खाली हाथ
आज चारो ओर खुशियों का माहोल था।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की खुशियों ने हर हिन्दू घर उल्लास से भर दिया था।जहाँ देखो यही चर्चा थी कि कैसे जन्माष्टमी माननी है।पुरे बाजार पीले रंग के कृष्णा के ,और लाल रंग के राधा के लहंगे चोली से सजे थे।फूल मालाये, बांसुरी,झूले और न जाने क्या क्या।हर मंदिर में झांकिया लगी थी।मेले से भी सुन्दर सजा था पूरा देहरादून।हर माँ अपने बच्चों में लिए कृष्ण के कपडे खरीदती नजर आ रही थी।फेसबुक खोला तो सब ने अपने कान्हा और राधा बने बच्चों की फ़ोटो लगाई हुई थी।सबके हाथों में उनके कान्हा सच मुच के कान्हा लग रहे थे। वो लग रही थी उनकी यशोदा माँ। मैंने और मेरे पति ने भी मिलकर कृष्ण की एक दुनिया बनाई थी।जो वो बचपन में बनाया करते थे।रेत के ऊपर घर,फिर उसे रंगोली से सजाया था ,क्या नहीं था कान्हा के उस आँगन में।पार्क में लगे खेल,गौशाला,पेड़ वाटिका,गईया,पशु पक्षी,सैनिक,मंदिर,घर सारी चीजे,मैंने पहली बार वो सब बनाया था।फिर उसमे डाला था कन्हैया जी का झूला जिस पर वो नए कपडे पहने झूल रहे थे।अपने हाथों से बनाई वो कान्हा की दुनिया देख कर दिल खुश हो रहा था.
मगर बार बार अपने उन खाली हाथों पर नजर जाती तो दिल भर आता।आज मेरे पास कुछ नहीं था फेसबुक पर सबको दिखाने के लिए,आज मेरे पास कोई कान्हा नहीं था अपनी profile photo बनाने के लिए।आज ये सजे बाजार भी खाली थे मेरे लिए। मैंने भी कहाँ पीछे कदम हटाये थे अपना प्यार लुटाने में।कुछ दिन पहले ही वृन्दावन से कान्हा के कपडे लाकर दिए थे अपनी नन्द के बेटे को।सुबह ही नहा धो कर बन गया था वो कान्हा।उसे देख अपनी कमी कुछ कम सी लगी।याद आया मुझे पिछले साल का वो जन्माष्टमी का दिन ।जब मैंने उसे वो कान्हा के कपडे लाकर दिए थे ।कितनी प्यारी लग रही थी वो ।समृद्धि नाम था उसका ।उसे देख कर अपनी कमी फिर पूरी सी लगी थी उस दिन।इस साल तो किसी को याद भी ना होगा वो सब ,जब मैंने दिल से वो सब खरीदा था उसके लिए।उस दिन भी मेरे हाथ खाली थे और आज एक साल बाद भी मेरे हाथ खाली हैं।खैर होगा कोई पिछले जन्म का हिसाब किताब जो इस जन्म में पूरा हो रहा था।बस यही सब दिल में लिए मैं जी जान से कान्हा और उनके घर को सजा रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी की कौन कहता है मेरे पास सबकी तरह कोई कान्हा नहीं हैं।मेरा कान्हा तो कब से झूला झूल रहा है।मैं और मेरे पति बस खाली निगाहो से एक दूसरे को कभी कभी देख रहे थे ।जैसे हम दोनों एक दूसरे से कह रहे थे की क्या हुआ अगर हम आज तक माता पिता नहीं बन पाये ये कान्हा तो हैं ना जिन्हें हम नहला रहे हैं कपडे पहना रहे हैं,झूला झूला रहे हैं ,फिर किस बात का अफ़सोस है।ये है तो हमारा कान्हा मगर मेरे पति की बार बार मुझसे टकराती नजर बहुत कुछ कह रही थी मुझसे ,मगर मेरे पास उनसे कहने के लिए कुछ भी तो नहीं था सिवाय इसके की क्या हुआ अगर आज हम दोनों के हाथ खाली हैं कभी तो हम भी अपने सचमुच के कान्हा को सजायेंगे।क्या नही है आज हमारे पास घर है ,गाड़ी है,धन है दौलत है ,परिवार है,और एक बार फिर मेरी नजर गयी अपने खाली हाथो पर ।फिर एहसास हुआ की इतना कुछ होकर भी क्या है मेरे पास।ये हाथ कल भी खाली थे आज भी खाली हैं।बस मैंने चुपचाप ये खाली हाथ अपने झूलते कान्हा के आगे फैला दिए थे और बस दिल से यही निकला था।बस बहुत सो लिए कृष्णा अब मेरी भी गोद में आजाओ।
प्रीति राजपूत शर्मा
25 अगस्त 2016
मगर बार बार अपने उन खाली हाथों पर नजर जाती तो दिल भर आता।आज मेरे पास कुछ नहीं था फेसबुक पर सबको दिखाने के लिए,आज मेरे पास कोई कान्हा नहीं था अपनी profile photo बनाने के लिए।आज ये सजे बाजार भी खाली थे मेरे लिए। मैंने भी कहाँ पीछे कदम हटाये थे अपना प्यार लुटाने में।कुछ दिन पहले ही वृन्दावन से कान्हा के कपडे लाकर दिए थे अपनी नन्द के बेटे को।सुबह ही नहा धो कर बन गया था वो कान्हा।उसे देख अपनी कमी कुछ कम सी लगी।याद आया मुझे पिछले साल का वो जन्माष्टमी का दिन ।जब मैंने उसे वो कान्हा के कपडे लाकर दिए थे ।कितनी प्यारी लग रही थी वो ।समृद्धि नाम था उसका ।उसे देख कर अपनी कमी फिर पूरी सी लगी थी उस दिन।इस साल तो किसी को याद भी ना होगा वो सब ,जब मैंने दिल से वो सब खरीदा था उसके लिए।उस दिन भी मेरे हाथ खाली थे और आज एक साल बाद भी मेरे हाथ खाली हैं।खैर होगा कोई पिछले जन्म का हिसाब किताब जो इस जन्म में पूरा हो रहा था।बस यही सब दिल में लिए मैं जी जान से कान्हा और उनके घर को सजा रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी की कौन कहता है मेरे पास सबकी तरह कोई कान्हा नहीं हैं।मेरा कान्हा तो कब से झूला झूल रहा है।मैं और मेरे पति बस खाली निगाहो से एक दूसरे को कभी कभी देख रहे थे ।जैसे हम दोनों एक दूसरे से कह रहे थे की क्या हुआ अगर हम आज तक माता पिता नहीं बन पाये ये कान्हा तो हैं ना जिन्हें हम नहला रहे हैं कपडे पहना रहे हैं,झूला झूला रहे हैं ,फिर किस बात का अफ़सोस है।ये है तो हमारा कान्हा मगर मेरे पति की बार बार मुझसे टकराती नजर बहुत कुछ कह रही थी मुझसे ,मगर मेरे पास उनसे कहने के लिए कुछ भी तो नहीं था सिवाय इसके की क्या हुआ अगर आज हम दोनों के हाथ खाली हैं कभी तो हम भी अपने सचमुच के कान्हा को सजायेंगे।क्या नही है आज हमारे पास घर है ,गाड़ी है,धन है दौलत है ,परिवार है,और एक बार फिर मेरी नजर गयी अपने खाली हाथो पर ।फिर एहसास हुआ की इतना कुछ होकर भी क्या है मेरे पास।ये हाथ कल भी खाली थे आज भी खाली हैं।बस मैंने चुपचाप ये खाली हाथ अपने झूलते कान्हा के आगे फैला दिए थे और बस दिल से यही निकला था।बस बहुत सो लिए कृष्णा अब मेरी भी गोद में आजाओ।
प्रीति राजपूत शर्मा
25 अगस्त 2016
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