मैं ऐसी नहीं थी

आज फिर सोना खुद में ही चिढ कर रह गयी थी ,जब उसे अपनी ही कुछ बातो पर गुस्सा आया।
कितने दिन से एक ही वाक्य उसके ज़हन में घूम रहा था कि मैं ऐसी कभी ना थी।
पता नहीं कैसे ये आरोप ले बैठी ,जिंदगी भर इस आरोप का बोझ लेकर जीना होगा।
कहने को आज 8 साल बीत गए उस कड़वे अतीत को ,मगर आज भी टीस उतने ही दर्द से उठती है दिल में।
वो स्वार्थ था या प्यार आज तक तय ना हुआ।जब आज 8 साल बाद शेखर दिखा मॉल में ,तो अतीत ने खुद को चादर से बाहर धकेल दिया।कब से इस अतीत को भूलने की कोशिश कर रही थी सोना,मगर जब जब परी को गोद में उठाती,वो कड़वे पल दस्तक देने लगते।
वो शेखर के लिए प्यार ही तो था ,जिसने सोना को स्वार्थी बना दिया था। माना की समाज ने उस प्यार को कभी स्वीकृति नहीं दी।शेखर शादीशुदा जो था।मगर सोना तो दिल से उसकी हो गयी थी ,उसे पता था की उसके इस पवित्र प्यार को अवैध का नाम ही मिलेगा।मगर दिल पे किसका जोर था।
और फिर शेखर भी तो दिलो जान से चाहता था उसे।फिर क्या गलत था अगर वो उससे वो उम्मीद कर बैठी जो शेखर पूरी न कर पाया।क्या गलत था कि वो अपने प्यार के साथ किसी को बर्दास्त नहीं कर पाती थी।
कितनी बार कहा था शेखर ने की हम शादी कर लेते हैं।मंदिर में ही सही,मगर तुम्हे पूर्ण अधिकार मिल जायेंगे।मगर सोना चिढ जाती ,मैं जहा हूँ खुश हूँ,जितना मिलता है संतुष्ट हूँ,तुम्हारे प्यार में ये बदनामी भी मंजूर है ,मगर किसी का सिन्दूर नहीं बाँटूँगी,।हाँ ये सच है की तुमसे प्यार करना सामाजिक तौर पर गलत है,मगर क्या करू जब प्यार हुआ मुझे क्या मालूम था की तुम किसी और के हो।जब पता चला देर हो गयी थी।मगर अब जान बुझ कर किसी के अधिकार नहीं छीनुगी मैं।
ये समझदारी की बाते एक तरफ रह जाती थी जब बातो ही बातो में सोना को पता लगता की शेखर अपनी पत्नी के साथ कही गया है,या उसे कहीं घुमाने गया है।सब कुछ समझते हुए भी उसका दिल टूट जाता।लगता जैसे उसका कुछ छिन गया है।और हर बार फैसला कर लेती की अब दूर हो जाउंगी शेखर से।
मगर जब शेखर उसे एहसास कराता कि उसके बिना उसकी जिंदगी में कितना खाली पैन है तो वो पिघल कर लौट आती उसी कशमकश भरी जिंदगी में।
उम्मीद बढ़ने लगी थी,अधिकार भी बढ़ने लगे थे।समय भी पंख लगा कर उड़ रहा था ,जब भी सोना की शादी की बात घर में होती वो साफ़ कह देती की वो शादी नहीं करेगी क्योंकि वो किसी से प्यार करती है।जब घर वाले बोलते की उस से मिलवाओ उसी से शादी कर लो तब तो साफ़ कहती नहीं उस से भी शादी नहीं करुँगी।बस पूरी जिंदगी ऐसे ही जीना है।गगर वाले भी चिंतित हो उठे की आखिर कैसा प्यार है जिस से वो शादी नहीं करना चाहती।
ये प्यार दिन दो गुना रात चौगुनी बढ़ रही थी।शेखर की शादी को कुछ महीने बीत चुके थे ,इस बात जब वो छुट्टी आया बहुत मतभेद हुए शेखर और सोना में।हज़ारो शिकायते,हज़ारो बाते।वो उसे अपनी मजबूरियां समझाता की उसे सारे रिश्ते निभाने पड़ते है।दीक्षा को शॉपिंग भी करानी पड़ती है,उसे बाहर भी लेजाना पड़ता है,जब माँ कहती है बहु के साथ रहो तो रहना पड़ता है ,काश तुम कुछ और दिन पहले मिली होती तो आज हम इस प्यार को नाम दे पाते।
सब कुछ समझती थी सोना ,मगर उसका प्यार असुरक्षित होने लगा था।वो किसी भी तरह दीक्षा के अधिकार नहीं लेना चाहती थी ,उसकी ख़ुशी के आड़े नहीं आना चाहती थी मगर उसका प्यार हदे पार करने लगा था।अब दीक्षा उसके लिए नासूर बनने लगी थी।
सोना ने हर ख़ुशी दी थी शेखर को,हर तरह से उसकी हो चुकी थी,आत्मसमर्पण कर चुकी थी।तब उसे लगा की जो जरुरत पुरुष को स्त्री की तरफ लेकर जाती है वो जरुरत तो वो पूरी कर रही है फिर शेखर को और क्या चाहिए,वो उसका ध्यान रखती है हर तरह से ,उसे खुश रखती है,उसकी पसंद की चीज़े बनती है फिर बस सब कुछ उसका क्यों नहीं है।क्यों उसे सब बांटना पड़ता है।इस बार जब छुट्टी बिता कर वापस शेखर शहर जाने लगा तब सोना ने उस से कुछ माँगना चाहा।
"शेखर तुम मुझे बहुत प्यार करते हो न,क्या मैं तुमसे कुछ मांगू?बड़ी मासूमियत से कहा था सोना ने।
हाँ हाँ एक नहीं दो चीज़ मांगो।
नहीं बस एक ही चीज़ मांगनी है,क्या तुम दे पाओगे?
हाँ वादा रहा,मांग कर तो देखो
बिना सुने वादा मत करो,क्या पता तुम ना दे पाओ?
अरे तुम बोल कर तो देखो ,बड़े विश्वास से कहा था शेखर ने।
शेखर ,मैं चाहती हूँ की ये जो 2 दिन तुम्हारी छुट्टी के बचे है ,ये दो दिन तुम अपनी पत्नी को प्यार ना करो,क्योंकि जो प्यार मैंने तुम्हे दिया है मई नहीं चाहती उसके साथ किसी और के प्यार का एहसास भी मिक्स हो जाये।जब तक तुम अगली बार आओ तब तक बस मेरे प्यार का एहसास तुम्हारे दिल में रहे।
इस बात पर शेखर जोर से हंस दिया था। बस इतनी सी बात,ठीक है वादा रहा ,इन दो दिनों में मैं उसे टच भी नहीं करूँगा,खुश? सोना की आँखों में झांकते हुए शेखर ने कहा था।
देख लो समझ लो,अगर पूरा कर सकते हो तभी वादा करना ,वरना कोई बात नहीं।
अरे यार ,ये कोई इतनी बड़ी बात नहीं है,और जब तुमने मुझे इतना प्यार दिया है तो मुझे और क्या जरुरत है।
इस पर ख़ुशी से गले लग गयी थी सोना ,।
रोज बाते होती कभी प्यार भरी तो कभी वही शिकायतों वाली।तुम उसे उस दिन डिनर पर लेकर क्यों गए।तुमने मुझे बोला तुम घर में हो तुम उसे लेकर मूवी क्यों गए।और न जाने क्या क्या।और शेखर उसे समझाता की अगर मैं तुम्हे बता कर जाता तो तुम्हे दुःख होता।लड़ झगड़ कर बाते खत्म होती और पूरी रात सोना यही सोचती की क्या सच में शेखर ने उसकी ख़ुशी के लिए ये सब छुपाया या फिर वो मुझे अपनी और दीक्षा की खुशियों के बीच बाधा समझता है।क्या शेखर वही है जो दीखता है या एक और चेहरा ह उसका।सोचते सोचते रात बीत जाती और सुबह उसकी सूजी आखे उसे खुद पर अफ़सोस कराती की वो ऐसी कभी नहीं थी,क्यों वो सिर्फ अपनी खुशियो का सोचती है,क्या वो शेखर से ज्यादा उम्मीद करने लगी है,क्या शेखर खुद को बंधा हुआ महसूस करने लगा है की उसे चुप चुप कर या झूट बोल कर दीक्षा के साथ समय बिताना पड़ता है।और हर रोज वो फैसला करती की अब वो कोई उम्मीद नहीं रखेगी।
कितनी बार वो शेखर से पूछती की सच बताओ तुमने उस दिन किया वादा तोडा तो नहीं है।
और हर बार शेखर उसे विश्वास दिलाता ।
इस प्यार और तकरार के बीच एक रात तूफ़ान लेकर आई और उस तूफ़ान ने सब कुछ तबाह कर दिया।जब धीमे शब्दों में शेखर ने फ़ोन पर कहा"एक न्यूज़ दूँ तुम्हे सोना, दीक्षा प्रेग्नेंट है।
दोनों तरफ सन्नाटा था।सोना खुद में ही जड़ हो गयी थी।
शायद अपनी खुशियों में शेखर ये भी भूल गया की उसकी इस बात ने साफ़ कर दिया था की शेखर ने बड़ी बेरहमी से उस से किया वादा तोड़ दिया था।
बधाई हो।बस इतना निकल था सोना के मुह से।
उस रात ने उसकी दुनिया बदल दी थी।उस दिन इस रिश्ते में दरार आगयी थी।
दिन बीते ,महीने बीते और बाते कम होती गयी।सोना तैयार कर रही थी खुद को शेखर की जिंदगी से दूर लेजाने के लिए।पूरी कोशिश करती ये दिखने की कि उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।मगर उसका भीगा तकिया और सूजी आँखे हर सुबह उसकी रात की कहानी कहती।
फिर एक दिन फिर शेखर ने उसे बताया की पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया है।और उसकी प्रेगनेंसी की खबर की तरह उसके जन्म की खबर भी सबसे पहले वो सोना को ही दे रहा है।आज फिर अफ़सोस हुआ उसे खुद पर की कैसा प्यार था उसका जो आज तक उसके दिल की हालात नहीं समझा ।आज फिर वही शब्द निकले सोना के मुह से,बधाई हो शेखर।
कई दिन बीत गए सोना ने कोई बात नहीं की शेखर से,वो नहीं चाहती थी उसके मुह से कोई ऐसी बात निकल जाये जो शेखर की खुशिया फीकी कर दे
और एक दिन न जाने कितने दिनों की कितने महीनो की भड़ास निकली शेखर ने,
वो बस सोना को बोलता जा रहा था,और सोना बस सुनती जा रही थी।,"तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रहा न की मेरे घर बेटी आई है,अगर वो मर जाती तो तुम ख़ुशी ख़ुशी मेरी जिंदगी में रहती,और आज मेरी आराधना जिन्दा है तो तुम जा रही हो,तुमसे बर्दाश्त नहीं हो रही मेरी खुशिया,तो फिर जाओ मगर मैं अपनी बेटी को नहीं छोड़ सकता मैं उसे बहुत प्यार करूँगा ,समझी तुम।
और झुंझला कर फ़ोन रख दिया शेखर ने।
"मेरी आराधना"..सोना ने ये शब्द दोहराये थे।
वो जैसे अपना सब कुछ खो बैठी थी।जैसे उसकी साँसे भी उसके साथ नहीं रहना चाहती थी।इतना बड़ा आरोप,इतने कड़वे शब्द,शायद ये था शेखर का सच,ये था शेखर का खुल कर ना जी पाने का गुस्सा।आज भी सोना को खुद पर ही अफ़सोस हुआ।वही जिम्मेदार है,उसका बेइन्तहां प्यार जिम्मेदार है की उसे इतना कुछ सुनना पड़ा।
ये दीक्षा और ये आराधना ,,,मेरी आरधना ,,,नफरत है मुझे इन दोनों नामो से।और हमेशा करती रहूंगी।इन दोनों ने मिल कर मुझसे मेरा प्यार,मेरा शेखर,मेरा सब कुछ छीन लिया।आज इस आरधना की वजह से शेखर वो सब भूल बैठा जो मैंने उसके लिए खोया।खैर उसकी खुशिया उसे मुबारक हो।उसकी आराधना ने मेरा विश्वास प्यार से तोड़ दिया,शेखर को कोई अफ़सोस नहीं की उसने मुझसे किया वादा इस तरह तोड़ दिया।खैर ..... बस इतना बड़बड़ाई थी सोना।
मम्मा देखो न मेरी नयी फ्रॉक'''.... इन शव्दों ने सोना के अतीत के पन्नों को जैसे फाड़ कर रख दिया ।जब एक छोटी सी परी की ने सोना का हाथ पकड़ कर उसे झकझोर दिया।और सोना ने उसे उठा कर सीने से लगा लिया।और बस मुस्कुरा दी।
थैंक्स शेखर ,तुम्हारे उन कड़वे शब्दों ने मुझे भी हिम्मत दी अपनी जिंदगी में आगे बढ़ने की।वर्ना मैं बस ऐसे ही बदनाम रिश्ते को ढोती रहती ।उस दिन तुम्हारी दीक्षा और आराधना ने तुम्हे मेरा प्यार भुला दिया।और आज मेरी मेरे मयंक और परी ने तुम्हे मेरे दिल से निकाल फेंका।और मुझे गर्व है अपने पति के चुनाव पर।और अपनी बेटी परी की माँ होने पर। मन ही मन सोना खुद के शादी के फैसले पर खुश हो रही थी।मैं ऐसी कभी ना थी शेखर जैसा तुमने मुझे बना दिया था। और बस मुस्कुरा कर सोना ने परी को जोर से बाहों में जकड लिया था।

प्रीती राजपूत शर्मा
21 अगस्त 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने