खिन्नता क्या होती है

 अपने ही  गालों पर मारे अनगिनत थप्पड़,

अपने ही बाल नोच दिए 

उसके अपने ही नाखून उसके हाथों, पैरों

और नजाने शरीर मे कहाँ कहाँ गड़े मिले

सर में पड़े नीले निशान 

रूखे पड़े थरथराते होंठ,

ऐंठी ज़बान ,और पीला सुस्त पड़ा चेहरा।

आँखों की खत्म नमी, आंसू बनकर कबतक लुढ़की गालों पर

हाथों पैरों की झनझनाहट बढ़ी हुई लगी।

सांस लौट कर आने में देर करने लगी ,

धड़कन रुकी सी,थक कर चुप होती सी।

वो तोड़ा मरोड़ा तकिया गवाह बना

जिसमे उसके नाखून घुसे 

बेचैन रात ,दुखते करवट जो बदल कर भी सुकून न मिला

दिमाग की नसें आपस मे उलझ गए ,

सारा खून माथे की लकीरों में सिमट आया।

कांपती उंगलिया और कुछ बड़बड़ाते होंठ शांत हो गए 

सब शून्य ,सब शून्य ,अंधेरा काला तिलमिला सा

दिमाग मे धप धप लगते शब्द और शब्दो की चोट दिमाग पर

झिंझोड़ा सा कम्बल और बिस्तर की उलझी चादर

भीगा तकिया,और सिली जुबान

अगली सुबह 

सबने पूछा इतना खुश कैसे रहती हो।

बस किस्सा खत्म हुआ उस खिन्नता का जिसे 

हम तुम depression कहते हैं।

और एक फीकी मुस्कुराहट ने बीती रात फीकी कर दी।

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने