आर्मी वाला लव

मुझे ये प्यार बहुत छोटी सी उम्र में हो गया था।जब मैं मात्र 10 साल की थी।शायद तब मुझे ये भी नहीं पता था की आर्मी है क्या।क्योंकि ये प्यार मुझे किसी शक्श से नहीं उस हरी वर्दी से हुआ था जिसका जिक्र रात दिन उन दिनों हर जगह हो रहा था।बात उन दिनों की है जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध छिड़ गया था।मैं तब 10 साल की थी।कुछ दृश्य धुंधले से हो गये है ,कुछ बाते आज भी याद हैं मुझे।उन दिनों देर रात तक सब घर के बाहर सड़क पर खड़े रहते।जहाँ देखो उस लड़ाई की चर्चा रहती।सच कहूँ तो मुझे उस वक्त हिंदुस्तान और पाकिस्तान का फर्क भी ठीक से नहीं पता था मगर वही समय था जब से दिल में एक बात घर कर गयी थी की पाकिस्तान हमारा दुश्मन देश है,क्योंकि उसने हमारे देश के लोगो को मार दिया है।10 साल के छोटे से दिमाग में बहुत से सवाल थे मगर मैं किसी से कुछ नहीं पूछ पाई ।आज भी याद है मुझे जब मैंने मम्मी को कहते सुना था, की लड़ाई बहुत ज्यादा बढ़ गयी है जितने भी फौजी छुट्टी पर थे सब को बुला लिया गया है ।यहां तक की सुनने में आया है की 18 साल तक के लड़के जो सक्षम हैं उनको बस कुछ दिन की ट्रेनिंग के बाद फ़ौज में भर्ती किया जा रहा है।
चारो तरफ डर का सा माहोल था, क्योंकि हमारे पास वाले गांव की पूरी आबादी मुस्लिम थी।सब तैयार थे हिन्दू मुस्लिम में अपनी अपनी भूमिका निभाने के लिए।मैंने ताऊ जी को कहते सुना था जब वो ताई जी और मम्मी को बता रहे थे की उन्होंने कुछ मजबूत डंडे  स्टोर रूम में रख दिए हैं अगर कभी जरुरत पड़ी तो पीछे मत हटना।
उस वक्त मैं और मेरे ताऊ जी की बेटी अपना अलग ही गैंग तैयार कर रहे थे ,मेरा छोटा दिमाग भी तैयार था इस लड़ाई के लिए।आज सोचती हूँ तो हँसी आती है कैसे मैंने उसे बोला था की हम लोग बहुत छोटे हैं मगर यदि उन मुस्लिमो ने हमारे घर वालो को मारने की कोशिश की तो हम उनके पीछे जाकर उनके पैरो में काट लेंगे और इस तरह वो गिर जायेंगे ।आज सोच कर अजीब लगता है मगर उस वक्त ये प्लान मुझे बहुत बड़ा लगता था।
तब एक बात तो समझ आ गयी थी की जो लोग हरी वर्दी पहन कर लड़ते हैं उन्हें फौजी कहते है।शायद ये देशभक्ति का बुखार मुझे तभी से चढ़ा था ।
खैर कुछ साल गुजरे और मैं ये सपना लेकर बड़ी होने लगी की मुझे भी ये हरी वर्दी पहन कर बन्दूक हाथ में लेनी है।उस वक्त मैं 12 साल की थी जब किसी परेशानी के चलते हमारे गांव में आर्मी का कैंप लगा था।मेरी ख़ुशी के ठिकाने ना थे।जब मंजू ने मुझे बताया था की मंदिर के पास बहुत सारे फौजी आये हैं।
मैंने झट से बोला " चल न मिल कर आते हैं ।भर दोपहर का समय था जुलाई का महीना ।दिन के 2 बजे थे जब मैं स्कूल से आई कर खड़ी हुई थी।
मगर उसने जाने से मना कर दिया और जानते हो क्यों,,,ये भी एक हास्य से भरपूर है।उसने बड़ी मासूमियत से अपना हाथ मुझसे छुड़ाते हुए कहा था" ना ना मैं नहीं जाउंगी, उनके पास बन्दूक भी है अगर मार दी तो? हा हा हा ।एक पल के लिए मैं भी सहमत थी फिर मैंने उसे समझाया की वो बन्दूक सिर्फ पाकिस्तान के लोगो के लिए होती है।हमे कुछ नहीं बोलेंगे वो।
मगर मम्मी हमें जाने की इज़ाज़त कभी नहीं देती इसलिए हमे चोरी से जाना था ,तभी मुझे मम्मी की एक बात और याद आई जब वो कह रही थी की ये फौजी कैसे साल भर तक अपने परिवार से दूर रहते हैं।बस मैंने झट से एक बैग में अपने हिस्से के बिस्किट और नमकीन भर लिए थे ।उस वक्त मुझे बस एक ही बात समझ आ रही थी की जैसे मैं अपनी मम्मी के बिना नहीं रह पाती वैसे उनको भी अपनी मम्मी की याद आती होगी।मैं उनको अपने हिस्से के सारे बिस्किट देदेना चाहती थी।
आज भी याद है मुझे जब मैं रोज उनके लिए बिस्किट चुरा कर लेजाया करती थी और वो भी बहुत प्यार से बिना कुछ बोले लेलिया करते थे ।शायद वो समझ गये थे की ये मेरा आर्मी वाला लव है।वो कभी कभी आपस में हँसा करते थे उस वक्त मुझे समझ नहीं आया की वो हमारी इन मासूम हरकतों पर हंस जाते है ।मुझे लगता की मेरे ये बिस्किट उनको ख़ुशी देते हैं।फिर एक दिन अचानक पता चला की वो लोग जा रहे हैं ।मुझे याद है मैंने अपने स्कूल बैग से वो पेपर निकाला और नंगे पावँ दौड़ी थी।मगर जब मैं पहुची तो उनका वो हरे रंग का ट्रक हल्की गति पकड़ चूका था मगर मैंने हार नहीं मानी और दौड़ती रही मैं कुछ ही दुरी हर थी ,जब मैंने वो पेपर तोड़ मरोड़ कर इस उम्मीद से फेका की वो उसको पकड़ लेंगे।और ऐसा ही हुआ उनमे से एक ने उसको पकड़ लिया था ।अब ट्रक अपनी गति पकड़ चूका था और मैं हाथ हिला कर उनको अलविदा कह रही थी ,वो सब भी हाथ हिला रहे थे मैं तब तक उनको देखती रही जब तक वो आँखों से ओझल न हो गए ,मुझे यकीन था की वो भी मुझे याद रखेंगे।उस पेपर पर मैंने लिख दिया था की वो मेरे जीवन के हीरो हैं ,और बड़े होकर मैं भी ये वर्दी पहनूँगी।
देखते ही देखते मैंने अपने जीवन के 16 वे साल में कदम रखा जब मैं 10th क्लास में थी।अब भी जूनून वही था।मगर मेरे पापा कभी नहीं चाहते थे की मैं आर्मी ज्वाइन करूँ ।मैंने स्कूल में स्पोर्ट्स को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया था मैं पूरी तरह तैयार कर रही थी खुद को ,और एक दिन मेरा सपना टूट कर बिखर गया जब मेरे बैग से पापा को आर्मी का फॉर्म मिला ।उन्होंने पहली बार मुझपर चिल्लाते हुए उस फॉर्म के टुकड़े मेरे ऊपर फेकते हुए कहा था।लाइफ में कुछ भी करना मगर फ़ौज नहीं।मेरी कभी हिम्मत नहीं हुई की मैं कह पाउ की ये सपना मैंने बचपन से देखा है।मुझे आज तक समझ नहीं आया की उन्होंने मुझे क्यों रोका।
खैर शादी के बाद एक बार फिर से मेरा ये ख्वाब मुझ पर हावी हुआ ।मैंने सकुचाते हुए अपनी ये इच्छा जताई थी।मेरे ससुर जी जो खुद फौजी रह चुके थे उन्होंने मुझे सकारात्मक उत्तर दिया था की अगर मैं आर्मी ज्वाइन करना चाहती हूँ तो कर सकती हूँ, मगर सारे रूल्स एक बार देख लेना।मेरी ख़ुशी के ठिकाने नहीं थे मैंने अपने एक फौजी दोस्त से ये बात बताई थी ,और उस दिन एक बार फिर से मेरा ये सपना टूट गया था वो भी हमेशा के लिए ।जब उसने मुझे कहा था।,"सॉरी डिअर यू आर लेट"शादी के बाद तुम आर्मी ज्वाइन नहीं कर सकती हो।बस उस दिन ये सपना बिखर गया ।मगर आज भी वो हरी वर्दी को देख कर मेरा सपना सर उठाने लगता है।न वो भावनाये बदली न सपना।आज भी वो आर्मी वाला लव वैसे का वैसा ही है।और हमेशा रहेगा।जय हिन्द

प्रीती राजपूत शर्मा
15 अगस्त 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने