उसका जाना ही सही था
आज मुझे मेरा फैसला सही लग रहा था ...हाँ बहुत मुश्किल होता है ये तय करना कि हमारी जिन्दगी में कौन रहेगा और कौन जायेगा ...मै भी उसी मुश्किल दौर से गुजर रही थी ..इन पिछले 5 सालों में मैंने बहुत लोगो को खोया ...उस वक्त दिल टूटता था रोता था और लगता था की एसा क्यों हुआ और मै शुरू कर देती थी खुद को टटोलना कि शायद मुझमे ही कहीं कमी होगी ..दोस्ती के रिश्ते को हमेशा से मैंने सबसे उपर रखा है लेकिन एक एक कर के मेरे सारे दोस्त लाइफ से चले गये ..कही अलग होने का फैसला मेरा रहा तो कहीं उसका ...हाँ एक दोस्त है जो आज भी मेरी जिन्दगी में बाकी है मगर उस दोस्ती का भी नाम बदल गया ....दोस्त से जीवनसाथी बनने का फैसला हम दोनों का था और हम खुश भी है इस रिश्ते को नया नाम देकर और वो दोस्ती आज भी निकल कर सामने आजाती है जब हम दोनों को वाकई दोस्त की जरूरत महसूस होती है....
वो भी बहुत अच्छा दोस्त था मेरा ...शायद कोई ही एसा होगा जिसने हमारी दोस्ती को सराहा न हो ..यहाँ तक की लोग जलन महसूस करने लगे थे की हमारी लाइफ में कोई एसा दोस्त क्यों नहीं है ...मगर वो समय की मार थी किसी की नजर की अब वो दोस्ती भी धुंधली सी हो गयी थी ...जुलाई २०१४ में आये थे हम दोनों एक दुसरे की लाइफ में ...और एक साल होने से पहले ही बहुत उतार चढाव आये इस रिश्ते में ...हमारे रिश्ते की नाव हर रोज डगमगा रही थी मगर कभी मै अच्छी माझी साबित हुई तो कभी वो ...एक साल पूरा होने पर हमने सेलिब्रेट भी किया मगर उस वक्त तक हमारे रिश्ते में कई दरारे आ चुकी थी फिर भी हम लगे थे उसे बचाने में ...मगर कब तक गाँठ लगा लगा के माला बने जाती...आज 20 महीने हो गये हमारी दोस्ती को मगर पहले जैसा कुछ बाकी नहीं रहा ...हम दोनों इस रिश्ते को बहत दूर तक लेजाना चाहते थे और हमने कोशिश भी की अपने हर रिश्ते को उस दोस्ती में शामिल करने की और हम सफल भी हुए मगर जब फासले हमारे बीच आने ही लगे थे तो और कोई क्या करता ....
अब हर छोटी बात बड़ी होने लगी थी हर चीज़ चुभने लगी थी ...रिश्ता कमजोर होने लगा था ..गलतफहमियां पैर पसारने लगी थी ...हम लड़ रहे थे हालातो से इस रिश्ते को बनाये रखने के लिए ..मगर हर दिन उसे कमजोर करता जा रहा था ..बहस होती लड़ाई होती ..रोना गाना होता रोज का सिलसिला हो गया था एक दुसरे को कडवे शब्दों के बाण से भेदने का ....शायद अब ये रिश्ता छलनी हो चुका था ...
कभी मै उसका विश्वास कमजोर कर रही थी कभी वो मेरा विश्वास तोड़ रहा था ..बहुत सी गलतिय हुई दोनों से ...मेरी नजर में मै सही थी उसकी नजर में वो..कही न कही एक घुटन सी होने लगी थी मुझे ...लगने लगा था अपने खुद की जिन्दगी नहीं किसी और की जिन्दगी उधार जी रही हु मै ..खुद का कुछ लगता ही नहीं न ..न खुद का शौक खुद का रह गया था न खुद की इच्छा खुद की रह गयी थी ,...न जीना अपना रह गया था ना जीने का तरीका अपना रह गया था ...
मगर फिर भी साथ थे हम ...मगर कब तक अपनी आज़ादी खोऊ मै ये सवाल मेरे मन में रोज करवटे लेता ...बहुत लड़ाई भी हुई इस फ्रीडम को लेकर ...एक दिन उसने मुझे बताया की वो भी कितनी बार महसूस क्र चुका की वो अपनी आजादी खोने लगा ह इस रिश्ते में कही न कही ...हाँ दुख हुआ सुनकर मुझे क्युकी मै तो खुद एक आजादी पसंद लड़की हु फिर कैसे जाने अनजाने मैंने उसकी आजादी छीन ली होगी .....खैर ये रिश्ता अंतिम साँसे ले रहा था ...उसकी गलतिय उसके कडवे शब्द अब हद से गुजर गये थे या फिर मेरी सहन शक्ति से गुजर गये थे ...उस दिन कितनी छोटी सी बात पर उसने उस इंसान को इतना भला बुरा कह दिया था जिसके लिए मै दुनिया दुनिया छोड़ चुकी थी और मुद्दा ये भी न होता अगर ये पहली बार हुआ होता ...वो गलती माफ़ भी हो जाती अगर ये गलतियों का सिलसिला रोज का न हुआ होता ..
शायद हम दोनों थकने लगे थे ...
और फिर अचानक उसने मुझे उस सुबह अपनी कुछ बातो से छलनी कर दिया ..जब उसने मुझे अपनी निजी जिन्दगी के कुछ पल बता डाले ...आखिर क्या चाहता था वो ...क्या मुझे कदम कदम पर चोट पहुचना उसके शौक में शामिल हो गया था ...मैंने हाथ जोड़ के विनती की थी उस से एक दिन की अपनी निजी जिन्दगी के वो पल मुझे न बताये जिनसे न मेरा कोई लेना देना है न मै रखना चाहती हु...फिर क्या मुझे चोट पहुचना जरुरी सा हो गया था ..आज मै पूरी तरह फैसला कर चुकी थी की बस बहुत हुआ गाँधी वाद ...बहुत लिए गम बहुत दी ख़ुशी अब और महान नहीं बन सकती थी और ये आज की चोट उसकी आखिरी चोट थी ...मै टूटी नहीं थी बल्कि और मजबूत हो गयी थी आज ...जिन्दगी का सार समझ आगया था ...और मैंने जाने का फैसला कर लिया था ..और मै खुश थी आज अपने लिए कोई फैसला लेकर ..और खुश थी की आज के बाद उसे मौका नहीं मिलेगा मुझे तोड़ने का ....और मै कोशिश करती रहूंगी की ये उसकी आखिरी दी हुई चोट कभी मेरी कमजोरी न बने बल्कि जब जब मै उस चोट को याद करू खुद को और मजबूत पाऊ..और ये वडा रहा इस जख्म को कभी भरने भी नहीं दूंगी मै क्युकी ये जख्म मुझे हमेशा याद दिलाएगा की हमेशा दुसरो के लिए जीना का अंजाम क्या होता है ...हाँ ये मुश्किल दौर है मेरे लिए मगर मुझे यकीन है मै जल्दी ही इस पर विजय पा लुंगी ....और लौट जाउंगी अपनी शर्तो से भरी जिन्दगी में ...
आज मुझे लग रहा है की "उसका जाना ही सही था "
आज मुझे मेरा फैसला सही लग रहा था ...हाँ बहुत मुश्किल होता है ये तय करना कि हमारी जिन्दगी में कौन रहेगा और कौन जायेगा ...मै भी उसी मुश्किल दौर से गुजर रही थी ..इन पिछले 5 सालों में मैंने बहुत लोगो को खोया ...उस वक्त दिल टूटता था रोता था और लगता था की एसा क्यों हुआ और मै शुरू कर देती थी खुद को टटोलना कि शायद मुझमे ही कहीं कमी होगी ..दोस्ती के रिश्ते को हमेशा से मैंने सबसे उपर रखा है लेकिन एक एक कर के मेरे सारे दोस्त लाइफ से चले गये ..कही अलग होने का फैसला मेरा रहा तो कहीं उसका ...हाँ एक दोस्त है जो आज भी मेरी जिन्दगी में बाकी है मगर उस दोस्ती का भी नाम बदल गया ....दोस्त से जीवनसाथी बनने का फैसला हम दोनों का था और हम खुश भी है इस रिश्ते को नया नाम देकर और वो दोस्ती आज भी निकल कर सामने आजाती है जब हम दोनों को वाकई दोस्त की जरूरत महसूस होती है....
वो भी बहुत अच्छा दोस्त था मेरा ...शायद कोई ही एसा होगा जिसने हमारी दोस्ती को सराहा न हो ..यहाँ तक की लोग जलन महसूस करने लगे थे की हमारी लाइफ में कोई एसा दोस्त क्यों नहीं है ...मगर वो समय की मार थी किसी की नजर की अब वो दोस्ती भी धुंधली सी हो गयी थी ...जुलाई २०१४ में आये थे हम दोनों एक दुसरे की लाइफ में ...और एक साल होने से पहले ही बहुत उतार चढाव आये इस रिश्ते में ...हमारे रिश्ते की नाव हर रोज डगमगा रही थी मगर कभी मै अच्छी माझी साबित हुई तो कभी वो ...एक साल पूरा होने पर हमने सेलिब्रेट भी किया मगर उस वक्त तक हमारे रिश्ते में कई दरारे आ चुकी थी फिर भी हम लगे थे उसे बचाने में ...मगर कब तक गाँठ लगा लगा के माला बने जाती...आज 20 महीने हो गये हमारी दोस्ती को मगर पहले जैसा कुछ बाकी नहीं रहा ...हम दोनों इस रिश्ते को बहत दूर तक लेजाना चाहते थे और हमने कोशिश भी की अपने हर रिश्ते को उस दोस्ती में शामिल करने की और हम सफल भी हुए मगर जब फासले हमारे बीच आने ही लगे थे तो और कोई क्या करता ....
अब हर छोटी बात बड़ी होने लगी थी हर चीज़ चुभने लगी थी ...रिश्ता कमजोर होने लगा था ..गलतफहमियां पैर पसारने लगी थी ...हम लड़ रहे थे हालातो से इस रिश्ते को बनाये रखने के लिए ..मगर हर दिन उसे कमजोर करता जा रहा था ..बहस होती लड़ाई होती ..रोना गाना होता रोज का सिलसिला हो गया था एक दुसरे को कडवे शब्दों के बाण से भेदने का ....शायद अब ये रिश्ता छलनी हो चुका था ...
कभी मै उसका विश्वास कमजोर कर रही थी कभी वो मेरा विश्वास तोड़ रहा था ..बहुत सी गलतिय हुई दोनों से ...मेरी नजर में मै सही थी उसकी नजर में वो..कही न कही एक घुटन सी होने लगी थी मुझे ...लगने लगा था अपने खुद की जिन्दगी नहीं किसी और की जिन्दगी उधार जी रही हु मै ..खुद का कुछ लगता ही नहीं न ..न खुद का शौक खुद का रह गया था न खुद की इच्छा खुद की रह गयी थी ,...न जीना अपना रह गया था ना जीने का तरीका अपना रह गया था ...
मगर फिर भी साथ थे हम ...मगर कब तक अपनी आज़ादी खोऊ मै ये सवाल मेरे मन में रोज करवटे लेता ...बहुत लड़ाई भी हुई इस फ्रीडम को लेकर ...एक दिन उसने मुझे बताया की वो भी कितनी बार महसूस क्र चुका की वो अपनी आजादी खोने लगा ह इस रिश्ते में कही न कही ...हाँ दुख हुआ सुनकर मुझे क्युकी मै तो खुद एक आजादी पसंद लड़की हु फिर कैसे जाने अनजाने मैंने उसकी आजादी छीन ली होगी .....खैर ये रिश्ता अंतिम साँसे ले रहा था ...उसकी गलतिय उसके कडवे शब्द अब हद से गुजर गये थे या फिर मेरी सहन शक्ति से गुजर गये थे ...उस दिन कितनी छोटी सी बात पर उसने उस इंसान को इतना भला बुरा कह दिया था जिसके लिए मै दुनिया दुनिया छोड़ चुकी थी और मुद्दा ये भी न होता अगर ये पहली बार हुआ होता ...वो गलती माफ़ भी हो जाती अगर ये गलतियों का सिलसिला रोज का न हुआ होता ..
शायद हम दोनों थकने लगे थे ...
और फिर अचानक उसने मुझे उस सुबह अपनी कुछ बातो से छलनी कर दिया ..जब उसने मुझे अपनी निजी जिन्दगी के कुछ पल बता डाले ...आखिर क्या चाहता था वो ...क्या मुझे कदम कदम पर चोट पहुचना उसके शौक में शामिल हो गया था ...मैंने हाथ जोड़ के विनती की थी उस से एक दिन की अपनी निजी जिन्दगी के वो पल मुझे न बताये जिनसे न मेरा कोई लेना देना है न मै रखना चाहती हु...फिर क्या मुझे चोट पहुचना जरुरी सा हो गया था ..आज मै पूरी तरह फैसला कर चुकी थी की बस बहुत हुआ गाँधी वाद ...बहुत लिए गम बहुत दी ख़ुशी अब और महान नहीं बन सकती थी और ये आज की चोट उसकी आखिरी चोट थी ...मै टूटी नहीं थी बल्कि और मजबूत हो गयी थी आज ...जिन्दगी का सार समझ आगया था ...और मैंने जाने का फैसला कर लिया था ..और मै खुश थी आज अपने लिए कोई फैसला लेकर ..और खुश थी की आज के बाद उसे मौका नहीं मिलेगा मुझे तोड़ने का ....और मै कोशिश करती रहूंगी की ये उसकी आखिरी दी हुई चोट कभी मेरी कमजोरी न बने बल्कि जब जब मै उस चोट को याद करू खुद को और मजबूत पाऊ..और ये वडा रहा इस जख्म को कभी भरने भी नहीं दूंगी मै क्युकी ये जख्म मुझे हमेशा याद दिलाएगा की हमेशा दुसरो के लिए जीना का अंजाम क्या होता है ...हाँ ये मुश्किल दौर है मेरे लिए मगर मुझे यकीन है मै जल्दी ही इस पर विजय पा लुंगी ....और लौट जाउंगी अपनी शर्तो से भरी जिन्दगी में ...
आज मुझे लग रहा है की "उसका जाना ही सही था "
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