क्या अलग सा देदूँ तुम्हे

 मैं कहाँ कोई पहली सी 

,ऐसे तुमको चाहूँ जो

मैं कहाँ कुछ अलग 

,तुम पर जान देदूँ जो

मेरे जैसी वो या मैं उनके जैसी 

वो थी मैं ,या मैं हूँ वैसी

तो क्या अलग सा बाकी,तुमको देदूँ जो।

लो भीड़ लगी ,कितनो की

लो एक बढ़ी ,मैं भी 

वही बात है, वही वादे

वही कसम है ,वही इरादे

वही प्यार,और वही लड़ाई

वही ज़िद है ,वही ज़ज़्बात

क्या अलग सा कह दूं वो

क्या अलग अब देदूँ जो

तुमको सब बीता सा लगता होगा

मेरा हाथ पहला सा लगता होगा 

क्या गर्माहट मेरी हथेली की 

वो भी लगती है पहली सी।

क्या मेरी आँखें खामोश है।

या उन में भी पहले जैसा शोर है

क्या मेरी छुअन

पहले सी चुभन 

या प्यारा सा एहसास है

सब  पहले जैसा है 

या तनिक भी खास है?

'प्रीति ' वही ,तकरार वही 

खुशी वही ,हर बार वही

और क्या बाकी खास ऐसा

शब्दो मे बया कर दूं जो

एसा क्या लाऊं अलग सा 

पहली बार देदूँ जो।


प्रीति 



टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने