बस लौट आओ तुम

हाँ बहुत साल होगये तुम आये नहीं।ऐसी भी क्या गलती हो गयी थी मुझसे की तुम इस तरह साथ छोड़ कर चले गए। हमारे 15 साल के साथ को ऐसे अनदेखा कर के हमेशा के लिए लौट गए तुम।
एक बार कहा तो होता की मन भर गया तुम्हारा मुझसे मैं किसी भी तरह रोक देती अपने वो बदलाव ,मैं अपने शरीर में होते बदलाव को शायद न बदल पाती मगर तुम्हारे साथ रहने के लये मुझे अपने मन अपनी सोच में आये बदलाव को रोक देना मंजूर था।मगर तुम साथ तो होते ना।
मेरी इन 15 सालो के हर दिन का हिसाब था तुम्हारे पास,मेरी हर गलती का मेरी हर शैतानी झेली थी तुमने ,क्या उन सब हरकतों से परेशां होकर चले गए तुम।
तो कह देते की मैं इतनी शैतानी ना करूँ,कह देते की तुम्हे मेरा दिन भर खेलना कूदना ,शरारते करना ,सबको तंग करना पसंद नहीं था तो मैं न करती ,मगर ऐसे क्यों चले गए बिना कुछ कहे।क्या तुम नहीं जानते अब तुम नहीं हो तो कितनी बुरी नजरे मुझे देखती है? क्या तुम नहीं जानते कितनी उम्मीदें मुझे हर रोज अच्छा बन ने के लिए मजबूर करती हैं।सब कुछ बदल गया तुम्हारे जाने के बाद।मेरी पसंद बदल गयी,मेरा पहनावा बदल गया,मेरा जीने का तरीका बदल गया ,मेरी आदते बदल गयी,सब कुछ तुम्हारी वजह से हुआ,मेरे हँसने और रोने की वजह तक तुम बदल कर चले गए।
मुझे पता होता की तुम्हारी गैरमौजूदगी मुझे इस तरह कठपुतली बना देगी तो ना जाने देती तुमको।पता है बहुत याद आता है तुम्हारा साथ जब ना किसी का डर होता था ,ना किसी की चिंता ,बल्कि सब मेरी चिंता करते थे।अब मुझे सबकी चिंता करनी पड़ती है।बहुत याद आता है जब मेरी हर गलती सिर्फ तुम्हारी वजह से माफ़ हो जाती थी,आज मुझे मेरी हर गलती की कीमत चुकानी पड़ती है। मुझे बहुत याद आते हो तुम,तुम थे तो जैसे जिंदगी आसान थी अब सब कुछ मुश्किल सा हो गया है। तुम्हारे सामने सब मुझसे कितना प्यार करते थे ,तुम्हे पता है अब मुझे जरा सा प्यार पाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है,उसने भी कौन जाने कौनसा प्यार सच्चा और कौनसा दिखावा।तुम थे तो सब मुझे पसंद करते थे ,अब सबके लिए अच्छा बन ने के लिए मुझे रात दिन मेहनत करनी पड़ती है।फिर भी कौन जाने मई सिर्फ सामने अच्छी हूँ या पीठ पीछे भी।
याद है तुम्हे जब मेरे जरा से काम पर मुझे कितनी तारीफे मिला करती थी क्योंकि तुम थे मेरे साथ आज जरा सी तारीफ के लिए कान तरस जाते है ।क्या तुम्हे पता था तुम्हारे जाते ही मेरी जिंदगी बदल जायेगी।फिर क्यों चले गए तुम।
तुम थे तो हर बारिश अच्छी लगती थी,हर मौसम अच्छा लगता था ।आज ये बदलते मौसम सोचने पर मजबूर करते हैं की इनका लुत्फ़ उठाऊ या ऐसे ही निकल जब दूं इनको।
बहुत नाराज हु तुमसे मैं, पहले जिंदगी जीना सिखाया और फिर साथ छोड़ कर चले गए।क्यों तब मेरी हर गलती को छुपा दिया करते थे ,क्यों तब मेरी हर सजा कम करा दिया करते थे, तो आज क्यों नहीं आजाते मेरी हर तकलीफ को कम करने।।
काश तुम लौट आओ,तुम मेरे जीवन का सबसे अच्छा पड़ाव थे।तुम चले गए मगर तुम्हारी यादें जाती ही नहीं।काश तुम लौट आओ मेरे बचपन,तो एक बार फिर से जी लूँ उसी बेफिक्री से जैसे तुम्हारे साथ जिया करती थी।
मगर सुना है बचपन सिर्फ जाता है लौट कर कभी नहीं आता ,मगर "बस लौट आओ तुम" किसी भी रूप में।
प्रीति राजपूत शर्मा
21 दिसंबर 2016

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने