एयरहोस्टेस पार्ट 2

सब कुछ नया था शीना के लिए।ये आलिशान होटल जैसे एक सपनो की दुनिया का हिस्सा था।मसूरी का पांच सितारा होटल jaypee residency mannor massorie. जैसे फिल्मो से लाया गया कोई सेट हो।40 दिन की टैनिंग के लिए शीना के बैच से 4 लड़के 2 लडकिया भेजी गयी थी।शंकर,उमेश,अभिनव,विनय,अनामिका और शीना,टैक्सी लेकर मसूरी की वादियों में पहुंचे थे।होटल की तरफ से रहने की सुविधा एक दिन बाद मिलनी थी।मगर आज की रात इन ठंडी वादियो में कैसे गुजरेगी ये फैसला सब ने मिलकर लिया।पास थोडा और ऊपर चल कर एक कमरा मिला था,जिसमे 3 सिंगल बेड पड़े थे ,नहाने के लिए ठंडा शरीर को जमा देने वाला पानी भी था,बिस्तर भी मकान मालकिन ने तरस खा कर दे दिए थे।अब सीधा सा हिसाब था 3 बेड पर 6 लोग।मगर ये सीधा सा हिसाब तब ख़राब हुआ जब अनामिका और अनुभव एक बेड पर सोने को उतावले हुए।दोनों की दिलो की चाहत को जिस्मानी जरुरत में बदलने का मौका जो था।शीना ये आधुनिकता देख कर भाव विभोर थी मगर इस रात को कैसे भी काटना उसकी मज़बूरी थी।विनय और उमेश दूसरे बेड पर थे ,अब बचे शीना और शंकर,मगर ये संभव ना था,शंकर के दिल में शीना के लिए प्यार के बीज तो कब के उग चुके थे या फिर सिर्फ आकर्षण के मगर शीना इन चीज़ों से अनजान रहना चाहती थी,उसने शंकर के साथ bed share करने से साफ़ इनकार कर दिया था।वो कही भी सोये कैसे भी ये कहना इंसानियत नहीं थी मगर शीना के संस्कारो के आगे ये कह देना उसे अच्छा लगा।
आखिर रात बीत गयी थी ,मसूरी की पहली सुबह,ठंडी सीना चीरती हवा,और दूर दूर तक बस हरे भरे पहाड़,पहाड़ो के बीच से होते हुए रस्ते,वहीँ चरते जानवर,पगडंडियों से जाते स्कूल के छोटे छोटे बच्चे, कितना सुहाना कितना प्यारा था सबकुछ,मगर रात से खाली पेट ने किसी भी चीज़ का लुत्फ़ उठाने ना दिया,बाथरूम में पहाड़ो का ठंडा पानी एकमात्र विकल्प था।ना नाहा कर जाना तो संभव् ही नहीं था।खैर ,जैसे कैसे नाहा धोकर तैयार होकर वो सब जा पहुंचे नीचे जेपी होटल के पीछे के हिस्से में बने टाइम ऑफिस,जहा से सारा होटल नियंत्रित होता था।वहां बहुत से टीवी लगे थे जिसमे होटल के कोने कोने की हरकत देखि जा सकती थी।होटल का स्टाफ मेन गेट से नहीं बल्कि टाइम ऑफिस से होकर पीछे के रास्ते से होटल में जाता है।वहां सबके हस्ताक्षर लेकर उनको नियम कानून बताये गए।अब समय था उस आलिशान होटल में जाने का जो कल्पना से परे बड़ा था।वहां के स्टाफ ने पूरा होटल घुमाया शीना के पैर जवाब दे चुके थे कल रात से भूख ने अलग हमला किया हुआ था।अब उन लोगो ने उनसब को HR के पास भेज दिया था ताकि सबको रहने के लिए कमरा दिया जा सके।स्टाफ के रहने के लिए होटल से कुछ दूर एक अलग ही दुनिया बसाई गयी थी ,ड्रीम लैंड,जहाँउपर की तरफ सिर्फ लड़कियो के रहने की व्यवस्था थी और नीचे बने कमरो में लड़को की ।लड़को को लड़कियो और लड़कियो को लड़को के कमरे में आने की अनुमति नहीं थी।शीना और अनामिका को एक कमरा दिखाया गया था,मगर अनामिका अभिनव के साथ उसी किराये के कमरे में रहना चाहती थी,और उनका साथ देने के लिए शंकर,विनय और उमेश ने भी वहीँ रहने का फैसला किया ,मगर शीना खुश थी अपना अलग रूम पा कर,मगर दोस्तों की याद और घर की यादो ने उसे तोड़ सा दिया था ,सब कुछ नया है ,यहाँ साथ देने के लिए रूचि,स्वाति प्रतिभा में से कोई नहीं है,कैसे वो यहाँ इस कमरे में अकेले रहेगी,कैसे अकेले खायेगी,हालाँकि खाने की व्यवस्था दिन में होटल की मेस और रात में ड्रीम लैंड मेस में की गयी थी।मेस में जाकर पता लगा की aha से और बैच के भी स्टूडेंट्स वहां ट्रेनिग के लिए आये थे।संस्कृति,अतुल,पंकज,सब आपस में घुल मिल गए थे।शीना को फ्रंट ऑफिस पर रखा गया था,अनामिका को और बाकी लड़को को फ़ूड एंड बेवरेज में।शीना के लिए चुनौती शुरू हो चुकी थी,वो कैसे vip गेस्ट से फर्राटे दार अंग्रेजी में बात करेगी,कैसे दूसरे देश से आये गेस्ट से बात करेगी,क्या वो 12 घंटे खड़े होकर रह पायेगी।साड़ी चीज़ों ने शीना को कौंध दिया था जैसे कैसे दिन निकला और रात एक और चुनौती लेकर आ खड़ी हुई जब कमरे में बेड पर शीना सोने के लिए पसर गयी।दिन भर की थकान के बाद वो सोना चाहती थी मगर ठण्ड और शीना के पास एक पतला सा कम्बल।पहाड़ो की ठण्ड में फरवरी मार्च की ठण्ड एक पतले से कम्बल से भला कैसे रुक पाती।शीना ने बेड से उस पर बिछी चादर उतार कर अपने कम्बल पर लगा ली थी पास में रखा हीटर भी उसे पर्याप्त गर्माहट नहीं दे पा रहा था,ऊपर से अनजान जगह में एक अकेले कमरे में शीना अकेला और डरा हुआ महसूस कर रही थी,रात जैसे कम होने की बजाये एक एक मिनट बढ़ रही थी।और शीना का काँपता शरीर सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था।खैर सुबह भी आ ही गयी थी और शीना भी तैयार थी नयी दुनिया में जीने के लिए।कमरे में गीजर था।नाहा धो कर शीना चढ़ाई चढ़ कर फिर होटल में पहुच गयी थी।सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक शीना खड़ी रहती।एक एक दिन बोझ की तरह कट रहा था।मगर 40 दिन की ये ट्रेनिंग उसके लिए जरुरी थी।
अब उन चारों की दोस्ती सिर्फ फ़ोन कॉल्स तक सीमित हो गयी थी।होटल के बिजी शेड्यूल ने सबको इतना बिजी कर दिया था कि एक दूसरे को कॉल कर पाना भी मुश्किल सा हो गया था और वैसे भी वो तीनो तो एक साथ थी शायद मन लग गया था उनका मगर शीना अकेली हर रोज टूट रही थी।घर की यादें दोस्तो की यादें और फिर वहां सीनियर्स का मिस्बेहवे शीना को छलनी कर रहा था।ड्रीम लैंड उसके लिए जेल सी हो गयी थी।उस कमरे की दीवार उसे खाने को दौड़ती थी।उस पतले से कम्बल में घुसती ठंड हर रोज एक जंग होती थी।हर रात बढ़ती जा रही थी।मेस का खाना मा की याद दिलाता था।बहुत कोशिश की मगर वहां शीना कोई दोस्त नही बना पाई।15 20 दिन ही हुए थे कि शीना ने ठान लिया कि वो यहाँ से भाग कर अपने घर चली जायेगी।और होली से एक दिन पहले वो बिन किसी को बताए ड्रीम लैंड से घर के लिए रवाना हो गयी।अंदर एक डर था कि अगर सबको पता लगा तो क्या होगा उसे निकाल दिया जायेगा ।या फिर ट्रेनिंग सर्टिफिकेट नही दिया जायेगा।मगर सारे रिस्क लेकर शीना पहुच गयी देहरादून।शाम के 4 बज चुके थे उसे पता था कि उसे जाते जाते रात हो जायेगी मगर उस जेल में रहने से अच्छा तो उसे ये बाकी सारे रिस्क उठाना अच्छा लगा।करीब 7.30 बजे गए थे जब वो नजीबाबाद पहुची।वहां  से बिजनोर या मंडावर के लिए कोई बस नही थी ।चारो तरफ सिर्फ नशे में धुत्त लोग घूम रहे थे ।होली से एक दिन पहले नशा जैसे सबके सर चढ़ कर बोल रहा था।खैर शीना ने अपना डर अंदर छुपा लिया था।आखिर उसे 8 बजे एक बस मिली जो किरतपुर जानी थी।किरतपुर मामा का घर होने के कारण उसे वही जाना ठीक लगा ।सुबह ही वो अपने घर पहुंची जहां पहले से ही बहुत से सवाल तैयार थे उसके लिए।मगर शीना जैसे स्वर्ग में आ पहुंची थी।मगर कितने दिन के लिए आखिर उसे फिर जाना होगा।वो ट्रेनिग पूरी जो करनी थी।10 दिन बाद बेमन शीना फिर से निकल पड़ी देहरादून।पहले अपने उसी रूम में गयी जहां उन चारों की यादें आज भी शोर मचा रही थी।मगर वहां की हर दीवार पराई सी लगी।शाम को आखिरी बस से शीना मसूरी पहुंची।वहां से एक सुनसान रास्ता ड्रीम लैंड तक पहुंचता था।शीना  जल्दी पहुचने के इरादे से निकल गयी उस रास्ते पर।सीधा खड़ा रास्ता ।।।खतरनाक चढ़ाई,दिन हर सेकंड ढल रहा था।रास्ते के दोनों तरफ घनी झाड़िया और झाड़ियों से आती कीट पतंगो की आवाज शीना को डरा रही थी।उसकी सांस फूल रही थी वो न पीछे जा सकती थी न आगे जाने की हिम्मत बटोर पा रही थी।पीछे जाती तो रास्ता कम ना होता बल्कि खतरा और बढ़ जाता।आगे जाना ही एक विकल्प था मगर दूर दूर से जंगली जानवरों की आती आवाज ने शीना को बुरी तरह डरा दिया था।रात हो गयी थी इस वक्त यहां कोई भी अनहोनी संभव थी।शीना लगभग दौड़ पड़ी थी मगर वो चढ़ाई जैसे खत्म ही नही हो रही थी ।।आखिर कुछ दूर कुछ लाइट्स नजर आने लगी ,शीना की जान में जान आई।लगा जैसे वो जिंदा है।ड्रीम लैंड की हरी दीवारे दिखने लगी थी और शीना की हिम्मत बढ़ने लगी थी।शीना थक कर चूर हो गयी थी और डर ने जैसे उसकी सारी जान खींच ली थी।अब ड्रीमलैंड जेल नही सुरक्षित घर लग रहा था शीना को।अपने कमरे का दरवाजा खोलते ही शीना अपने बेड पर गिर गयी थी दरवाजा बंद करके फुट फुट कर रोने लगी थी ।उसकी हिम्मत टूट गयी थी उसका डर उसकी आँखों से बह रहा था।आज कुछ भी हो सकता था वो अपनी इज़्ज़त अपनी जान कुछ भी खो सकती थी।और ये बात उसको तोड़ चुकी थी।किस से कहती घर मे कहती तो घर वाले डर जाते ,बस ये कमरे की दीवारे ही आज उसकी दोस्त बनी।
अगले दिन होटल में सीनियर्स से बहुत कुछ सुना ,डांट खाई,मगर शीना ने सबकुछ चुपचाप सुना क्योंकि वो अभी उस वाकया से निकल ही नही पाई थी।अब शीना ने मन लगा कर ट्रेनिंग करनी शुरू कर दी थी।और उसके कुछ दोस्त भी बन गए थे ,बबिता,मयंक ,सौरभ,और देखते ही देखते वो दिन भी आगया जब मसूरी को अलविदा कहने का वक्त आया।जाने से एक दिन पहले सब दोस्त मिल कर निकाल पड़े मसूरी की टेढ़ी मेढ़ी सड़को पर।सब हस्ते गाते अपने इस सफर को याद करते चले जा रहे थे।रात मसूरी से दिखाई देता चमकता देहरादून शीना का कल का बसेरा था।आज लग रहा था कि काश कुछ दिन और मिल जाए मगर जो समय गया वो।वापस कहाँ आता है।आखिर शीना की ये 40 दिन की ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी ।सर्टिफिकेट हाथ मे आ गया था ।सबसे अलविदा लेली थी और शीना निकल पड़ी थी जिंदगी के एक नए सफर पर।और ये नया सफर उसे कहाँ ले कर गया ये आप पढेंगे पार्ट 3 में।

टिप्पणियाँ

kuch reh to nahi gya

हाँ,बदल गयी हूँ मैं...

Kuch rah to nahi gaya

बस यही कमाया मैंने