दिन पखेरू
दिन पखेरू
15 साल कितने अजीब थे ,कभी आंसुओ की बारिश ने भिगाया,तो कभी प्यार की पवन ने सुखा दिया।हर अच्छा बुरा समय,हर सुख दुख एक दूसरे की ताकत बनकर सहते रहे।कल की ही तो बात है जब मिले थे वो दोनों।हँसने बोलने से शुरू हुई दोस्ती प्यार बन कर परवान चढ़ने लगी थी।साथ घूमना,सारा सारा दिन दोनों आजाद पंछी बनकर आसमान से बाते करते।कोई गली,कोई पार्क कोई मंदिर ना रहा होगा जिसने उनका प्यार ना देखा हो।सारे पक्षी,सारी हवाए सारी फ़िज़ाएं गवाह थी इनके बढ़ते प्यार की।अल्हड उम्र के पड़ाव में बहते ,दुनिया दारी,मान मर्यादा से बेखबर ये प्यार के पक्षी बस उड़ान भर रहे थे।द्रव्य अपने ऑफिस से तो सुविधा अपने कॉलेज से बंक मारती।दोनो पूरा दिन अनजान सुनी गलियो में घूमते।बाइक की पिछली सीट जैसे उसी के लिए बनी थी।सुविधा बांहे फैलाये द्रव्य को आगोश में भरे बैठी रहती और बाइक की हलकी गति में द्रव्य के स्वर हवा से टकरा कर सुविधा के कानो को छूते तो वो और जोर से द्रव्य से लिपट जाती।द्रव्य का हर शब्द,हर अंतरा ,हर गाना बस सुविधा के लिए होता।गाने की हर पंक्ति में वो दोनों खुद नायक नायिका की जगह तलाशते।कभी रोमांच ,तो कभी अलविदा की बाते संगीत को और भावपूर्ण बना देती।द्रव्य कोई मौका न छोड़ता सुविधा के होठों पर मुस्कान बिखेरने का,रेस्टोरेंट की हर कुर्सी,हर टेबल,हर लाइट,हर ऐसी, और हर स्टाफ खुद को जैसे खुशनसीब समझते इतना प्यार करने वालो के प्यार का गवाह बनना।सुविधा घमंड से भर जाती जब द्रव्य खाना पीना छोड़ कर वही रेस्टोरेंट में खड़ा होकर डांस शुरू कर देता और बांहे फैला कर सुविधा को भी शामिल करता।ये प्यार हर बार बढ़ जाता जब द्रव्य सुविधा को बिना वजह गुलाब का फूल देदेता।अपने ऑफिस में लेजाकर सबसे मिलवाता।लोगो की आँखों में उन जैसा प्यार पाने की ललक साफ़ नजर आती।रस्ते में खड़े होकर गोलगप्पे खा लेना ,चलते चले किसी को भी छेड़ देना,और छोटे से ढाबे पर खड़े होकर चाय की चुस्किया लेना इस प्यार की साधारणता और खासियत को बढ़ा देता।शानो शौकत ,देख दिखावे से दूर द्रव्य और सुविधा बड़े सी साधारण तरीके से इस प्रेम कहानी का लुत्फ़ उठाते।न महंगे होटल में खाना खाने की चाह, न मोल्स में शौपिंग करने की ज़िद,न बरिस्ता की कॉफी,ना लंबी कार की सवारी की इच्छा ,ना महंगे तोहफा का इंतज़ार,बस यही चीज़े सुविधा को द्रव्य के लिए सबसे खास बना देती थी।दिन गुजरते गए ,प्यार बढ़ता गया,प्यार को एक नाम देने का फैसला दोनों की मर्जी से पूरा हुआ,सारी रस्मो रिवाज,धूम धाम से दोनों के रिश्ते का नाम बदल गया।अपने नए संसार में सुविधा के स्वागत में कोई कमी ना रहने दी द्रव्य ने,सुविधा भी रम सी गयी अपने सपनो के संसार में।अभी प्यार परवान चढ़ रहा था शायद शारीरिक रिश्तों ने प्यार के गाढ़े पन को बढ़ा दिया था।वो एक कमर एक महल से कम ना लगता,दोनों सपनो की दुनिया के राजकुमार राजकुमारी और सारी कायनात उनके प्यार के गुलाम लगते।हर रोज द्रव्य के लिए सजना,उसका शौक था,ऑफिस से आने का समय होता और सुविधा के चेहरे पर निखार छाने लगता।रात की मन्त्र मुग्ध करने वाली नाइटी ऊपर सुर्ख रंग की लिपस्टिक से लिपटे होंठ,कमरे की धीमी खुशबू इस रिश्ते को चार चाँद लगा देती।हर रोज द्रव्य का इंतज़ार दोनों को नज़दीक ले आता।द्रव्य की पसंद का खाना,उसकी पसंद के कपडे ऑफिस से पहले तैयार रहते।हर जरूरत समय से पहले पूरी होती।हर छुट्टी या तो पूरा दिन बाहर बीत ती या रात का खाना होटल में खाने जाना इस रिश्ते को तरोताज़ा कर देता।एक सुखद ,वैवाहिक जीवन शायद इसी का नाम था।दोनों के जीवन की कड़ी को मजबूत बनाया उनकी एकमात्र संतान आरव ने।बस जैसे परिवार पूरा हो गया था।भरा पूरा परिवार,हर सुख सुविधा,ऐशो आराम बस और क्या बाकि था जीवन जीने के लिए,दिन पखेरु उड़ रहे थे।मगर ये सोच कुछ साल ही रह पाई।बाकि सहेलियों,और रिश्रेदारो को देख कर सुविधा को भी आखिर याद आया की उसने भी पढाई की थी।इस जिंदगी को जीते जीते जैसे वो भूल ही बैठी थी की द्रव्य को पाने के साथ ही उसने एक और सपना देखा था अपने पैरो पर खड़ा होने का।आखिर जब सुविधा अपनी सपनो की दुनिया से वापस आई उसे जीवन में एक खालीपन लगा और वो था उसके अपने अस्तित्व का।सिर्फ मिसेस द्रव्य बने रहना उसे खटकने लगा।आखिर उसकी अपनी पहचान खो चुकी थी।कितनी ही बार द्रव्य से जिक्र किया तो द्रव्य बड़े प्यार से ख देता ,सब कुछ तो है तुम्हारे पास सुविधा,मैं हूँ,आरव है,मम्मी पापा हैं,अपना घर,अपनी गाड़ी,हर सुख सुविधा फिर क्या जरुरत है बहार जाकर म्हणत करने की।मगर अब हर पल जैसे सुविधा खुद की तलाश में रहती,उसे कोई दिलासा सुकून ना देता।मैंने पढ़ाई की है,मेरे पास सब कुछ है मगर मैं कहाँ हु ,मुझे मेरा अस्तित्व चाहिए।बाते बाते ना रही तनाव में बदल गयी जब सुविधा अपने हक़ की मांग कर बैठी।
तुम ऑफिस जाओगी तो आरव का ख्याल कौन रखेगा सुविधा ,वो अभी 8 साल का है उसे माँ की जरुरत है।
माँ की जरुरत तो जिंदगी भर इसे रहेगी द्रव्य,आरव बड़ा हो गया है,अब मैं अपने अधूरे सपने पूरे करना चाहती हूँ।गंभीरता से सुविधा ने कहा था
कौनसे सपने यार,हर सपना तो पूरा किया है तुम्हारा,क्या नौकरी करनी जरुरी है।क्या कहेंगे लोग की क्या मैं तुम्हारी जरूरते पूरी नहीं कर पा रहा।माँ की जरुरत तो जिंदगी भर इसे रहेगी द्रव्य,आरव बड़ा हो गया है,अब मैं अपने अधूरे सपने पूरे करना चाहती हूँ।गंभीरता से सुविधा ने कहा था
बस बात बढ़ती गयी ,तर्क वितर्क बढ़ते रहे,दोनों अपनी बात पर अडिग थे,द्रव्य चाहता था की सुविधा घर में रहे,सिर्फ घर सम्भाले ,आरव को संभाले,मगर सुविधा चाहती थी की वो बाहर निकले,जॉब करे साडी जिम्मेदारी के साथ वो अपने पैरो पर खड़ी हो,बस बात अब ईगो पर आकर ख़त्म हुई।
मेरे साथ रहना है तो मेरे तरीके से रहो सुविधा,वरना जाओ और कर लो सपने पूरे।
बस ये वाक्य काफी कुछ कह गया था।बात आत्मसम्मान पर आगयी थी।
ठीक है।।।इतना कहकर सोने चली गयी थी सुविधा।इस ठीक है का क्या मतलब निकले,ठीक है तुम्हारे तरीके से रह लेती हूँ,या फिर ठीक है चली जाती हूँ और पूरे कर लेती हूँ अधूरे सपने।
ये बात सुबह साफ़ हुई जब सुविधा का बड़ा सा बैग उसके हाथ में देखा द्रव्य ने।
तो जा रही हो तुम....ठीक है जाओ मगर आरव मेरे पास रहेगा।
नहीं आरव मेरे साथ जायगा ,माँ हूँ मैं उसकी आज तक पाला है इसको,ये मेरे साथ रहेगा।
और सुविधा ने द्रव्य का घर लांघ दिया।महीनो बीत गए मगर बात सुलझने के बजाय उलझने लगी थी।फ़ोन के कट जाने की वजह हर बार आरव होता।
एक दिन सब बदल गया जब पोस्टमैन ने सुविधा को वो तलाक और आरव की कस्टडी के पेपर लाकर दिए।अब बात काफी आगे निकल गई थी।तारिख लगती रही मगर फैसला रुकता रहा।अब तक कितनी ही बार द्रव्य ने फ़ोन पर माफ़ी मांगी और घर लौट आने को कहा ,मगर सुविधा अभी भी वही रुकी थी ,मेरा अपने हक़ की ज़िद करना जायज था,नाराज होकर मायके जाना जायज था मगर तलाक के पेपर भेजना ये क्यों किया द्रव्य?और द्रव्य बस सॉरी कहता।नहीं अब फासले बढ़ गए है द्रव्य,अब हमे अलग ही हो जाना चाहिए।
एक्सक्यूज़मी मैडम,आपको अंदर बुलाया है,
कोर्ट के एक कार्य करता ने सुविधा की तन्द्रा भंग कर दी थी।14 साल के सुनहरे पल जैसे एक ख्वाब था।भरी कदमो से सुविधा अंदर दाखिल हुई।जहा द्रव्य पहले से बैठा था।आरव जाने कब पापा की गोद में जा बैठा था।सामने जज साहब बैठे थे।दोनों वकील भी अपनी अपनी जगह बैठे थे।वकील ने चश्मे से घूरते हुए कहा था... आज आखिरी सुनवाई होगी सुविधा जी।कोर्ट ने पूरा अवसर दिया आप दोनों को सुलह करने का मगर आपने अलग होने का फैसला किया।आप दोनों इन पेपर्स पर साइन कर दीजिये और आपका तलाक आज ही मान्य हो जायगा।सुविधा ने मुड़ कर द्रव्य की तरफ देखा था।मिस्टर द्रव्य साइन कर चुके है मैडम आप कीजिये।इस बार सुविधा ने फिर द्रव्य को देखा जो नजरे झुकाये आरव को बाहों में भरे बैठा था।एक नजर आरव लार गयी तो वो पापा की गोद में ऐसे सिमटा नजर आया जैसे सबसे सुरक्षित जगह यही है।सारे पुराने पल सुविधा को कौंध रहे थे।सुविधा ने कलम उठा ली थी,मगर उसकी कांपती उंगलिया जैसे तैयार ही नहीं थी उस कलम का वजन उठाने को।उसने पन्ना पलट कर पेन को उसपर चलना शुरू कर दिया था।वकील आँखे फैलाये उसे देख रहा था।मैडम ये क्या किया आपने द्रव्य जी के साइन मिटा दिए।मगर अभी भी बिना कुछ सुने सुविधा द्रव्य के किये साइन पर पेन घूमती रही जब तक लिखा हुआ पेन की स्याही में छुप ना गया।सुविधा ने कांपते हाथो को जोड़ दिया था।माफ़ कीजिये जज साहब,मगर मैं ये तलाक नहीं लेना चाहती,मुझे मेरा बच्चा उसके पिता के साथ ही चाहिए।मई मेरे पति के बिना नहीं रहना चाहती।द्रव्य ने उठ कर सुविधा को सीने से लगा लिया था।दोनों की आँखे बरस रही थी दोनों हाथ जोड़े वहां उपस्थित सभी लोगो से माफ़ी मांग रहे थे।मगर वहां हर एक चेहरे की मुस्कान साफ़ बता रही थी की इस टूट ते रिश्ते के जुड़ जाने की सबको ख़ुशी थी।आज फिर जिमेदरियो से भरी जिंदगी से वो अल्हड प्यार जीत गया था।
प्रीती राजपूत शर्मा
5 फरवरी 2017
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