तुम ठीक हो जाओगी

दिन निकल आया,फिर से वही दिन,जो हर रोज एक ही तरह से शुरू होता है।आज फिर ये दिन मुझे दर्द के साथ शुरू करना होगा,आज फिर ये शीशी थोड़ी हलकी हो जायगी और मेरा पेट थोडा और भारी।इसकी एक गोली आज फिर मेरे अंदर जायेगी।और आधे घंटे बाद मेरा दर्द कुछ कम हो जायेगा ,फिर एक दिखावटी मुस्कान चेहरे पर लिए मैं काम में लग जाउंगी।ऐसा ही तो होता है हर रोज,हर सुबह एक दर्द भरी टीस लेकर आती है !और मेरे चेहरे की सुबह की ताज़गी छीन लेती है,मेरी आँखों में फिर वही दर्द उभर आता है,सारी मुस्कान जैसे दर्द के तले दब जाती है।रजाई से थोडा सा मुँह बहार निकाल कर भावना पलंग के सरहाने दवाइयो से सजी टेबल को ताक रही थी।उसका दिन इन दवाइयो से शुरू होकर इन दवाइयो पर ही तो ढलता है।हर रोज का पेट में उठता ये दर्द उसे निस्तेज कर देता है।फिर उस शीशी से निकली एक गोली उसके अंदर जाती है और सबको लगता है बस अब तो ठीक है ,मगर क्या वो सच में एक गोली उसे ठीक कर देती थी या थोड़ी देर के लिए उसे भुला देती थी की वो बीमार है।
ये सब सोचते सोचते शीशी से गोली निकाल कर भावना ने बेमन से गटक ली थी।और उसी उम्मीद से अपने काम में जुत गयी थी की बस जल्दी ही मेरे चेहरे की मुस्कान लौट आएगी ।सास ससुर पति को नाश्ता देकर ,झाड़ू पोछा साफ़ सफाई करके,फिर से उसे निकलना था उसी राह पर जिसे वो हर रोज अकेले तय करती है।
इस बीच उस से कोई नहीं पूछेगा की उसका दर्द कैसा है,कम हुआ या और बढ़ गया।कब तक खुद कह कह कर बेशर्म बनती रहूँ मैं कि मुझे अच्छा महसूस नहीं हो रहा।अपनी सास की तरफ कनखियों से देखते हुए भावना ने सोचा था।
मग़र उसका वो दर्द उसकी आँखों में उतर आता है,उसका उतरा सा चेहरा सब बयां कर देता है।फिर खुद ही बोल उठी वो बहुत दर्द हो रहा है मम्मी जी।
"ह्म्म्म्म ,आज नाश्ते में आलू के पराठे बना देना"।
सन्न रह गयी थी भावना।क्या मेरे दर्द की तरह मेरी बाते भी कोई मायने नहीं रखते,कैसे अनसुना सा हो गये मेरे शब्द।दर्द बढ़ गया था भावना की आँखे नम हो गयी थी क्योंकि ये इस बार दर्द दिल में हुआ था।खैर नाश्ता पति को देने गयी तो लगा अब थोडा कम हो जायगी ये उठ ती टीस जब ये मुझसे पूछेंगे की कब जाना है डॉक्टर के पास तैयार हो जाना जल्दी चलेंगे,मगर कितनी देर इंतज़ार के बाद खुद ही बोल उठी भावना "डॉक्टर के पास जाना है आज फिर से अल्ट्रासाउंड कराना है,डॉक्टर ने बोला है लास्ट टाइम करा लो फिर फाइनल कर देती हूँ की ऑपरेशन करना है या दवाइयो से आराम हो जायगा।"
अच्छा ,चली जाना फिर टाइम से। " बड़ा सीधा सा जवाब था मयंक का।
उसकी आँखों में झांकते हुए एक और सवाल किया भावना ने"और तुम?"
मैं?यार मैं कैसे आऊंगा,बहुत काम है आज।तुम चली जाना ना।कोई दिक्कत होगी तो फ़ोन कर देना।"
भावना ने फिर से दर्द की टीस बढ़ती महसूस की।मगर इस बार भी वो पेट का दर्द नहीं दिल में उठा दर्द था।
चुपचाप भावना लग गयी थी अपना काम निपटाने।"मैंने तो दवा खाई थी ये दर्द ठीक क्यों नहीं हो रहा,क्या फर्क पड़ता है दर्द पेट का है या दिल का,मगर दवा तो दर्द की थी ना।आज फिर मुझे अकेले जाना है वही लंबा रास्ता तय करना है।आज फिर डॉक्टर पूछेगी की तुम्हारे घर से कोई साथ क्यों नहीं आया।
और आज मैं फिर मुस्कुरा कर कह दूंगी,मैं जल्दी में आगयी,मुझे लगा वो क्या करेंगे यहां।
आज फिर मुझे TVS टेस्ट कराना है।आज फिर ये कपडे उतार कर लेटना होगा उनलोगो के सामने।आज फिर मेरी झुकी नजर बार बार उस चेक अप रूम में खड़े लोगो पर बार बार जायेगी।कौन मुझे कहा से देख रहा है।मेरे अंतर अंग उन सबके सामने खुले होंगे।एकज फिर वही दर्द फिर से होगा जो बेरहमी से मुझे चेक करने से नहीं उनकी मुझ मेरे निर्वस्त्र शरीर पर पड़ती नजर से मेरे दिल में उठेगा।
फिर रिपोर्ट मिलेगी,फिर डॉक्टर कहेंगे "oh my god bhavna ur condition is going worst day by day."
और मैं हर बार की तरह ह्म्म्म कहकर टाल दूंगी।
ये सब सोचते सोचते कब काम खत्म हुआ ,कब भावना हॉस्पिटल के गेट पर पहुची उसे खुद एहसास ना हुआ।
1600 रूपये दे दीजिये मैडम।रिसेप्शन पर खड़ी उस गोरी सी लड़की ने जैसे नींद से जगा दिया था भावना को।
एक रिसिप्ट थमाते हुए उस लड़की ने कहा था लेफ्ट जाकर राईट में देखना डॉक्टर सिकंद होंगे वहां पर।वही करेंगे टेस्ट।
डॉक्टर सिकंद करेंगे तुम्हारा टेस्ट,खुद में ही दोहराया था भावना ने,ये लेडी डॉक्टर होंगे या जेंट्स?और उसके कदम उस और बढ़ गए थे।जैसे ही रूम में एंटर किया एक माध्यम उम्र का व्यक्ति वहां खड़ा था उसी के पास एक 19 या 20 साल की लड़की।उसने भावना को ऊपर से निचे तक देखते हुए कहा था ,सलवार उतार कर लेट जाइये मैडम सर टेस्ट करेंगे।
भावना सिमट गयी थी,आज तक हर जगह लेडी डॉक्टर ने मुझे देखा आज यहां पुरुष।उसने प्रश्नसूचक नजरो से उस लड़की की तरफ देखा और थोडा इशारा करते हुए कहा लेडी डॉक्टर नहीं है क्या?
नहीं मैडम यहाँ सर ही करते हैं ये टेस्ट।
हे भगवान और कितना लज्जित होना होगा,और कितनी झुकेंगी ये मेरी नजरे,और कितना दर्द उठेगा दिल में।भावना फिर से टूट गयी थी,मगर फिर भी उसे लेट जाना पड़ा निर्वस्त्र होकर।
फिर से वही रिपोर्ट मिली,फिर से वो भरी दबे पाँव से निराश होकर अपने स्कूटर पर पहुंची और निकल गयी घर की तरफ।
ये साथ होते तो मैं कह देती कही और लेकर चलो मैं नहीं लेटूंगी यहां अपने कपडे उतार कर।काश मैं जाकर कह पाऊँ मुझे अच्छा नहीं लगा उन्होंने मेरे अंगो को छुआ।काश मुझे ये दर्द हुआ ही ना होता।आँखे बरस गयी थी भावना की।कौन कहता है दवाई इंसान को ठीक कर देती है।मैं तो हर रोज बीमार होती हु ये गोली खा कर,हर दिन मेरा साहस टूट जाता है।हर दिन मेरी हिम्मत टूट जाती है।जब दवा का असर ख़त्म होते ही ये दर्द उभर आता है।डॉक्टर तो कहते है इस से दर्द ठीक होगा ,मगर मेरे दिल में उठता रोज का वो दर्द क्यों कम नहीं होता जो मेरे अपनों की अनदेखी से मुझे होता है।जो मेरे अकेले पन से मुझे होता है।
खैर अब फिर से बताउंगी घर जाकर की मेरी रिपोर्ट्स अभी भी वैसी ही हैं।कोई असर नहीं हुआ।मुझे ऑपरेशन कराना होगा ।
घर आ गया था सास ने वही तीखी आवाज में बोला।"हो गया चेक अप?क्या कहा डॉक्टर ने"।
कुछ नहीं परेशानी और बढ़ गयी है ऑपरेशन करा देना चाहिए,हर दिन हालात ख़राब होती जा रही है।मगर डॉक्टर 20 या 25 दिन की छुट्टी पर है उसके बाद ही करेगी।कही और से करा देते है मम्मी जी वरना हाथ से निकल जायगा ये सब।
" तो अब क्या नए डॉक्टर के पास जाओगी,वो अपना टेस्ट करने ,अपना खर्च बताएँगे ,इसी डॉक्टर का वेट कर लो 20 दिन में कही नहीं मरने वाली तुम।इसी से कराना।
दर्द थोडा और बढ़ गया था मगर इस बार भी पेट का दर्द नहीं दिल का बढ़ा था।एक एक दिन मेरी हालत बिगड़ रही है ये कह रही है इंतज़ार कर लो।कल जब डॉक्टर बोलेंगे की काश 15 दिन पहले आप इसका ऑपरेशन करा देते तो शायद हम तुम्हारे गर्भाशय को बचा पाते ,सॉरी अब तुम माँ नहीं बन पाओगी।
तब ये बड़ी आसानी से मुझे कह देंगे की तुम मायके चली जाओ।भावना के दिल में तूफ़ान उठ गया था।मेरी कीमत कभी आलू के पराठे तो कभी पैसे सस्ती हो जाती है।सोचते सोचते रात हो गयी थी।मयंक के पूछने पर सब कह सुनाया था भावना ने।उसने भी यही कहा जब मम्मी कह रही है तो कर लेते हैं 15 20 दिन इंतज़ार।कोई बात नहीं तुम ठीक हो जाओगी।
इस बार भावना मुस्कुरा दी थी।हर रोज की तरह भावना को फिर दवा के साथ अपने दिन का अंत करना होगा।मगर इस बार उसने अपने बैग से दवा निकली थी और खा कर हर रोज की तरह अपनी डायरी लिखी और मयंक को एक मुस्कान के साथ गुड नाईट बोल कर उसके माथे पर एक प्यारा किस किया और सो गयी।
आज फिर सुबह आई एक नया दर्द लेकर मगर इस बार दर्द मयंक के दिल में उठा था जब उसने भावना को उठाया मगर वो नहीं उठी,उसके मुह से निकले जहरीले झाग सब कुछ बयां कर रहे थे।डायरी का एक पन्ना डायरी से बाहर फड़फड़ा रहा था।
मयंक तुमने सही कहा था,मैं ठीक हो जाउंगी।अब मैं सुबह तक सच में ठीक हो जाउंगी। खुश रहना।i love you.
भावना की टूट टी भावनाओ ने उसे तोड़ दिया था।शायद दर्द इतना बढ़ गया था की वो दवाइया बेअसर हो गयी थी।
प्रीति राजपूत शर्मा
23 दिसंबर 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने