एयरहोस्टेज भाग-१


शीना की जिंदगी का अहम सपना पूरा हुआ था जब उसने एयरलाइन ज्वाइन की।बस एक कॉल में उसका जीवन बदल दिया था।बी ए के दूसरे साल में कदम ही रखा था जब लैंडलाइन पर आई उस एक फ़ोन कॉल ने शीना को सपनो की दुनिया में पंहुचा दिया।उस वक्त तो शीना को पता भी ना था की एयरलाइन की जिंदगी होती क्या है।एक छोटे से गांव में पली बढ़ी शीना का सपना बस इतना सा था की इंग्लिश से ऍम ए पास कर के वो कुछ खास बन जाये गाँव की लड़कियो में।हाँ रोज घर आने वाले अखबार दैनिक जागरण के पिछले पेज पर छपा कॉलसेंटर का ऐड शीना के शहर जाकर नौकरी करने के सपने में रोज एक मोती पिरो देता। उसका भी मन करता की ये सलवार सूट छोड़ कर वो भी आधुनिक कपडे पहन कर अपना व्यक्तित्व बदल दे।शहर की जिंदगी जिए।मगर गांव की सोच के चलते ये दूर दूर तक मुमकिन ना था।मगर कहते है ना  की किस्मत का लिखा कौन छीन सकता है।शीना को भी कहाँ पता था की उसका ये सपना इतनी जल्दी पूरा होगा।देहरादून के एयर होस्टेज अकादमी से इंटरव्यू के लिए आई वो कॉल जैसे शीना के लिए तोहफा बनकर आई थी।जुलाई में इंटरव्यू था,शीना ने ख़ुशी से झूमते हुए ये बात सबको बताई,मगर एक डर भी था ,कहाँ गांव की साधारण सी लड़की और कहाँ एयरलाइन।मगर शहरी जीवन जीने का एकमात्र विकल्प यही था ,इंटरव्यू का दिन आहि गया,शीना तैयार थी अपनी टूटी फूटी इंग्लिश के साथ।एक पुराणी जीन्स को अपने हाथ से सजा कर उसने रात भर में तैयार किया था।ऑरेंज कलर की ऊँची सी शर्ट और ब्लू कलर की ढीली सी जीन्स में शीना को वो खुद एक मॉडर्न लड़की लग रही थी मगर जब इंटरव्यू हॉल में देहरादून से आये गर्ल स्टाफ को देखा तो खुद को बहुत पीछे पाया।उनके जैसा बन ने के लिए उसे न जाने कितने साल लग जाएँ।मगर कुछ भी कर के शीना ये इंटरव्यू पास करना चाहती थी।इंटरव्यू के लिए एक अद्भुत व्यक्तित्व वाले पुरुष के सामने बैठी शीना खुद की उंगलियो को तोड़ मरोड़ रही थी।जिंदगी का पहला इंटरव्यू वो भी देहरादून के लिए।उधर एक खिड़की से झांकते शीना के माता पिता शीना को उस कुर्सी पर बैठे देख कर ही गद गद हो रहे थे।जैसे कैसे शीना ने अपनी अंग्रेजी में जवाव देकर इंटरव्यू की समय अवधि को पार कर लिया था।सारे जवाब अंग्रेजी में देकर शीना को लगा वो सच में होशियार है बाकी ना जाने कितनी लड़कियो से अलग।अब रिजल्ट के लिए घोषित हो रहे नामो को सुनकर शीना अंदर ही अंदर डर रही थी।आखिर में जब उसने अपना नाम सुना तो आँखों से आंसू निकल आये।आखिर शीना के सपनो को पंख मिल गए थे।अगले ही दिन आकर शीना ने अपना रजिस्ट्रेशन करा दिया था।एक लाख 25 हज़ार की रकम ने शीना के परिवार को सोच में डाल दिया था।रोडवेज की छोटी सी नौकरी के चलते पूरे परिवार का भरण पोषण बस ठीक से हो पाता था ऊपर से सब बच्चों की पढाई लिखाई अलग।इसपर ये 1 लाख 25 हज़ार की फीस और देहरादून में रहने खाने का खर्च सोचकर सबका मनोबल डगमगा गया था।मगर शीना जैसे इस जीवन को जीना तय कर चुकी थी।तब उसने अपने पिता को एक सुझाव दिया था की वो अपनी इस पढ़ाई के लिए अपनी ही पढ़ाई को इस्तेमाल करेगी।एक साल के इस कोर्स के लिए वो एजुकेशन लोन लेगी और जॉब लगने के बाद उसको चूका देगी।पिता और माँ के मना करने पर भी शीना आत्मस्वाभिमान पर टिकी थी।आखिर कार देहरादून जाने का समय भी आ गया।5 अगस्त को ही निकल जाना था।पास के गाँव से भी 3 लडकिया इसी कोर्स के लिए जा रही हैं इस खबर पर सबका साथ जाना तय हुआ।मगर 6 अगस्त को घर में धूम धाम होगी ,छोटे भाई का जन्मदिन होगा सारे रिश्तेदार आएंगे मगर इस बार घर सूना होगा।शीना की कमी सबकी आँखों में खल रही थी।गाँव की पहली लड़की शहर जा रही थी,घर को पहली बार इस तरह से छोड़ कर अनजान शहर में।शीना के लिए भी बहुत मुश्किल था।आँखों में आंसू भरे शीना अपनी पैकिंग में लगी थी आज दोपहर को बाकि की तीन लड़कियो के साथ निकलना था,शीना के पिता को बस उन लड़कियो के घर शीना को छोड़ कर आना था कल के जन्मदिन के फंक्शन की वजह से उनका साथ देहरादून जाना मुमकिन ना था।बाकी तीनो लड़कियो के घर से कोई ना कोई साथ जायगा।वही से गाडी बुक कर ली थी देहरादून में पहले से कमरा लेलिया था।अब घडी आगयी थी घर को अलविदा कहने की ,शायद आज घर से निकल जाना हमेशा के लिए निकल जाना होगा।मायके की अलविदा आज ही हो जायगी।सबकी आँखे बरस रही थी मगर शीना सबसे आँखे चुराए घूम रही थी।दरवाजे पर सब उसे छोड़ने आये मगर उसने किसी को मुड़कर नहीं देखा।वो लड़की भी अनजान थी ,शहर भी अनजान होगा कैसे रह पायेगी शीना ये बात उसे परेशान कर रही थी।आखिर गाडी सड़क पर दौड़ उठी।रूचि के माता पिता,स्वाति के पापा,प्रतिभा के पापा साथ थे मगर शीना अकेली थी।घर की यादें समेटे शीना भीगी आँखों से देहरादून जा पहुंची।वो सब आपस में एक दूसरे को जानते थे मगर शीना के लिए वो सब अलग अनजान थे।नया शहर,हवा भी नयी लग रही थी,देहरादून की बारिश ने उनका स्वागत किया।शीना का मन तो घर में बसा था।क्या हो रहा होगा,सब  रो रहे होंगे,घर में कल सब रिश्तेदार आएंगे,भाई का जन्मदिन है जिसका महीनो से इंतज़ार करते है हम सब मगर कल मैं पहली बार वहाँ नहीं होउंगी।माँ की आँखे आज रात रोते रोते सूज जाएँगी।पापा अपनी हंसी में मुझे छुपाये घूमेंगे,भाई मेरा गिफ्ट याद करेगा,बहने फ़ोटो में मेरी खली जगह को भरने की नाकाम कोशिश करेगी।शीना का दिल भर आया था,सब अनजान है आखिर किस से कहकर दिल हल्का करे।जैसे कैसे रात भी कट गयी।सुबह भी रूचि के फ़ोन से भाई को जन्मदिन की बधाई दे दी थी।फ़ोन जल्दी ही काट दिया था खुद को बिजी दिखा कर,कही कांपती आवाज उसके हाल बयां ना कर दे।दिल में एक डर भी था पहली क्लास होगी आज AHA एयर होस्टेज अकादमी में।इतने बड़े शहर में,सब शहरी लोग होंगे और हम गांव की देहाती लडकिया ये डर उन चारो को परेशां कर रहा था।आखिर 2 बजे और क्लास शुरू हुई।सबने अपना अपना परिचय दिया,सबको सुनकर कुछ तसल्ली हुई बाकि लोग भी उनसे कुछ ज्यादा अलग जो नहीं थे।दिन गुजरने लगे थे हर दिन घर वालो की याद से शुरू होता था।बस रूचि का फ़ोन उनसब की हिम्मत बना हुआ था ,किसी के पास फ़ोन नहीं था,जरूरत भी क्या और फ़ोन की बस घर वालो से बात ही तो करनी थी नोकिया के साधारण से फ़ोन से और ज्यादा हो भी क्या सकता था।शहरी चकाचौध का अभी डर कम नहीं हुआ था।जहा भी जाती चारो साथ जाती।अब उनकी दोस्ती घनिष्ठ होने लगी थी।यहाँ अपना था भी कौन चारो के अलावा।सबने मिलकर वादा किया था की हर सुख दुःख में एक दूसरे का साथ देंगे।मगर वादा हर रोज टूट ता जब एक एक कर के चारो छत पर जाकर माँ पापा परिवार को याद कर के छुप छुप कर रो लेती।अकादमी में भी जान पहचान होने लगी थी,रोज सुबह उठना,बारी बारी से घर बात करना,नाश्ता करना,घर का काम करना लंच बनाना और 2 बजे तक रोज क्लास पहुच जाना।आते जाते लोग ऐसे देखते जैसे कोई अजूबा आया हो।शाम को पूरी राजपुर रोड स्कर्ट और शर्ट में चलती एयरहोस्टेज अकादमी की लड़कियो से भरी मिलती।खूब सारा मेकअप लगाये,जुड़ा बांधे, ऊँची हील पहने जब चारो सड़क पर निकलती तो सच मुच की एयरहोस्टेज से कम ना समझती खुद को।और एक दिन जब स्कूल से आते कुछ छोटे बच्चों ने शीना को रोक कर बोला दीदी आप सचमुच एकदम एयरहोस्टेज लग रही हो,बहुत सुन्दर हो आप।ये सुनकर शीना जैसे आसमान में उड़ने लगी थी।मगर अंग्रेजी में बात करने को लेकर थोडा पीछे हो जाती चारो,आखिर यूपी बोर्ड हिंदी मीडियम की लडकिया थी इंग्लिश बस उतनी पढ़ी जितनी पास होने को काफी थी।मगर चारो के हौसले बुलंद थे सबने मिलकर इंग्लिश स्पीकिंग क्लास ज्वाइन की साथ ही एक नियम बनाया की अकादमी से घर और घर से अकादमी तक की जो दुरी हर रोज वो पैदल तय करती है उसमे हर रोज एक टॉपिक पर इंग्लिश में तर्क वितर्क करेंगी।अब धीरे धीरे हिम्मत बढ़ने लगी थी चार से कम होकर 2 ,2 के ग्रुप में बाँट कर खुद को मजबूत बनाना शुरू कर दिया था।कोई भी काम होता तो रूचि और शीना एक जगह जाती और स्वाति और प्रतिभा एक जगह।और बढ़ते बढ़ते एक दिन इस आया की देहरादून की गलिया अपने गांव की गलियो जैसी संकरी होती चली गयी।अब चारो अपना अपना काम खुद करने लगी थी मगर दोस्ती जैसे हर दिन बढ़ रही थी।इंग्लिश स्पीकिंग ने भी बहुत दोस्त बने,बहुत कॉम्प्लीमेंट मिले और हौसला बुलंदिया छुने लगा।अब एयरहोस्टेज बनने का सपना दूर ना लगता।दिन गुजरते गए और शीना रमती गयी इस दुनिया में।महीने में एक बार घर आना होता,गांव में सब ऐसे देखते जैसे शीना कोई हूर की परी  है सबसे अलग।वो कैसे खाती है,कैसे चलती है,कैसे बैठती है गांव की लड़कियो के लिए जैसे हेरोइन बन चुकी थी शीना।शीना की भी एक अलग सी दुनिया बन गयी थी वो तीनो अनजान लड़की।दोस्ती क्या है ये परख उस दिन हुई जब स्पीकिंग क्लास में अचानक शीना की तबियत बिगड़ गयी,सब मिलकर उसे हॉस्पिटल लेकर गए।शीना का परिवार वो तीनो ही थी उस वक्त ,पूरी रात एक बैंच पर बैठ कर रूचि,स्वाति और प्रतिभा ने बिता दी थी,सुबह जब शीना के माता पिता पहुंचे तो गर्व हुआ बेटी की ऐसी दोस्तों पर।अब तो एक दूसरे पर जान छिड़कने जैसा रिश्ता बन गया था।वो पल ऐसे थे की जो बस ख़त्म ही न हो मगर एक जैसा समय कब रहता है।समय उनको अलग करने की ठान कर बैठा था।अचानक पता लगा की इंस्टिट्यूट से हर स्टूडेंट को एक फाइव स्टार होटल में 40 दिन की ट्रेनिंग के लिए भेजा जायगा ।अलग अलग शहर से होटल से इंटरव्यू के लिए लोग आएंगे जो जहा के लिए सेलेक्ट होगा चला जायगा।इस बात ने चारो को डरा दिया था।अब अलग होकर जीना मुमकिन ना था।आखिर इंटरव्यू के रिजल्ट्स भी आगये शीना अकेली सेलेक्ट हुई मसूरी जेपी होटल के लिए और वो तीनो नियुक्त हुई नैनीताल मन्नू महारानी होटल के लिए।इस बात ने चारो को झकझोर दिया था।आज किसी ने खाना ना खाया,चारो लिपट कर रो दी।शीना को आगे का सफ़र अकेले तय करना था,वो तीनो एक साथ तो रहेंगी मगर शीना की मंजिल अलग हो गयी थी ,उन चारो को पता था की इस ट्रेनिंग के बाद वो कभी लौट कर इस रूम में नहीं आएँगी।हालाँकि AHA की ट्रेनिंग अभी बाकी थी मगर उनके एयरहोस्टेज बनने के सपने उनको लौट कर आने नहीं देंगे ये वो चारो जानती थी।वो दिन भी आ गया जब शीना अपना सामान पैक कर के निकल पड़ी मसूरी की ओर।ये उसका पहला कदम था अपनी मंजिल के लिए।रूचि,स्वाति और प्रतिभा भीगी आँखों से उसे विदा दे रही थी मगर कामना कर रही थी की किस्मत फिर से उनको मिला दे और वो फिर से साथ जी लें।आज फिर शीना ने पीछे मुड़ कर ना देखा,और वो तीनो भरी आँखों से उसे तब तक देखती रही जब तक वो ओझल ना हो गयी।और इस तरह शुरू हुआ शीना के जीवन का एक नया अध्याय एयरहोस्टेज 2।जो आप पढ़ेंगे अगले अंक में।


प्रीती राजपूत शर्मा
11 फरवरी 2017

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने