चलती का नाम क्यों है ज़िन्दगी ?
क्या मेरी तरह सबके दिल मे ये सवाल है कि क्यों ? चलती का नाम क्यों है जिंदगी।
मुझे कुछ आधे अधूरे जवाब मिले, शायद जिंदगी का अनुभव ही हमे इस बात का जवाब दे सकता है ।कुछ जवाबो ने झकझोर दिया,कुछ जवाबो ने रुला दिया ,तो कुछ जवाबो ने होटों पर मुस्कान बिखेर दी।
जब कुछ अच्छे बीते पल याद आये तो ये चलती सी जिंदगी अच्छी लगी ,और वक्त रफ्तार पकड़ता नजर आया ।
और जब कुछ बुरे वक्त में आये तो यही वक्त जैसे धीमी चाल चलने लगा ,जैसे हर पल हर साल।
जब कुछ पा लिया हमने तो ये चलती सी जिंदगी रुकती सी लगी।और जब कुछ खो दिया तो रेत की तरह फिसलती सी।
जिन पलो में सुकून मिला तब लगा ये ये जिंदगी चलती सी नशि रुकती सी हो जाये और जब मन परेशान हुआ तो लगा चल ही क्यों रही है दौड़ क्यों नही जाती ये ज़िन्दगी।
बहुत कुछ पीछे छोडा हमने इस चलती सी जिंदगी के नाम पर।
पहले बचपन पीछे रह गया,
फिर दोस्त यार,स्कूल की मस्ती पीछे रह गयी
फिर कॉलेज का वो प्यार तो कभी कॉलेज के वो यार पीछे रह गए।
फिर देखते ही देखते ,अपने ही पीछे रह गए।घर माँ ,बाप,अपना गांव अपनी शोर करती गालियां ,अपने अल्हड़ दोस्त ,अपना सब पीछे रह गया ।
और देखते ही देखते ये जिंदगी रफ्ताए पकड़ गयी ।
एक के बाद एक आफिस ,पीछे रहते गए और हम आगे निकलते गए।कभी हंस कर अलविदा कहा तो कभी रो कर ।
और आज ?
आज फिर जैसे सब कुछ हाथ से छूट गया ,जैसे रेत सा फिसल गया ।और मैं बस देखती सी रह गयी।
वो दीवारे जो कभी बोलती थी ,वो आज जमीन पर थी ,
वो कुर्सियां जो कभी आगे कभी पीछे जाने को लड़ा करती थी ,वो बेबस सी उदास नजर आयी।
वो क्लास रूम जो कभी चीखा करते थे ,सन्नाटे में सिसकते नजर आए ।
वो आफिस जो कभी हम सबके लिए रॉब से भरा होता था ,वो आज गुमसुम सा नज़रे नीची किये नजर आया ।
वो पेंट्री जहां की कॉफी हमारी थकान मिटाती थी ,वो खुद आज थकी सी दिखी।
वो अटेंडेंस रजिस्टर जो हमारी सैलरी काट दिया करता था ,वो माफी मांगता सा नजर आया ।
वो सोफा जो हमारी हर बात का गवाह था ,वो मुँह मोड़े नाराज सा था।
वो सीढिया जो चहलकदमी से परेशान थी वो आज सुनसान नजर आयी
आज ये शोरगुल करती अकेडमी बिल्कुल गुमसुम आंसू बहाती सी नजर आयी ।
सर की उम्मीदों से भरी आंखे आज मुझे खाली सी नजर आयी
और हां वहां जाते ही चहचहाती सी मेरी आवाज मुझे खामोश दबी सी नजर आयी।
आज फिर लगा कि हां जिंदगी वाकई दौड़ रही है ।सब वाकई पीछे छूट रहा है।
और आज फिर समझ आया कि चलती का नाम क्यों है जिंदगी?
क्योंकि जो भी हो ,हम रोते रहें ,हस्ते रहे ,लेकिन ज़िन्दगी चलती ही रहती है।इसी उम्मीद से की शायद अंत ही आरम्भ हो।
प्रीति
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