ये कैसी कल्पना

 घबरा गई एक बेटी ,बस जरा कल्पना मात्र से

क्या होगा उस दिन ,अगर कभी अपने घर के दरवाजे बंद मिले

क्या होगा अगर कभी मेरे घर जाने पर अपनो के चेहरे उतरे मिले

क्या होगा अगर पापा के चेहरे पर मुस्कान ना हुई

क्या होगा अगर माँ बांहे खोले ना मिले।

बस झर झर बह उठा नीर ,आंखों से।

जब घबरा गई एक बेटी बस जरा कल्पना मात्र से।

क्या होगा अगर कभी भाई की फिक्र कम हुई।

क्या होगा अगर कभी भाभी की भौंहे तनि हुई

क्या होगा अगर मेरे अपने कभी दिखे बेमन से।

घबरा गई एक बेटी बस जरा कल्पना मात्र से।

आंगन में अगर खुद की परछाई बोझ लगी

क्या होगा अगर घर के कोनो में खुद आवाज दबी लगी।

क्या होगा अगर मेरी गलियों ने ना पहचाना मुझे

क्या होगा अगर मेरे खेत खलिहानों ने ना स्वीकारा मुझे

क्या किया है किसी ने ये सवाल कभी खुद से 

घबरा गई एक बेटी बस जरा कल्पना मात्र से।

क्या होगा अगर "प्रीति " नही मजबूरी से मैं बुलाई जाऊं

क्या होगा अगर कभी बस रिवाजो में मैं निभाई जाऊँ

क्या होगा अगर मेरे नेग कभी बोझ सा लगने लगे

क्या होगा अगर मेरे जाने का सब बेसब्र सा इंतेज़ार करने लगे।

क्या होगा अगर फिर से आने को बस बोला जाए ज़ुबान से।

घबरा गई एक बेटी बस जरा सी कल्पना मात्र से।

क्या होगा अगर बचपन की सहेली बिन बोले निकल जाए

क्या होगा अगर बचपन के खेल याद से निकल जाएं

क्या हो कभी अगर मेरे ही मन डर जाए मायके जाने से

घबरा गई एक बेटी बस जरा कल्पना मात्र से।



प्रीति

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने