उसने हमे saving करना सिखाया था

सेविंग करना आज के समय में जितना मुश्किल टास्क है उतना ही बड़ा टैलेंट। बहुत से लोगो से सामना होता है लाइफ में कुछ ऐसे जो सेविंग करने में एक्सपर्ट होते हैं और कुछ ऐसे जिन्हें सेविंग का मतलब ही नहीं पता।
मैं और स्वाति भी उन्ही में से एक थे ।सेविंग क्या होती है हमे पता तो था मगर कैसे होती है ये नहीं पता था।वो वक्त हमारी जिंदगी का सबसे अच्छा वक्त था ।देहरादून में रहते 2 या 3 साल हो चुके थे ।उस वक्त levis में अपना सिक्का चलता था ।मैं store manager और स्वाति floor manager के रूप में कार्य रत थे ।सुबह 10 बजे आना रात को 9,30 बजे वापस घर जाना ।उस बीच न जाने कितने नए चेहरों से मिलना ।जिंदगी धीरे धीरे बांध सी रही थी और हम पैसा कमाने ,अपना फ्यूचर बनाने में इतने बिजी हो गए थे की जिंदगी जी ही नहीं पा रहे थे ।हाँ एक या दो महीने में एक बार घर चले जाया करते थे।
पूरा महीने मेहनत से काम करते ,और फिर इंतज़ार होता मेहनत की कमाई का।जो month की 7 या 8 तारिख को मिला करती थी।सैलरी आने से पहले ही सारा हिसाब उँगलियों पे हो जाता।इतना room rent देना है ,इतना tiffin का देना है,ये यहाँ ,ये वहां ,राशन और बाकि सब ,और फिर जो बचा वो खर्च होता अपने सजने सवरने में।मेरा तो शौक था की हर सोमवार नए कपड़ो में ही ऑफिस जाना है ।month end होते होते सैलरी भी the end हो जाती थी।
खैर सब वैसा ही चल रहा था, फिर मुलाकात हुई उस इंसान से जिस ने हमे सिखाया की सेविंग means बचत क्या होती है कैसे होती है ,और क्यों जरुरी है?
Neha sharma एक शादी शुदा लड़की जिसने कुछ ही दिन पहले हमारा ऑफिस ज्वाइन किया था ,धीरे धीरे उसके अच्छे स्वाभाव ने हमें उस से जोड़ दिया था।हम साथ में खाना खाते,बाते करते और अपनी अपनी जिंदगी के अनुभव share करते थे।उसने हमे बताया की कैसे उसने अपनी जिंदगी में संघर्ष किया ,छोटी सी उम्र से आज तक वो संघर्ष करती रही है ।उसका पति नीरज एक सुलझा हुआ अच्छा इंसान ,जो हमारा दोस्त बन गया था ,वो रोज अपने ऑफिस के बाद नेहा को लेने आता और बाइक पर आगे एक छोटी सी नन्ही सी परी बैठी हुआ करती थी "पलक",नेहा और नीरज की 2 साल की बेटी ,जो पूरा दिन एक family के पास रहती थी जो उसको रखने के बदले नेहा से पैसे लिया करती थी ,पलक को देख कर हम सब का दिल पिघल जाता था ,छोटी सी बच्ची पूरा दिन माँ पापा की गोद और प्यार के लिए तरसती है, रात को जब आती तो नेहा से लिपट जाती।कुछ टाइम हमारे साथ बिताती हम उसे कभी टॉफ़ी कभी चॉकलेट दिया करते।देखते ही देखते हम सब एक परिवार बन गए थे।नेहा का व्यव्हार बहुत अच्छा था ,वो हमेशा मुझे बोलती थी ,प्रीति मैम आपका कुछ खाने  का मन हुआ करे तो बता दिया करो,और स्वाति और मैं बेझिझक उसे कह दिया करते थे और वो हमारे लिए वही सब बना के लाया करती थी।उसके अनुभव हमसे बहुत ज्यादा थे ,खट्टे भी और मीठे भी।वो हम दोनों से अक्सर पूछा करती थी की क्या हम अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा सेव करते हैं या फिर सब खर्च कर देते है।वो बहुत प्यार से बोला करती थी "प्रीति मैम आप सेविंग किया करो।बहुत जरूरी होती है ।हाथ में हमेशा पैसा होना चाहिए।"फिर वो अपने बहुत से उदहारण हमे दिया करती थी ।उसने और नीरज ने मिल कर एक घर खरीदा था।लोन लेकर।नेहा की सैलरी से घर की जरूरत पूरी होती थी और नीरज की पूरी सैलरी house installment में जाती ।वो हमे बोला करती थी की देखो मैं कितना स्ट्रगल करती हु ,मेरा भी दिल करता है की घर पर रहूँ ,अपनी बेटी के साथ पूरा दिन खेलूं, उसे बड़ा होते हुए देखूं, उसकी रोज बढ़ती शरारत देखूं।शाम को रोज अपने पति का इंतज़ार करूँ मगर मेरी लाइफ कितने compromises से भरी हुई है।मेरी मजबूरिया मेरी जरूरते मुझे ये भी हक़ नहीं देती की मैं एक दिन बीमार पड़ जाऊं, क्योंकि उस दिन जो पैसे मेरी सैलरी से कटेंगे वो मेरी पलक के महीने भर के दूध का खर्च होंगे।
ये सब सुनकर हमारा दिल जरूर भर आता था, मगर ये बाते हम सिर्फ सुन सकते थे ,उसमे छुपा असली दर्द असली मज़बूरी हमे कैसे समझ आ सकती थी।स्वाति का बस मजाक से भरा एक ही जवाब होता था"यार देख नेहा ,हमे अभी जीने दे,अभी  से ये सेविंग सेविंग मत रुला हमे,पूरी लाइफ सेविंग में ही जानी है।ये वक्त है खुद पे खर्च करने का, अपने लिए जीने का ।अभी से तेरी तरह सीरियस हो जाये क्या।तेरी तो शादी हो गयी, बच्चा भी है ।हमारा अभी खुछ नहीं ,हम किसके लिए करें सेविंग।,""फिर साथ में मैं भी बोल दिया करती थी "अरे कमा के खिलाने वाला पति नहीं मिलेगा क्या?हम क्यों अपने पैसे सेविंग में बर्बाद करें?"और जोर से हँस दिया करते थे ।मगर नेहा के चहरे पर हँसी की एक लकीर तक नहीं होती थी शायद इसलिए की या तो उसका नेचर वैसा था या फिर उसकी सेविंग की जरूरत ने उसे वो सब एहसास करा दिया था जो हम अभी एहसास नहीं कर सकते थे।खैर उसके बहुत कहने पर जिंदगी में पहली बार मैंने post office में एक R.D. की थी जिसकी किश्त 500 रूपये हर महीने जाया करती थी।
उस वक्त उसकी हर बात हंसी में टाल दिया करते थे।आज जब हम जिंदगी के उस पड़ाव में आये जहाँ future planning होती है ,हर जरुरत को पूरा करने के लिए
सेविंग पर नजर जाती है ।तब उसका एक एक शब्द याद आता है।
आज हम अपनी अपनी जिंदगी में बहुत आगे निकल गए हैं मगर कुछ रिश्ते ,कुछ यादें आज भी उतने ही खास हैं जितने तब हुआ करते थे।आज पलक काफी बड़ी हो गयी होगी पता नहीं उसे हम याद भी होंगे या नहीं।नेहा की जरूरते बढ़ गयी होंगी या सेविंग।स्वाति को सेविंग की अहमियत समझ आई होगी या नहीं ।मुझे नहीं पता बस इतना पता है की जैसे ये यादें मेरे दिल में ताज़ा है  उन सबके दिल में भी होंगी।
सेविंग हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा होती है।मगर सेविंग इतनी भी ना करो दोस्तों ,की छोटी छोटी खुशिया पीछे रह जाएँ ,क्योंकि हर चीज़ का एक समय होता है।भले भी स्वाति और मुझे सेविंग की अहमियत देर से समझ आई हो मगर हमे कोई अफ़सोस नहीं क्योंकि उस वक्त सेविंग को साइड रख के जिंदगी के जो पल हमने भरपूर जिए हैं वो अमोल है ।

प्रीति राजपूत शर्मा
1 अगस्त 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने