बस यही कमाया मैंने
बस यही कमाया मैंने कमाई कुछ भी हो सुकून देती है।जरूरी नही कमाई पैसा और धन दौलत ही हो।कमाई वो है जो हमारी मेहनत के बदले हमे वापिस मिलता है।प्यार,इज़्ज़त,सब कमाई ही तो है। मैंने 17 साल की उम्र से काम करना शुरू किया।12 वी के बाद घर पर ही ट्यूशन पढ़ाये।कहने को ट्यूशन मगर एक पूरा स्कूल सजता था मेरे घर पर।गांव की सबसे होशियार और ज्यादा नंबर लाने वाली लड़की मानी जाती थी,तो सब माता पिता अपने बच्चों को मेरे पास पढ़ने भेजते।पढाना मेरा शौक था ,व्यापार नही।इसलिए मेरे दरवाजे सबके लिए खुले थे,जो बदले में फीस दे जितनी दे सके उसके लिए भी ,जो बिल्कुल न दे सके उसके लिए भी।कहते हैं गुरु को दक्षिना का लालच होता है,हाँ बिल्कुल होता है,कभी कुछ जरूरत पूरी होने का लालच जो फीस के पैसे से पूरा होता है,कभी अपने पढाये बच्चों को अव्वल आते देखने का लालच।मेरे दोनो लालच पूरे हो रहे थे,मेरे पढाये बच्चे दिन प्रतिदिन होशियार होते जा रहे थे और उनके माता पिता के साथ साथ मेरी खुशी बढ़ती जा रही थी,फिर 19 साल की उम्र में देहरादून पढ़ाई करने मुझे आना पड़ा,अपने बच्चों को छोड़ कर मैं आगयी।आज वो छोटे छोटे बच्चे अपना कॉलेज पूरा कर चुके...