Sab kuch badal jata hai
बहुत कुछ बदल जाता है धीरे धीरे रिश्तो में
सबसे पहले हमारा बात करने का तरीका
फिर हमारी बातें बदल जाती है.
अब वो जूनून नहीं दीखता
एक message का एक call का
वो होती तो हैं, हर निर्धारित समय पर
मगर जैसे बस कोई उत्तारदायित्व निभाना हो
रातो को जागने वाली तड़प एक बोझ बनने लगती है
ज़रा सी बात पर परेशान होना अब रोज के natak लगने लगते है
अब परवाह बस कभी कभी shabdon में सुनाई देती है
अब प्यार बस बंद कमरे में dikhne लगता है.
बात करने कि अवधि घटने लगती है
प्राथमिकताएं बदलने लगती हैं
जिसे पाने के लिए दुनिया भर को एक तरफ रखते हैं
उसे पाकर दुनिया याद आती है और उसको भूलने लगते हैं
क्युकी वो तो मिल गया, अपना है, कहां जायगा
और धीरे धीरे खोने का डर भी खत्म होने लगता hai.
पहले जो aadate उसका दीवाना बनाती थी
अब वही आदतें कमी में गिनी जाने लगती हैं
पहले जो सुबह शाम, दिन रात एक हेलो कि तड़प में गुजर जाता था.
अब वो शब्द बस औपचारिकता बन जाते हैं
पहले जिसे पाने के लिए,
अपनी जिंदगी में लाने के लिए रात रात भर जाग के निकाल देते हैं
फिर हमारी नींद हमे ज्यादा ज़रूरी लगने लगती है
क्युकी अब प्रयास किस लिए, वो तो है ही, कहां जायगा
पहले एक एक बात ध्यान से सुनते है
और फिर वही बातें आपको फालतू लगने लगती है.
पहले आवाज़ से भी प्यार होता है, हर पल सुनने को दिल बेताब रहता है
और फिर उस आवाज़ कि पीड़ा तक सुनाई देनी बंद हो जाती है
पहले जो बहुत समझदार, सुलझे हुए लगते है
धीरे धीरे वो टॉक्सिक लगने लगते है
पहले जिसकी एक नज़र पर दिल हार जाते हैं
फिर उसकी आँखों में छुपा खाली पन भी नज़रअंदाज़ करने लगते है
पहले जिसकी एक हंसी पर दुनिया लुटा देते है
फिर उसके आंसू भी बेमोल हो जाते है
पहले जो अपनी दुनिया नज़र आने लगते है
फिर वही अपनी दुनिया के सामने अनदेखे हो जाते हैं
पहले जिनकी ख़ामोशी पढ़ लेते हैं
फिर उनकी चीखे भी अनसुनी कर देते हैं
क्युकी हम इंसान है साहब
हम कदर सिर्फ मिलने से पहले या खो देने के बाद करते हैं
और इस तरह जो पाया था बड़ी रातें खो कर, सुकून खो कर
दुनिया को भुला कर
उसे badi आसानी से खो देते हैं.
और बस ऐसे ही रिश्तें बेमतलबी हो जाते हैं
Priti rajput sharma
23 sep 2025
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