना दीवाना बना लिया था कमाल का दिमाग लगाया था उन पुराणी वेस्ट चीज़ों से मूर्तियों को बनाने में,भूलभुलैया जैसे रॉक गार्डन में घूमते घूमते हम थक चुके थे।भूख भी लग आई थी फिर गलती से ऐसे बेस्वाद होटल में पहुच गए जहा के खाने से न पेट भरा न स्वाद आया बस जेब अच्छे से खाली हुई,उसके बाद झील फिर रोज गार्डन पहुचे,वह पेड़ के नीचे लेट कर खूब मस्ती की,बहुत से आये कपल्स को टिप्पणियॉ की।बस अब शुरू हुआ हमारे सफ़र का यादगार सफ़र।हम सबके फ़ोन बंद हो चुके थे,बस मेरा सैमसंग 1900 अBही भी चल रहा था।हमारा पूरा सफ़र पहले से टाइम सहित तय था ,हम बिलकुल समय से निकले थे 4 बजे ताकि 8 बजे तक देहरादून पहुँच सके।मगर चंडीगढ़ के हाईवे ने हमे एक भूलभुलैया में धकेल दिया था सब रास्ते एक जैसे थे,वहां से निकलते निकलते 5 बज गए और इस बीच हम 2 बार अनहोनी से बचे।खैर चलते चलते हरियाणा पहुच गए थे वहां हमने नोटिस किया क़ी एक बाइक पर सवार तीन लड़के हमसे रेस करना चाहते थे,हम लोग काफी तेजी से बढ़ रहे थे मगर हमारा मकसद समय पर देहरादून पहुचना था शायद उन लड़को वो अल्हड़पन या चुनौती लगा।वो हमे बौर बार ललकार रहे थे की हम रेस करे मगर अनजान शहर में हम कोई भी खतरा मोल नहीं लेना चाहते थे इसलिए मैंने मानव से कहा की उनसे पीछे चलो उनको ये न लगे की हम रेस कर रहे हैं,खैर उनकी बेकार हरकते हमे परेशान कर रही थी मगर कुछ दूर चलकर उनका और हमारा रास्ता अलग हो गया।भूख लग रही थी सो रस्ते में मैकडौनाल्डस का बर्गर खाया और 2 बर्गर पैक करके हम निकल पड़े।अब थकान भी होने लगी थी मगर अब हम घर पहुचना चाहते थे।शाम ढलने लगी थी जब हम एक ढाबे पर पोंटा का रास्ता पूछने के लिए रुके।वहां रुकना हमारी सबसे बड़ी गलती होगी ये अंदाज हम में से किसी को नहीं था।जब हम वहां रुके तो अँधेरा होने लगा था बारिश के मौसम ने 7 बजे ही रात कर दी थी ,पुरे रस्ते गड्ढो और पानी से लबालब थे ,खैर जब हम वहां रुके तो बहुत कम लोग वहां पर थे ,हमारे पास खड़ा एक आदमी हमे घूर घूर कर देख रहा था,उसने 2 बार दोहराया ,कहा जाना है आपको"? मगर उसका पूछना और हमे ताकना हमे कुछ ठीक नहीं लगा ,देखते ही देखते चारो तरफ से लोग इकठा होने लगे,हम सबने एक और गलती की थी ऐसे सफ़र में हम सबने अपने सोने की चैन और अंगूठी पहनी थी ,शायद ध्यान ही नहीं दिया।मगर वो सब जैसे हम चारो को देख रहे थे मानव और मैं भांप गए थे की इनके इरादे सही नहीं हैं।स्वाति और विशाल अपने पैक बर्गर खाने में व्यस्त थे,शायद उन्होंने ध्यान नहीं दिया जब मानव ने कहा की चलते है यहाँ से।वो दोनों हमारे पीछे थे,हम एवेंजर बाइक पर थे और वो दोनों  पल्सर पर।हमारी बाइक के ठीक आगे एक पुराणी सी सीडी डाउन बाइक थी जिसपर 3 लड़के थे जो हमसे आगे पूरी सड़क पर इधर उधर बाइक घुमा  कर चल रहे थे ,मुझे लगा ये नशे में हैं और बाइक चला नहीं पा रहे ,मैंने मानव को आगे निकल जाने को कहा मगर लाख कोशिश के बाद भी उन्होंने हमे आगे निकलने का रास्ता नहीं दिया अब तक हम समझ चुके थे की बात नशे की नहीं कुछ और है,अब मानव ने बड़ी चालाकी से बाइक उनसे आगे निकाल दी थी,अब मुश्किल ये थी की स्वाति और विशाल उनके पीछे रह गए थे वो लोग अनजान थे,हमारे आगे निकल जाने से वो और हरकतों पर उतर आये थे ,कभी माचिस जल कर हम पर फेक रहे थे तो कभी बोतल से कुछ हम पर गिरा रहे थे,अब तक हम समझ चुके थे की मामला लूटपाट या छेड़खानी का है।मैंने चिल्ला कर स्वाति को बोला था,"जल्दी आओ ये लोग हमारे पीछे हैं।मगर जब वो लड़के स्वाति और विशाल को अनदेखा करके हमारे पीछे भागे तब लगा की वो सिर्फ हमारे ही पीछे लगे थे।हम भी फुल स्पीड से बढ़ रहे थे ,हमसे आगे 2 सरदार लड़के बाइक पर थे मैंने मानव को बोला की इनसे मदद मांगते है मगर इस से पहले हम कुछ कहते उनमे से एक चिल्लाया ,पकड़ो ये यही हैं।अब हमारे पास और तेज भागने के अलावा कोई रास्ता नहीं था,मगर पीछे देखा तो सीडी डाउन बाइक है या विशाल की पल्सर कुछ नहीं दिख रहा था।हमे लगा की वो उन दोनों को न पकड़ ले,उनको ऐसे छोड़ कर भी नहीं जा सकते थे ,साडी दुकाने बंद थी एक दूकान खुली थी मैंने फिर बोला रुक कर मदद मांगते हैं।मगर अब किसी पर भी भरोसा करना खतरे से खली नहीं था।मगर हिम्मत कर के हम पीछे लौटने लगे थे अपने साथियो को साथ लेने,तभी हमे विशाल की बाइक उन लड़को से आगे नजर आई,मानव ने चिल्ला कर कहा बीके धीरे मत होने देना ये लोग हमारे पीछे लगे है चलते रहो ,अब तक वो दोनों भी समझ चुके थे ,हम चारो बस भाग रहे थे क्योंकि अब हमारे पीछे 2 नहीं 4 बाइक थी कम से कम 12 लोग।हम अपने रस्ते से दूसरे रस्ते पर निकल गए थे क्योंकि कहीं भी मुड़ना खतरा हो सकता था।अब हमने विशाल और स्वाति को अपने से आगे चलने को कहा ताकि उनकी चिंता से हम फिर से मुसीबत में न फसे।लगभग 20 किलोमीटर तक उनलोगो ने हमारा पीछा किया मगर उनकी सीडी डाउन से हमारी अवेंजर और पल्सर जीत गयी थी।अब वो हमारे पीछे नहीं थे मगर हम पता नहीं कहना पहुचे थे घने जंगलो के बीच से होती हुई वो सूनसान सड़क पता नहीं कहा लेजा रही थी हमे।बारिश की वजह से पहाड़िया टूट कर सड़क पर आगयी थी,दूर दूर तक रौशनी नजर नहीं आरही थी।फिर याद आया की मेरा एक फ़ोन चल रहा था।उस से पता चला की हम रोमिंग में नहीं हैं इसका मतलब या तो हम उत्तरांचल की सीमा में थे या फिर हिमाचल।सड़को पर बस ट्रक खड़े थे एक तरफ पहाड़ी दूसरी तरफ खाई और मिटटी और मलबे ने सड़को को बंद और चिकना कर दिया था।हमे नहीं पता था की हम कब फिसल जाये और खाई में गिर जाये ।इस लग रहा था की हम अब जिन्दा वापस नहीं लौटेंगे।पेट्रोल खत्म होने लगा था,पीछे लौट कर जा नहीं सकते थे,आगे कहिजे रहे हैं ये पता नहीं था बस हम चलते जा रहे थे,फिर मानव ने मेरे फ़ोन से अपने एक दोस्त आशीष को फ़ोन लगाया ,हमारी किस्मत अछि थी की फ़ोन चल रहा था,हमने आशीष को सारी बात बता दी थी और ये भी की हमे नहीं पता की हम कहा जा रहे हैं ।हमे अभी तक कोई पुलिस चौकी भी नजर नहीं आई।चिक्की ने हमे दिलासा देते हुए कहा था की किसी भी तरह पता कओ तुम किस रस्ते पर हो और पोंटा साहिब के गुरद्वारे पर पहुचो मैं यहां से कुछ दोस्तों को लेकर पहुँचता हूँ।हम फिर से चलने लगे थे तभी हमे एक चेकपोSटी नजर आया मगर वहां कोई नहीं ठहुमने रुक कर देखने का रिस्क भी नहीं लिया।तभी बहुत दूर कुछ लाइट नजर आई जैसे कोई छोटा सा गांव होगा,मगर वह जाने का भी कोई रास्ता नहीं नजर नहीं आया,एक माँ दुर्गा का मंदिर दिखा जिसे देख कर लगा हम सुरक्षित हैं मगर वहां रात गुजरना भी खतरा हो सकता था।हम चल रहे थे ,कुछ दूरी पर एक ढाबा नजर आया मगर अब हम डर रहे थे जगह या फिर रास्ता पूछने से।मगर कोई और चारा नहीं था।मानव ने वह खड़े एक बुजुर्ग से पूछा की यहां पर कोई पुलिस चौकी है क्या,वहां एक तिब्बती लड़का हमारी बात सुन रहा था उसने वड़े प्यार से बोला क्या बात है तुम लोग परेशां हो?हमारे पास उसको सच बताने के सिवा कुछ चारा भी नहीं था।मानव ने चारो तरफ देखते हुए कहा हमारेर पीछे लड़के लगे थे,हमे पोंटा जाना था ये रास्ते कहाँ जाता है,वो लड़का समझदार था उसने धीरे से कहा भाई तुम लीग पीछे लौट जाओ ये रास्ता शिमला जाता है और अभी 600 किलोमीटर दूर है।ये रास्ता और भी ज्यादा खतरनाक है।इस पर और ऐसे ही लोग मिलेंगे।पुलिस चोकी नहीं हैं यहाँ।और इस वक्त सब नशे में धुत्त मिलेंगे कोई मदद नहीं करेगा।पेट्रोल पंप होगा यहाँ कोई?
हाँ थोडा आगे है,उसने हाथ से इशारा करते हुए कहा था,वह बैठे सब लोग हमे नशीली आँखों से घुर रहे थे,हमने वह ज्यादा देर रुकना सही नहीं समझा और आगे निकल गैर।पेट्रोल पंप पर भी सब हमे घूर रहे थे ,शायद हमारे आधुनिक कपडे उनको ऐसा करने पर मजबूर कर रहे थे।खैर हमने उनसे भी पुलिस का नंबर माँगा मगर वो भी हमे कुछ ठीक नहीं लगे और हम धन्यवाद् कह कर वहां से निकल गए अब आगे जाये या पीछे लौट जाये दोनों ही फैसले मुश्किल थे।मगर आशीष और बाकि के दोस्त पोंटा आरहे है देहरादून से 55 किलोमीटर दूर हमारे लिए इस बात ने हमे पीछे लौट जाने की सलाह दी।हम सब ने भगवान् का नाम लिया और पीछे लौट गए,40 किलो मीटर चल कर हम पोंटा पहुचे कुछ देर इंतज़ार किया की तभी हमे हमारे दोस्त नजर आये,वो 6 लोग थे और हम 4 ।उस दिन लगा की दोस्त बनाना कितना जरुरी होता है।खैर रात को 1 बजे हम देहरादून पहुचेअब रूम पर जाने का मतलब अपने चरित्र पर सवाल उठाने के बराबर था ,सब अपने अपने घर चले गए थे बस मानव हम दोनों के साथ था।अब कहा जाये कहाँ रुके कुछ समझ नहीं आ रहा था मानव हमे इतनी रात को अपने घर नहीं ले जा सकता था,और अपने रूम पर हम जा नहीं सकते थे।फिर स्वाति के ऑफिस की लड़की श्वेता का ध्यान आया जो अपने पति के साथ यही कही रहती थी।उस से बात की तो उसने हमे अपने घर का पता बताया वह पहुँच कर भी कहाँ सुकून मिल रहा था ।आज की ये फिल्मो में होने वाली घटना ने हमे झकझोर दिया था।मगर हमे काफी सरे सबक भी दिए थे।और इस तरह हमारा ये देहरादून से चंडीगढ़ या फिर ये कहूँ की चंडीगढ़ से देहरादून का सफ़र यादगार बन गया ।

प्रीति राजपूत शर्मा
14 जनवरी 2017

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने