ये नौ साल

 9 साल  एक ऐसा समय जो याद करना चाहते नही और भूल पाते नही हम।

वो आखिरी अधूरी सी मुलाकात थी हमारी ,जब मिलकर भी मैं मिल ना सकी थी।सामने थे आप और आपकी बाहों में आने की तड़प तड़प ही रह गयी पापा ।मायके आकर भी बिन आपका हाथ सर पर महसूस किए चले आये भारी मन से।

बहुत चीखे चिल्लाये हम लेकिन आपने मुड़ कर देखा तक नही। मन किया आपका चेहरा एक बार हाथो में लेकर ,आंखों में आंखे डाल पूछ लूं की ऐसी भी क्या जल्दी थी।लेकिन कहाँ था चेहरा आपका।कुछ दिखा ही नही ।वो बन्द सफेद चादर में कुछ गोल सा था उस जगह।लिपटा सा।  ना आंखे दिखी जिसमे हमारे घर आने की खुशी होती थी।ना वो गाल दिखे जिनपर लाली छा जाती थी।न वो सीना दिख जिसपर भाग कर हम लिपट जाया करते थे।ना वो पैर दिखे जिनके नीचे से निकल कर बचपन मे शरारत की थी।

हां बस एक हाथ दिखा ,जो हर दम सर पर साया सा था।आपके हाथों की वो उंगली मुझे आज भी याद है जो उस सफेद लिपटे कपड़े से थोड़ी बाहर थी।आपके शरीर का एक मात्र अंग जिसे देख कर गलत फहमी दूर हुई की ये आप ही हो ।वर्ना ये दिल कहाँ तैयार था ये मानने को की लंबा चौड़ा शरीर जो काम करते ,भाग दौड़ करते कभी रुका नही आज थका सा जमीन पर पड़ा था।

आपके बाएं हाथ की वो उंगलिया जिनपर कुछ सूखे खून के धबवे थे ,मन किया कि बोलू हमे आज भी जरूरत है इन उंगलियों की जो हमेशा हमे गिरते गिरते थाम लेती है।

मैने पकड़ा था वो हाथ जो जिसकी कलाई बिना घड़ी के मुझे अच्छी नही लगी।कितना रोये हम लेकिन आपकी हाथ उठा ही नही हमे चुप करने को।क्योंकि आप फैसला कर चुके थे अकेले वो यात्रा तय करने का।

उस दिन उस घर मे बस दीवारें थी ,इंसान तो जैसे होकर भी नही ।

वो रात इतनी काली ,इतनी लंबी ।इतनी लंबी तो आपको भी वो रातें ना लगी होंगी जिसके गुजरते आपको हमारी विदाई करनी थी। क्योंकि ये विदाई बड़ी अलग थी।आपने हमे इतनी भी इज़ाज़त नही दी कि उस अंतिम समय मे आपको छू लें।ऐसा लिबास औढा की एक झलक भी नही दिखी आपकी।

पता है ये आपका फैसला नही था ।ये तो आदेश था आपके लिए ।लेकिन एक आखिरी बार कुछ कह कर तो जाते।उस दिन आप पर प्यार नही आया ,बहुत गुस्सा आया ,आप ऐसे कैसे जा सकते थे ,हम सबको हमारे हाल पर छोड़ कर ।

लेकिन आप चले गए।और हम पीछे खड़े देखते रहे।बहुत आवाज दी  आपको । रोका भी।

अपनी हर गलती की माफी भी मांगी। लेकिन दिल मे हमेशा के लिए मलाल रह गया कि आप बिना माफ किये चले गए।मैं जानती हूँ मैन दिल दुखाया था आपका ,लेकिन पता होता कि सज़ा ये है तो यकीन मानो ऐसा कभी ना होता।बहुत कुछ कहना था आपसे ।लेकिन आपने मौका नही दिया।

मां ने भी खुद को खो दिया उस दिन ,लेकिन आप उनको जिम्मेदारियों में बांध कर चले गए।पता है कितना मुश्किल हुआ हम सबके लिए उनका वो बेरंग जीवन देखना ।हर वक्त साज श्रृंगार से सजी माँ जब बेरंग सी सामने आई तो लगा जैसे आसमान फट गया।

भाई के मुलायम ,उम्र के कच्चे कंधे अभी कहाँ तैयार थे आपका वजन उठाने को। इस परिवार की रीढ़ बनने को।लेकिन आपने एक बार भी नही सोचा ।हम सब आपसे नाराज थे लेकिन शिकायत किसी ने नही की।सब चुपचाप देखते रहे कि कैसे आप हमें हमारे हाल पर छोड़ कर चले जा रहे थे ।

दिन निकलते गए ,कितने ही महीने ,कितने ही मौसम ,और कितने ही साल ।बार बार ऐसा लगता कि ये एक सपना है जो एक दिन टूट जायगा ।आंख खुलेंगी तो हम सब पहले जैसे साथ होंगे ।लेकिन ना आँख खुली न सपना टूटा और ना आप आये ।आपके बिना रहने की मजबूरी आदत बनती चली गयी।लेकिन बहुत से ऐसे पल आये जब आपकी कमी हद से ज्यादा अखरी।कभी आपके साथ कि जरूरत महसूस हुई और कभी आपके हाथ की।जब भी मन उदास हुआ आप सपने में आये और एहसास कराया कि आप हमारे साथ ही हो ।।लेकिन भरम तो सिर्फ भरम ही होता है ना ।कभी लगा कि आप होते तो जीवन शायद और आसान होता ।कभी लगा अगर आप होते शायद चीज़े और सरल होई।कभी लगा आप होते तो दुनिया और खूबसूरत होती।कभी जब टूटी मैं किसी भी बात स तो लगा आप होते तो सम्भाल पाते ।कभी सब कुछ होकर भी जब अकेला महसूस हुआ तो लगा आप होते तो गले से लगाते और कहते चिंता किस बात की मैं हूँ तो।कभी जब हारने लगती किसी भी चुनौती से तो आपकी बात याद आती की डरना नही है ।हारना नही है।तू तो मेरा शेर बच्चा है।और मैं उठ खड़ी होती और फिर लड़ती हलातो से। 9 साल का ये सफर कभी बहुत अच्छा था कभी बहुत बुरा ।कभी मैं दुनिया से लड़ी तो कभी खुद से ।कभी दुनिया से हारी तो कभी अपनो से तो कभी खुद से ।लेकिन आपकी सीख मेरा हाथ थामे रही। डरना क्यों है जब तुम सही हो।हारना क्यों है जब तुम जीत सकते हो।और मैं आगे बढ़ती रही।समय बदलता रहा ,रिश्ते बदलते रहे ,जिंदगी बदलती रही बस ना बदली तो आपकी जरूरत आपकी कमी।

आज भी आपकी हर याद दिल के कोने में जिंदा है ।आपकी हर सीख जिंदगी में शामिल है।मुझे गर्व है कि मैं आपकी बेटी हूँ।और हां आपके जैसी शख्सियत न मैंने आज तक देखी थी ।ना देखी है।

कभी सामने से कह नही पाई की आपको बहुत प्यार करती हूं । हां याद है मुझे वो फ़ादर्स डे जब रात को 12 बजे मैने आपको फ़ोन पर I Love You बोला था ।लेकिन कभी खुल कर इज़हार हो ही नही पाया ।आप मेरे जीवन का वो पहला पुरुष प्रेम हो जिसने मुझे निस्वार्थ प्यार किया ।जिसने मुझे कभी प्यार में धोखा नही दिया ।जिसने मुझसे प्यार में कोई उम्मीद नही की।आप ही मेरा first love हो पापा । I love you so much . बस आप जहा भी हों खुश हूं।

आपकी लक्ष्मी 

प्रीति

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने