मेरा हिसाब कर दो

आज नियति की आँखे उसके मुह से ज्यादा बोल रही थी।सरे सवाल होठों की जगह आँखों में उतर आये थे।2 साल हो गए नितीश अब बस मेरा हिसाब कर दो। और नितीश जैसे अपने में ही सिमटा सा बैठा था,कैसे कर दूँ नियति का हिसाब ,इस जन्म तो मुमकिन ना हो पायेगा।मन ही मन व्यथित हो उठा था नितीश।
मगर नियति जैसे आज तय कर के आई थी की आज सारे हिसाब पूरे कर के ही वापस जायेगी।
आज के बाद तुम मुझे बेवफा कह लेना,कट्टर कह लेना या जो ,बदचलन कह लेना ,गिरी हुई लड़की कह लेना या फिर से मन में आये तो फिर से कह देना की मैं एक रंडी हूँ।मगर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा नितीश।आज के बाद मैं मुड़ कर नहीं देखूंगी तुम्हारी तरफ ।
नियति का गला भर आया था।और कितना लेकर जायेगी इस रिश्ते से।इतना कुछ तो मिला इन 2 सालो में।
नितीश का प्यार गुस्से में जो बदलने लगा था ,आखिर गलती किस से हुई ।नितीश से जो नियति के प्यार में असुरक्षित महसूस करने लगा था या नियति से जो अपनी कुछ आदते न बदल पाई थी।लोगो से घुल मिल जाना आज उसकी जिंदगी में जहर घोल कर चला गया था।क्या करती वो बचपन से ईएसआई ही जिंदगी जी थी उसने।फिर करियर भी ऐसा चुना जिसमे किसी से बात करने में कोई झिझक ही नहीं थी।हंसने बोलने में कुछ सोचना ही न होता।एयर होस्टेस नियति की निजी जिंदगी उसकी प्रोफेशनल लाइफ से मेल ही नहीं खा रही थी।आखिर कब तक वो ये दोहरी जिंदगी जीती रहेगी।
लोगो से हंस कर बोलना ,उनकी सारी जरूरते खुश होकर पूरी करना उसकी जॉब का हिस्सा था।कभी कभी बिना मन के भी चेहरे पर हंसी राखनी पड़ती थी।मगर नितीश जैसे सब कुछ समझ कर भी अनजान बन रहा था।उसे नियति का खिलखिला कर हंस कर लोगो से बात करना कब खलने लगा था नियति को भनक तक न लगी।
राजीव उसकी फ्लाइट का एक रेगुलर पैसेंजर था।तो क्या हुआ अगर नियति से उसकी जान पहचान बढ़ गयी थी,तो क्या हुआ अगर वो राजीव को स्पेशल ट्रीटमेंट देने लगी थी।क्या हुआ की उसका चेहरा अपने रेगुलर पैसेंजर राजीव को देख कर खिल जाता था या ये कहे की उसे देख कर जो मुस्कराहट नियति के चेहरे पर आती थी वो असली होती थी।
और फिर अगर कुछ गलत होता तो नियति खुद ही क्यों ये सारी बाते नितीश से बांटती।
मगर नितीश उसकी बातो का कुछ और ही मतलब निकालने लगा था ।तनाव कब उसकी जुबान पर हावी होने लगा था न नियति को पता लगा न नितीश को।
ये कुछ गलत फहमिया इस रिश्ते को दीमक की तरह खाने लगी थी।नितीश साफ़ साफ़ कभी नहीं कह पाया की नियति का ये लोगो से घुलना मिलना उसे परेशां कर देता है।बस वो सुन कर चिढ सा जाया करता था उसका व्यवहार बदल सा जाया करता था।
मगर हद तो उस दिन हुई जब एअरपोर्ट के बहार नितीश ने राजीव से हँसते हुए बात करते हुए देखा ।और फिर नियति राजीव की कार में बैठ गयी।कार सीधे नियति के घर के बाहर आकर रुकी थी ,नीतिश कब से हैलमेट से मुह छुपाये उनकी कार का पीछा कर रहा था ,कार के शीशो पे रौशनी पद रही थी बस इतना दिख पा रहा था की नियति कार से उतारते हुए हंस कर कुछ कह रही थी राजीव से।
मगर आज राजीव की आँखों में खून उतार आया था ।आज सब बात साफ़ कर दूंगा आज नियति को बताना होगा की आखिर चल क्या रहा है उन दोनों के बीच।राजीव नियति को घर छोड़ कर वही से निकल गया था ।बड़े गुस्से में बाइक खड़ी करके पैर पटकते हुए बिना डोर बेल बजाये राजीव नियति के कमरे में दाखिल हो गया था।
नियति, .....नियति हेलमेट को बेड पर फेकते हुए नितीश चिल्लाया था।नियति बाथरूम से घबराकर बहार निकली थी।
अरे नितीश ,तुम, मगर तुमने तो कहा था कि
हाँ कहा था की मैं आज तुम्हे लेने नहीं आ पाउँगा,काम में फसा हुआ हूँ ।कहा था कि तुम खुद घर चली जाना,मगर ये नहीं कहा था की अपने उस सो कॉल्ड स्पेशल पैसेंजर के साथ उसकी कार में बैठ कर आना।नियति को बीच में ही टोकते हुए कहा था नितीश ने।
मतलब?तुम कहना क्या चाहते हो और इसका मतलब तुमने मेरा पीछा करने के लिए मुझसे झूट कहा की बिजी हो आ नहीं पाओगे ताकि मुझपे नजर रखो।
ये सब मुझे नहीं पता बस मुझे इतना बताओ की ये सब चल क्या रहा है साफ़ साफ़ बोलो तुम चाहती क्या हो।आज मैंने अपनी आँखों से देखा तुम किस तरह उस से बात कर रही थी।और मैं नहीं आया तो वो सही।या फिर उसके साथ आने का बहाना ढूंढ रही थी।
मुझे पहले ही समझ जाना चाहिए था की तुम जैसी लडकिया होती ही ऐसी हो।एक ना सही तो दूसरा सही।अरे क्या कमी छोड़ी मैंने जो तुम उसके साथ।। छी.... शर्म नहीं आई तुम्हे।और अगर ऐसा ही था तो मुझे एक बार बोल दिया होता मैं खुद हट जाता तुम्हारे रस्ते से।मगर मैं भी और वो भी।और कितनो की गोद में गिरोगी तुम नियति।कितना गिरोगी तुम।
जो मुह में आया नितीश बिना सोचे समझे बोलता गया।
और नियति बस चुपचाप ये सब सुनती रही,उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था की नितीश ये सब उसे बोल रहा है।
मगर ऐसा कुछ नहीं है नितीश ,मैं बहार कड़ी ऑटो का इंतज़ार कर रही थी तब राजीव उधर से निकल रहा था।वो जनता है मेरे तुम्हारे बारे में।उसने पूछा भी की तुम क्यों नहीं आये ,तब उसने कहा की वो ही मुझे घर तक छोड़ देगा।
भीगी आँखों और लड़खड़ाते शब्दों में नियति ने समझा ते हुए कहा था।
मगर नितीश तो जैसे महीनो का गुस्सा उगल रहा था।
अरे जाओ यार,मुझे पागल समझती हो क्या तुम।अँधा नहीं हूँ मैं, सब दीखता है मुझे। रंडी हो तुम रंडी,जिसे कोई न कोई चाहिए।आज के बाद मुझसे कोई मतलब नहीं रखना।तुम जाओ अपने उसी राजीव के पास ।शर्म आती है मुझे की मैंने तुम जैसी लड़की से प्यार किया ।जाओ गिरो जिसकी बाँहो में जाकर गिरना है।
नितीश उस वक्त ये भी भूल गया की ये सब कहने से पहले एक सबसे साधारण सा सवाल तो करता की आखिर राजीव उसका लगता कौन है ।
अब नियति जैसे जड़ हो चुकी थी।उसके मुंह से एक शब्द भी न फुटा था और नितीश हमेशा के लिए उसे अलविदा कह कर चला गया था।
पूरी रात नियति बस यही सोचती रही की ये वो नितीश नहीं हो सकता जिस से उसने प्यार किया था ।आज इतने गंदे शब्द सुन कर भी नियति ने एक आंसू ना बहाया था।रात यूँ ही सिमट गयी थी।पूरी रात एक एक साथ बिताया पल स्मृति बन तैरता रहा नियति की आँखो में।आँखे भरी रही मगर बरसी नहीं।नियति ये पूरा समुन्दर अपने अंदर समेट लेना चाहती थी।
तभी फ़ोन में एक नोटिफिकेशन अलर्ट बजा।नियति ने देखा तो ईमेल नोटिफिकेशन था।सुबह के 4 बजे थे।मेल नितीश की थी।
सॉरी नियति,मुझे कोई हक़ नहीं बनता था ये सब कहने का,ये तुम्हारी जिंदगी है तुम जैसे मर्जी जी सकती हो।हो सके तो मुझे माफ़ कर देना गुस्से में ये सब कह गया।अगर माफ़ कर दो तो रिप्लाई जरूर करना।
अब तो बहुत देर हो गयी नितीश।अब माफ़ी मैं नहीं भगवान तुम्हे देंगे।अगर अब कोई किसी को कुछ देगा तो वो तुम हो जो मुझे मेरा हिसाब दोगे, मेरे प्यार की कीमत दोगे।
मन ही मन चीख रही थी नियति।
देखते ही देखते सूरज की किरणे चारो तरफ फ़ैल गयी थी।जो आज सुकून नहीं गर्माहट दे रही थी।चिड़ियों की चहचाहट जैसे कानो में चुभ रही थी।सब कुछ वीरान सा था।बेमन से उठ कर तैयार हुई थी नियति।उसने पूरा मन बना दिया था कि ये रिश्ता खत्म होने से पहले अपना पूरा हिसाब मांगेगा।और कब वो नितीश के गेट तक पहुच गयी थी पता ही न चला।
नियति को सामने देख कर खिल उठा था नितीश।हाँ उसकी हालात ने उसको झकझोर सा जरूर दिया था ।आज न उस चेहरे पर चमक थी ,न उसके कपड़ो में वो अभिमान जो रोज हुआ करता था।सुखा मुरझाया सा चेहरा,भौहे तनी हुई ,आँखे नीरस सी मगर जैसे हज़ारो सवाल छुपे थे इन आँखों में।
नियति मुझे पता था तुम आओगी।ये कह कर बांहे फेला कर नियति पर झुक गया था नितीश ,मगर इस से पहले वो उसे अपनी बाँहो में भर पाता नियति का उनदोनो के बीच आया हाथ जैसे दीवार बन कर खड़ा हो गया था उसने नितीश को धकेल दिया था।मैं यहाँ तुम्हे प्यार करने नहीं अपना हिसाब करने आई हूँ नितीश।जैसे एक दृढ़ता थी नियति के शब्दों में ।जैसे पहले ही सारे शब्द नाप तोल कर जुबान पर रखे थे नियति ने।
आज मुझे मेरे हर सवाल का जवाब चाहिए।किसने हक़ दिया तुम्हे मुझ पर इस तरह ऊँगली उठाने का।
किसने हक़ दिया बिना कुछ जाने ,बिना कुछ समझे मुझ पर आरोप लगाने का।
किसने हक़ दिया किसी की बेटी को इस तरह जलील करने का।
रंडी कहा था न तुमने मुझे,तो ये रंडी आज तुमसे अपनी हर रात का हिसाब मांगने आई है,
जो सुकून मैंने तुम्हे दिया जो तुम्हे मजा लगा होगा उसका हिसाब मांगने आई है।,जानने आई है की इस रंडी के साथ मजा तो आया न तुम्हे इन 2 सालों में।
पूछने आई है की ऐसा क्या देदिया तुमने इस लड़की को जो 2 साल लगा दिए इसने किसी दूसरे की गोद में गिरने में।
आज मेरी हर kiss का हिसाब कर दो ,जो मैं तुम्हारी छोटी छोटी खुशियों में खुश होकर तुम्हे दिया करती थी,आज मेरे हर उस दिन का हिसाब कर दो जब मैं तुम्हे अपनी बाँहो में भर लिया करती थी जब भी तुम्हे मेरी जरुरत होती थी। मेरे तुम्हारे लिए बनाये हर उस खाने का हिसाब कर दो जो तुम्हे तुम्हारी माँ के हाथ के स्वाद की कमी पूरी करता था।
मेरी हर उस रात का हिसाब कर दो जो मैं तुम्हारे दुखी होने पर जाग कर निकाल दिया करती थी।
मेरे हर उस बलिदान का हिसाब कर दो जो मैंने तुम्हारी खुशियों के लिए किया था।मेरे इन 2 सालों का हिसाब कर दो साहब क्योंकि रंडियाँ मुफ़्त में कुछ नहीं करती।
और बिलख बिलख के रो पड़ी थी नियति ।जैसे वो समुन्दर सारी मर्यादा तोड़ कर बह निकला था।
मगर अभी ना जाने कितना कुछ बाकि था जो नियति कह देना चाहती थी।
अगर तुम किसी लड़की की इज़्ज़त नहीं कर सकते तो प्यार क्या करोगे।और हाँ अगर फिर कभी जवानी का गर्म खून जोर मारे तो याद करना इस रंडी को।and i hope u enjoyed with this prostitute .good bye mister nitish.
इतना कहकर नियति सीधे निकल गयी थी वहां से और नितीश आँखों में पानी भरे चुपचाप उसे जाते देखता रह गया था।इसी उम्मीद में की जैसे मेरा गुस्सा उतर गया था नियति का भी उतार जायगा और कल मैं पैर पकड़ कर उस से माफ़ी मांग लूंगा और कभी ये गलती नहीं दोहराऊंगा।इतना प्यार करूँगा नियति को की वो सब भूल जायेगी।
अगले दिन सुबह 6 बजे ही वो ढेरो सपने लेकर पहुँच गया था नियति के घर।कमरे में जाकर देखा तो सब वैसा ही था जैसा उसने सोचा था ।बस उसका बेड खाली था।तब लगा बाथरूम में होगी मगर नजर दौड़ाई तो उसका भी लॉक लगा था।नितीश का माथा ठनक गया था इतनी सुबह नियति कहाँ जा सकती है।उसने तुरंत नियति का फ़ोन लगाया मगर फ़ोन वहीं पर बज रहा था ।तकिया उठा कर देखा तो फ़ोन वहीं था ।उसके पास एक पेपर था
मुझे पता था तुम जरूर आओगे।मगर अब देर हो चुकी नितीश ।तुम मेरा हिसाव न कर पाये मगर मैंने तुम्हारी जिंदगी से अपनी जिंदगी का हिसाब कर लिया। good bye.
नितीश जैसे जड़ हो गया था सारे सपने बिखर गए थे।आज उसने अपनी जिंदगी का अनमोल तोहफा खो दिया था।

प्रीती राजपूत शर्मा
22 अगस्त 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने