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एन ओपन लेटर टू माय सन वेदांत (7)

 हेलो वेदांत आज तुम अपने सात साल पूरे कर रहे हो। सुबह उठते ही तुम्हारा मासूम चेहरा देखा तो सात साल पीछे चली गयी। सात घंटे ,फिर सात हफ्ते,फिर सात महीने और अब सात साल। कितनी जल्दी दौड़ रहा है ये वक्त। और हर साल की तरह इस बार भी सबने तुमने पूछा ,बोलो क्या चाहिए अपने जन्मदिन पर लेकिन इस बार भी तुमने कुछ नही मांगा।ज्यादा पूछने पर बोले 'दिला देना जो भी आपका मन हो,रिमोट कार ही दिला देना। कल तुम्हारे लिए कपड़े लेकर आये, और तुम्हारे दोस्तो के लिए chololate और गिफ्ट्स।अब तुम इतने बड़े हो गए हो कि पहले से दोस्तो को घर का पता बता कर आये हो ,और उनसे वादा करके की कल मैं तुम्हे 200 रुपये की पार्टी दूंगा। वैसे खुद्दार तो हो तुम ,जो चीज़ मुझे सबसे ज्यादा पसंद आती है।मांगने से ज्यादा खुद के पास जो है उसमें मैनेज करने की कोशिश करते हो।पार्टी के लिए मुझसे पैसे नही लिए ,न ही कभी लेते हो ,अपनी गुल्लक से लेते हो। बहुत शैतान हो रहे हो दिन प दिन । घर मे सबको उंगलियों पर नचाने की कोशिश करते हो।दादी दादू को तो दोस्त की तरह ट्रीट करते हो,लड़ते हो ,ज़िद करते हो और प्यार भी। अमायरा को खूब अच्छे से खिला लेते हो अपने स...

मैं आज़ाद थी

 मैं बचपन मे उड़ा करती थी नही, सपनो में नही हकीकत में। अपने नन्हे हाथ फैलाये ,हवा के साथ  उन पगडंडियों में तेज दौड़ा करती थी। मैं बहुत हंसती थी,पूरा दिन खिलखिलाती थी। मेरे छोटे छोटे पंख थे , उम्मीदों के पंख  जो पापा ने दिए,हौंसलो के पंख जो माँ ने दिए  अरमानो के पंख जो बड़ी बहनो ने दिए  और खुशियो के पंख जो छोटे भाई ने दिए। रंग बिरंगे, चमकदार जो हर रोज़ बड़े हो रहे थे। मैं नादान ,बस उड़ रही थी। उन पंखों के सहारे तेज़ हवा के संग । न डर कोई  न खौफ ,न रुकने आसार वो आज़ादी के पंख। मैं बचपन से आज़ाद थी। उड़ने को,आकाश भर घूम आने को अपने ख्वाबो को बुनने को अपना घर बसाने को।मैं हर तरह आज़ाद थी। मैं कोई भी सपना देखने को आज़ाद थी मैं कोई भी काम करने को आज़ाद थी, मैं सांस लेने को आज़ाद थी  मैं जीने को आज़ाद थी। मैं बहुत खुश रहती थी, हर पल चहकती थी,महकती थी  और अपने रंग में रंगी नाचती थी। मैं कितने सुकून में थी। हवा का झोंका था बचपन मेरा  जिसमे न कोई दबाव न कोई बोझ  बस एक ठहराव मैं एक ठहराव थी,अपने व्यक्तिव का ,अपने अस्तित्व का  मैं ,तब मैं थी  मैं आज़ाद थी...

पुरानी औरते क्या करती थी

 एक दिन कोई कह रहा था, पुराने समय की औरतों को काम ही क्या था उनके दिनचर्या को व्यर्थ बता रहा था, कह रहा था ,बच्चे पैदा करना ,और घर मे चूल्हा चौका करना  बस इतना ही काम गिनवा रहा था, काम था ही क्या ,बच्चे खुद खाते थे,खुद नहाते थे,खुद ही दौड़ स्कूल पहुच जाते थे  पूरा दिन वो औरते आराम करती थी बच्चों को पढ़ाने के नाम पर अपना काम करती थी। 4, 5 बच्चे थे ,सब काम करते थे , माँ कुछ करे न करे वो जीवन यापन करते थे, ना रोज़ पोछा लगता था,ना रोज कपड़े धुलते थे उनके पति कोनसा आफिस में काम करते थे। ना राशन की चिंता,न बाजार का काम न खुद को मेन्टेन रखने का खुमार ना बच्चो को सजा धजा कर रखती थी  पुराने समय की औरते काम ही क्या करती थी। न सुबह जल्दी उठकर बच्चो का टिफिन लगाना न पति के आफिस जाने तक काम निपटाना न खुद सज धज कर रहती न आफिस जाती थी पुराने समय की औरते काम ही क्या करती थी। किसे कहते है ,कंधे से कंधा लगा कर पति का हाथ बटाना किसे कहते है फ्यूचर सेविंग ओर फ्यूचर प्लानिंग करना किसे कहते हैं बेटी के नाम बचपन से fd करना ओर किसे कहते हैं बेटो की विदेश की पढ़ाई के लिए धन जुटाना वो तो साथ बैठ च...

कौन कहता है मायका माँ से होता है?

 कौन कहता है कि मायका सिर्फ माँ से होता है। मैने पिता को भी मायका सजाये देखा है। सच है माँ बुलाती है बेटिओं को तीज त्योहार बिटिया कहाँ तक पहुंची , बार बार फ़ोन पर पिता को पूछते देखा है। हां आंगन में माँ बाहें फैलाये दिखती है। मगर मैने पिता को आधे रास्ते लेने आते देखा है। कौन कहता है मायका सिर्फ माँ से होता है। मैने पिता को भी मायका सजाये देखा है। सच है रसोई में माँ 10 पकवान बनाती है। बाजार से पसंद की सब्जियां पिता को खरीदते देखा है बेटी की पसंद का ही खाना बनाना। पिता को पहले से हिदायते देते देखा है। हाँ माँ खूब बाते करती है बेटी से  मग़र पिता को भी छुप छुप बेटी को देख खुश होते देखा है। कौन कहता है मायका सिर्फ माँ से होता है। मैने पिता को भी मायका सजाये देखा है। हां माँ कहती है कब आओगी बेटी लेने आऊं क्या बिटिया पिता को ही कहते देखा है। लद गए ज़माने जब भाई बहन को ओर मामा बच्चो को छुट्टियों में लेने जाते थे  आज एक पिता पर पति  को ही  भाई और पिता का किरदार निभाते देखा है। किसी की माँ के ना होने पर मायका खत्म हुआ मैने तो पिता के जाते ही मायका छूटता भी देखा है। पिता की ब...

अपने तो अपने होते हैं

 जब बैठे चार लोग मिलकर बैठे तो सबकी अपनी अपनी बातें हुईं। सबने रिश्तेदारों की बात की ,और मैने रिश्तो की। रिश्तेदार,एक नाम है ,ओर रिश्ते जज्बात। रिश्ते 3 गिनती में गिने मैने,एक वो रिश्ते जो हमने बचपन में देखे ,एक वो रिश्ते जो अब हम जवानी में देख रहे है और एक वो रिश्ते जो हम अपनी जिंदगी के आखिरी पड़ाव में देखेंगे । ऐसे ही नही मैं आज रिश्तो में उलझी।ये अचानक नही हुआ।कुछ हाथ छोड़ते,कुछ दम तोड़ते रिश्नो ने मुझे मजबूर किया। जब बात रिश्तो की आती है तो रिश्ते दादा दादी,नाना नानी ,से शुरू होते हैं।रिश्तो के मामले में थोड़ा कम पाया मैंने। मुझे बचपन याद आया ,नाना नानी दादा दादी के नाम पर बस अपनी नानी की ही झलक याद है ,वो भी बहुत धुंधली।रिश्तो को खोने की शुरुआत बड़ी कम उम्र में हुई।जो रिश्ते सामने थे वो जवान थे,बूढ़े रिश्ते कब का साथ छोड़ चुके थे।जवान रिश्तो के साथ जीते रहे कभी दिल मे आया तक नही की एक दिन ये रिश्ते एक एक कर के हाथ से रेत की तरह फिसलेंगे । हमे सिर्फ अपनी उम्र बढ़ती दिखाई दी,अपनो की नही।इसी भरम में रहे कि ये हमारे खून के रिश्ते है ,ये हमेशा हमेशा हमारे साथ रहेंगे।लेकिन हमारी बढ़ती उम्र क...

हम बेटियां ऐसी होती हैं

 कितनी बाते, कितने किस्से दिल मे छुपाये जाती है जब बेटियां मायके आती है। भारी दिल और थका शरीर लेकर कुछ दिन आराम करने आती है। जब बेटियां मायके आती हैं। मां की खुली बाहें भाभी की मुस्कुराहट भाई के बचपन की यादें ताज़ा होती हैं जब बेटियां मायके आती हैं अपनी गलियां,अपना आंगन ,सखियों की आवाजें आती है। सब होकर भी सब खाली सा पाती है जब बेटियां मायके आती है सुखी रोटी ,खीर बताएं तानो को प्यार बताती हैं जब पूछे सब सखियाँ मिल  सासरे की लाज बचाती है जब बेटियां मायके आती है। बचपन जीना चाहे फिर से आंगन में चहकना चाहती है। घर घर जाकर ,ताई चाची संग खूब हंसना चाहती है जब बेटियां मायके आती है। कुछ दिन बिताकर अपनो में  फिर चुन चुन समान लगाती है दिन दिन गिन कर वापसी के मन ही मन में रोती है। यादो की पिटारी भारी ले फिर वापस लौट जाती हैं कुछ डब्बों में खाने का सामान भर  झोली ,माँ अपनी सीखों से भर देती है जब बेटियां वापस जाती है। अपना कुछ रह जाये गर वो लेने से भी शर्माती है। माँ कुछ देती भी है तो  लेने से कतराती है जब बेटिया वापस जाती है। सब देने वाले बाबुल को  रोता छोड़ जाती हैं। फि...

बिखराव

कुछ यादें रह गयी कुछ बाते रह गयी  वो नही ,अनकही ,बाते रह गयी । कितना अजीब मंजर कितना बुरा एहसास अपनो को खोने का दर्द और  बिखरे से जज्बात। कुछ अजीब सी चुभ रही थी उस दिन हवाएं भी कुछ खालीपन सा था दिन भर की धूप में  कहा किसे पता कौन जाने वाला है, हर दिन जैसा ही बीत रहा था,वो दिन भी किसी को नही था आभास अचानक जरा कांच क्या फिसला हाथ से  खून हाथ मे नही दिल मे बहने लगा  जब खबर आई ,मेरा कोई अपना  बिन बताये जाने लगा। दिल मे टीस थी ,आंखों में खाली पन खाली पन में हज़ारो सवालात आखिर क्या इतनी जल्दी ,क्यों ऐसे जाना था जाने ऐसे पहले ,जी भर देख लेते  क्यों मुंह छुपाना था। आंखे सुर्ख और दिल की तड़प उसे खोने की चुभन ओर वो लम्बी सड़क मैं चली,एक उम्मीद से  देखूंगी,पूछुंगी, रोउंगी,बुलाऊंगी ये रास्ता तय कर जब उनसे लिपट जाउंगी उन्हें आना होगा ,मुझे सीने से लगाना होगा बताना होगा ,ओर मुझे चुप करना होगा  ये मेरी सोच थी  हां बस मेरी सोच थी  क्योंकि ऐसा हुआ कुछ नही  घर की अंधेरी भरी दीवारों ने ,फुसफुसाया मुझे बुलाया ,इत्मीनान से हर हाल कह सुनाया की तू रो,तड़...

मेरी कीमत

 मुझे उम्मीद नही की मेरा काम सराहा जाए  मुझे उम्मीद है कि तुम फिर मुझे नीचा दिखा दोगे। मुझे उम्मीद नही की मुझे बराबर में ले चलोगे  मुझे पता है तुम मुझे पीछे छोड़ दोगे , ,मेरी मेहनत मेरा काम है और मेरा काम मेरा अभिमान ,मुझे पता है  मेरे अभिमान को तुम ठेस पहुंचा दोगे। मेरी शिक्षा,मेरा अनुभव  लोगो के सामने मेरा सम्मान  तुम कर न सकोगे  तुम पुरुष ,मैं स्त्री मुझे बराबर कभी समझ न सकोगे  पुरुष प्रधान है ये देश मेरा  यहां हुनर नही ,स्त्री पुरुष होना मायने रखता है पत्नी दो पैसे कमा ले ,बस वो भी आंख में चुभता है तुम मेरा सम्मान करना भूल गए  फिर अपने लिए क्या चाहते हो तीखे शब्द बोल कर  मेरे हदय को ठेस पहुचाते हो परख नही होती हीरे की हर किसी को  तुम वही बदनसीब जोहरी हो। पत्थर इकट्ठा करते रहना  ओर नग को खो देना, ओह दुर्भाग्य मेरा नही ,तुम्हारा  लक्ष्मी चाहते हो और लक्ष्मी ही ठुकराते हो। काबिलियत कही भी कम नही तुमसे मेरी  ओर तुम मुझे कम आँक जाते हो। मैं बोलती नही बराबर में  दिखाती नही रॉब अपना  इसका मतलब बिल्कुल नही क...