क्योंकि वो मेरा बच्चा नहीं था
चीकू के आजाने से जैसे घर में खुशियों की लहर दौड़ गयी थी।सब कुछ अच्छा अच्छा लगने लगा था ।आँखे खुलते ही उसे देखते और पूरा दिन उसके साथ खेल खेल कर दिन गुजरता।कोई उसे किसी नाम से बुलाता तो कोई किसी नाम से।सबकी आँखों का तारा जो बन गया था चीकू।सुबह उठते ही मेरे पास आजाता कुछ देर खेलता और खेलते खेलते सो जाता।मैं बस मंत्रमुग्ध सी उसे निहारती रहती।कभी वो सोते सोते हँसता और कभी रो देता।कभी डर कर मुझसे चिपक जाता।हज़ारो भाव उसके चेहरे पर आते और जाते।जैसे संसार भर का सुख उसके चेहरे पर निखर आता ।और मेरी आँखे उसे देखते देखते भर आती। सारी कमिया जो पूरी सी हो गयी थी उसके आजाने से।
बाजार जाएं और उसके लिए कुछ न आये ये कभी न होता।उसकी हरकते दिन पे दिन अनूठी होती जा रही थी।दिल उसपे हर समय वारा जाता।उसके आजाने से घर में ख़ुशी का माहोल रहता।कभी मम्मी बोलती चीकू को ये खिलाओ कभी डैडी उसे खूब प्यार करते,सब का लाडला जो था।इतने दिनों बाद घर खुशियों से भरा था।सबकी जान बन गया था चीकू।
घुटनो के बल चलना सीख गया था।पूरा दिन चीखता।जोर जोर से हँसने की किलकारियाँ अब बढ़ने लगी थी।कितनी भी थकन हो उसके हाथो का स्पर्श जब चेहरे पर महसूस होता तो साडी थकान जैसे गायब हो जाती।दिन जैसे बहुत छोटा सा लगने लगया था।
खाना बनाने जाती तो वही पीछे पीछे भाग कर आता और पावं पकड़ लेता।तब लगता जैसे दुनिया भर की ममता उस पर लूट दू।और सारा काम छोड़ कर मैं उसे गोद में उठा लेती बस प्यार से एक ही शब्द निकलता मुंह से "अअअअ मेरा बच्चा।" वो भी खुश होकर मेरे गले में लिपट जाता।
कितनी खुशियों से दिन निकल रहे थे।खाना खाने बैठते तो आकर पास खड़ा हो जाता और जब उसके मुह में खाने की चीज़ डालते तो ऐसे चटखारे लेता जैसे दुनिया भर का स्वाद उसी में था।
उस दिन भी तो मैंने बस रोटी का छोटा सा टुकड़ा उसको देदिया था और वो उसे मुंह में खेलते खेलते इधर उधर दौड़ रहा था।कुछ ही देर बाद फिर से आकर मेरे पैर पकड़ कर खड़ा हो गया था ,इस बार मैंने रायता उसके होठों से लगा दिया था।मुझे क्या पता थे ये प्यार मेरी गलती में शामिल हो जायगा।अचानक उसे थोडा धसका सा लगा और उसने कुछ देर पहले खाया सेरलैक्स उलट दिया था।सीमा ने उसको तुरंत उठाया और उसकी पीठ थपथपा दी थी।उस वक्त मैं खुद को गुन्हेगार की नजरो से देख रही थी।भूख जैसे मर सी गयी थी।ऊपर से मम्मी ने बोल दिया।।अरे अरे क्या खिलाया मामी ने बच्चे को।लो सारा निकाल दिया।उस वक्त मुझे लग रहा था की ये क्या हो गया मुझसे।सब अपना अपना कह रहे थे।"तुमने ज्यादा देदिया होगा,। तुम्हे रायता नहीं देना चाहिए था ।और पता नहीं क्या क्या।सीमा ने बोला था"अरे कोई बात नहीं भाभी हो जाता है।
हांहो तो जाता है मगर मैं कैसे समझाऊं खुद को की उसके उलटी करते ही जैसे तुम सब की नजर मुझ पर आकर टिकी उसने मुझे मेरी ही आँखों में गुन्हेगार बना दिया।मैं सहम सी गयी थी। ऐसा लग रहा था की उनको बोलू की मैंने तो थोडा सा दिया था ,सही तरीके से पता नहीं कैसे हो गया। मम्मी की मुझ पर टिकी नजर जैसे मुझे साफ़ कह रही थी की तुम्हे पता ही नहीं बच्चे को कैसे खिलाया जाता है।हालाँकि किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा मगर उस वक्त जो डर मेरे अंदर बैठ गया था ,वो शायद ना होता अगर वो बच्चा मेरा होता।या फिर मुझे वाकई पता होता की बच्चों को कैसे खिलाया जाता है।मेरा दिल रो दिया था।हाँ मुझे कैसे पता होगा मैं तो आज तक माँ बसन ही नहीं पाई ।उस दिन लग रहा था की अच्छा हुआ अकेले में ऐसा नहीं हुआ वर्ना न जाने कैसे कैसे सवाल सबके मन में करवटे लेते।मैं बस चुप चाप बैठी थी जो सवाल कोई मुझसे नहीं पूछ रहा था वो मैं खुद पूछ रही थी।मुझे उस दिन पहली बार ऐसा लगा की मुझे ऐसा न लगता अगर ये बच्चा मेरा होता।मेरी नजर गुनहगार सी न झुकी होती अगर ये बच्चा मेरा होता।कितना भी प्यार करती हूँ मैं अपनी ननद के बेटे से मगर आज मेरी ये छोटी सी गलती मेरे अंतर्मन को भिगो गयी थी।आज सारा प्यार एक तरफ़ा हो गया था।मैं मन ही मन संकल्प ले रही थी की आज के बाद चीकू को कुछ नहीं खिलाऊँगी।इसलिए नहीं की मुझसे गलती हुई बल्कि इसलिए की ये छोटी सी गलती मुझे मेरे माँ न बन पाने का ज्यादा एहसास करा रही थी।ये जो भी हुआ ये मेरा बुरा अनुभव नहीं मेरी गलती में शामिल हुआ क्योंकि वो मेरा बच्चा नहीं था।
प्रीती राजपूत शर्मा
15 अगस्त 2016
बाजार जाएं और उसके लिए कुछ न आये ये कभी न होता।उसकी हरकते दिन पे दिन अनूठी होती जा रही थी।दिल उसपे हर समय वारा जाता।उसके आजाने से घर में ख़ुशी का माहोल रहता।कभी मम्मी बोलती चीकू को ये खिलाओ कभी डैडी उसे खूब प्यार करते,सब का लाडला जो था।इतने दिनों बाद घर खुशियों से भरा था।सबकी जान बन गया था चीकू।
घुटनो के बल चलना सीख गया था।पूरा दिन चीखता।जोर जोर से हँसने की किलकारियाँ अब बढ़ने लगी थी।कितनी भी थकन हो उसके हाथो का स्पर्श जब चेहरे पर महसूस होता तो साडी थकान जैसे गायब हो जाती।दिन जैसे बहुत छोटा सा लगने लगया था।
खाना बनाने जाती तो वही पीछे पीछे भाग कर आता और पावं पकड़ लेता।तब लगता जैसे दुनिया भर की ममता उस पर लूट दू।और सारा काम छोड़ कर मैं उसे गोद में उठा लेती बस प्यार से एक ही शब्द निकलता मुंह से "अअअअ मेरा बच्चा।" वो भी खुश होकर मेरे गले में लिपट जाता।
कितनी खुशियों से दिन निकल रहे थे।खाना खाने बैठते तो आकर पास खड़ा हो जाता और जब उसके मुह में खाने की चीज़ डालते तो ऐसे चटखारे लेता जैसे दुनिया भर का स्वाद उसी में था।
उस दिन भी तो मैंने बस रोटी का छोटा सा टुकड़ा उसको देदिया था और वो उसे मुंह में खेलते खेलते इधर उधर दौड़ रहा था।कुछ ही देर बाद फिर से आकर मेरे पैर पकड़ कर खड़ा हो गया था ,इस बार मैंने रायता उसके होठों से लगा दिया था।मुझे क्या पता थे ये प्यार मेरी गलती में शामिल हो जायगा।अचानक उसे थोडा धसका सा लगा और उसने कुछ देर पहले खाया सेरलैक्स उलट दिया था।सीमा ने उसको तुरंत उठाया और उसकी पीठ थपथपा दी थी।उस वक्त मैं खुद को गुन्हेगार की नजरो से देख रही थी।भूख जैसे मर सी गयी थी।ऊपर से मम्मी ने बोल दिया।।अरे अरे क्या खिलाया मामी ने बच्चे को।लो सारा निकाल दिया।उस वक्त मुझे लग रहा था की ये क्या हो गया मुझसे।सब अपना अपना कह रहे थे।"तुमने ज्यादा देदिया होगा,। तुम्हे रायता नहीं देना चाहिए था ।और पता नहीं क्या क्या।सीमा ने बोला था"अरे कोई बात नहीं भाभी हो जाता है।
हांहो तो जाता है मगर मैं कैसे समझाऊं खुद को की उसके उलटी करते ही जैसे तुम सब की नजर मुझ पर आकर टिकी उसने मुझे मेरी ही आँखों में गुन्हेगार बना दिया।मैं सहम सी गयी थी। ऐसा लग रहा था की उनको बोलू की मैंने तो थोडा सा दिया था ,सही तरीके से पता नहीं कैसे हो गया। मम्मी की मुझ पर टिकी नजर जैसे मुझे साफ़ कह रही थी की तुम्हे पता ही नहीं बच्चे को कैसे खिलाया जाता है।हालाँकि किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा मगर उस वक्त जो डर मेरे अंदर बैठ गया था ,वो शायद ना होता अगर वो बच्चा मेरा होता।या फिर मुझे वाकई पता होता की बच्चों को कैसे खिलाया जाता है।मेरा दिल रो दिया था।हाँ मुझे कैसे पता होगा मैं तो आज तक माँ बसन ही नहीं पाई ।उस दिन लग रहा था की अच्छा हुआ अकेले में ऐसा नहीं हुआ वर्ना न जाने कैसे कैसे सवाल सबके मन में करवटे लेते।मैं बस चुप चाप बैठी थी जो सवाल कोई मुझसे नहीं पूछ रहा था वो मैं खुद पूछ रही थी।मुझे उस दिन पहली बार ऐसा लगा की मुझे ऐसा न लगता अगर ये बच्चा मेरा होता।मेरी नजर गुनहगार सी न झुकी होती अगर ये बच्चा मेरा होता।कितना भी प्यार करती हूँ मैं अपनी ननद के बेटे से मगर आज मेरी ये छोटी सी गलती मेरे अंतर्मन को भिगो गयी थी।आज सारा प्यार एक तरफ़ा हो गया था।मैं मन ही मन संकल्प ले रही थी की आज के बाद चीकू को कुछ नहीं खिलाऊँगी।इसलिए नहीं की मुझसे गलती हुई बल्कि इसलिए की ये छोटी सी गलती मुझे मेरे माँ न बन पाने का ज्यादा एहसास करा रही थी।ये जो भी हुआ ये मेरा बुरा अनुभव नहीं मेरी गलती में शामिल हुआ क्योंकि वो मेरा बच्चा नहीं था।
प्रीती राजपूत शर्मा
15 अगस्त 2016
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