तो क्या होता?

 तो क्या होता ,गर मैं तुम्हारी होती 

तुम भी सिर्फ मेरे होते क्या?

क्या सब कुछ दर किनार कर 

बस मेरे होकर रहते क्या

क्या होता गर मेरी सांस ,मेरा ,जिस्म ,मेरी रूह बस तुम्हारी होती

तो तुम भी किसी के होने से कतराते क्या

तो क्या होता गर मैं तुम्हारी होती 

क्या होता गर मैं तुम्हारा सुकून 

तुम्हारी राहत,

तुम्हारी गर्म रस्तों की ठंडक होती।

क्या होता गर जिंदगी में तुम्हारी सिर्फ मैं होती।

तो तुम भी बस मेरे होकर रहते क्या।

कभी दर्द ,तो कभी दवा दर्द की

कभी धूप तो कभी छाव धूप की

कभी बारिश की बूंदे ,तो कभी बून्द से अश्क आंखों में

कभी अंधेरी काली रात और कभी चमकती रोशनी रातो में

क्या होता गर सुबह मैं और शाम मैं

क्या होता गर शब्द मैं ,शब्द का अर्थ मैं।

बस मैं ही मैं होती ,तो क्या होता 

तो तुम तब पूरे होते क्या?

न होती किसी की चाहत पाने की 

न किसी को खो देने का डर

ना मिलने की खुशी किसी की 

न किसी को खोने का दर्द,

ना फिक्र न परवाह

न मंजिल ना कोई राह 

तुम ठहरे से दरिया होते क्या

'प्रीति' का प्रेम 

और प्रेम की परिभाषा

परिभाषा में तुम होते क्या

गर  मैं होती तुम्हारी 

तो क्या होता ? 

तुम भी मेरे होते क्या?

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने