ना मौसम लौटा ना वो

आज 20 साल बीत गए,सुहान के भीतर बसी वो खुशबू आज भी वैसे ही महक रही थी जैसे 20 साल पहले।जिंदगी की दौड़ दौड़ते दौड़ते इतने साल लग गए सुहान को इस गली तक पहुँचने में जहाँ बीस साल पहले वो घंटो खड़ा रहता था।आज भी चश्मे के पीछे की आँखे वही सब तलाश रही थी जो वो उस दिन बिना किसी को कहे यहां छोड़ गया था।मगर आज यहां वैसा कुछ ना था ,आज ये अक्टूबर का महीना उसे वो सुकून नहीं दे पा रहा था जो वो तब हर साल महसूस किया करता था।बीस सालों से वो आज तक हर अक्टूबर को उस खुशबू को महसूस करने की कोशिश करता रहा जो वो यहां छोड़ गया था ,मगर विदेशो में शायद हिन्दुस्तान के महीनो की वो खुशबू खो गयी थी।
आज सुहान उसी गली में खड़ा चारो तरफ देख रहा था ,सारे आस पास के घरो में उसे नए चेहरे दिखे हाँ जो चेहरे पुराने थे वो झुर्रियों से भरे थे,घरो का रंग बदल गया था ,लोग बदल गए थे ये कच्ची सड़के पक्की सड़को में बदल गयी थी,यहां तक की इन गलियों की हवा बदल गयी थी।उसकी नजर आज भी सामने उस दोमंजिला मकान पर टिकी थी ,उसी बालकनी पर जहां से उसे रोज वो खूबसूरत चेहरा दिखा करता था,जहां से दो बड़ी बड़ी आँखे छुप छुप कर सुहान को देखा करती थी और नजर टकराते ही शर्मा के वो नजरे झुक जाया करती थी।आज उस बालकनी की दीवारो से घास निकल आई थी।ऊपर कबूतरो ने जैसे अपना हक़ जमा लिया था,सब कुछ नीरस सा नजर आरहा था।और सुहान को उस घर में वही प्रतिबिंम्ब नजर आरहे थे जो 20 साल पहले ऊँचे सूट और पटियाली सलवार में इस घर में इधर उधर जाते दीखते थे।काजल से भरी आँखे ,लंबे डोरे लगाये जैसे आज भी कोहनी टिकाये उसी बालकनी पर खड़ी थी,लंबे काले बाल जैसे आज भी उसके गालों को छु रहे थे,उड़ता दुप्पट्टा जैसे आज भी हवाओ से बाते कर रहा था।गुलाब की पंखुड़ी जैसे होंठो पर जैसे वही शर्मो हया से भरी मुस्कान बिखर रही थी ,जैसे आज भी वो 5 फ़ीट 5 इंच की लंबी चौड़ी देह उसी बालकनी की बाउंड्री पर झुकी सुहान को देख रही थी।
अक्टूबर का ही तो महीना था जब पहली बार सुहान मिला था वाणी से।जब आती ठण्ड जाती गर्मी से मिलन कर रही थी ।दिन में होती धुप कई गर्मी और सुबह शाम होती ठंडक जैसे गवाह बन गए थे इस नयी शुरू होती प्रेम कहानी के।ये अक्टूबर का महीना गवाह था इन दो दिलो के मिलन का।
जब रोज वाणी की एक्टिवा मेन मार्किट के उस इंस्टिट्यूट के सामने रुका करती थी,और रोज 2 आँखे उसे घूरा करती थी,सुहान को कुछ ही दिन हुए थे छुट्टी आये जब वो अपने दोस्तों के साथ सामने जिम आया करता था।वो रोज उसे आते देखता,फिर एक दिन उसके पीछा करते करते उसकी गली तक पहुँच गया,सामने दोमंजिला सफ़ेद रंग के घर के सामने वो एक्टिवा रुकी थी जिस पर से उतरती वाणी ने सुहान की धड़कने तेज कर दी थी।बस अब तो ये रोज का सिलसिला हो गया था,और वाणी की नजरो से भी कहाँ छुप पाया था सुहान का वो दीवानपन ।बालकनी में रखे गमले और उसमे उगे उस पेड़ के पीछे छुपी आँखे निचे एक किराने की दूकान में जबरदस्ती सामान खरीदते उस नौजवान पर रोज टिकती।और धीरे धीरे वो नजर कब टकरा गयी पता ही नहीं चला।इंस्टिट्यूट वाणी का नाम पता करना कोई बड़ी बात नहीं थी ,और फिर ये मिलन हुआ फेसबुक पर जब सुहान ने वाणी को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी।बातो का सिलसिला बढ़ता गया।और फिर तय हुआ पास के ही रेस्टोरेंट में आमने सामने मिलने का।दोनों धड़कने तेज धड़क रही थी।एक दूसरे को इतने करीब से जो देखने वाली थी वो नजरे।सुहान समय से पहले ही वहां पहुँच गया था और बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था वाणी का।तभी सफ़ेद रंग की वो एक्टिवा वहां रुकी जो गोल्डन और रेड कलर के सूट में थी।हैलमेट से ढके चेहरे में से बस वो पंखुड़ी जैसे होठ ही दिखे थे जिस पर लाल रंग ली लिपस्टिक ने उस मुस्कान को और सुन्दर बना दिया था।जैसे ही उसके पैर जमीन पर टिके पटियाली सलवार के थोडा ऊपर हो जाने से पैरो में वो बारीक सी पाजेब ने अपनी चमक से सुहान का मन मोह लिया था,ऊपर से पैर में बंधा वो काला धागा जो उन गोरे चिट्टे पैरो को दूध जैसा बना रहा था।सुहान का दिल किया की बस अपने हाथ बिछा दूँ उन पैरो के निचे।उसकी धड़कने तब और बढ़ गयी जब उसके पैर खुद वाणी की तरफ बढ़ गए और इंतज़ार करने लगे की कब इस खूबसूरत चेहरे से ये हेलमेट उठेगा।
हेल्लो सुहान,हाउ आर यू? जैसे सुहान तैयार ही नहीं था इतनी जल्दी हुए approch के लिए।और उसकी नजर चेहरे के बजाये उसके आगे बढे हाथ पर टिकी थी।सुहान का दिल किया की ये नरम हाथ बस यूँ ही थामे रखूं।।
चले ........????वाणी की आवाज ने जैसे उसके अंतर्मन तक को हिला दिया था।रेस्टोरेंट के कार्नर सीट की चेयर को पीछे हटाते हुए राजघराने जैसे अंदाज में सुहान ने एक हाथ पीठ के पीछे और एक को आगे फैलाते हुए वाणी को बैठने का इशारा किया था।आमने सामने  बैठे वो दोनों दुनिया के सबसे सूंदर जोड़े में से एक लग रहे थे।तभी सुहान में वेटर को आँखों से कुछ इशारा किया और कुछ ही देर बाद वो वेटर जूस के 2 गिलास लेकर उपस्थित हो गया।सुहान में गिलास वाणी के सामने करते हुए कहा था, प्लीज मैम ......और वाणी ने मुस्कुराते हुए वो गिलास पकड़ लिया था ।आज वाणी को लग रहा था जैसे वो कोई सचमुच की महारानी है।दोनों की आँखों में पहले बात शुरू करने की झिझक नजर आरही थी।
फिर सुहान ने ही चुप्पी तोड़ी थी
You are looking beautifull vaani, you are the girl i always dreamt. मुझे यकीन ही नहीं हो रहा की मैं दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की के साथ बैठा हूँ।सच में तुम बहुत खूबसूरत हो। सुहान ने वाणी के चेहरे को देखते हुए कहा था।इस पर वाणी ने शर्मा कर नजरे झुका दी थी,उस वक्त उसके चेहरे पर बिखरी मुस्कान ने उसके गालो पर लाली बिखेर दी थी।सुहान का दिल किया की इस मुस्कुराते हुए चेहरे को हमेशा के लिए अपनी आँखों में कैद कर ले।तभी सुहान के टेबल के निचे से वाणी की तरफ आये हाथ ने उसे डरा दिया था।a beautiful rose for a beautiful lady. Wow क्या अंदाज़ था सुहान का ,वाणी ने अपने दोनों हाथो से अपने होठों को छुपाते हुए कहा था"मेरे लिए?थैंक्स। और झट से पकड़ लिया था वो सफ़ेद रंग जा गुलाब। अभी  वो इस प्यारे एहसास में खोई ही थी की सुहान ने फिर कह दिया तुम्हारी हंसी बहुत प्यारी है वाणी,ऊपर से ये लाल रंग की लिपस्टिक,और लाल रंग की ही हाथ में ये घडी,सच में जैसा सोचा था तुम उस से भी ज्यादा खूबसूरत हो।
बस बस इतना भी मत तारीफ करो मुझे शर्म आती है।वाणी ने दोनों हाथो से अपना चेहरा छुपाते हुए कहा था।तभी सुहान ने एक और गुलाबी रंग का गुलाब उसके चेहरे के आगे कर दिया।"तो फिर क़ुबूल कीजिये.।
वाणी आश्चर्य से सुहान की आँखों में झांक रही थी।
पता है वाणी ये टीशर्ट और शूज़ अभी खरीद कर पहने मैंने अपने एक दोस्त की दूकान से।कभी कभी आता हूँ ना तब तक मेरा भाई मेरी सारी चीज़े पहन कर पुराणी कर देता है ,मगर तुमसे मिलना था ना तो बस।।।।।।
वाणी को लगा जैसे दुनिया की सारी सचाई भरी थी सुहान की इन बातो में।
तभी फिर से पीले रंग का एक और गुलाब सुहान ने उसके आगे कर दिया।and one more rose for you.
ओह माय गॉड सुहान इतने सारे रोज़। आज वाणी को पता लगा की शायद इसी को डेट कहते है और ये उसके जीवन की पहली और सवसे खूबसूरत डेट थी।
इस बीच आर्डर की हुई कॉफी खत्म हो चुकी थी।दोनों की जिंदगी के कितने ही पन्ने खुले थे।
घर आने के बाद भी बस वही सब आँखों के सामने तैरता रहा।कितनी तहजीब ,कितनी सच्चाई भरी है सुहान में।मुझे ऐसे ही लड़के की तो चाह थी जो मेरा हर पल रंगीन बना दे।मेरा हर पल खास बना दे।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था,और सुहान के वापस लंदन जाने का वक्त भी आ गया।वो हज़ारो यादें समेट कर इस अक्टूबर के महीने की ठंडक और वाणी की खुशबू लेकर और हज़ारो वादे देकर लौट गया।अब हर साल सुहान अक्टूबर के महीने में ही हिन्दुस्तान आता एक या 2 महीने ये सुहान और वाणी का प्यार परवान चढ़ता और फिर दोनों एक साल एक दूसरे का इंतज़ार करते।समय निकलता गया,कसमे वादे बढ़ते गए और कम होती गयी मुलाकाते।2 साल बीत गए मगर सुहान अक्टूबर में नहीं आया,न उसका फ़ोन आया न कोइ ख़त।वाणी को लगने लगा था की परदेसी दिल बदल गया।सालों इंतज़ार के बाद वाणी अपने जीवन के प्रवाह को रोक न पाई और बेमन दुल्हन बनकर विदा हो गयी।
अचानक सुहान की तन्द्रा छत से चिल्लाते बच्चे ने तोड़ दी"अंकल जरा बॉल देना तो प्लीज।" सुहान ने अपनी नजर उस दोमंजिला घर से हटा कर अपने पैरो पर डाली और अपने चश्मो को ठीक करते हुए निचे झुक कर बॉल उठाई और उस बच्चे की तरफ उछाल दी।साड़ी यादें आंसू बनकर टपक रही थी सुहान की आँखो से।शायद वाणी की विदाई के बाद उसका परिवार वो घर छोड़ कर जा चूका था।आखिर कहाँ होगी वाणी,कैसी दिखती होगी यही सब सोच में डूबा सुहान उसी रेस्टोरेंट में पहुँच गया था। मगर शायद किस्मत में अभी और भी इत्तेफाक लिखे थे की आज उसी कार्नर सीट पर एक गुलाबी साडी में लिपटी प्यारी सी महिला जिसके बालो में सुनहरी सी चमक थी मुरझाये से मन से बैठी थी।सुहान ठिठक गया था 20 साल बाद वाणी को देखकर।अरे सर आप"एक अनजान आवाज ने सुहान के चेहरे पर उभरते भावो में दखल सा दिया था।
"सॉरी मैंने आपको पहचाना नहीं,अपने चश्मे को ठीक करते हुए सुहान ने कहा था।
सर मैं वही 10 साल का लड़का हूँ जो उस वक्त अपने पापा के साथ रिसेप्शन पर बैठा करता था।आज इतने सालो बाद आप मैडम से मिलने आये है।वो हर साल यहां अक्टूबर के इस महीने में हर रोज आती है।सुहान जैसे जड़ हो गया था उसने खुद को वाणी की नजरो से छुपा कर एक पेपर माँगा था उस लड़के से और जाकर वाणी को देने के लिए बोला था।
मैडम सुहान सर ने भेजा है।वो खोयी सी वाणी के आगे करते हुए उस लड़के ने बोला।
सुहान?कहाँ है सुहान?लगभग हड़बड़ाते हुए उठ खड़ी हुई थी वाणी।
वो वहां रिसेप्शन पर ,,,उसने हाथ से इशारा करते हुए कहा।
वाणी ने झट से पेपर पकड़ा और अपना सामान टेबल पर ही छोड़ कर रिसेप्शन की तरफ दौड़ी।मगर वहां कोई नहीं थी ,फिर भरी मन से उसने वो ख़त खोला"
डिअर वाणी ,आज 20 साल बाद तुम्हे देखा न तुम बदली ना तुम्हारी खूबसूरती,ये गुलाबी साडी बहुत सुन्दर लग रही थी तुम पर,दिल किया तुम्हारे सामने जाकर खड़ा हो जाऊ और बता पाऊं तुम्हे की 20 साल निकल गए इस अक्टूबर के इंतज़ार में मगर मैं नहीं आपया,माँ पापा की जिद के सामने मुझे किसी और से शादी करनी पड़ी ,और ये सब कहने की कभी हिम्मत न जुटा पाया।मगर दिल में तुम बसी थी हमेशा से बस इसीलिए शायद अपनी पत्नी को वो प्यार वो सम्मान ना दे पाया तुम्हारी जगह ना दे पाया ,और खुद को अलग कर दिया मैंने सबसे।ये 19 साल का एक एक दिन तुम्हारे लिए जिया है तुम्हारी यादो के सहारे।मगर तुम से मिलने की हिम्मत ना कर पाया और फिर पता लगा तुम अपने जीवन की नयी उड़ान भर चुकी हो।आज पता लगा की तुम आज भी हर अक्टूबर के महीने हर रोज यहां आती हो।मुझे नहीं पता तुम मुझे माफ़ कर पाओगी या नहीं।मगर मैं हिम्मत करूँगा कल इसी वक्त तुम्हारा सामना कर पाऊ।
तुम्हारा सुहान
वाणी की आँखे नम थी ।काश तुमने एक बार मुझसे पूछ लिया होता की मैं यहां कैसे और क्यों।काश मैं आज ही तुम्हे कह पाती की जैसे तुम अपनी पत्नी को मेरी जगह नहीं दे पाये वैसे मैं भी अपने पति को तुम्हारी जगह नहीं दे पाई ।ये इत्तेफाक है या भगवान का खेल की हम दोनों ने ये 20 साल अकेले गुजरे हैं।मगर अब नहीं सुहान कल मैं तुम्हे सब बता दूंगी की इस दिल में न कोई बस पाया न बस पायेगा।यहां आज भी तुम्हारी जगह वैसे ही खाली है।अब कभी तुम्हे नहीं जाने दूंगी।ये अक्टूबर का महीना एक बार फिर गवाह बनेगा हमारे मिलन का।
और आंसू पोछते हुए आने वाले कल के सुनहरे सपनो में खोयी वाणी घर की और निकल गयी।

प्रीती राजपूत शर्मा
29 अगस्त 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने