एक साल बाद

कार ने जैसे ही हॉर्न दिया घर वाले ऐसे सतर्क हो गए जैसे कोई बड़ा नेता महानेता आया हो।राधिका पूरे एक साल बाद जो घर लौट रही थी।तभी वो बड़ा काला मेन गेट खुला ,सामने राधिका का पूरा परिवार खड़ा था,दीदी,जीजा,माँ,और भाई राजन गेट के खुले पल्लो को बंद कर रहा था।हमेशा ऐसे ही तो ये कार आकर इस आँगन में रूकती है ,मगर आज जैसे सब राधिका और विक्रम का स्वागत करने को उतावले हुए खड़े थे।एक साल बाद मायके आई राधिका।पिछले साल की ही तो बात है जब महीने भर रुक कर गयी थी यहां।हज़ारो दर्द सीने में भर कर।और आज हज़ारो खुशिया लेकर आई है।क्योंकि इस बार सिर्फ राधिका और विक्रम ही नहीं नन्हा मेहमान आरव जो साथ आया है।नानी के घर पहली बार।सब उसे गोद में लेले ने को बेताब खड़े है बस कार का दरवाजा मात्र खुलने की देर है।राधिका ने उतावले पन से दरवाजा खोला था,नन्हा आरव इतने लोगो को देख कर भाव विभोर हुआ जा रहा था।सब उसे बारी बारी से चूम रहे थे।राजन ने उसको सबसे पहले गोद में उठा लिया था।राधिका की माँ ,उसकी बलाए उतार रही थी पूजा का थाल लिए उनकी आरती उतार रही थी।एक साल में कितना कुछ बदल गया ।पिछले साल की ही तो बात है जब राधिका छलनि होकर गयी थी यहाँ से।ये एक साल 10 साल के बराबर निकले,एक तो मातृत्व का सुखद अनुभव् की तड़प और फिर से मायके जाकर ख़ामोशी से सबके सवालो के जवाब देने का इंतज़ार।जो पिछले साल चुप चाप दिल में भरे चली गयी थी राधिका।मायके कुछ दिन ये सोच कर आगयी थी की कम से कम ससुराल जैसे सवाल यहां कोई न पूछेगा।सब मेरे अपने ही तो हैं क्यों मेरे जख्मो पर नमक डालेंगे।मगर किस अपने ने कमी छोड़ी थी तानो के तीर चलाने में।सबने उसे उसके खाली पन का एहसास कराया था,कभी कोई आकर कह देती,क्यों राधिका कितने साल हो गए तेरी शादी को,कोई कहती इलाज़ नहीं कराया क्या,कोई पूछती रिपोर्ट में किस में कमी बताई है तुझ में या दामाद जी में।कोई बड़ा अपना पन का दिखावा कर के कहती तू मेरे साथ चलना एक बाबा जी दवाई देते है मैं दिला दूंगी,कोई तो मुह पर ही हंस कर कह देती अरे अभी तक खुश खबरी नहीं सुनाई तूने,कोई  मुह पर ही उसके नसीब को कोस कर चली जाती।कोई उसे बेचारी बता कर मुह बना कर निकल जाती।सब अपने अपने तरीको से कोशिश कर रहे थे राधिका का दिल दुखाने का।मगर राधिका के पास कोई जवाब ना होता बस ऊपरी हँसी हंस कर आँखों की नमी को छुपा कर कह देती,हो जायगा जब होना होगा,नसीब से पहले क्या मिलता है।मगर अकेले में जाकर फुट फुट कर रोती।क्या ये मेरे अपने भी मेरा दर्द नहीं समझते।राधिका को तो लगता था इस तरह के सवाल सिर्फ ससुराल की तरफ होते हैं ,मगर यहाँ भी यही सब होगा।इस बार दिल ही दिल छलनी हो गयी थी राधिका भगवान से बस यही कहती की इस बार मायके आऊँ तो मेरी गोद भरी हो।जिस जिस ने मेरे जख्मो को कुरेदा था बिन बोले सब को जवाब दूं।और आज वो सब पूरा हुआ था ,आरव जैसे वरदान बन कर आया उसकी जिंदगी का खाली पन दूर करने।राधिका अपने परिवार को देख कर फूली ना समां रही थी ,आरव सबकी गोद में अलग ही सुख अनुभव कर रहा था।विक्रम घर वालो को इतना खुश देख कर खुश हो रहा था ,और राधिका ये सब देख कर गद गद हो रही थी।
राधिका....राधिका तुम इतनी देर से बैठी क्यों हो।आराम करो,तुम्हे आराम की जरुरत है।बेबी पर असर पड़ेगा।चलो सो जाओ कुछ देर।
विक्रम ने जैसे तन्द्रा भंग कर दी थी राधिका की।राधिका अतीत नहीं भविष्य के सुनहरे पलो में खोयी थी।राधिका ने मुस्कुराते हए अपने पेट को छुआ था।अभी तो पूरे 9 महीने बाकी है मेरा ये सपना सच होने में।कल ही  तो पता चला की राधिका माँ बनने वाली है।।।कितना सुन्दर होगा वो दृश्य जब एक साल बाद मैं अपने बच्चे को लेकर फिर से लौटूंगी अपने मायके।और आँखे बंद कर के फिर से खयालो में खो गयी थी राधिका......

प्रीती राजपूत शर्मा
19 मार्च 2017

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने