मेरा आखिरी दिन

 31 अगस्त 2023 ।शायद ये तारीख की रक्षाबंधन मेरे घर मे सबको याद रहे ,जानते हो किसकी वजह से ,मेरी वजह से ,जी हाँ ,ओर मेरे लिए भी तो ये दिन यादगार ही रहेगा ।यही दिन है जब मैंने बहुत सारे छुपे चेहरे देखे ,बहुत सारी छुपी बाते सुनी ,बहुत सारे अपनो को पहचाना, बहुत सी ऐसी बातों को जाना ,जो आज तक समझा नही । आज मेरे सारे रिश्तेदारों के फ़ोन सुबह 5 बजे से बजने शुरू हो गए थे ,जानते हो किसकी वजह से? , मेरी वजह से ,जी हां ।


आज मैं ही तो था केंद्र पात्र।


सब की सुबह हो रही थी ,कुछ उठ गए थे कुछ उठ रहे थे ,सबके प्लान थे राखी पर नए कपड़े ,नए गहने ,सूंदर सूंदर राखी,खूब मिठाइयां ,खूब गिफ्ट ओर हां ,अपने भाइयों की लंबी उम्र की दुआ की कामना।


ये सच है क्या,बहनो की दुआओं में असर होता है क्या, पता नही मेरी तो कोई बहन नही थी जिसने मेरी कलाई पर राखी बांध कर मेरी लंबी उम्र की दुआ की हो ,शायद इसीलिए .......


खैर कहने को तो बहुत बहने हैं मेरी ,मगर कोई आके राखी बांधे वो नही ।अगर होती तो शायद मेरे लिए भी दुआ होती ,चलो अब क्या अफसोस ।


बचपन से अकेला रहा मैं ,इकलौती संतान । माँ पापा भी आधे से ज्यादा उम्र अलग रहे ,मैं भी कच्ची उम्र में पैसे कमाने निकल पड़ा।बहुत अच्छे बुरे दिन देखे मैंने,बिल्कुल अकेले,दुख दर्द ,खुशी हंसी बांटने को कोई भाई बहन जो नही था ,पापा भी बहुत जल्दी ही छोड़ कर चले गए ।मेरी माँ थोड़ी नासमझ ,भोली है ,उस से कभी कुछ कह नही पाया ।ले दे कर मेरी बुआ,उनकी बेटियां और मेरा फुफेरा भाई ही है जिस से कभी कभी बात कर लेता ओर दिल हल्का हो जाता।कहते हैं समय के साथ ,बचपन की याद ही नही ,रिश्ते भी धुंधले होने लगते हैं,कारण मेरी शराब की लत थी या मैं पहले से ही सबको कम पसंद था पता नही ,कभी कभी मेरी बहने फ़ोन ना उठाती तो कभी जल्दी ही बात खत्म कर देती,ये अकेला पन मेरी जिंदगी का हिस्सा रहा ।


खैर रात गयी बात गयी ,अब क्या याद करना।रात गयी लेकिन ऐसी क्यों गयी ।


मेरी आँख खुली तो,मेरे घर मे लोगो का जमावड़ा लगा था ,मेरी माँ बदहाल सी चीख चीख कर रो रही थी ,कुछ औरते जबरदस्ती मुँह दबाये खड़ी थी ।


मुझे समझ ही नही आ रहा था कि हो क्या रहा था।दिन चढ़ता गया और मेरा घर भरता गया।त्योहार का दिन है फिर क्यों सब मेरे घर आ रहे हैं।कोई अपनी छाती पीट रहा था,कोई कोने में खड़ा फुसफुसा रहा था।कुछ लोगो को मैने मेरी ज़मीन जायदाद के बारे में बाते करते सुना।


ओर कुछ लोग मेरी गाय के बारे में बाते कर रहे थे ,औरते पल्लू से मुंह दबाये फुसफुसा रही थी ,कितना दूध देती होगी इसकी गाय,देखो तो बांक कैसा नजर आ रहा है।


कोई तो मेरे घर की ईंटे तक गिन रहा था ।मुझे बहुत तेज़ आवाज नही आ रही थी मैं अभी तक अपने बिस्तर पर जो था। सब मुझसे बहुत दूरी पर थे ।मेरे कुछ अपनो की नजरों में मुझे आंसू नजर आ रहे थे तो कुछ की नजर में अजीब सी उधेड़ बुन चल रही थी ।


कुछ औरते मेरी माँ को पता नही क्या अनाप शनाप बोले जा रही थी ,"हाय पहले थोड़ा ध्यान देती तो ये अभागी आज अकेली ना रह जाती ,हाय हमारा तो सब नाश हो गया,इसने कभी ध्यान ही नही दिया ।कभी नही अच्छा खाने पीने को दिया , हाय हमारा तो घर खाली हो गया रे।"


मैं तो सोच में पड़ गया ,ऐसा क्या हो गया ,ये सब मेरे घर पर आके ये सब क्यों कर रहे हैं।तभी देखा एक एक कर के मेरी बहने आ रही थी ,लेकिन ये ऐसी कोनसी स्पेशल राखी है कि आज इस भाई का घर याद आया ।


मैं उत्साहित था ,शायद आज मेरी कलाई पर भी राखी बंधे,लेकिन ये सब तो खाली हाथ थी ।रोती बिलखती,।क्यों?


मैं समझने की कोशिश ही कर रहा था तभी मेरी माँ की आवाजें मुझे सुनाई दे रही थी ।"उठ जा रे बंटी,एक बार मम्मी कह दे ,उठ जा रे मेरे बेटे ।"


ये सब क्या था अब मैं डर गया था।मैं उठा और उठ कर अपनी माँ का हाथ पकड़ लिया ,"मम्मी यही तो हूँ ।क्या हुआ ?"लेकिन मुझे अपना शरीर हल्का लगा।शायद महीनों से कुछ खाया नही इसलिए ।लेकिन इतनी आसानी से मैं उठ कैसे गया ,मैं तो महीनों से बिस्तर पर था। माँ अभी भी क्यों रो रही थी । "उठ जा मेरे बच्चे,एक बार मम्मी कह दे,उठ जा ,देख तो ।"


मैंने पलट कर अपने पलंग को देखा


मैं भौचक्का रह गया ,कौन है वो जो वहां पड़ा है।मैं तो ये रहा अपनी माँ के पास ।


अब मुझे सारा माझरा समझ आया। समझ आया कि क्यों मेरे घर मे सब रो रहे है।


मेरी बुआ रो रो कर पूछ रही थी "कब चला गया रे ये भाभी "कब गया रे ।"


तब मैंने ध्यान से सोचा,की पिछली रात क्या क्या हुआ।मेरी सांसे अचानक उखड़ गयी थी,बहुत कोशिश की आवाज दूँ,मगर आवाज मुंह में ही रह गयी ।


मैने अपने कंकाल हुए शरीर को ध्यान से देखा।भला ये हड्डियों का ढांचा जिंदा था भी कैसे इतने दिनों से ।


बड़े दिनों बाद मैंने खुद का चेहरा देखा ,मैं खुद ही डर गया ,आंखे ही थी जो दिख रही थी ,वो भी खुली आंखे,शायद आंखों के रास्ते ही गया मैं ।मेरा शरीर पीला पड़ा हुआ था ।महीनों से शीशा नही देखा था तो कैसे पता होता मैं कैसा दिख रहा था।


लेकिन चलो इस बहाने मुझे सबका सच देखने को मिला ।लोगो को मेरे मरने का दुख नही था ,मेरी बीमारी को जिक्र करने का मौका था ।सब मुझसे दूर भाग रहे थे ।अब मुझे मेरे बिस्तर से नीचे उतार कर बाहर बरामदे में लिटा दिया था।कहने को सब रोने आये थे ,लेकिन मुझे प्यार क्यों नही नजर आया ,दुख क्यों नही नजर आया किसी की नजरों में ।अगर होता तो क्या बस मेरी माँ मेरे पास बैठी होती अकेली।


मुझे नफरत सी हो रही थी इन खोखले रिश्तो से। मेरी बुआ आयी थी पास मेरे।मेरी बहने भी आई लेकिन लोग उनको भी खींच कर दूर ले गए ।मेरी बीमारी के डर से ,होशियार लोगो को कोई क्या समझाये की जिसकी सांसे ही नही चल रही उसकी बीमारी कैसे फैलेगी।ओर मेरी बीमारी छुआछूत की थोड़ी थी ।खैर।


सब मेरी माँ को बोले जा रहे थे ,की उसने मेरा ध्यान नही रखा ,मेरा दिल तार तार हो रहा था ,वहां बैठी हर औरत माँ थी ,मेरा दिल हुआ पुछु सबसे क्या वो चाहेंगी की उनके बच्चे की ये हालात हो ।क्या वो अपने बच्चे को खाने को नही देती ,क्या उन्होंने अपने बच्चे को नही पाला।


मानता हूँ थोड़ी नादान है माँ मेरी ,लेकिन है तो माँ ही न ,


सब की तरह उसने भी तो मुझे पाला,सबकी तरह उसने भी तो मुझे दूध पिलाया ।भगवान ने उनको भी तो बच्चे को जन्म देने का सौभाग्य दिया ।जब भगवान को ये शक नही हुआ कि ये अच्छी माँ नही है इसको औलाद न दूं तो ये सब कौन होते हैं मेरी माँ की ममता पर सवाल उठाने वाले ।इन सबने अपने बच्चो की सुसु पोटी सिर्फ बचपन मे साफ की होगी ,मेरी मां तो मेरी इस 31 साल की उम्र में भी मेरे लिए सब कितने महीनों से कर रही थी ।तो क्या बराबरी करेंगे ये मेरी माँ से। मेरा दिल किया कि पुछु इन सब से की इनमे से कौन आया एक वक्त मेरी सेवा करने ,लेकिन मेरी मां कितने महीनों से दिन रात मेरी सेवा में लगी थी ।


हाँ थोड़ी भोली है मेरी माँ,थोड़ी नादान ,कभी थोड़ी ना समझ ,मगर है तो मेरी माँ ही ।फिर कैसे सुन लूं उनके लिए ,अभागी,और पागल जैसे शब्द ।पागल नही है मेरी माँ।
खैर मैं कैसे कहता ,किसे कहता, कहने वाले भी तो मेरे अपने ही थे । मेरी माँ अकेले बैठी आंसू बहा रही थी ,और सब उनको बुरा भला कह कर खुद को अच्छा साबित कर रहे थे ।
दिन चढ़ रहा था और मेरी विदाई की तैयारी चल रही थी ।खुशी हुई मुझे देख कर जो आज तक मेरी हालात देखने नही आये ,वो आज मुझे आखिरी बार देख कर भगवान के यंहा अपने कर्मो में कुछ अंक पाने आये थे ।बड़ी खुशी हुई सुन कर जो आज तक मेरी बुराई करते ,मुझमे कमियां निकालते नही थकते थे वो भी,मेरी तारीफ के कसीदे पढ़ रहे थे ,शायद अब मुझसे एक डर था उनको।
देख कर अच्छा लगा सब समझदार लोगो को जो पढ़े लिखे होने का सबूत दे रहे थे ,जिन्हें ये भी नही पता था कि मेरी बीमारी ,छूने,पास आने,झूठा खाने से नही फैलती ।पास आने से भला कैसे फैलेगी जब मेरी सांस ही नही चल रही ,वैसे भी ये कोई सांस या छुआछूत की बीमारी नही थी ,फिर भी सब डॉक्टर और नर्स बनकर मुझे छू रहे थे ,हाथो में दस्ताने मुंह पर मास्क लगाए ।चलो समझदार बन रहा है मेरा देश ।
आज मैंने वो सब जाना ,उन सब को पहचाना जिनको जीते जी मैं ना समझ सका न पहचान सका।
खुशी हुई मुझे की इस चेहरे पर मुखोटा लगाए दुनिया से मैं जल्दी चला गया।बस बार बार नजर अपनी माँ पर जा रही थी ,उसको तो मैंने अकेला छोड़ दिया इस मतलबी दुनिया मे ,अब कोई मेरे घर पर नजर डालेगा तो कोई मेरी माँ पर ।काश मैं उनको भी अपने साथ ले चलता।
खैर उनके हिस्से के दुख ज्यादा हैं तो वो यही रह गयी ,मेरे दुख कम थे तो मैं आज़ाद हुआ।
चलो अब मेरे विदाई लेने का समय आ गया है ,उन चार कंधो पर सवार हूँ जिन्होंने कभी सहानुभूति या प्यार के 4 शब्द नही बोले ।मेरी बहने कोनो में खड़ी रो रही है,राखी के दिन भाई जो जा रहा है। लोग राम नाम सत्य का नारा लगा रहे हैं ,मेरे अपने रो रो कर मुझे भेज रहे हैं।
शायद कल मैं किसी को याद भी ना रहूं ।
बस जाते जाते एक बात कहना चाहता हूँ।इंसान को बीमारी नही लोगो का रवैया जल्दी मारता है।उनकी उठती नजर और सवाल दोनों जख्म देती है।एड्स कोई ऐसी बीमारी नही जो किसी को छूने या किसी के पास आने ,साथ खाने से फैले ।जब तक आप उनके खून के लेनदेन के संपर्क में ना आये ।जागरूकता फैलाइये शायद मेरी तरह किसी ओर को ना जाना पड़े।
अलविदा।

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने