शहादत और शोहरत

एक दिन मुझे शहादत और शोहरत का फर्क नजर आया ,
जहाँ शोहरत चमकती नजर आई ,वही शहादत सिर्फ एक शब्द नजर आया।।
ये बात तब की है जब मुझे वो अजीब सी ड्यूटी सौंपी गयी।
शहीदों की लंबी लिस्ट मेरे हाथों में दे दी गयी।।
और कहा जाओ हर घर में उनकी जान की कीमत दे आओ ।
मैं सहम गया जब बोला गया हर शहीद के घर होकर आओ।
आदेश था ना न हुई मुझसे,और मैं अचंभित हुआ जब वर्दी पहन के जाने को कहा मुझसे।।
एक अजीब सी सनसनाहट थी मुझमें,एक अजीबी सा डर बढ़ रहा था,
 कैसे जाऊंगा ये वर्दी पहन के उनके घरों में,कैसे क्या कहूँगा,ये सवाल उमड़ रहा था।
एक कदम आगे चलता तो 2 कदम पीछे रख रहा था।
 उसके परिवार को देखने की हिम्मत बटोर रहा था। उधेड़ बुन चल रही थी दिल में,मैं खुद में ही खो सा रहा था।।
जब लौटा होश में अपने तो खुद को एक गली में खड़े पाया था।
मैं उस शहीद के घर में खड़ा था जिसने अपने खून का एक एक कतरा बहाया था।।
 अपनी जान गवां कर न जाने कितनी जानो को बचाया था।।
मैं हिम्मत बटोर रहा था अंदर जब की,सबसे मिलने की और अपना डर छुपाने की।
 एक टुटा सा घर ,बड़ा सा आँगन ,सारी दास्ताँ सुना रहा था,घर का बेटा खो जाने की।।
मैंने चारो तरफ देखा सन्नाटा सा था उस घर में,एक बूढी सी बैठी थी फटे से कपड़ो में।
उसकी आँखे दरवाजे पर टिकी थी,और नजर शायद धुंधली सी हो चली थी।।
बड़े बड़े चश्मो से झांक रही थी वो,बिना कुछ बोले जैसे सौ सवाल पूछ रही थी वो।
लड़खड़ाते कदमो से उठ खड़ी हुई वो मुझे देख कर,शायद एक चमक सी दौड़ गयी उसमे वो वर्दी देख कर।।
 तीन पैरो से चल कर आई थी वो करीब मेरे,और बोली,आगये तुम कहाँ गए थे लाल मेरे।।
 मैं चुप था,कहता भी क्या बस समझ गया कि एक माँ के सामने खड़ा हूँ।।
 मैंने चारों तरफ नजर दौड़ाई,कुछ न दिखा बस तन्हाई नजर आई।
मैंने पुछा परिवार कहाँ है तुम्हारा,वो कुछ कहती इस से पहले दो लोगो से सामना हुआ मेरा।।
एक शायद भाई और दूसरी उसकी पत्नी थी।
 मैं सकुचा रहा था कीमत बताने से उस जवान की। फिर बोला मैं, मैं मुआवज़ा लेकर आया हूँ।
फिर वो सब देखा मैंने जो कभी सोचा न था।
भाई ने कहा कितने मिलेंगे,पत्नी बोली बस यही हैं या और भी मिलेंगे।
फिर देखा मैंने माँ को की वो भी कुछ बोले,सबने पूछे सवाल मुझसे तो वो भी मुह खोले।।
 भाई की आँखों में मुझे पैसो की चमक नजर आई,पत्नी की आँखों में सुरक्षित भविष्य की दमक नजर आई।
 झाँका जो माँ की आँखों में मैंने,तो बेटे के इंतज़ार की एक झलक नजर आई।
उसने लड़खड़ाते शब्दों में कहा,बस क्या इतनी सी कीमत है मेरे सपूत जवान की।
 जिसको सब बाँट लेंगे, बस इतनी सी औकात है उस शहीद की।।
क्या दोगे मुझे अगर मैं मांगू बेटा अपना, नहीं चाहिए मुझे कीमत उसकी जान की।।
मेरी आँखे नम थी मगर मैं आदेशो में बंधा खड़ा था। क्या कहूँ इस माँ को,मैं शब्दों के जाल में जकड़ा खड़ा था।
उस दिन समझ आई मुझे,औकात एक शहीद की। सोचा था शहीद जिन्दा होता है हमेशा,मगर यहां तो मौत नजर आई उसकी हर एक सांस की।।
 बस वो माँ ही थी जिसे आज भी अपने बेटे का इन्तजार था।
उसने देखा मुझे ऊपर से निचे तक और बोली।
 ऐसा ही दीखता था वो बेटा मेरा,तेरे जैसा लगता था। मैं वारी उसपे जाती थी जब वर्दी में वो सजता था। और उसकी आँखे बरस रही थी,जैसे सारी यादें बेटे की उसकी आँखों से टपक रही थी।
सिसकियाँ भर रही थी वो और मुझमे अपना बेटा तलाश रही थी।।
मेरा भी दिल भर आया उसकी ममता को देख कर, और साहस ही आंसू पोछे मैंने उसके पास बैठ कर। बोला मैं,क्या मैं नहीं बेटा तेरा,फिर क्यों है ये गम,फिर क्यों है भीग आँचल तेरा।।
 मुझपर लूटा दो माँ,अपना सारा दुलार,मैं भी उसी फ़ौज का जवान हूँ।
तेरा अपना बेटा नहीं तो क्या,तेरी ही जैसी एक माँ की मैं जान हूँ।।
उसने प्यार से अपना हाथ मेरे सर पर रखा,और खूब प्यार किया मुझे।
 और फिर खुद उठ कर अपने हाथों से एक थाल सजा कर लाई।
और फिर अपने हाथो से भर पेट खाना खिलाया मुझे,।
मैंने पाँव छुए उसके और आज्ञा मांगी जाने की।
उसने भारी मन से विदा किया,और देदी कसम वापस आने की।
ऐसे कई घरों में गया मैं, जहां आज भी अपने बेटों का इंतज़ार करती माँ नजर आई।
 बाकि सब भूल बैठे उस शहीद को, मगर माँ आज भी आंसू बहाती नजर आई।।
माँ की "प्रीती"आज भी जिन्दा किये थी अपने बेटे को,अपने दिल में।
बस हर जगह मुझे माँ ही मजबूर नजर आई।।
 बस हर जगह माँ ही लाचार नजर आई।
और इस तरह जीत गयी शोहरत,शहादत से, और बेकार मुझे उसकी क़ुरबानी नजर आई।
हाँ बेकार मुझे उसकी क़ुरबानी नजर आई।।
प्रीती राजपूत शर्मा

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने