तुम बिन

 तुम बिन कैसी थी जिंदगी मेरी

एक दम नीरस वीरान सी

किसी कोने में दबी ख्वाहिश सी ,हर तरफ सन्नाटा सा,

बिखरे से सपने ,खाली से हाथ,हज़ारो शिकायतें ,और हज़ारो बात

कभी खुश होती तो बेमतलब सा लगता ,और आंसू मुझे कमजोर कर रहे थे ।

कभी तानो सी लगी जिंदगी ,तो कभी ऐसा लगता की बेमतलब सा जीना हो रहा है।

कहि जाती तो सबकी सवालों से भरी नजर ,मेरी नजरें झुका देती 

सबकी दुआएं भी मुझे चोट सी पहुंचा देती ।

मीठे बोल भी अब सीधा दिल पर लग रहे थे ,और मैं खुद में सिमट सी जाती।

ऐसा लगता कि सब हंस रहे है मेरे इस खाली पन पर 

ऐसा लगता कि जान बूझ कर नमक सा छिड़क रहे है मेरे हरे जख्मों पर।

मैं चुप रहती क्योंकि मेरा जवाब तो तुम थे 

मैं कुछ ना कहती क्योंकि मेरे जवाब भी दम तोड़ देते ।

तुम्हारा इंतेज़ार अब मेरी हिम्मत तोड़ रहा था

तुम बिन जैसे मेरा हर रिश्ता मुझसे मुह मोड़ रहा था।

मेरी खुशिओं में भी मैं खुश होने की हक़दार कहाँ थी ।

तुम्हारी कमी मेरी हर खुशी पर बिछी पड़ी थी।

फिर एक दिन मुझे मिले तुम

मेरी जैसे जिंदगी बदल सी गयी थी 

सब तुम्हारे आने की खुशी में झूम रहे थे 

तुम्हारे आने पर khushiyan  बंट रही थी 

तुम्हारे आने पर बधाइयां मिल रही थी 

तुम्हारे आने पर मिठाइयां बंट रही थी 

पर सच तो ये था कि उस दिन मैंने तुम्हें नही 

तुमने मुझे जन्म दिया था

तुम क्या थे ,एक जरा सा मांस का टुकड़ा

जिसमे मेरी आत्मा धड़क रही थी 

तुम्हारा वो धक धक करता जरा सा हिस्सा 

जिसे दिल कहते है।

वो मेरी ही तो साँसे थी

तुम मेरे जिस्म का एक टुकड़ा ही तो थे 

पता नही उस वक्त मुझसे तुम थे 

या तुमसे मैं।

कहते है उस वक्त जिस्म और जान दोनों बेजान हो जाती है 

मगर मैं तो जैसे उस वक्त ज़िंदा हो उठी थी 

कितनी रातें कितने दिन मैंने एक टक तुम्हे देख कर बिता दिए थे 

मेरी आँखें झुकने को राजी नही थी 

मेरी राते सोने को राजी नही थी 

हाँ काले घेरे मेरी आँखों पर साफ दिख रहे थे 

मेरा चेहरा कुछ थका से धुंधला हो रहा था 

मगर मेरी आँखें चमक उठी थी 

जब तुम्हारे मुलायम से जिस्म को मैंने अपने हाथों से छुआ

तो ऐसा लगा कि ये मेरी सालो की दुआ मेरे हाथों में है

ऐसा लगा मेरी हर मन्नत मेरी हर पूजा कबूल सी मेरी हथेलियों में है

मैं चीखना चाहती थी ,मैं रों कर हंसना चाहती थी 

मगर मेरे शिथिल पड़ा शरीर इज़ाज़त नही दे रहा था ।

मेरी देह कमजोर से मेरी रूह से लड़ रही थी ।

मैं सबको चीख कर ,हर सवाल का जवाब देना चाह रही थी।

बड़ी बेजान सा बड़ी बेकार सा

कुछ भद्दा सा मेरा शरीर ,जैसे लटक सा गया था

मेरी खूबसूरती,मेरा नूर जैसे मिट सा गया था 

मगर मेरी चहक बढ़ रही थी ।

बार बार मेरी नजर तुम पर जाकर रुक रही थी ।

"प्रीति" से सराबोर मेरा दिल ,तुम में अटका सा

मेरी रूह तुम में बसी सी 

जैसे मैं बस अब तुम में जीना चाहती थी 

तुम बिन जितना भी जी मैं

उसको भुलाना चाहती थी ।

तुम मेरी जान ,मेरी आत्मा ,मेरी हर मुकम्मल ख्वाहिश 

तुम मेरा रुतबा ,मेरी शान ,मेरा अरमान 

तुम मेरे बस मेरे बेदान्त ।



टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने